बुधवार, 2 अक्तूबर 2019

यज्ञोपवित संकल्प,अन्वेषण

गतांक से...
मेरे पुत्रों, मैं तुम्हें एक ऋषि के आसन पर ले जाना चाहता हूं। जहां ॠषिवर अपने में विचार विनिमय और अन्वेषण करते रहे हैं। 'बाल्‍यम्‌ ब्रह्म' आज का दिवस कहलाता है। 'नोनम्‌म्‌ ब्रह्म' जहां महापुरुषों की उत्पत्ति का मूल बन जाता है। आज मैं तुम्हें ऐसे क्षेत्र में ले जाऊंगा जहां ऋषि-मुनि अपने में बड़ा अन्वेषण और अनुसंधान करते रहे हैं। माता कौशल्या का जीवन मुझे स्मरण आता रहता है। उनके जीवन में कितनी प्रतिभा रही है। कितनी विचित्रता रही है। जिसके ऊपर हम प्राय: अपने में विचार विनिमय करते रहते हैं। यहां मूल उत्पत्ति का पालना करने की कितनी उधरवा में सीमा होती है। वास्तव में कोई सीमा नहीं होती है। कि कितनी पालना कर सकता है प्राणी। आज मैं तुम्हें त्रेता के काल में ले जाना चाहता हूं, जिस काल में मानव अपने में बड़ा अन्वेषण और विचार विनिमय करता रहा है। माता कौशल्या के गर्भ में जब पुनीत आत्मा विद्यमान थी, तो माता कौशल्या ने एक नियम बनाया था। जब पुत्रेष्टि यज्ञ हुआ तो, यज्ञ होते समय नियम बनाया कि मैं राष्ट्र का अन्न ग्रहण नहीं करूंगी। क्योंकि जब यजमान यज्ञ करता है तो यह यजमान अपनी दक्षिणा प्रदान करता है। जब पुत्रेष्‍टि यज्ञ हुआ तो उस समय कौशल्या से दक्षिणा प्राप्त करने लगे। जब वे प्रदान करने लगी तो ऋषि ने कहा कि हे दिव्या, हमे द्रव्य की दक्षिणा नहीं चाहते, हमें तो दक्षिणा दीजिए कि अब जो राष्ट्र है वह रसातल को जा रहा है यहां आलस्य और प्रमाद बलवती होता जा रहा है। रघुवंश और राजा रघु का जो राज था। महाराजा दिलीप की जो उत्तम प्रणाली थी, उसमें सुक्ष्‍मवाद आ गया है। माता कौशल्या बोली ॠषिवर, पूज्‍यपाद, जो तुम चाहते हो वर्णन करो। उन्होंने कहा तुम्हारे गर्व से एक ऐसे बालक का जन्म होना चाहिए। जो त्याग और तपस्या में ही परिणत होने वाला हो। माता कौशल्या ने वह स्वीकार कर लिया और उन्होंने कहा कि भगवान, तपस्या में ही अपने जीवन को व्यतीत करूंगी। मैं राष्ट्र का अनुकरण नहीं करूंगी। यह उन्होंने संकल्प लिया। मुझे वह काल स्‍मरण आता रहता है कि कैसे उन्होंने संकल्प किया और अपना गृह निवास करने लगी। जब उस शरीर में आत्मा वृत्तियों में रत हो रहा था तो राजा को यह प्रतीत हुआ कि कौशल्या राष्ट्र का अन्‍न ग्रहण नहीं कर रही है और यह बड़ा एक पापाचार बन जाएगा। यदि राष्ट्र का अन्‍न ग्रहण नहीं किया, वह स्वयं कला कौशल करके उसके बदले जी द्रव्य जाता है उसी से लेकर के अपने उधर की पूर्ति करती रहती। स्‍मरण आता रहता है कि राजा ने कहा हे देवी,राष्‍ट्र का अन्‍न ग्रहण नहीं कर रही हो। उन्होंने कहा प्रभु राष्ट्र का जो अन्‍न होता है। वह रजोगुण और तमोगुण से सना होता है। इसलिए मैं उसको ग्रहण नहीं करना चाहती। क्योंकि रजोगुण तमोगुण हमारे विचारों और तरंगों के लिए पवित्र नहीं होता है। राजा ने बहुत नम्रता से भी कहा परंतु कौशल्या ने स्वीकार नहीं किया। अंतिम परिणाम यह हुआ। 'ब्राह्मणम्‌ ब्रह्म कृतम' बेटा सायंकाल का समय था राजा ने कहा कि मैं वशिष्ठ और माता अरुंधति से आग्रह करूंगा। तो यह अन्‍न ग्रहण कर सकेगी। राजा दशरथ अपने वाहन में विद्यमान हो करके भयंकर वनो में जहां वशिष्ठ मुनि महाराजा और माता अरुंधति अपने विद्यालय में निवास करते थे। वह उनके द्वार पर पहुंचे पूर्णिमा का चंद्रमा अपनी संपन्न कलाओं से युक्त था। माता अरुधंती और वशिष्ठ मुनि महाराज एक स्थली पर विद्यमान हो पर कुछ चर्चा कर रहे थे। राजा दशरथ भी उन चर्चाओं को श्रवण करने लगे। माता अरुंधति ने कहा हे प्रभु, यह चंद्रमा कैसा प्रकाशमयी है। मानो अपने में प्रकाशमान है। वशिष्ठ मुनि बोले कि हे देवी, तुम्हें यह प्रतित है कि आज पूर्णिमा का चंद्रमा है और यह सोलह कलाओं से युक्त है। यह समुद्रों से अमृत को लेता है और उसकी वृष्टि कर देता है। चंद्रमा समुद्रों का अधिपति कहलाता है। यह चंद्रमा अमृत को बरसाने वाला है। हे देवी, तुम्हें यह प्रतीत है कि यही तो पृथ्वी के गर्भ में सोम बनकर के अमृत को प्रदान कराता रहता है। यही चंद्रमा की कांति है, जो माता के गर्भ स्थल में जब शिशु होता है तो उसे अमृत प्रदान करता है। यह वही सोम बनकर के अमृत को बहता रहता है। यह अपनी सोलह कलाओं से युक्त है। हे देवी, इसका समुद्रों से मिलान है समुद्र से अमृत लेता है। नाना वनस्पतियों को शोम्‍य बनाता है। माता अरुंधति बड़ी प्रसन्न हुई उन्होंने कहा प्रभु धन्य है। मैं यह जानना चाहती हूं कि एक वशिष्ठ मंडल है और एक अरुंधति मंडल है। इन दोनों का परस्पर क्या समन्वय रहता है। उन्होंने कहा हे देवी, यह जो अरुधंति और वशिष्ठ मंडल है यह अंतरिक्ष मे निवास करने वाले हैं। चंद्रमा से उधरवा गति में गमन करते हैं। अपनी परिधि में भ्रमण करते रहते हैं। जब भी कोई विज्ञान के वांग्मय में प्रवेश करता रहा है। विज्ञान में रत होता रहा है। उसी समय चंद्रमा देखो वशिष्ठ और अरुंधती दोनों की कातिंयां पृथ्वी मंडल पर बुध के माध्यम से होती रहती है और उसको वैज्ञानिक अपने में ग्रहण करते हैं और यंत्रों का निर्माण करते रहे हैं।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Thank you, for a message universal express.

पायलट ने फ्लाइट अटेंडेंट को प्रपोज किया

पायलट ने फ्लाइट अटेंडेंट को प्रपोज किया  अखिलेश पांडेय  वारसॉ। अक्सर लोग अपने प्यार का इजहार किसी खास जगह पर करने का सोचते हैं। ताकि वो पल ज...