बुधवार, 19 मई 2021

सप्तमी को गंगा स्वर्ग से शिव की जटाओं में पहुँची

गंगा सप्तमी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को कहा जाता है। पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार वैशाख मास की इस तिथि को ही माँ गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शिव की जटाओं में पहुँची थीं। इसलिए इस दिन को 'गंगा सप्तमी' के रूप में मनाया जाता है। कहीं-कहीं पर इस तिथि को 'गंगा जन्मोत्सव' के नाम से भी पुकारा जाता है। गंगा को हिन्दू मान्यताओं में बहुत ही सम्मानित स्थान दिया गया है। पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार जब कपिल मुनि के श्राप से सूर्यवंशी राजा सगर के 60 हज़ार पुत्र जल कर भस्म हो गए, तब उनके उद्धार के लिए राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या की। वे अपनी कठिन तपस्त्या से माँ गंगा को प्रसन्न करने में सफल रहे और उन्हें धरती पर लेकर आए। गंगा के स्पर्श से ही सगर के 60 हज़ार पुत्रों का उद्धार हो सका। गंगा को 'मोक्षदायिनी' भी कहा जाता है। विभिन्न अवसरों पर गंगा नदी के तट पर मेले और गंगा स्नान आदि के आयोजन होते हैं। इनमें 'कुंभ पर्व', 'गंगा दशहरा', 'पूर्णिमा', 'व्यास पूर्णिमा', 'कार्तिक पूर्णिमा', 'माघी पूर्णिमा', 'मकर संक्रांति' व 'गंगा सप्तमी' आदि प्रमुख हैं।

9 माह की बच्ची से लेकर 66 वर्षीय दादा संक्रमित

राहुल चौबे   

कवर्धा/रायपुर। मन के हारे हार है मन के जीते जीत' सन्त कबीर की इन पंक्तियों की अहमियत कोरोना काल में अत्यधिक बढ़ गई है। बहुत से लोग हैं, जो होम आइसोलेशन में रहकर कोरोना की जद से बाहर आ रहे हैं। कवर्धा के वार्ड नम्बर 8 में एक इसी तरह का परिवार है, जहां कोरोना के कारण 9 सदस्यीय परिवार के 9 माह की बच्ची से लेकर 66 वर्षीय दादा भगवान सिंह तक पूरे परिवार को होम आइसोलेशन में रहना पड़ा। दरअसल इनके परिवार ने हाल ही में कोरोना से जंग जीत लिया है। 17 दिनों तक होम आइसोलेशन शासकीय दवा और कंट्रोल रूम से आने वाले कॉल के माध्यम से गाइड लाइन को फॉलो करने वाले इस परिवार ने बताया कि यदि मनोबल ऊँचा रखा जाए तो हर मुश्किल से पार निकला जा सकता है। परिवार के 66 वर्षीय भगवान सिंह ठाकुर, 62 वर्षीय शारदा देवी ठाकुर, 33 वर्षीय दीपक ठाकुर, हेमन्त ठाकुर, कुसुम ठाकुर समेत 4 वर्षीय काव्यराज, 3 वर्षीय तिथि ठाकुर, 9 माह की अधिश्री का जांच के बाद कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव पाया गया था। 

कोविड कंट्रोल रूम के कॉल से मिली हिम्मत

भोरमदेव थाना में पदस्थ आरक्षक हेमन्त ठाकुर की पत्नी डिम्पल व दीपक की पत्नी कुसुम सिंह जो स्वयं व्याख्याता हैं, लेकिन कोविड काल में मनोबल मजबूत नहीं थी। परिवार छोटे बच्चों और घर के बुजुर्गों की सेहत के लिए भयभीत था। परिवार के सदस्य बताते हैं कि उनके पास कोविड कंट्रोल रूम से रोज काउंसलिंग के लिए कॉल आता था, जिससे उन्हें अपनी शंकाओं का हल मिलने लगा और उनका मनोबल मजबूत होता गया। पूरे परिवार ने मनोबल बढाकर कोरोना के खिलाफ जंग में समझदारी दिखाते हुए गाइड लाइन का पालन किया और परिणाम स्वरूप अब पूरा परिवार कोरोना मुक्त है।

संक्रमण से 1955 रेलवे कर्मचारियों की जान गई

समाचार एजेंसी के मुताबिक रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष सुनीत शर्मा ने कहा कि रेलवे किसी अन्य राज्य या क्षेत्र से अलग नहीं है। हम भी कोविड संक्रमण की मार झेल रहे हैं। इस समय हम लोगों की मदद कर रहे हैं लेकिन हमारी हालात भी अच्छी नहीं है। रोजाना करीब 1000 (कोविड) मामले सामने आए। उन्होंने कहा कि हम अपने स्टॉफ का पूरा ख्याल रख रहे हैं। उन्हें आवश्यक मेडिकल सुविधा भी उपलब्ध करा रहे हैं। रेलवे के अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या बढ़ाई है, रेल अस्पातलों में ऑक्सीजन संयंत्र बनाए हैं। फिलहाल 4000 रेलवे कर्मी या उनके परिवार के सदस्य इन अस्पतालों में भर्ती हैं। हमारा प्रयास है कि वो जल्दी ठीक हो जाएं। उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि पिछले साल मार्च से अब तक 1952 रेलकर्मियों की कोविड-19 महामारी की चपेट में आकर जान जा चुकी है।

झील के नीचे बसा है 160 घरों वाला भूतिया गांव

रोम। इटली में झील के नीचे से 160 घरों वाला गांव निकला है। झील का पानी कम होने पर ये गांव नजर आया। स्थानीय लोगों के मुताबिक ये गांव कभी-कभी नजर आता है, जिसके चलते इसे भूतिया गांव कहा जाता है।cbsnews.com की रिपोर्ट के मुताबिक इटली की झील से दशकों बाद बाहर निकले इस गांव का नाम कुरोन है।1950 में इस गांव में बिजली संयत्र की स्थापना की गई थी, उसी समय इस गांव में बाढ़ आ गई थी, जिसमें ये गांव पूरी तरह तबाह हो गया था। ऑस्ट्रिया और स्विटजरलैंड के साथ इटली की सीमा के पास बसी झील को अब एक जलाशय की मरम्मत के लिए अस्थायी रूप से निकाला जा रहा है। जैसे-जैसे जल स्तर घट रहा है, 160 घरों वाला गांव उभर रहा है।आमतौर पर 14वीं सदी की चर्च की मीनार पानी से बाहर निकल आई हैं।
 लेकिन जैसे-जैसे पानी कम हो रहा है, तो  झील के नीचे से इस गांव की गुफाएं और दीवारें दिखाई दे रही हैं। इटली की झील के डूबे इस गांव को लेकर “क्यूरॉन” नाम से एक वेब सीरीज भी बनी है, इसके अलावा इस गांव पर एक किताब लिखी गई है, जिसमें गांव की पूरी कहानी को बताया गया है।यहां की रहने वाली एक महिला ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि पुराने घरों के मलबे पर चना एक “अजीब एहसास” था. उसने बताया कि ये क्षेत्र हाइकर्स के लिए काफी लोकप्रिय है, जिनके द्वारा गांव की भयानक तस्वीरों को शोसल मीडिया पर वायरल किया गया है। वहीं एक अन्य ट्विटर यूजर ने लिखा है कि वह "कुरोन नाम के गांव के अवशेष हैं, जो दशकों से डूबे हुए थे, इटली में LakeResia की निकासी करते हुए मिले हैं।

वायरस से 300 से अधिक पत्रकारों की मौत हुईं

हरिओम उपाध्याय  नई दिल्ली। भारत में कोरोना के चलते लाखों की संख्या में लोगों ने अपने परिजनों को खोया हैं। इसमें वो पत्रकार भी शामिल थे, जिन्होंने दिन-रात कोविड की रिपोर्टिंग की और बिना अपनी जान की परवाह किए लोगों तक पल-पल की ख़बरे पहुंचाई। कोरोना की पहली और दूसरी लहर में ग्राउंड पर जाकर रिपोर्टिंग कर रहे रिपोर्टरों और लगातार ऑफिस जा रहे पत्रकारों को न तो फ्रंट लाइन वर्कर माना गया और न ही उनको वैक्सीन में प्राथमिकता मिली. परिणाम ये हुआ कि कई नामी गिरामी पत्रकारों सहित अलग-अलग राज्यों में 300 से ज्यादा मीडियाकर्मी कोरोना की चपेट में आकर जान गंवा चुके हैं. इसे त्रासदी ही कहेंगे कि अप्रैल के महीने में हर रोज औसतन तीन पत्रकारों ने कोरोना के चलते दम तोड़ा। मई में यह औसत बढ़कर हर रोज चार का हो गया। जिसके अनुसार भारत में अब तक कुल 300 पत्रकारों की मौत हुई है। इंस्टीट्यूट ऑफ परसेप्शन स्टडीज के रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल 2020 से लेकर 16 मई 2021 तक कोरोना की वजह से कुल 238 पत्रकारों की मौत हो गई। यह आकंड़े भयावह हैं। इंस्टीट्यूट ऑफ परसेप्शन स्टडीज की रिपोर्ट में उन सभी पत्रकारों को शामिल किया गया है। जो फील्ड या दफ्तरों में कार्यरत थे। इनमें रिपोर्टर से लेकर स्ट्रिंगर, फ्रीलांसर, फोटो जर्नलिस्ट और सिटिजन जर्नलिस्ट तक सभी शामिल हैं।

रिपोर्ट बताती हैं कि कोरोना की पहली लहर अप्रैल से लेकर दिसंबर तक थी। इस दौरान 56 पत्रकारों ने अपनी जान गंवाई। पहली लहर के मुकाबले दुसरी लहर काफ़ी भयावह साबित हुई। 1 अप्रैल से लेकर 16 मई तक 171 पत्रकारों ने दम तोड़ दिया। शेष पत्रकारों का निधन जनवरी-अप्रैल की बीच में हुआ। मीडिया रिपोर्टस की माने तो यह आंकड़े अलग- अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, खबरों, पेपर से एकत्र किए गए हैं।

  • उत्तर प्रदेश- 37
  • तेलंगाना- 39
  • दिल्ली-30
  • महाराष्ट्र- 24
  • ओडिशा- 26
  • मध्यप्रदेश – 19

किस उम्र में ज्यादा मौतें हुई
रिपोर्ट के अनुसार कोरोना का आसान शिकार 41 से 50 उम्र के लोग हुए। इनमें मौतों का आंकड़ा 31 फीसदी है।
•    वहीं, 31 से 40 वर्ष के बीच में 15 फीसदी
•    51 से 60 के बीच में 19 फीसदी
•    61 से 70 के बीच में 24 फीसदी
•    71 साल से ऊपर आयु वालो में 9 फीसदी

छोटे कस्बों में ज्यादा मौतें
इंस्टीट्यूट ऑफ परसेप्शन स्टडीज की निर्देशक डॉ कोटा नीलिमा ने मीडिया को बताया कि 35 फीसदी पत्रकार मेट्रो शहर से है, जबकि 64 फीसदी नॉन- मेट्रो शहरों से आते हैं जैसे कि कस्बे, गांव, छोटे शहर।

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प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

1. अंक-277 (साल-02)
2. बृहस्पतिवार, मई 20, 2021
3. शक-1984, बैसाख, शुक्ल-पक्ष, तिथि- नवमी, विक्रमी सवंत-2078।
4. सूर्योदय प्रातः 06:00, सूर्यास्त 07:07।
5. न्‍यूनतम तापमान -10 डी.सै., अधिकतम-28+ डी.सै.। तेज हवाओं के साथ बरसात की संभावना बनी रहेगी।
6.समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा। सभी पद अवैतनिक है।
7.स्वामी, प्रकाशक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित। प्रकाशित समाचार, विज्ञापन एवं लेखोंं से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं हैं। पीआरबी एक्ट के अंतर्गत उत्तरदायी।
8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102।
9.संपर्क एवं व्यावसायिक कार्यालय-डी-60,100 फुटा रोड बलराम नगर, लोनी,गाजियाबाद उ.प्र.-20110
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