बुधवार, 1 अप्रैल 2020

चूल्हे पर उसूल पकाऐंगेंं 'संपादकीय'

ज्यादातर भारतीय देशभक्त नहीं, मतलबी और मौकापरस्त हैं।


जितेन्द्र चौधरी


हो सकता है आपको यह शब्द पढ़कर गुस्सा आ रहा हो। परंतु गुस्से की कोई बात नहीं है मैं अपने लिए कह रहा हूँ।


बाबा अदम गोंडवी ने कहा था।


"चोरी न करें झूठ न बोलें तो क्या करें,
चूल्हे पे क्या उसूल पकाएंगे, शाम को।"


मेरा गुस्सा बहुत क्षणिक और मतलबी है।
कोरोना के मामले में मैं चीन के प्रति गुस्से से भरा हुआ हूँ । परंतु दूसरी तरफ मैं चीन के साथ व्यापार में हर साल अरबों रुपए का घाटा उठाने मे चीन का मददगार हूँ। मैं बड़े शौक से टिकटोक यूज करता हूँ , यूसी ब्राउज़र यूज करता हँ , बिगो यूज करता हूँ और अलीबाबा द्वारा प्रायोजित पेटीएम जैसे चाइनीस ऐप को लगातार इस्तेमाल करता हूँ । साथ में देश भक्त भी बनता हूँ और चाइना को गाली भी देता हूँ।


कोरोना जैसी महामारी से देश त्राहि-त्राहि कर रहा है परंतु मैं अपने घर में बैठा हूँ। मुझे बिल्कुल किसी पर गुस्सा नहीं आ रहा है कि हर गांव में मंदिर है, मस्जिद है , गिरजाघर है परंतु अस्पताल नहीं है।
मेरा खून शायद पानी हो गया है जो भूख से मरते हुए लोगों को देख कर भी नहीं उबल रहा है। मुझे बिल्कुल भी बुरा नहीं लग रहा है कि कोई किसी को एक टाइम की रोटी खिलाकर सोशल मीडिया पर फोटो वायरल कर रहा है।
मुझे बिल्कुल शर्मिंदगी महसूस नहीं हो रही है कि जो लोग इस महामारी में कोरोना के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं उनके पास जरूरी मास्क, ग्लोब्स नहीं है सैनिटाइजर नहीं है। मुझे बिल्कुल क्रोध नहीं आ रहा जब उत्तर प्रदेश का एक दरोगा एक पत्रकार को कह रहा है कि तुझे धरती में गाड़ दूंगा।  मुझे इस बात की भी बिल्कुल चिंता नहीं है अगर पत्रकार के साथ यह व्यवहार है तो आम जनता के साथ पुलिस कैसा व्यवहार करती होगी ? चिकित्सा अधिकारी सुरक्षा उपकरण ना होने की वजह से नौकरी छोड़ना चाहते हैं परंतु मेरे माथे पर कोई शिकन नहीं है। पता नहीं क्यों मुझे गुस्सा नहीं आ रहा लोग डॉक्टर का भेष धरकर सड़कों पर घूम रहे हैं। जरूरी सेवाओं के इस तरह के दुरुपयोग पर भी मैं चुप हूं।


पता नहीं मैं क्यों नहीं समझता कोई हिंदू मुस्लिम नहीं है। कानून तोड़ने वाला चाहे वह किसी भी धर्म से हो, किसी भी जाति से हो, किसी भी समाज से हो वह अपराधी है।
मैं बिल्कुल भी आहत नहीं दिखाई पड़ता जब एक डॉक्टर को पुलिस वाले सड़क पर पीट देते हैं।


मेरी आत्मा मुझे नहीं कचोटती जब कोरोनावायरस को भी सांप्रदायिक रंग दे दिया जाता है। शायद भारत दुनिया का पहला देश है जहां कोरोना हिंदू मुस्लिम गया है। गरीब मजदूर दर बदर की ठोकरें खाते हुए हजारों किलोमीटर दूर जाकर भी भूखा मर रहें है और मेरे देश का मीडिया हिंदू मुसलमान कर रहा है परंतु मुझे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।


भूख से हुई बच्चे की मौत पर मां कहती है कर्फ्यू के बाद नहीं बना खाना। परंतु मैं निश्चित दिखाई पड़ता हूं। 
दूसरे देश का वित्त मंत्री वित्तीय हालातों से डर कर आत्महत्या कर लेता है तो मुझे क्या ?  हमारी वित्त मंत्री के सामने हमारा अर्थ तंत्र ही आत्महत्या कर लेगा। हमारी वित्त मंत्री सुरक्षित रहेंगी मुझे पूरा यकीन है।


मैंने थोड़ी कहा था असंगठित क्षेत्र में लोगों को काम करने के लिए। मैं उन सब के लिए चिंता क्यों करूं ? मेरी देशभक्ति पर अगर आपको कोई संशय है तो कुछ ना कहें जहर का घूंट पिएं और सो जाएं। क्योकि मैं अभी लाखों मजदूरों , जमात , वैष्णो देवी और मजनू का टीला में बिलकुल नही उलझा हुआ हूँ। मुझे बिल्कुल चिंता नहीं है एक दिन सड़क पर भी बीमारों के बिस्तर लगेंगे।


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