शनिवार, 11 जुलाई 2020

खादी की कोख में पल रहा था 'विकास'

खादी की कोख में पल रहा था विकास
उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर पहुचे विकास ने किया था सरेंडर स्वांग सजाकर कर दिया गया एनकाउंटर
8 पुलिस कर्मियों को मौत के घाट उताने का था विकास पर आरोप
प्रदेश की पुलिस को चकमा देकर एमपी पहुचा था विकास यूपी पुलिस की हो रही थी भारी किरकिरी
पिछले दिनों एनकाउंटर में मारे गए अमर दुबे की मात्र 9 दिनों पहले हुई थी शादी घर से उठा कर किया गया था एनकाउंटर
विकास के एनकाउंटर पर उठ रहें हैं सवाल एसटीएफ की कार्यवाही पर जताया जा रहा है बड़ा संदेह


महोबा,(रितुराज राजावत)। खाकी की कोख से जन्म लेने वाले विकास का अंत हो चुका है । उज्जैन से वापिस लाते हुए एसटीएफ कमिर्यो से होने वाली सीधी मुठभेड़ में विकास दुबे को मौत के घाट उतारा जा चुका है ।इस पूरे वाकये पर योगी सरकार की जमकर वाह वाही हो रही है तो वहीं प्रयासरत यूपी पुलिस को अपनी पीठ थपथपाने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हो गया है। वास्तविक विकास से अछूती जनता के समछ कुख्यात बदमाश माने जाने वाले विकास को मौत की नींद सुलाने का ढिढोंरा जोर शोर के साथ पीटा जा रहा है। न्यायपालिका को ठेंगें पर रखकर पुलिस और एसटीएफ कर्मियों द्वारा जिस प्रकार से इस एनकाउंटर की रूप रेखा बताई जा रही है वो न सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि हास्यपद भी मानी जा रही है। सूबे में योगी सरकार को आए तीन वर्ष से अधिक वख्त गुजर गया है। इस पूरे कार्यकाल के दौरान उत्तर प्रदेश में अपराध का ग्राफ कम होने की जगह अपने चरम पर जा पहुचा है। इसी बीच सरकार में तीन वर्ष गुजारने के बाद एकाएक योगी आदित्यनाथ के राज में एनकाउंटर के दौर की सुरूआत हो गई है। कानपुर कांड के बाद चिर निद्रा से जागी सरकार में खाकी द्वारा चुन चुन कर अपराधियों को मौत के घाट उतारा जाने लगा है फिर चाहे तरीका जायज हो या फिर नाजायज। न्यायव्यवस्था का माखौल उड़ाते हुए विकास दुबे के एनाकाउंटर को एक उदाहरण के रूप में लिया जा सकता है। जिस व्यक्ति के पैर में स्टील की राॅड पड़ी थी वो कई किलोमीटर तक दौड़कर भागा जैसे बयान देने वाले बुद्धिजीवियों के शिक्षा स्तर पर संदेह व्यक्त करना कदाचित अनुचित नही कहा जा सकता है। इस पूरे प्रकरण में एक अकेला अपराधी या यूं कहें की समर्पणकर्ता का पूरी एसटीएफ कर्मियों पर भारी पड़ते हुए बंदूक छीनकर भाग जाना जैसे धूर्ततापूर्ण तथ्यों की प्रमाणिक्ता देते सुरक्षा कर्मियों को सवालों के कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। अपने आप में ये भी अकाट्य सत्य है की विकास को पकड़ने में उत्तर प्रदेश की पुलिस साफ तौर पर नाकारा और नाकामयाब साबित हुई है अगर एैसा नही था तो विकास मध्यप्रदेश के उज्जैन नगरी के महाकालेश्वर मंदिर तक आखिर पहुचा कैसे। ऐसे न जाने कितने सवाल हैं जिनका जवाब शायद ही किसी के पास होगा लेकिन इन सब में सबसे बड़ा सवाल ये है की विकास को अपने गर्भ में पालने वाले वो कोख किन राजनैतिक रसूखदारों की थी जिन्होनें एक आम आदमी को अपराधी बना डाला । इस प्रकरण के दौरान जो सबसे आश्चर्यजनक वाकया हुआ वो था सन्देह के घेरे में आए तिवारी जी पर लाइन हाजिर जैसी छोटी कार्यवाही करके उनपर विशेष कृपा का बनाया जाना । न तो कोई दंडात्मक कार्यवाही तिवारी जी पर की गई है और न ही उन्हें पदमुक्त किया गया हैं । जांच की जा रही जैसे की पूर्व में की जाती रही है और थोड़े दिनों बाद थाने की शोभा बढ़ाने के लिए उन्हें फिर से किसी थाने पर विराजमान कर दिया जाएगा जैसे की पूर्व में अन्य चहेतों को किया जाता रहा है ।             


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