गुरुवार, 17 फ़रवरी 2022

'जलवायु परिवर्तन' की वजह से समुद्री जलस्तर बढ़ा

'जलवायु परिवर्तन' की वजह से समुद्री जलस्तर बढ़ा    

अखिलेश पांडेय     

वाशिंगटन डीसी। धरती पर जलवायु परिवर्तन लगातार हो रहा है। उसका दुष्प्रभाव भी पड़ रहा है। यह खुलासा किया है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और नेशनल ओशिएनिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन ने मिलकर। इन दोनों वैज्ञानिक संस्थानों का दावा है कि साल 2050 तक यानी अब से 28 साल बाद दुनिया भर के समुद्रों का जलस्तर ऐतिहासिक तौर पर बढ़ जाएगा। यह करीब एक फीट बढ़ेगा।

यह रिपोर्ट तैयार की है सी-लेवल राइज टास्क फोर्स ने। यह टास्क फोर्स नासा और एनओए के वैज्ञानिकों का समूह है। इस समूह ने अध्ययन करके यह पता लगाया है कि साल 2050 तक दुनिया भर के समुद्रों का जलस्तर अभी से 10 से 12 इंच बढ़ जाएगा। यानी इस 28 साल के अंदर जो जलस्तर बढ़ेगा, उतना पिछले 100 सालों में कभी नहीं बढ़ा। एनओएए के एडमिनिस्ट्रेटर रिच स्पिनरैड ने कहा कि यह अमेरिका और उसके आसपास के इलाकों का सबसे सटीक आकलन है। यह सबसे अप-टू-डेट स्टडी है। इसमें लंबे समय के लिए समुद्री जलस्तर के बढ़ने का अध्ययन किया गया है। हमने जो स्टडी की है वह ऐतिहासिक है।
नासा एडमिनिस्ट्रेटर बिल नेल्सन ने कहा कि इस मामले में वैज्ञानिक और स्टडी को लेकर उपयोग किया गया विज्ञान पूरी तरह से स्पष्ट हो चुका है कि समुद्री जलस्तर 1 फीट बढ़ने वाला है। यह समय है सही एक्शन लेने का। अगर समय पर सही एक्शन नहीं लिया गया तो पूरी दुनिया को भारी तबाही का मंजर देखना होगा। क्योंकि यह पिछले 20 सालों की स्टडी का नतीजा है। इंसानों की गलतियों का नतीजा है। यह इंसानी व्यवहार ही है जिसने क्लाइमेट चेंज को पैदा किया है।
बिल नेल्सन ने कहा कि लोगों और देशों की सरकारों को यह मानना होगा कि यह रिपोर्ट दुनिया भर की अन्य रिपोर्ट से मिलती है। यानी हर किसी की गणना सही है। समुद्री जलस्तर पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रहा है। जिससे तटीय इलाकों में रहने वाले समुदायों के लिए आफत दरवाजे पर खड़ी है। वो किसी भी समय इस आफत का सामना कर सकते हैं। जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है।
नेल्सन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से समुद्री सतह का तापमान लगातार बढ़ रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। पिघलते हुए ग्लेशियरों से निकला हुआ पानी समुद्री जलस्तर को बढ़ा रहा है। अगर हमने वायुमंडल को ठंडा रखने का प्रयास शुरु नहीं किया तो धरती पर बड़ी मुसीबत आ जाएगी। सैकड़ों भयावह तूफान बेमौसम भी आ सकते हैं। नेल्सन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से समुद्री सतह का तापमान लगातार बढ़ रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। पिघलते हुए ग्लेशियरों से निकला हुआ पानी समुद्री जलस्तर को बढ़ा रहा है। अगर हमने वायुमंडल को ठंडा रखने का प्रयास शुरु नहीं किया तो धरती पर बड़ी मुसीबत आ जाएगी। सैकड़ों भयावह तूफान बेमौसम भी आ सकते हैं।
यह नई रिपोर्ट साल 2017 में आई रिपोर्ट का अपडेट है। साल 2017 की रिपोर्ट में भी यही भविष्यवाणी थी कि साल 2150 तक पूरी दुनिया का बड़ा हिस्सा समुद्र में डूब जाएगा। लेकिन नई रिपोर्ट ने बताया है कि अगले 30 साल के अंदर ही समुद्री जलस्तर काफी तेजी से बढ़ेगा। जिसका असर दशकों तक रहेगा।
कैलिफोर्निया स्थित नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी ने एक बयान में कहा कि अमेरिका में संघीय संस्थाएं, राज्य और स्थानीय स्तर की संस्थाएं इस रिपोर्ट के आधार पर काम करना शुरु करें। क्योंकि बढ़ते हुए समुद्री जलस्तर से निपटने के लिए नई तैयारी करनी होगी। उसे रोकने का प्रयास करना होगा।
बिल नेल्सन ने कहा कि अगले एक दशक में नासा पांच बड़े स्तर की ऑब्जरवेटरी बनाने जा रही है, जो वायुमंडल, बर्फ, ग्लेशियर, जमीन और समुद्री जलस्तर की सटीक जानकारी देंगे। नासा एक नया मिशन नवंबर में लॉन्च करने जा रहा है। इसका नाम है सरफेस वॉटर एंड ओशन टोपोग्राफी यह झीलों, नदियों, नहरों और समुद्रों का एलिवेशन लेवल बताएगा। इस सैटेलाइट को SpaceX के फॉल्कन-9 रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा।
नेल्सन ने कहा कि अमेरिका और दुनिया की अन्य वैज्ञानिक एजेंसियां, टास्क फोर्स और राष्ट्रपति की खास टीम इस डेटा के आधार पर काम करने के लिए तैयार है। वो दुनिया को सुरक्षित रखने के लिए तैयारी कर रहे हैं। राष्ट्रपति जो बाइडेन और उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस  ने इस रिपोर्ट को बेहद गंभीरता से लिया है। वो हमारे साथ मिलकर समुद्री जलस्तर को बढ़ने से रोकने में काम करने को तैयार हैं।
हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन चेतावनी दी थी कि भारत दक्षिण-पूर्व में स्थित हिंद महासागर और उसके बगल स्थित दक्षिण-पश्चिम प्रशांत महासागर का तापमान दुनिया के बाकी समुद्रों की तुलना में तीन गुना ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। इसकी वजह से भारत के दक्षिण-पूर्वी तटीय इलाके, दक्षिण-पूर्व एशिया और दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के कई इलाकों जलमग्न होने का खतरा मंडरा रहा है।
WMO ने कहा कि दक्षिण-पश्चिम प्रशांत दक्षिण-पूर्व हिंद महासागर और ऑस्ट्रेलिया के निचले इलाके के सागरों की सतह का तापमान में ज्यादा बढ़ोतरी हो रही है। समुद्री हीटवेव की वजह से कोरल रीफ को नुकसान हो रहा है। समुद्री इकोसिस्टम खराब हो रहा है। दक्षिण-पूर्व एशिया और प्रशांत महासागर में स्थित स्माल आइलैंड डेवलपिंग स्टेट्स की जमीन पर आए दिन बाढ़, तूफान की वजह से नुकसान होता है। मौतें होती हैं। विस्थापन होता है। इसके अलावा गर्म तापमान की वजह से ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में आग लग जाती है। आशंका है कि अगले पांच साल में हिमालय और एंडीज में मौजूद ग्लेशियर पिघल जाएंगे।
WMO द्वारा जारी 'द स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन द साउथ-वेस्ट पैसिपिक 2020' में साफ तौर पर इस इलाके में आने वाली आपदाएं, बढ़ते तापमान, समुद्री जलस्तर के बढ़ने, समुद्री गर्मी और अम्लीयता का खाका खींचा गया है। साथ ही ये भी बताया गया है कि इसकी वजह से ब्रुनेई, दारुसलाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और पैसिफिक आइलैंड्स में क्या खतरा है। किस तरह के आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय नुकसान होगा। इसमें भारत का नाम नहीं होने से ये मत सोचिए कि भारत के तटीय इलाकों में असर नहीं होगा। जरूर होगा। क्योंकि दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों पर किसी भी तरह का पर्यावरणीय असर होने पर सीधा प्रभाव भारत पर पड़ता है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक यह चेतावनी दी गई है कि धरती और समुद्र का औसत तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने से पहले इन देशों को सख्त कदम उठाने होंगे। WMO के महासचिव प्रोफेसर पेटेरी तालस ने कहा कि इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के दक्षिण-पूर्व हिंद महासागर, दक्षिण-पूर्व एशियाई देश और ऑस्ट्रेलिया के आसपास का इलाका समुद्री मौसम के अधीन है। अगर समुद्री सर्कुलेशन, तापमान, अम्लयीता, ऑक्सीजन के स्तर और समुद्री जलस्तर में अंतर आता है, तो उसका भयानक नुकसान इन समुद्री इलाकों के देशों को होगा। जैसे- मछली पालन, एक्वाकल्चर और पर्यटन। समुद्री के गर्म होने की वजह से आने वाले चक्रवातों से तटीय इलाकों में भी भारी नुकसान होता है।
प्रो. पेटेरी तालस ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने दक्षिण-पूर्व एशिया और ओशिएनिया इलाकों के सामाजिक-आर्थिक विकास को बाधित किया है। अलग-अलग डेटा के अनुसार दक्षिण-पश्चिम प्रशांत साल 2020 में दूसरा या तीसरा सबसे गर्म साल था। साल 2020 के दूसरे हिस्से में सर्द ला नीना की वजह से साल 2021 में तापमान में भारी विभिन्नता आएगी। धरती के जलवायु प्रणाली में समुद्री सतह का तापमान भारी योगदान करता है। अल नीनो/ला नीना और इंसानी गतिविधियों की वजह से होने वाले जलवायु परिवर्तन से दक्षिण-पश्चिम प्रशांत के मौसम में काफी ज्यादा बदलाव आया है। साल 1982 से 2020 तक तासमान सागर और तीमोर सागर का तापमान वैश्विक औसत से तीन गुना ज्यादा रहा है। 
इंसानी गतिविधियों से पैदा होने वाली गर्मी का 90 फीसदी हिस्सा समुद्र सोख लेते हैं। साल 1993 से अब तक समुद्री गर्मी में दोगुने का इजाफा हुआ है। इस सदी के अंत तक समुद्री गर्मी और बढ़ेगी। दक्षिण-पश्चिम प्रशांत इलाके में समुद्री गर्मी दुनिया के औसत तापमान से तीन गुना ज्यादा बढ़ा है। फरवरी 2020 में ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ में भयानक हीटवेव आया था। इस इलाके में समुद्री सतह का तापमान 1961-1990 की औसत गर्मी से 1.2 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था। यानी 1961 से लेकर पिछले साल तक फरवरी का महीना सबसे ज्यादा गर्म था। ज्यादा गर्मी की वजह से कोरल रीफ की हालत खराब हो गई। काफी मात्रा में ब्लीचिंग होते देखा गया। पिछले पांच साल में यह तीसरा सबसे बड़ा ब्लीचिंग इवेंट था।
यह रिपोर्ट बताती है कि अगर अगले कुछ दशकों में औसत तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस का इजाफा होता है तो कोरल ट्राएंगल में मौजूद कोरल रीफ और ग्रेट बैरियर रीफ का 90 फीसदी हिस्सा बर्बाद हो जाएगा। समुद्री गर्मी का बढ़ना, ऑक्सीजन की कमी, अम्लीयता, समुद्रों का बदलता सर्कुलेशन पैटर्न और रसायन लगातार बदल रहा है। मछलियां और जूप्लैंक्टॉन्स समुद्र के अंदर ही ऊंचाई वाले स्थानों की ओर विस्थापित हो रहे हैं। उनका व्यवहार भी बदल रहा है। इसकी वजह से मछली पालन पर भयावह असर पड़ रहा है। इससे प्रशांत महासागर के द्वीपों पर होने वाले तटीय मछली पालन पर असर पड़ेगा। इससे पोषक तत्वों में कमी, कल्याण, संस्कृति और रोजगार पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
1990 से 2018 तक वानुआतु में मछली पालन 75 फीसदी, टोंगा में 23 फीसदी और न्यू कैलिडोनिया में 15 फीसदी गिरावट आई है। 1990 से अब तक हर साल समुद्री जलस्तर में 3.3 मिलिमीटर की बढ़ोतरी हो रही है। उत्तरी हिंद महासागर और उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर का पश्चिमी हिस्से का जलस्तर लगातार तेजी से बढ़ रहा है। यह ग्लोबल मीन से कई गुना ज्यादा है। इसकी वजह से भौगोलिक विभिन्नता और गर्मी का विभाजन है। इंडोनेशिया के पापुआ में स्थित 4884 मीटर ऊंचा पुनकैक जाया ग्लेशियर पिछले 5 हजार सालों से है। लेकिन वर्तमान गर्मी की दर को देखते हैं तो यह अगले पांच साल में खत्म हो जाएगा। इसके साथ ही हिमालय और एंडीज के कई ग्लेशियर भी पिघल जाएंगे।
साउथ-ईस्ट एशिया और साउथ-वेस्ट पैसिफिक इलाके में तूफान और चक्रवात आना आम बात है। लेकिन अब इनकी तीव्रता और भयावहता बढ़ रही है। अप्रैल 2020 में पांचवीं श्रेणी का ट्रॉपिकल साइक्लोन हैरोल्ड ने सोलोमन आइलैंड, वानुआतू, फिजी और टोंगा में आया। काफी तबाही मचाई। अक्टूबर और नवंबर में फिलिपींस में तूफान गोनी ने काफी ज्यादा बारिश की, जिससे बाढ़ की स्थिति बन गई। साल 2019-20 में पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में लगी जंगली आग ने भयानक स्तर का प्रदूषण किया। करोड़ हेक्टेयर जमीन जल गई। 33 लोगों की मौत हुई। 3000 से ज्यादा घर जल गए। करोड़ों जीव मारे गए। कई जीवों की तो प्रजातियां ही खत्म हो गईं।
पिछले साल ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी सिडनी इलाके में तापमान 48.9 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था। कैनबरा में 44 डिग्री सेल्सियस था। यह साल 2019 की तुलना में एक डिग्री ज्यादा था। साल 1910 के तुलना में 1.4 डिग्री सेल्सियस अधिक था। दक्षिण-पूर्व एशिया और दक्षिण-पश्चिम प्रशांत इलाके में साल 2000 से 2019 तक क्लाइमेट चेंज की वजह से आने वाली मुसीबतों की वजह से 1500 लोगों की मौत हुई है। करीब 80 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। सिर्फ पिछले साल यानी 2020 में इसी इलाके में 500 लोगों की मौत हुई थी। जबकि, 1.10 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे। इनमें सबसे ज्यादा नुकसान चक्रवाती तूफानों की वजह से हुआ था।

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