शनिवार, 18 जुलाई 2020

राजस्थान में राष्ट्रपति शासन लगना चाहिए


  • मायावती ने कहा- राजस्थान के राज्यपाल को मसले को खुद नोटिस में लेकर राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करनी चाहिए

  • मायावती इससे पहले भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर हमलावर रहीं, बसपा विधायकाें को कांग्रेस में शामिल कराने पर विरोध जताया था


लखनऊ। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने राजस्थान की सियासी उठापटक पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को निशाने पर लिया है। मायावती ने राजस्थान की राजनीतिक अस्थिरता को लेकर वहां राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की। उन्होंने कहा कि राजस्थान में राजनीतिक गतिरोध और सियासी उठापटक काे राज्यपाल खुद नोटिस में लाएं। उन्हें राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करनी चाहिए, ताकि राज्य में लोकतंत्र की और ज्यादा दुर्दशा न हो।


बसपा प्रमुख ने ट्वीट में कहा कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पहले दलबदल कानून का खुला उल्लंघन किया। बसपा के साथ लगातार दूसरी बार धोखेबाजी की और हमारी पार्टी के विधायकों को कांग्रेस में शामिल कराया। अब जगजाहिर तौर पर फोन टेप कराके इन्होंने एक और गैर-कानूनी और असंवैधानिक काम किया है।


कोटा में 105 बच्चों की मौत पर गहलोत को हटाने की मांग की थी
इससे पहले मायावती ने दिसंबर में कोटा के अस्पताल में लगातार बच्चों की मौतों पर सवाल उठाया था। उन्होंने कांग्रेस से गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने की भी मांग की थी। मायावती ने ट्वीट कर लिखा था- 100 माताओं की कोख उजड़ने के मामले में कांग्रेस को केवल अपनी नाराजगी जताना ही काफी नहीं है। कांग्रेस को चाहिए कि वहां के मुख्यमंत्री को तुरंत हटाकर किसी सही व्यक्ति को सत्ता में बैठाया जाए।


2018 में भी गहलोत से नाराजगी जताई थी
बसपा प्रमुख मायावती मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लेकर पहले भी नाराजगी जता चुकी हैं। 2018 में राजस्थान में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 200 सीटों में 100 पर जीत मिली थी। उसके सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल का एक विधायक जीता था। इससे राज्य में सरकार गिरने का खतरा मंडरा रहा था। वहीं, बसपा के 6 विधायक चुनाव जीते थे। इन सभी विधायकों ने बसपा छोड़कर कांग्रेस की सदस्यता ले ली। इससे मायावती ने कांग्रेस और गहलोत पर खासी नाराजगी जताई थी।


राजस्थान में इन विधायकों ने कांग्रेस जॉइन की थी
बसपा से चुनाव जीते राजेन्द्र गुढा (उदयपुरवाटी, झुंझुनूं), जोगेंद्र सिंह अवाना (नदबई, भरतपुर), वाजिब अली (भरतपुर), लाखन सिंह मीणा (करौली), संदीप यादव (तिजारा, अलवर) और दीपचंद खेरिया (किशनगढ़बास, अलवर) ने सितंबर 2018 में पार्टी छोड़ दी थी।             


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