गुरुवार, 8 अक्तूबर 2020

कृतिः मैं तुम्हें ऐसे ही चाहता रहूंगा...

मैं तुम्हें ऐसे ही चाहता रहूंगा...
अलग-अलग रंग में,
अलग-अलग ढंग में,
अलग-अलग संघ में,
अलग-अलग रूप में,
शीतल छांव में और धधकती धूप में,
जैसे कोई लता किसी तरु से, लिपटकर रहती है। ऐसे ही तुम से लिपटा रहूंगा।
मैं तुम्हें ऐसे ही चाहता रहूंगा...
चंदन पर जैसे लिपटा रहता है भुजंग। 
ना कोई कान-केश, ना हाथ-पैर और ना कोई विशेष रंग। 
इसी तरह सदा मैं तुम्हारे रंग में रंगा रहूंगा..... 
मैं तुम्हें ऐसे ही चाहता रहूंगा।


वायरस के खिलाफ खड़ा होने का समय आ गया है।


दूरी सबसे पहले, बहुत जरूरी।
मास्क का व्यापार भी है जरूरी।


चंद्रमौलेश्वर शिवांशु  'निर्भयपुत्र'


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