शनिवार, 5 दिसंबर 2020

आंदोलन को बदनाम करने की साजिश रची

इस तरह रची जा रही हैं किसान आन्दोलन को बदनाम करने की साजिशें


श्याम मीरा सिंह 


नई दिल्ली। कई का कहना है कि पुलिस जासूसी कर रही थी तो क्या ग़लत था। पुलिस का काम जासूसी करना है। तो पहली बात कि पुलिस काम सबसे पहले तो अपने नागरिकों की सुरक्षा करना है। हमारी पुलिस किसानों पर वॉटर केनन और आंसू गैस के गोले दागती है। जितनी ज़्यादतियाँ हमारे देश की पुलिस करती है संभवतः किसी और मुल्क की पुलिस शायद ही करती हो। पत्रकारों का काम उसे एक्सपोज़ करना है वही हम कर रहे थे पुलिस के जासूस को पकड़ना पत्रकार के रूप में कोई अपराध नहीं किया था। 


दूसरी बात चूँकि पुलिस के जासूस ने सरदारों की तरह ही कपड़े पहने थे इसलिए उसका हर कुछ किया धरा पूरे आंदोलन को बदनाम करने के लिए काफ़ी था। इसकी पूरी सम्भावनाएँ हैं कि ऐसे जासूस किसानों के बीच जाकर ख़ालिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाता और मीडिया उसे हेडलाइन बना देती और आप ही इन निर्दोष किसानों को ख़ालिस्तानी कहकर इस आंदोलन को कुचलवाने में सहयोग करते। दैनिक जागरण ने ऐसी ही एक हेडलाइन बनाई थी कि किसान रैली में पाक ज़िंदाबाद के नारे लगे। ऐसे नारे किसान नहीं लगा सकता। 


पुलिस के जासूस ही आंदोलनकारियों के बीच रहकर ऐसे काम करते हैं। अभी कुछ किसानों ने मुझे बताया कि रात के समय अचानक से वहाँ लड़कियाँ आती हैं। संभवतः वे पुलिस के द्वारा ही भेजी जाती हैं ताकि उनके साथ कोई असहज घटना घट जाए, छेड़छाड़ हो जाए और पूरे किसान आंदोलन को बदनाम कर दिया जाए। लेकिन किसान बड़े ही संयम के साथ इस तरह की साज़िश को असफल कर रहे हैं वे एकतरफ सरकार से लड़ रहे हैं दूसरी तरफ़ सरकार की मशीनरी से। 


बीते दिनों ऐसे ही क़रीब 5 से 6 जासूसों के पकड़ने की बात सामने आइ है जो किसानों के बीच किसानों का भेष धरकर बैठे हुए थे। इसलिए इस बात को नोर्मलाइज करने का कोई औचित्य नहीं है कि पुलिस का काम है जासूसी करना। किसान कोई आतंकी नहीं हैं, वे भी इस देश के बराबर दर्जे के नागरिक हैं, उनका भी अधिकार है शांतिपूर्ण तरीक़े से अपनी माँग रखने का और उन लोगों को पकड़ने का भी जो किसानों के बीच किसानों का भेष रखकर इस आंदोलन को कुचलने में सरकार की मदद कर रहे हैं।                             


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