बुधवार, 21 जुलाई 2021

बीमारी: स्पाइनल मस्कुलर एट्रोपी से मासूम की मौंत

तिरुवनंतपुरम। केरल में छह महीने के एक बच्चे की दुर्लभ बीमारी स्पाइनल मस्कुलर एट्रोपी (एसएमए) से कोझिकोड जिले में मौत हो गई। वह जन्म से ही इस बीमारी से ग्रस्त था और इलाज के लिए बड़ी राशि एकत्र की गई थी। पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि मूल रूप से मलाप्पुरम के पेरिनथालमन्ना के रहने वाले और पेशे से ऑटो रिक्शा चालक आरिफ के बेटे इमरान की मौत दुर्लभ बीमारी के कारण मंगलवार की रात कोझिकोड राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल में हुई।इमरान के जन्म के 17 दिन बाद से इस अस्पताल में उसका इलाज चल रहा था। बच्चे की मौत ऐसे समय हुई है। 
जब चंदे से कई करोड़ रुपये उसके इलाज के लिए दुनिया के सबसे मंहगे जोल्गेन्ज्मा ओनाजेन्मोजीन इंजेक्शन खरीदने के वास्ते एकत्र किए गए । इस एक इंजेक्शन की कीमत 18 करोड़ रुपये है।
इमरान का परिवार दवा आयात करने के लिए बाकी के पैसे जुटाने के लिए संघर्ष कर रहा था लेकिन उन्हें उम्मीद थी कि जल्द ही शेष राशि भी एकत्र हो जाएगी। केरल उच्च न्यायालय ने हाल में बच्चे के पिता की याचिका के बाद, पांच सदस्यीय चिकित्सा बोर्ड इमरान को मुफ्त इलाज देने पर विचार करने हेतु गठित करने का निर्देश दिया था। 
स्पाइनल मस्कुलर एट्रोपी एक न्यूरो मस्‍कुलर डिसऑर्डर है। इससे पीड़ित बच्चा धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगता है और चलने-फिरने में असमर्थ हो जाता है। क्योंकि वह मांसपेशियों की गतिविधियों पर अपना काबू खो देता है।डॉक्टरों के मुताबिक, स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी का इलाज जोल्गेन्स्मा (Zolgensma) नाम के एक इंजेक्‍शन से ही मुमकिन है।
जोल्गेन्स्मा को बाहर से आयात करने में करीब 18 करोड़ रुपए का खर्च आता है। इसे दुनिया की सबसे महंगी ड्रग्स में से एक माना जाता है। यह इंजेक्शन स्विटजरलैंड की एक कम्पनी तैयार करती है। कम्पनी का दावा है कि यह इंजेक्शन एक तरह का जीन थैरेपी ट्रीटमेंट है। जिसे एक बार लगाया जाता है। इसे स्पाइनल मस्क्यूलर एट्रॉफी से जूझने वाले 2 साल से कम उम्र के बच्चों को लगाया जाता है।
दुनिया में ऐसी कई बीमारियां हैं, जिनके बारे में अधिकतर लोगों को पता भी नहीं होता, लेकिन वो होती बहुत ही जानलेवा हैं। जैसे कि स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी, जो कि एक आनुवंशिक बीमारी है। यह बीमारी कई प्रकार की होती है, लेकिन इसमें टाइप-1 सबसे गंभीर है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में हर साल जन्म लेने वाले बच्चों में लगभग 400 बच्चे इस बीमारी से ग्रसित होते हैं। भारत में भी इसके कई मामले सामने आ चुके हैं।

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