रविवार, 20 दिसंबर 2020

गुरु तेग बहादुर को लोक ने अपना गुरु चुनाव

श्री गुरु तेगबहादुर का जीवन संघर्ष

गुरु तेग बहादुर इकलौते गुरु हैं।  जिन्हें लोक ने अपना गुरु चुना था। पूर्व गुरु हरिकृष्ण के बाबा बकाला अंतिम शब्द –सूत्र के सहारे। साढ़े पांच महीने से पदासीन गुरु न होने पीड़ित –भ्रमित जन मानस ने स्वंय ढूंढ कर तेग बहादुर में अपना प्रकाश–पाथेय देखा और गुरु पद पर प्रतिष्ठित किया था। उसके पहले सभी गुरु अपना उत्तराधिकारी अभिषिक्त या निर्दिष्ट कर जाते थे। किशोरावस्था से मुगल सेना से युद्ध में तलवार का धनी होने का प्रमाण दे चुके गुरु तेग बहादुर बचपन से त्यागी–वैरागी, सांसारिकता से निर्लिप्त साधक–संत थे। गुरु पद की बडी जिम्मेदारी सौंप दिये जाने पर उन्होंने शौर्य का बाना पहना और गुरु नानक के निर्भयता– निडरता के जीवन –दर्शन को पुर्नस्थापित किया। यह उद्घोष कर – भै काहू को देत नहिं भै मानहिं आन। जन सामान्य की पीडा, दु.ख दूर करना ही उनके जीवन का उद्देश्य रह गया।
गुरु गद्दी खाली थी। औरंगजेब की धर्मांध नीति पूरे उफान पर थी। प्रेरित- प्रोत्साहित कर ही नहीं तलवार की नोंक पर भी धर्मांतरण कराया जा रहा था। भारत को दारुल उल इस्लाम’ बनाने के शाही सपने को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए उसके अफसरों में होड़ मची थी। निशाने पर मुख्यत: काशी, प्रयाग कुरूक्षेत्र, हरिद्वार और कश्मीर वगैरह के पंडित-पंडे थे। उन्हें कहा जाता था। इस्लाम अपना लो या मौत को गले लगाओ। बादशाह ने सैकडों पंडितों को जेल में डलवा दिया था। इस आशा से कि यदि इन्होंने पैगंबर के धर्म को अपना लिया तो बाकी लोग आसानी से उनके रास्ते पर चल पडेंगे। बडे बडे वीर राजपूत राजा – महराजा शाही सल्तनत की सेवा में थे। उसकी पालकी के कहार बने थे। डरे, सहमें इस सोच में कि आगे उनका क्या होगा। किसी में औरंगजेब के खिलाफ आवाज उठाने का साहस नहीं बचा था।
बालगुरू हरि किशन अंतिम समय केवल ‘बाबा बकाला’ कह गए थे। ऐसे में नवें गुरु की खोज शुरू हुई। निष्कर्ष निकाला गया कि आठवें गुरु का संकेत था कि उनका उत्तराधिकारी बकाला गांव में है। अब बकाला में गुरु हर गोबिंद के कई रिश्तेदार थे। बाबा गुरु दित्ता के बेटे धीर मल समेत कम से कम 22 सोढी स्वयंभू गुरु बने बैठे थे। आदि ग्रंथ की मूल प्रति धीर मल के पास थी। और औरंगजेब का अनुग्रह भी। स्वाभाविक रूप से वह बडे़ दावेदार थे।
खोज और रस्साकशी जारी थी। माखन शाह लुबाना नाम का एक सम्पन्न सेठ आया। उसने मनौती मानी थी। कि उसका माल भरा जहाज डूबने से बच गया तो वह गुरु को सोने की 525 अशर्फियां भेंट करेगा। संयोग से जहाज बच गया था। बकाला में वास्तविक गुरू का पता कर पाना कठिन था। उसने एक एक अशर्फी कथित गुरुओं को बांटना शुरू किया। कहीं कहीं अशर्फियां 500 और देना दो दो कहा है। रात रुका तो किसी ने बताया गुरु हर गोबिंद के सबसे छोटे बेटे तेग बहादुर भी यहां हैं। अगले दिन सेठ ने एक मुद्रा उन्हें भी दी। पर उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब लेने वाले ने कहा कि अपने संकल्प से क्यों फिर रहे हो बाकी कहां हैं। सेठ उछल पडा। उसने मकान की छत पर जा चिल्लाकर कहा कि गुरु मिल गए। लोग जुटे और इस तरह नये गुरु की खोज पूरी हुई।

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