शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

चमचा, गुलाम और भक्त की परिभाषा

चमचा, गुलाम और भक्त की परिभाषा
अकांशु उपाध्याय 
नई दिल्ली। अपने किसी स्वार्थ के लिए दूसरे की चाटुकारिता करेंं। उसे चने के झाड़ पर चढ़ाएंं रखे, यानी मतलब का यार.... जो गधे को भी बाप बना ले और काम निकल जाने पर सामने वाले को लात मार दे, 
गुलाम....
जिसे जबर्दस्ती पकड़कर अपनी सेवा करायी जाएं। गुलाम शारीरिक रूप से किसी के कब्ज़े में हो सकता है। पर उसका मन और मस्तिष्क फिर भी आज़ाद होना चाहता है। इसे शारीरिक गुलामी कहते हैं। मानसिक गुलामी नहीं। ये मजबूरी से पैदा होती है। भक्त वो प्राणी होता है जो शारीरिक रूप से भले ही गुलाम न बनाया गया हो पर वो खुद ही अपनी बुद्धि-विवेक को त्यागकर तन-मन, धन से किसी का बिन खरीदा गुलाम बन जायें। कहने का अर्थ है कि मानसिक गुलामी की स्थिति भक्ति कहलाती है। भक्ति गुलामी से भी आगे की स्टेज है, ये पतन की पराकाष्ठा है। भावनाओं का उद्गम भक्ति से है जिसका संबंध हमारी आस्था से है। 

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