शनिवार, 18 जनवरी 2020

41 पुराने चेहरों पर लगाया, भाजपा ने दांव

पुराने चेहरों पर बीजेपी ने लगाया दांव, 57 में से 41 कैंडिडेट पहले भी लड़ चुके हैं चुनाव, पार्षद भी उतरे मैदान में
मनोज सिंह ठाकुर
नई दिल्ली। दिल्ली की सत्ता में 21 साल के वनवास को खत्म करने की उम्मीद में जुटी बीजेपी ने 70 में से 57 सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। बीजेपी ने नगर निगम चुनाव में अपने ज्यादा पार्षदों के टिकट काटकर सत्ता में वापसी की थी। इससे उलट विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 2015 में लड़ चुके ज्यादातर कैंडिडेट्स को एक बार फिर से मौका दिया है।


टिकटों के ऐलान से पहले कहा जा रहा था कि पार्टी इस बार पीढ़ीगत बदलाव की ओर बढ़ सकती है। लेकिन 57 में से 41 कैंडिडेट्स ऐसे हैं, जो पिछले चुनावों में भी चुनावी समर में उतरे थे। इसके अलावा 19 उम्मीदवार ऐसे हैं, जिन्होंने 2012 या फिर 2017 में एमसीडी के चुनाव में पार्षद उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की थी।


इसके अलावा 16 उम्मीदवार ऐसे हैं, जो 2013 में बीजेपी के टिकट पर विधानसभा पहुंच चुके हैं। 2013 में चुनाव में उतरे 29 और 2015 के 30 कैंडिडेट्स को भगवा दल ने मौका दिया है। इन उम्मीदवारों में से 11 की उम्र 60 साल से ज्यादा है और सबसे बुजुर्ग 74 वर्षीय एससी वत्स हैं। हालांकि अब तक बीजेपी की ओर से सीएम अरविंद केजरीवाल की नई दिल्ली सीट पर कैंडिडेट का चयन नहीं किया जा सका है।
दिल्ली की बदलती डेमोग्रफी का भी रखा ध्यान
बीजेपी की लिस्ट में 2015 में विधायक चुने गए तीनों नेताओं को जगह मिली है। इसके अलावा पूर्वांचल के रहने वाले 7 लोगों और उत्तराखंड के रहने वाले 2 नेताओं को भी टिकट मिला है। माना जा रहा है कि दिल्ली में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की बड़ी आबादी को साधने के लिए इन लोगों को टिकट दिया गया है।
अरविंद के मुकाबले में कैंडिडेट की तलाश जारी
बीजेपी के सूत्रों का कहना है कि नई दिल्ली सीट पर अरविंद केजरीवाल को चुनौती देने वाले कैंडिडेट की तलाश अभी पूरी नहीं हुई है। अभी जिन 13 सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान नहीं हुआ है, उनमें से 4 अकाली दल के खाते में जा सकती हैं। पार्टी ने 7 मौजूदा और 12 पूर्व पार्षदों को भी टिकट दिए हैं। इसके अलावा 4 नेता ऐसे हैं, जो मेयर भी रह चुके हैं।


1993 के बाद बीजेपी ने नहीं जीता चुनाव
बीजेपी के लिए यह चुनाव बेहद अहम है क्योंकि 1993 में दिल्ली विधानसभा के पुनर्गठन के बाद से ही वह जीत हासिल नहीं कर सकी है। 2013 में वह 32 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी, लेकिन कांग्रेस के बाहरी समर्थन से आम आदमी पार्टी ने सरकार बना ली थी। उस वक्त बीजेपी मजबूत ताकत बनकर उभरी थी, लेकिन फिर 2015 में इलेक्शन हुआ तो स्थिति पूरी तरह बदली नजर आई और ‘आप’ ने 70 में से 67 सीटें हासिल कीं। वहीं बीजेपी महज 3 सीट पर ही सिमट गई, जबकि कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिली।


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