शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

मेरे बच्चे 'संपादकीय'

मेरे बच्चे    'संपादकीय' 

सबसे सुंदर, सबसे अच्छे।
नंगे हो या पहने हो कच्छे।
काले-गौरे, प्यारे-प्यारे बच्चे।

दुनिया में थलचर-जलचर, नभचर-निशाचर आदि कई प्रकार के जीव सार्वभौमिक अनुसरण करते हैं। ज्यादातर लोग इस विषय से परिचित है। सभी पशु-पक्षी, जीव-जंतु प्रजनन करते हैं, अपने बच्चों का पालन पोषण करते हैं, परिवार, जाति और समूह की रक्षा करते हैं। जब तक शिशु सामाजिक परिवेश में ढलने की स्थिति में नहीं होता है, तब तक उसका संरक्षण, पोषण माता-पिता पूरी निष्ठा के साथ करते हैं। यह एक स्वाभाविक गुण है, सभी का यह स्वाभाविक गुण है। सभी जीव-जंतु विवेक और बुद्धि का उपयोग करते हैं। परंतु, केवल मनुष्य एक ऐसा विवेकी जीव हैं, जो सर्वाधिक तीव्रबुद्धि का स्वामी है। मनुष्य की तीव्र बुद्धि के कारण सार्वभौमिक सृष्टि में कुल मानव जाति का 60 प्रतिशत हिस्सा कुपोषण का शिकार है। 
प्रतिस्पर्धा, अत्याधुनिकता, साम्राज्यवाद नीति, प्रभावी वित्त व्यवस्था, शक्तिसंचय एवं अधिकारिक शासन प्रणाली के मकड़ जाल में संपूर्ण मानव जाति फंस गई है। परिणाम स्वरूप केवल भारत में कुपोषण से होने वाली बीमारियों के कारण 17 लाख लोगो की मृत्यु हो जाती है। केवल भारत में 71 प्रतिशत नागरिक कुपोषण की समस्या से जूझ रहे हैं। आयात-निर्यात एवं वैश्विक सामंजस्य में संतुलन स्थापित करने के प्रयास में यह भीमकाय संकट विश्व के साथ-साथ भारत में भी गहराता जा रहा है। एक तरफ जलवायु परिवर्तन संपूर्ण पृथ्वी के लिए संकट बन चुका है। यह समस्या अमीर-गरीब, छोटे-बड़े के भेदभाव से इतर है। किंतु भुखमरी और कुपोषण ऐसी समस्या नहीं है, जो मानव के नियंत्रण से बाहर है।
विश्व में एक करोड़ से अधिक लोग भुखमरी व कुपोषण से उत्पन्न होने वाले रोगों के कारण मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में कोई विकसित या विकासशील देश का प्रत्येक नागरिक मेरे बच्चों की चिंता में व्यस्त है। इसी कारण हमने उन बच्चों को बेगाना कर दिया है, जो हमारे स्नेह और सानिध्य के अधिकारी हैं। यदि समय रहते लालची और स्वार्थी मानव वातानुकूलित समावेशी विचारों की अंतोगत्वा  गृहण नहीं करेगा, तो मानव दुष्कर परिणाम झेलने के लिए तैयार रहें।
चंद्रमौलेश्वर शिवांशु  'निर्भयपुत्र'

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