गुरुवार, 31 अक्तूबर 2019

यज्ञ कैसे करें ‌?

यज्ञ कैसे करें
 मुनिवरो, हम तुम्हारे समक्ष पूर्व की भांति कुछ मनोहर वेद मंत्रों का गुणगान गाते चले जा रहे थे। यह भी तुम्हें प्रतीत हो गया होगा, आज हमने पूर्व से जिन वेद मंत्रों का पठन-पाठन किया। हमारे यहां परंपरागतो से ही उस मनोहर वेदवानी का प्रसार होता रहा है। जिस पवित्र वेद वाणी में उस परमपिता परमात्मा की महिमा का गुणगान किया जाता है। क्योंकि वह परमपिता परमात्मा अनंतमयी है और वह सब रूप माने गए हैं। वह परमपिता परमात्मा में परिणत रहते हैं। क्योंकि सब उसका आयतन है उसका सदन है। उसका ग्रह है और वह उसी में वास कर रहे हैं। इसलिए हम परमपिता परमात्मा का यह यज्ञोमयी स्वरूप वर्णन करते रहते हैं और वह वास्तव में इस ब्रहम् और आंतरिक दोनों जगत में रहने वाला है। उस परमपिता परमात्मा की जो अनंतता है। वह एक प्रकार की यज्ञशाला के रूप में प्राय: हमें दृष्टिपात आ रही है। यह अपने में बड़ा अनूठा रहा है अनुपम है। मुनिवर देखो हमारा वेद का मंत्र यह कह रहा है कि यज्ञ अग्नि स्वरूप है। अग्नि प्रत्येक पदार्थ का विभाजन कर देती है और उसमें भेदन करने की सत्ता विद्वान रहती है। इसलिए अग्नाम् ब्रह्मा: यह अग्नि ब्रह्मा ‌बन करके रहती है। वही अग्नि जो वेदों का गीत गाने वाला पंडित्व होता है। उसकी वाणी भी सजातीय हो करके अग्नि स्वरूप बन जाती है।अग्नि नाना प्रकार की बनती है। जैसे हमारे यहां ब्राह्म अग्नि भी मानी गई है। जब पंडित्व ब्रह्मा का बखान करता है अथवा ब्रह्म की प्रतिभा में रत हो जाता है। तो ब्राह्मण मानो वेद के मंथन करने वाला पंडित अपने में महान बनता हुआ। उस महान अग्नि के रूप में परिणत हो जाता है।वह  अग्नि माना गया है इसलिए यह सर्वत्र ब्रह्मांड अग्नि में ही सजातीय हो रहा है। जिसके ऊपर परंपरागतो से ही आचार्य विचार-विनिमय करते रहे हैं। आज मैं इस संबंध में तुम्हें विशेषता में नहीं ले जाना चाहता हूं। विचार केवल यह है कि हम उस अग्निमयी स्वरूप को अग्नि में धारण करते चले जाए और जब भी मानव बुद्धिमता पंडित और विवेक में परिणत हो जाता है। तो वह अग्निमयी स्वरूप बन जाता है। आओ मेरे प्यारे देखो विचार यह चल रहा है यज्ञम् भूतम ब्रह्मा: कहीं से मुझे प्रेरणा आ रही है कि यज्ञ के ऊपर कुछ विचार-विनिमय किया जाए। हमारे यहां संसार एक यज्ञ रूप माना गया है। यह एक प्रकार की यज्ञशाला है। यह जो मानवीय शरीर है वह भी एक प्रकार की यज्ञशाला है और इस यज्ञशाला और ब्रह्मांड में दोनों का समन्वय कर दिया जाता है। तो वह भव्य यज्ञ में परिणत हो जाता है। विचार-विनिमय यह है कि हम परमपिता परमात्मा के अनतंमयी यज्ञ को जानने वाले बने। स्वयं वह परमपिता परमात्मा ब्रह्म तत्व को अपने संरक्षण में लिए हुए। इस ब्रह्मांड को गतिमान बना रहा है। आज का हमारा वेद मंत्र यह कहता है कि 'यज्ञम ब्रह्मा:'।


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