गुरुवार, 2 जनवरी 2020

अर्थव्यवस्था में गोबर 'आत्ममंथन'

अर्थव्यवस्था में गोबर की उपयोगिता- डॉ प्रमोद कुमार श्रीवास्तव



मैं डॉक्टर प्रमोद कुमार श्रीवास्तव जगतपुर पीजी कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर (अर्थशास्त्र) विभाग में हूं।मैंने अर्थव्यवस्था में गोबर की क्या उपयोगिता है।इस पर एक छोटा सा लेख लिखकर अपने विचारों को आप सभी लोगों के सामने प्रस्तुत कर रहा हूं। मेरा मानना है कि शिक्षा जगत के शिरोमणि महा मना पंडित मदन मोहन मालवीय भारतीय समाज की समृद्धि और प्रगति के लिए गोवंश के परिपालन को अनिवार्य मानते थे।वे कहते थे कि यह राष्ट्र मूलतः ऋषि-कृषि प्रधान है।ऋषि और कृषि दोनों गोवंश पर निर्भर है,हमारी समुचि संस्कृति गोवंश पर अवलंबित है,अतः गो-पाल,गो-सेवा और गो-रक्षा पूरे राष्ट्र का कर्तव्य है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का कहना था "गो-रक्षा भारत का सनातन धर्म है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा "गाय प्रगति व समृद्ध का स्रोत है,कई मायनों में यह मां से बेहतर है।"भूतपूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह का कहना था गाय हमारी अर्थव्यवस्था का आधार है इंसान और पशु दोनों ही एक दूसरे के पूरक और जीवन का आधार है।उनमें भी गोवंश सर्वोपरि है। भारतवर्ष में तो गायक का धार्मिक महत्व है,भावनात्मक महत्व है और आर्थिक महत्व है जो सकारण है तर्क सहित है।आधुनिकता के साथ-साथ अपनी परंपराओं से जुड़े रहने में ही हमारा कल्याण है क्योंकि यह परंपराएं हमारे ऋषि-मुनियों ने गहन शोध के बाद विकसित की है।उनमें नए आयाम तो जोड़े जा सकते हैं किंतु उन्हें समाप्त करना हमारे हित में नहीं है हमारे देश के प्रमुख वैज्ञानिक संस्थाओं, काउंसिल आफ साइंटिफिक इंडस्ट्रियल रिसर्च,इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च तथा इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ने भी पदार्थों अर्थात गोबर,गोमूत्र,गोदुग्ध,गोघृत और गाय के दूध के दही को औषधीय गुणों से परिपूर्ण बताते हुए इसे इको फ्रेंडली ऊर्जा का स्रोत बताया है।दक्षिण अफ्रीका में संपन्न हुए पृथ्वी सम्मेलन में सभी इको फ्रेंडली अर्थव्यवस्था पर जोर दिया जा चुका है।सभी मानते हैं कि हम इको फ्रेंडली ऊर्जा स्रोत पर ध्यान दे तो यह पर्यावरण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए भी हितकर होगा।इसका मुख्य कारण था गोबर व गोमूत्र आधारित कृषि और बैलो पर निर्भर कृषि।सन 2002 में दिल्ली में संपन्न विज्ञान सम्मेलन में आंध्र से आए किसान राजीव यादव ने साइंस कांग्रेस में भाग लेने वाले कृषि वैज्ञानिकों के समक्ष बताया कि मैं आम के पेड़ में उन्हें पत्ते व गोबर की खाद ही डालता हूं और एक पेड़ से 40 हज़ार तक का आम प्राप्त कर लेता हूं कभी-कभी आवश्यकता पड़ने पर जरूरत के अनुसार न्यूट्रेशन डाल देता हूं आज कोई भी किसान रासायनिक खादों के बल पर इतने आम पैदा कर सकता है क्या? रासायनिक खादों के दुष्प्रभावो से आज पश्चिमी देश चिंतित हो रहे हैं।वहां ग्रीन एग्रीकल्चर के लिए प्रचंड आंदोलन हो रहे हैं।यांत्रिक खेती और रासायनिक खादो के चलते अमेरिका में बड़े-बड़े बोर्ड लगे हैं जिन पर लिखा है 'अबेनडेंड' अर्थात अनुपयोगी।चूँकि अमेरिका में हमसे तीन गुनी जमीन है और जनसंख्या हमारी चौथाई,इसीलिए विशेष फर्क नहीं पड़ रहा है।किंतु यही हाल रहा तो सौ-दो-सौ वर्षों में पूरा अमेरिका रेगिस्तान बन जाएगा।अतः वहाँ भी जैविक खेती के स्वर तेजी से गूंजने लगेंगे लगे हैं।हालैंड में ऐसी दुकानें हैं जहां जैविक खेती के उत्तम अनाज सब्जियां और फल-फूल ही मिलते हैं।इन दुकानों को रिफॉर्मेस्ट शॉप कहते हैं।वहां जैविक उत्पादों की मांग इसी इसलिए भी बढ़ रही है कि विभिन्न शोधों द्वारा यह उजागर हो चुका है कि रासायनिक खादों से उत्पन्न अन्य के सेवन से मानव शरीर में 0.27 मिलीग्राम जहर नित्य प्रवेश कर जाता है।यदि 365 दिनों का हिसाब लगाएं तो वर्ष में 100 ग्राम के लगभग विष हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है जिससे एक साथ खाने पर इंसान तुरंत मर जाता है।लेकिन धीमा जहर हमें मौत के मुंह में धकेल रहा है।आज भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में भी हृदय रोगियों की संख्या बढ़ रही है35 से 40 के बीच के 9 जवानों के हृदय की रक्त वाहिनियों में अवरोध पैदा होने लगा है।इसके लिए अतिरिक्त मधुमेह,गुर्दे के रोग,रक्त विकार,उच्च रक्तचाप जैसे अनेक रोग रासायनिक खादों की देन है।जब बात की जाती है जैविक खादों की तो उसके लिए पशुधन के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है उनमें भी गोवंश प्रमुख है।पशु गणना के अनुसार संसार में जितनी गायें हैं उनका 15%प्रतिशत भारत में है।जिसमें 5 करोड़ 47 लाख गायें,4 करोड़ 33 लाख बैल और 6 करोड़ 68 लाख बछड़ा-बछड़ी है।इनमें हरियाणा,सिंधी,गीर,थारपारकर, साहिवाल और राठी आदि नस्ले प्रमुख है।वर्तमान जनसंख्या को देखते हुए हमें कम से कम 20 करोड़ गायें व 12 करोड बैल चाहिए।किंतु ट्रैक्टरों पर निर्भरता के चलते हम बैलों से खेत की जुताई को घाटे का सौदा मानने लगे हैं जबकि स्थिति इसके विपरीत है।बैलों से जुताई करने पर जल की जरूरत एक तिहाई रह जाती है और जल की कमी से आम जनता जूझ रही है।गोबर की खाद के उपयोग में पृथ्वी की जन ग्रहण क्षमता भी बढ़ती है।जल का वाष्पीकरण भी कम होता है। बैलों द्वारा जुताई करने से खेत का समतलीकरण ठीक से होता है और हल्की सिंचाई से ही काम चल जाता है।इसके अधिक व्यक्तियों को रोजगार मिलता ही है,डीजल पर खर्च हो रही भारी भरकम धनराशि की तुलना में खर्च भी कम होता है।श्रम शक्ति के अभाव में बड़े किसानों की मजबूरी तो समझ में आती है किंतु छोटी जोत के किसानों के लिए तो ट्रैक्टर से जुताई निःसन्देह घाटे का सौदा है।इससे पर्यावरण पर तो बुरा असर पड़ता है देश की बहुमूल्य मुद्रा पेट्रोलियम पदार्थों पर खर्च होती है जो व्यक्ति व समाज कि नहीं राष्ट्र की अपूर्णिया क्षति है।ट्रैक्टर की चलन से बैलों को अनुपयोगी मान लिया गया है फलस्वरूप 65 प्रतिशत बैल व बछड़े काटे जा रहे हैं।पशुधन की ऐसी बर्बादी के चलते हम जैविक खेती को हर किसान के खेतों तक कैसे पहुंचा सकते हैं?सर्वे के अनुसार पृथ्वी पर जितनी भी जमीन है उसका 10%प्रतिशत बर्फ से ढका है 15.5%प्रतिशत रेगिस्तानी,पथरीली अथवा रेत से ढकी है 6.5%प्रतिशत दलदली है।2%प्रतिशत खदानों व सड़कों ने और 50%प्रतिशत आबादी ने घेर रखी है।करीब 3%प्रतिशत अनूपजाऊ है।इस प्रकार कृषि योग्य भूमि मात्र 12%प्रतिशत ही शेष रह गई है।यदि उसे भी रासायनिक खादों ने उसर बना दिया तो अन्न कहां से पैदा होगा? अतः धरती व पर्यावरण दोनों को बचाने के लिए पूरे विश्व को जैविक खादों पर निर्भरता बढ़ानी होगी और इसके लिए पशुधन बढ़ाना होगा देश में लगभग 4 हज़ार बूचड़खाने 150 छोटी बड़ी मांस प्रसंस्करण इकाइयां खोली गई।इन सबके की मूल में है  पेट्रोल डॉलर के लोभःमें विदेशियों को भेजना जो वास्तव में घाटे का सौदा है।यदि गांव-गांव में ऐसी योजना चलायी जाए कि उनका सारा गोबर व गोमूत्र गोबर गैस प्लांटों में खप जाए तो भारत की आधी आबादी को रसोई गैस मिल सकती है जिसे ईंधन के रूप में गोबर का इस्तेमाल नही होगा तथा जंगल भी विनाश के बच जाएंगे तथा ढाई करोड़ टन  नाइट्रोजन व फास्फेट आदि तत्वों को धारण करने वाली जैविक खाद मिलने लगेगी जिसे रासायनिक खादों पर खर्च होने वाले 12 हज़ार 690 करोड रुपए की सब्सिडी भी बच जाएगी वैसे भी 10 किलो गोबर को 1टन कचरे में मिलाकर उत्तम खाद बनाई जा सकती है।गोबर-गोमूत्र दूध,दही और घृत का उपयोग आज अनेक विकसित गौ शालाओं एवं सामाजिक संस्थाओं में सुरक्षा एवं सौंदर्य प्रसाधनों के उत्पाद बनाने में किया जा रहा है, जैसे साबुन,दंत,मंजन,फेस पाउडर,डिस्टेंपर,शैंपू,अगरबत्ती, डिटर्जेंट पाउडर,मच्छर
अगरबत्ती,क्वायल,केंचुआ खाद, विभिन्न रोगों की दवाएं।इनके उत्पात से सहकारी निजी संगठनों द्वारा गांव-गांव में गृह उद्योग स्थापित कर वहां की बेरोजगारी दूर की जा सकती है।पशुधन से भारत की अर्थव्यवस्था,पर्यावरण और स्वास्थ्य में उल्लेखनीय परिवर्तन आएगा।इसमें संदेह नहीं कि इसके लिए आवश्यक है कि भारत में मांस के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया जाए और गोवंश का वध संपूर्ण भारत में रोक दिया जाए क्योंकि गोवंश से अधिक उपयोगी पशु संपूर्ण दृष्टि में नहीं है हमारे शास्त्रों में इसे कामधेनु अनायास ही नहीं कहा गया है कामधेनु का अर्थ होता है समस्त मनोरथ पूर्ण करना गौ माता के लिए यह संबोधन यथार्थ के धरातल पर शत-प्रतिशत सही उतरता है क्योंकि गोदुग्ध स्वास्थ्य एवं बल बुद्धि का विकास होता है गोबर और गोमूत्र से जैविक खाद बनती है जिसे भरपूर अन्न उपजता है गोघृत एवं अन्न द्वारा हवन करने से पर्यावरण शुद्ध होता है यज्ञ के प्रभाव से भरपूर वर्षा होती है जिससे अन्य फल फूल व पशुओं के लिए प्राप्त होता है।भरे पेट,स्वास्थ्य तन और मन से इंसान की बुद्धि का विकास होता है जिसे यह अपनी समस्त आवश्यकताएं पूरी करता ही है नित नई नई खोजों से नए कीर्तिमान स्थापित करने लगता है। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के लिए हितकारी है ऐसा गुण सिर्फ मां के दूध में होता है अतः गाय के लिए गौ माता का संबोधन सर्वदा उपयोग है आयुर्वेद में गो दूध को अमृत कहा गया है जो अनन्यास ही नहीं बल्कि ऋषि-मुनियों शोध पर आधारित है किंतु विकास की चरम सीमा पर पहुंचने का दम भरने वाले अमेरिकी वैज्ञानिकों के गले के नीचे यह सत्य न सका कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की एक टीम ने गो दूध के परीक्षण हेतु अभिनव प्रयोग किया।उन्होंने एक गाय को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में हल्का जहर देना शुरू किया और उसके दूध एवं शरीर का परीक्षण भी प्रारंभ कर दिया उन्होंने पाया कि विष की मात्रा दिन प्रतिदिन शरीर में फैल रही है किंतु उनके दूध को तनिक भी प्रभावित नहीं कर पा रही है इसके प्रभाव से 30वे दिन गाय मर गई किंतु मृत्यु वाले दिन तक उसके दूध में विष का एक भी कर नहीं पाया गया उन्हें स्वीकार ही करना पड़ा की गाय का दूध अमृत तुल्य है तभी तो उस पर विश का असर नहीं हुआ भावनात्मक दृष्टिकोण से देखा जाए तो मां अपने प्राण देकर भी संतान की रक्षा करती है।और यही काम गौ माता ने किया उसने विष को अपनी शरीर में ही रोक लिया और मर गई किंतु दूध तक नहीं पहुंचने दिया।क्योंकि उसका सेवन हम इंसान भी करेंगे जो उसे मां कहते हैं।भारत की सनातन संस्कृति वेदों पर आधारित है जिसमें गाय को अर्थ धर्म काम व मोक्ष प्रदायिनी कहा गया है सभी मनोरथ को पूर्ण करने वाली कामधेनु कहा गया है जो शाश्वत सत्य है कृषि प्रधान देश होने के कारण पशुपालन हमारे यहां सदियों से होता जा रहा है किंतु उसमें सर्वाधिक महत्व गोपालन को दिया गया है प्राचीन काल से ही गोवंश हमारी सामाजिक आर्थिक और धार्मिक मान्यताओं को केंद्र रहा है हर जाति व धर्म के लोग यहां गोपालन करते चले आ रहे हैं गोमाता के लिए जैसी श्रद्धा भारतवासियों के दिलों में है वैसी विश्व में कहीं नहीं है।हिंदी के प्रसिद्ध कवि मोहम्मद इब्राहिम पठान "रसखान" ने तो अपने काब्य के माध्यम से यह कामना की है कि मेरा अगला जन्म गोकुल में हो पशु बनू तो नंद बाबा की गायों के झुंड में रहूं।मनुष्य बनू तो बृजमंडल में गाय चराकर जीवन धन्य बना लूं कृषि भारतीय अर्थतंत्र की रीढ़ है और यहां की करीब 70%आबादी गांव में बसती है हमारी बढ़ती जनसंख्या की अधिक उपज कम लागत में पौष्टिक अन्न एवं धरती की उर्वराशक्ति के संरक्षण हेतु गोवंश की सर्वाधिक आवश्यकता है इनके गोबर और गोमूत्र जैविक खाद तैयार होती है बल्कि ऊसर सुधार कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं वैज्ञानिक शोधों से प्राप्त हुआ है कि गोबर में 16 प्रकार के और गोमूत्र में 24 प्रकार के खनिज पाए जाते हैं साथ ही गोबर में विभिन्न प्रकार के 120 करोड़ कीटाणु पाए जाते हैं कृषि पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है।अमेरिका के वैज्ञानिकों का मानना है कि गोबर में 500 प्रकार के ऐसे कीटाणु रहते हैं जिनकी उपस्थिति मात्र गांवों,कस्बो एवं शहरों के कचरो में पनपने वाले हानिकारक कीटाणु स्वत ही समाप्त हो जाते हैं।अतः इंसान को पर्यावरण एवं अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु गोपालन में वृद्धि करनी होगी, अन्यथा हमारे समस्त भौतिक विकास बेमानी हो जाएंगे इसके लिए विश्वभर के कृषि प्रधान देश का संरक्षण एवं सवर्धन करना होगा एवं गोहत्या पर पूर्णह प्रतिबंध लगाना होगा।
*इनका दूध बढ़ाने के लिए उपाय अत्यंत कारगर है।*
1-  गांव को प्रतिदिन हरी घास खिलाएं।
2- एक भाग गुड तथा तीन भाग जौ को एक साथ पकाकर खिलाएं।
3- गोपी व पत्ता गोभी की पत्तियां चलाएं।
4- कच्चा पपीता उसकी पत्तियों को पीसकर उसमें गुड़ मिलाकर खिलाएं।
5- रस निकालने के बाद शेष बची गन्ने की खोई खिलाएं।
6- उबले मटर के साथ तीसी की खली मिलाकर खिलाएं।
7- गेहूं के साथ केसरी की दाल को उबालकर खिलाएं।
8- कच्ची अथवा पक्के बेल को खिलाएं।
9- पलाश सेमल के फूल खिलाए।


  डॉ. प्रमोद कुमार श्रीवास्तव
        असिस्टेंट प्रोफेसर
      (अर्थव्यवस्था विभाग)                     
 


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