गुरुवार, 24 अक्तूबर 2019

राम का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...
 भगवान राम बेटा प्रातः कालीन अपने आसन से निवृत्त होकर के प्राणायाम करते थे! वह प्राण के संबंध में अच्छी प्रकार जानते थे कि जो प्रकृतिवाद को जानने लगता है! वह नाना प्रकार के और भी रूपों में रत हो जाता है! मैं विशेष विवेचना देने नहीं आया हूं! भगवान राम प्रातः कालीन पंचवटी पर यज्ञ करते थे! नाना प्रकार का साकल्य एकत्रित करना, उस साकल्य में रत रहना ,उस साकल्य को अपने में, अनुकृतियों में रत करके उस आभा में निहित रहना जानते थे! विचार केवल यह है कि प्राण-अपान दोनों का मेल मिलाना है! दोनों का संगतिकरण करना है! दोनों को एक दूसरे में पिरोने की चर्चाएं आती रहती है! परंतु जब मैं यह विचारता रहता हूं कि हे प्रभु तू कितना महान और पवित्र कहलाता है! तू कितना ओजस्वी और आभा में नियुक्त होने वाला है! परमात्मा तू महान  सखा है! भगवान राम प्रातः कालीन यह प्रार्थना करते रहते थे! निस्वार्थ होकर के विचरण करते थे! मेरे प्यारे देखो, प्रत्येक मानव के हृदय में, प्रत्येक प्राणी के हृदय में एक महानता की अनुपम ज्योति जागरूक हो जाती है! अंत में यह ज्योति मानव के जीवन का मूल बनकर के इस सागर से पार करा देती है! भगवान राम का जीवन मैं प्रारंभ कर रहा था! भगवान राम की प्रतिभा में रत रहने के लिए नाना राजा उनके समीप आते! उनके राष्ट्र के संविधान की चर्चाएं भी की है! उन्होंने कहा है कि राष्ट्र अपने में जब महान बन करके रहता है यदि प्राणी मात्र के हृदय में एक हृदयग्रह मैं एक महानता की अपनी अनुपम ज्योति जागरूक हो जाती है! और अंत में वह ज्योति मानव के जीवन का मूल बनकर के इस सागर से पार करा देती है! तो देखो आभा ब्रहे वाचनम् ब्रह्म राजब्रहे:, राजा को प्रणायाम करना चाहिए! क्योंकि प्राण एक शाखा है! प्राण को ऋषि लोमस मुनि जानते थे! प्राण का कितना महत्व है बाल काल में विद्यालय में भगवान राम जब अध्ययन करते थे! तो बेटा विद्यालय में प्राण की पवित्र विद्या उनके समीप आती रहती है और उसमें अपने को प्राप्त करते रहते हैं! प्राण देखो ऐसी विचित्र आभा में नियुक्त रहने वाला एक अनुपम सखा हैं! जिसको जानकर मानव अमरावती को प्राप्त हो जाता है! आज मैं क्या उच्चारण करने चला हूं कि राजा कौन है? बेटा राजा के राष्ट्र में विज्ञान होना चाहिए! विज्ञान को नाना प्रकार की तरंगे होनी चाहिए! जिस विज्ञान का आयु प्रबल होता है वही सार्थक होता है! अधिक विवेचना न देते हुए आज मैं तुम्हें उस क्षेत्र में ले जा रहा हूं! जिस क्षेत्र में हमें राष्ट्रीयता और मानवता का दर्शन होता रहा है! भगवान राम अपने में विचारते रहते थे कि हिंसा नहीं होनी चाहिए, मैं अहिंसा की चर्चा उनके जीवन काल की चर्चाएं प्रकट कर रहा था! परंतु पुन:- पुन: वह वाक्य मुझे स्मरण आते रहते हैं! हम विचारते रहते हैं, अपने में अन्वेषण करते रहते हैं कि भगवान राम का जीवन सदैव आज्ञाकारी रहा है! उनके जीवन में एक महानता की ज्योति अपने में प्रतिष्ठित होकर के आत्मतत्व कि आभा में निहित रही हैं!


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