बुधवार, 15 अप्रैल 2020

नीचता की हद, सरेराह खुलेआम लूट

नीचता की हद पार, सरेराह खुलेआम लूट
अकाशुं उपाध्याय
गाजियाबाद। जाहिर सी बात है निकट भविष्य में ज्यादातर लोगों ने इस प्रकार की परिस्थितियों का कोई अनुभव नहीं किया है। बल्कि लंबे समय से भारत में किसी महामारी का कोई प्रकोप नहीं रहा है। महामारी के प्रभाव से शासकीय व्यवस्थाओं की चूलें हिल चुकी है। जिसके परिणाम स्वरूप देश में सरेराह खुलेआम अपराध पनप रहा हैं। देश की शासन व्यवस्था भ्रष्टाचार की गहरी खाई में उतर गई है। 'लॉक डाउन' की परिभाषा बदलकर खुली लूट में तब्दील हो गई है। उत्तर-प्रदेश की योगी सरकार में गरीब-मजदूर के साथ इतना घटिया मजाक हुआ।जो न इससे पूर्व हुआ है और भविष्य में इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। योगी सरकार के द्वारा गरीब-मजदूर राशन कार्ड धारकों को प्रति यूनिट 5 किलो अनाज वितरण करने की योजना में सरकारी तंत्र लूट का षडयंत्र रच चुका है। प्रति यूनिट वितरण प्रणाली में सस्ते सरकारी गल्ले की दुकान संचालक और गाजियाबाद खाद आपूर्ति विभाग के द्वारा सुनियोजित ढंग से अनाज की कालाबाजारी और सेंधमारी का सुनियोजित षड्यंत्र जग जाहिर हो गया है। अनाज प्राप्ति के लिए कड़ी धूप में लाइनों में लगे नागरिकों को निर्धारित अनाज नहीं मिला है। कहीं 1 किलो कम, कहीं 2 किलो कम और कहीं-कहीं तो पूरी-पूरी यूनिट का ही अनाज नहीं दिया गया है। इस विषय में उपजिला अधिकारी खालिद अंजुम खान से जानकारी करने पर ज्ञात हुआ कि ऐसा विधिक-प्रक्रिया के विरुद्ध किया जा रहा है और इसके विरुद्ध आवश्यक कार्यवाही का आश्वासन भी दिया गया।
 विशेष बात यह है कि इतनी दुर्गम और विषम परिस्थिति में गरीब के निवाले पर जिला प्रशासन की शह पर खाद आपूर्ति विभाग इतने बड़े स्तर पर सेंधमारी कर रहा है। स्थानीय जनप्रतिनिधी अपनी सुख-सुविधाओं में किसी प्रकार का कष्ट नहीं चाहते हैं। परंतु संकट के समय में उपकारी और अपकारी का ज्ञान होता है। कमजोर नेतृत्व की मानसिकता की आड़ में कहीं हमारे जनप्रतिनिधि ही इस लूट का हिस्सा तो नहीं है? अधिकारी तो मुख्यमंत्री के निर्देशन में यह खुली लूट कर रहे हैं। लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधि इतने नीच कैसे हो सकते हैं? जिस जनता पर  उनका शासन स्थित है। उन्हीं गरीब-मजबूर और असहाय लोगों के मुंह से निवाला छीनने का छद्म कार्य आखिर किसकी सह पर हो रहा है? हालांकि इसका कोई भी परिणाम अथवा निष्कर्ष निकलने वाला नहीं है। क्योंकि शासन-प्रशासन की सूझबूझ के बिना इतना बड़ा अपराध संभव नहीं है। परंतु 'चोर-चोर मौसेरा भाई', जो भी इस भ्रष्टाचार की गठरी सर पर रखे हुए हैं। उसके पैरों के नीचे कानून तिल-मिला रहा है। यह सरकार के प्रति निष्ठा और संविधान के प्रति कर्तव्य परायणता सहित दोनों का ही पतन है।


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