सोमवार, 7 दिसंबर 2020

ताबूत की आखिरी कील 'संपादकीय'

ताबूत की आखिरी कील    'संपादकीय'
8 दिसंबर का दिन इतिहास में भाजपा के कुशासन और कुनितियों के कारण सदैव स्मरण किया जाएगा। सरकार के विरुद्ध देश का किसान, छोटे-बड़े राजनीतिक दलो के साथ-साथ छोटी-बड़ी गैर सरकारी संस्थाएं भी अन्नदाताओं के साथ आंदोलन में खड़ी हो चुकी है। कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे पिछले 11 दिनों से किसान शांतिपूर्वक ढंग से आंदोलन कर रहे हैं। इस बीच किसान और सरकार के बीच वार्तालाप का लंबा दौर भी चला। 5 बार भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और आंदोलनकारी किसानों के नेताओं के बीच बातचीत भी हुई। लेकिन परिणाम स्वरूप किसान वहीं का वहीं खड़ा है, जहां से शुरुआत हुई थी। सरकार कि निष्ठुरता और हठधर्मिता यह स्पष्ट कर रहे हैं कि सरकार अहंकार और सत्ता के मद में किसान प्रदर्शनकारियों का मजाक बना रही है। यह मजाक सरकार को कितना भारी पड़ेगा ? इसका तो ठीक-ठीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। परंतु सरकार की चूल हिलना निश्चित हो गया है।
सरकार की किसान विरोधी नीतियों के कारण देश की जनता सरकार के पाले को छोड़कर किसानों की टोली में मिल गई है। जिसके परिणाम स्वरूप राष्ट्रव्यापी बंद और आंदोलन का रूप और अधिक विकराल हो जाएगा। यह सरकार की नींद हराम करने के लिए नहीं, वरन सरकार को और भाजपा को धूमिल करने का काम करेगा। किसान आंदोलन के कारण सरकार की नीतियों और किए गए कार्यों की हर तरफ भर्त्सना होगी। यह आम हो जाएगा, आखिर देश के करोड़ों किसानों की हितकर बातें क्यों नहीं सुनी गई, क्यों नहीं मानी गई ?
सरकार स्वार्थ में अंधी और बहरी हो गई है, जो किसानों के खिलाफ मोर्चा खोलने को तैयार है। हालांकि यह आंदोलन भाजपा नेतृत्व वाली सरकार के 'ताबूत की आखिरी कील' साबित होगा। यह मात्र आंदोलन नहीं है, बेलगाम सरकार पर अंकुश भी है। 
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'                  


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