शनिवार, 9 अप्रैल 2022

मृतक महिला को मिला इंसाफ, उम्रकैद की सजा

मृतक महिला को मिला इंसाफ, उम्रकैद की सजा  

अविनाश श्रीवास्तव            
पटना। बिहार के मुंगेर में 29 साल बाद एक मृतक बुजुर्ग महिला को इंसाफ मिला है। 11 अक्टूबर 1993 में डायन का आरोप लगाकर बुजुर्ग महिला को जिंदा जलाकर मार डाला गया था। अब मुंगेर न्यायालय ने दो महिला समेत चार आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। मुंगेर न्यायालय के एडीजे-1 अनुराग के कोर्ट ने मुजरिमों को यह सजा सुनाई है। मृतक बुजुर्ग महिला के बेटे ने अपनी मां इंसाफ दिलाने के लिए 29 सालों तक लंबी लड़ाई लड़ी। बताया जा रहा है कि इस घटना में शामिल रहे कुछ आरोपियों की मौत हो चुकी है। लेकिन कुछ अभी भी जिंदा हैं, जिनकी उम्र 65 साल से ज्यादा है। अब उनका बचा जीवन जेल की काल कोठरी में बीतेगा।
बता दें, 29 साल लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद बेटा अपनी मां के हत्यारों को सजा दिलाने में आखिरकार कामयाब हो गया। यह घटना जमालपुर थाना क्षेत्र के छोटी केशोपुर मोहल्ले में हुई थी। यहां 11 अक्टूबर 1993 को आरोपियों ने डायन का आरोप लगाकर बुजुर्ग महिला सखीचन्द देवी पर पेट्रोल और तेल डालकर जिंदा जला दिया था। दरअसल, इन आरोपियों में से एक की बेटी की मौत हो गई थी और वो इस बुजुर्ग पर दबाव बना रहे थे कि वह उनकी बेटी को जिंदा करे। कोर्ट ने अभियोजन एवं बचाव पक्ष के दलील सुनने के बाद एडीजे-1 अनुराग ने चारों आरोपियों जमालपुर थाना क्षेत्र के छोटी केशोपुर निवासी राजू साह की पत्नी मीरा देवी, उमेश साह, प्रकाश साह एवं मंजू देवी पति और पत्नी को आजीवन कारावास के साथ एक-एक हजार रुपये जुर्माना की सजा सुनाई है। कोर्ट ने कहा कि यदि अभियुक्त जुर्माने की राशि अदा नहीं करते हैं, तो इन लोगों को दो-दो महीने की अतिरिक्त सजा काटनी पड़ेगी। मामले में अभियोजन पक्ष के एपीपी सुशील कुमार सिन्हा ने बताया कि इस केस के सूचक और बुजुर्ग के पुत्र कृष्णानंद साहू ने जमालपुर थाने में 140-93 नंबर से मामला दर्ज कराया था। दर्ज मामले के मुताबिक, छोटी केशोपुर के निवासी जागेशवर साह की पुत्री आशा की मौत हो गई थी। उसके बाद आशा के घरवालों को शक हुआ कि मोहल्ले की रहने वाली वृद्ध महिला सखीचंद डायन हैं और तंत्र मंत्र का प्रयोग कर उन्हें बच्ची की जान ली है। उसके बाद उन लोगों को किसी ने बताया कि डायन यदि चाहेगी तो बच्ची जिंदा हो जाएगी। उसके बाद परिजन सखीचंद पर आशा को जीवित करने का दवाब बनाने लगे और 11 अक्टूबर 1993 को सुबह 6 बजे मृतक के घर में जाकर हंगामा किया। जब मृत बच्ची जिंदा नहीं हो सकी तब उसके परिजनों ने घर से खींचकर बुजुर्ग को सड़क पर लाया और उसे जिंदा जला दिया। जिससे सखीचंद की मौत हो गई। आज 29 साल बाद उनकी आत्मा को इंसाफ मिला है।

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