रविवार, 22 मई 2022

पहली कल्पना 'संपादकीय'

पहली कल्पना    'संपादकीय' 

क्या तुमने कुछ ऐसा देखा है....
रात भरी अंधेरी में, सूरो सा, 
दिन के उजालों में, गूढ़ सा, 
मैंने गज-लख दूरो से, 
विहीन व्योम में उसको देखा है.... 
जो तेरा है, ना मेरा है सन्यासी है, 
मन फिर भी उसका अभिलाषी है, 
चाहत है मिथ्या, निकृष्ट, 
रख लिया जैसे कोई श्वेत पृष्ठ, 
सबने उठना यूं ही सीखा है....
प्रतीत रहता है तुझमें-मुझमें, 
अतीत रहता है उसी दिन से, 
साये में, काया में हर् फराह में, 
जुर्म-धर्म की सहस्त्र बांहों में, 
लेखों में सारे उसका लेखा है.... 
क्या तुमने कुछ ऐसा देखा है....

संपूर्ण ब्रह्मांड में मनुष्यों के जीवन में साहित्य विशेष महत्व रखता है। गद्य-पध दोनों स्थानों पर रचित कृतियों में कल्पना का सजीव अस्तित्व स्थित है। किसी प्रक्रिया के घटित होने से पूर्व ही विवरण रचना कल्पना ही तो है। किसी पात्र अथवा परिस्थिति की कल्पना का सामान्य जीवन में सीधा संबंध बना रहता है। मात्र, कल्पना की सच्चाई से रूबरू कराना ही है। किसी रचनाकार के मस्तिष्क में कोई कल्पना स्थित हो जाती है। कल्पना के मूल आधार पर कोई रचनाकार कल्पनाओं को स्वरूपित-अंकित करके, पंख लगा देता है। पात्र के साथ न्याय अथवा अन्याय की उधेड़बुन में रचनाकार कल्पना के सागर में डूबता चला जाता है। पात्र हित को ध्यान में रखकर कल्पनाएं गढ़ना, जीवंत करना विषय वस्तु पर यथास्थिति बनाए रखना। कहानी, उपन्यास, नाटक, छंद, चौपाई आदि कोई भी शैली हो। रचना में पात्र की विशेषता को बरकरार रखने की रचनाकार की रचना का विश्लेषण करता है। कोई भी रचनाकार किसी सत्य आधारित रचना को शत प्रतिशत सत्य से जोड़ कर नहीं रख सकता है। किंतु कल्पनाएं रिक्त स्थान को पूर्ण कर लेती है। जो भविष्य में घटित होने वाला है उसकी कल्पना करना, विस्मृत से रोमांच उत्पन्न करने वाला है। जब कोई कल्पना सच में अवतरित हो जाती है। तब रचनाकार मन ही मन कल्पना को उकेरने का हर्ष प्रतीत करता है। परंतु कल्पना के दूसरे कुरूप पहलू को देख कर ठिठक जाता है। कल्पना का आधा सच रचनाकार को निराश करता है। परंतु उसी के साथ अगली कल्पना की गहराइयों में डूब जाने के लिए प्रेरित करता है। महर्षि वेदव्यास के द्वारा महाकाव्य 'महाभारत' एवं महान साहित्यकार बाल्मीकि के द्वारा 'रामायण' की रचना घटना के घटित होने से पूर्व कर ली जाती थी। सूरदास की साहित्य में कल्पना के महत्व को समझना भी एक कल्पना ही है। आप स्वयं देखिए, "नहीं पहुंच पाता रवि, वहां पहुंच जाता है कवि"। कल्पना अद्भुत है, आखिरकार एक कल्पना ही तो है।
 वैसे तो विवेकी मनुष्य कल्पनाएं करता ही रहता है। ज्यादातर कल्पनाएं सच में रूपांतरित नहीं हो पाती है। जो कल्पना सच का रूप ले लेती है, वह कल्पना ही मर जाती है। संसार की पहली कल्पना को श्रद्धा सुमन और नवीन कल्पनाओं का स्वागत करते हैं।
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Thank you, for a message universal express.

पायलट ने फ्लाइट अटेंडेंट को प्रपोज किया

पायलट ने फ्लाइट अटेंडेंट को प्रपोज किया  अखिलेश पांडेय  वारसॉ। अक्सर लोग अपने प्यार का इजहार किसी खास जगह पर करने का सोचते हैं। ताकि वो पल ज...