सोमवार, 13 अप्रैल 2020

भारतीय इतिहास में दर्ज 'काला दिन'

आइये इस हत्या कांड के शताब्दी वर्ष में उन 15 सौ निहत्थे शहीदों को नमन करें, जिन्हें जनरल डायर ने गोलियों से भून दिया था…


 नितिन सिन्हा 


13 अप्रैल सन 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में हजारों की संख्या में लोगों इक्ट्ठा हुए थे.इस दिन इस शहर में कर्फ्यू लगाया गया था लेकिन इस दिन बैसाखी का त्योहार भी था. जिसके कारण काफी संख्या में लोग अमृतसर के हरि-मन्दिर साहिब यानी स्वर्ण मंदिर आए थे. जलियांवाला बाग,स्वर्ण मंदिर के करीब ही था. इसलिए कई लोग इस बाग में घूमने के लिए भी चले गए थे और इस तरह से 13 अप्रैल को करीब 20,000 लोग इस बाग में मौजूद थे.जिसमें से कुछ लोग अपने नेताओं की गिरफ्तारी और रॉलेट एक्ट(काला कानून)के मुद्दे पर गांधीवादी विरोध पर शांतिपूर्ण रूप से सभा करने के लिए भी एकत्र हुए थे.वहीं कुछ लोग अपने परिवार के साथ यहां पर घूमने के लिए भी आए हुए थे।


इस दिन करीब 12:40 बजे, डायर को जलियांवाला बाग में होने वाली सभा की सूचना मिली थी. ये सूचना मिलने के बाद डायर करीब 4 बजे अपने दफ्तर से करीब 150 सिपाहियों के साथ इस बाग के लिए रवाना हो गए थे. डायर को लगा की ये सभा दंगे फैलाने के मकसद से की जा रही थी.इसलिए इन्होंने इस बाग में पहुंचने के बाद लोगों को बिना कोई चेतावनी दिए,अपने सिपाहियों को गोलियां चलाने के आदेश दे दिए. कहा जाता है कि इन सिपाहियों ने करीब 10 मिनट तक गोलियां चलाई थी.वहीं गोलियों से बचने के लिए लोग भागने लगे. लेकिन इस बाग के मुख्य दरवाजे को भी सैनिकों द्वारा बंद कर दिया गया था और ये बाग चारो तरफ से 10 फीट तक की दीवारों से बंद था. ऐसे में कई लोग अपनी जान बचाने के लिए इस बाग में बने एक कुएं में कूद गए. लेकिन गोलियां थमने का नाम नहीं ले रही थी और कुछ समय में ही इस बाग की जमीन का रंग लाल हो गया था।


सहादत को नमन के सांथ उन्हें समर्पित कुछ पंक्तियाँ…


इन इतर कयासों को छोड़ो, मैं खूंरेजी का किस्सा हूँ
हूँ ख़्वार मगर पाकीज़ा हूँ, मैं जलियाँ वाला हिस्सा हूँ।
नस-नस में लावा बहने की, ये रुधिर फुलंगों की बातें
क्षत-विक्षत बिखरे रक्त सने, अपनों के अंगों की बातें।
फूलों के कुचले जाने की, गुंचों के मसले जाने की
कुचलों को और कुचलने की, गिरतों को और गिराने की।
अपने हिस्से की साँसों की, अपनी निज़ता की बातों की
बारूदों की ज़द में मचले, बेख़ौफ़ उठे अरमानों की।
अंतिम निर्णय का शंखनाद, मैं विद्रोहों का किस्सा हूँ
मतवालों की मस्ती हूँ मैं, जलियाँ वाला हिस्सा हूँ।
ग़ुस्ताख़ी मत करना कोई, चौकंद यहाँ पर रहना तुम
ख़ामोशी से ख़ामोशी को, कुछ कह लेना कुछ सुनना तुम। धीरे-धीरे हौले-हौले,जेहाद की आवाज़ें सुनना
ज़िद में मचलीं आज़ादी की, उन्माद की आवाज़ें सुनना।
महसूस करो तो कर लेना, स्व-राज की खूनी तनातनी
अरमान उठे तो भर लेना,मुट्ठी में मिट्टी लहू सनी।
कण कण फिर बोल उठेगा मैं, किस आहुति का किस्सा हूँ
हूँ ख़्वार मगर पाकीज़ा हूँ, मैं जलियाँ वाला हिस्सा हूँ।


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