शनिवार, 27 जून 2020

कोई पशु, जीव-जंतु प्यासा नहीं रहेगा

किसी भी पशु जीव जन्तु को प्यासा नहीं रहने देंगे । बजरंगदल 

अश्वनी उपाध्याय

गाजियाबाद/लोनी। हम अपनी परंपराओं को नहीं भूल सकते ।किसी भी पशु जीव-जन्तु को पानी की ज़रूरत होती है। चिलचिलाती गरमी में उन्हें पानी पिलाने से अधिक ओर कोई पुण्य नहीं हो सकता है । इस काम में सभी भाइयों बहनो को सहभागी बनाना चाहिए।

विश्व हिंदू परिषद बजरंगदल लोनी ग़ाज़ियाबाद

अशोक विहार वार्ड ना 35 लोनी नगर समस्त टीम

नगर सुरक्षा प्रमुख  नवीन पटेल , योगेश गुप्ता, दिलीप पटेल, हर्ष पटेल , सिद्धांत चौरशिया , संजीव पटेल ,बिटू यादव, गौरव पटेल , सूभम सिंह  ,अजित पटेल, राहुल पटेल , कारण पटेल  दीपक ,सभी बजरंगी भाइयों के सहायता से किया गया है

भूमिका : गाय का यूं तो पूरी दुनिया में ही काफी महत्व है, लेकिन भारत के संदर्भ में बात की जाए तो प्राचीन काल से यह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। चाहे वह दूध का मामला हो या फिर खेती के काम में आने वाले बैलों का। वैदिक काल में गायों की संख्‍या व्यक्ति की समृद्धि का मानक हुआ करती थी। दुधारू पशु होने के कारण यह बहुत उपयोगी घरेलू पशु है।

गाय का उल्लेख हमारे वेदों में भी पाया जाता है। गाय को देव तुल्य स्थान प्राप्त है। कहते हैं कि गाय में सभी देवी-देवताओं का वास होता है। गाय को पालने का चलन बहुत पुराना है। अगर घर में गाय का वास होता है उस घर के सारे वास्तु-दोष अपने आप खत्म हो जाते हैं। इतना ही नहीं, उस घर में आने वाली संकट भी गाय अपने ऊपर ले लेती है। ऐसी मान्यताएं प्रचलित है।

अन्य पशुओं की तुलना में गाय का दूध बहुत उपयोगी होता है। बच्चों को विशेष तौर पर गाय का दूध पिलाने की सलाह दी जाती है क्योंकि भैंस का दूध जहां सुस्ती लाता है, वहीं गाय का दूध बच्चों में चंचलता बनाए रखता है। माना जाता है कि भैंस का बच्चा (पाड़ा) दूध पीने के बाद सो जाता है, जबकि गाय का बछड़ा अपनी मां का दूध पीने के बाद उछल-कूद करता है।

गाय को ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी माना जाता है। जैसे हमारे देश के लिए गांवो का महत्व है, उसी प्रकार गांवो के लिए गायों का महत्व है। पिछले कुछ सालों से गाय के जीवन पर संकट के बादल मंडरा रहे है। इसका प्रमुख कारण है – प्लास्टिक।

शहरों में हर चीज हमें प्लास्टिक में ही मिलता है। जिसे हम प्रयोग के बाद कूड़े-कचरे में फेंक देते है। जिसे चरने वाली मासूम गायें खा लेती है, और अपनी ज़ान गवा देती हैं। हम सबको पता है कि प्लास्टिक नष्ट नहीं होता, इसलिए इसका प्रयोग सोच-समझ कर करना चाहिए। यह सिर्फ गायों के जीवन के लिए ही नहीं वरन् पर्यावरण के लिए भी जरुरी है।

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