शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

आज की चिंता 'संपादकीय'

आज की चिंता    'संपादकीय'
 देश का प्रत्येक नागरिक अपने भविष्य को लेकर विचार-विमर्श के साथ-साथ परवाह भी करता है। अपने परिवार, राष्ट्र के प्रति यह प्रत्येक नागरिक का दायित्व भी है। इसके विपरीत देश के प्रधानमंत्री का देश के प्रति भी इसी प्रकार दायित्व बनता है। लेकिन परवाह उन्हीं लोगों की हो रही है जो देश की जनता को लूट-खसोट रहे हैं और भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। देश की परवाह विपक्ष के लोग भी करते हैं। भले ही वे जलन से करते हो। जो दल और विचार तो नहीं मानते हैं केवल वर्ग-समुदाय के सीमित दायरे में रहते हैं। वे लोग भी खूब परवाह करते हैं। आखिरकार सभी लोग परवाह करते हैं। ऐसा नहीं है कि देश के प्रधानमंत्री ने देश की जनता की परवाह नहीं की है। उन्होंने एक उन्नत नीति के आधार पर महत्वपूर्ण योजना पर कार्य किया है। जिसे उन्होंने 'मेक इन इंडिया' का नाम भी दिया है। 'मेक इन इंडिया' के तहत अभी तक भारत की जनता को केवल समझाया जा रहा है। प्रशिक्षण दिया जा रहा है। भारत विकास कौशल और स्किल इंडिया जैसे कई अभियान चलाकर व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। हालांकि आर्थिक स्थिति पर बात करने की कोई जरूरत नहीं है। कोई भी काम किया जाए, पैसा तो खर्च होता ही है। प्रचार-प्रसार नहीं होगा जागृति कैसे आएगी? आप जानते हैं, जनता इतनी ढीठ होती है। 10-15 साल 'पकोड़े तलने' के काम को सीखने में लगा देती है। 'मेक इन इंडिया' को धरातल पर लाने के लिए लापरवाही बरती जा रही है। कई संगठन हाथ पर हाथ धरे हुए बैठे हैं। यदि प्रचार-प्रसार अधिक विस्तृत होगा, तो योजना का आवरण भी विस्तृत होगा। ठीक है मान लिया जाए, महामारी है, लॉक डाउन लागू किया गया है। तो उसके साथ-साथ अनाज, चावल और चना भी तो सब लोग मिल बांटकर ही खा रहे हैं। देश के युवा-वर्ग को 'मेक इन इंडिया' पर फोकस करने की सख्त आवश्यकता है। आखिरकार देश का स्वर्णिम भविष्य आप लोग ही तो हैं। अगर अभी भी दिमाग में कोई फितूर है तो उसे निकाल देना चाहिए। सरकारी नौकरी और 'मेक इन इंडिया' में बस थोड़ा सा अंतर है। भारतीय रेल के सभी पुर्जे और हिस्सों का निर्माण इंडिया में ही होगा। लेकिन रेल का निजीकरण कर दिया जाएगा। यह कम उपलब्धि नहीं है। कम से कम रेल के हिस्से और पुर्जे तो भारत में बनेंगे। जो लोग छोटा-मोटा व्यापार, काम-धंधा करते थे। उन लोगों को भी इस अभियान का हिस्सा बन जाना चाहिए और ज्यादा कुछ नहीं कम से कम 'स्पेशल चाय' बनाने की ट्रेनिंग तो ले लेनी चाहिए। कुछ एडवांस लोग ट्रेनिंग ले चुके हैं। उन्हें देश हित में प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना करनी चाहिए। जो लोग इस अभियान में अधिक सहयोग नहीं कर सकते हैं। कम से कम इस अभियान की परवाह तो करें।


"अब बैठकर आंख भिढ़ाने के अलावा कोई काम नहीं है।
गुजरता वक्त बना देगा निकम्मा, यूं ही हम बदनाम नहीं है।
वफा तो अब करनी होगी, कुत्तों का ही यह काम नहीं है।
हर गले पर लटका है फंदा, बचेगा वही जिसे जुकाम नहीं है।
ऐ मेरे वतन के लोगों, पहले वाली तो यह सुबह-शाम नहीं है। जितना बेचैन है आलिम तू, उसी तरह मुझे भी आराम नहीं है।


राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'           


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