मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

मैंग्रोव प्राकृतिक स्थायीकारी

प्राकृतिक स्थायीकारी


मैंग्रोव वृक्षों की जडें ज्वार तथा तीव्र जल धाराओं द्वारा होने वाले मिट्टी के कटाव को कम करती हैं। मैंग्रोव वृक्ष धीरे-धीरे मिट्टी को भेदकर तथा उसका वातन (वायु-मिश्रण) कर उसे पुनरुज्जीवित करते हैं। जैसे-जैसे दलदली मिट्टी की दशा सुधरती है, उसमें दूसरे पौधे भी उगने लगते हैं। मैंग्रोव वृक्ष अपनी जड़ों द्वारा मिट्टी को बांधे रखते हैं जिससे तूफान तथा चक्रवात के समय क्षति कम होती है। उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में आने वाले चक्रवात बंगाल की खाड़ी में अधिक आते हैं। इसीलिए उनका प्रभाव भी अरब सागर की अपेक्षा दक्षिण भारतीय तट पर अधिक पड़ता है। ये चक्रवात तटीय क्षेत्रों पर बहुत तीव्र गति से टकराते हैं और तट, तेज समुद्री लहरों के जल से जलमग्न हो जाते हैं जिससे तटों पर रहने वाले जीव-जन्तुओं की भारी हानि होती है। मैंग्रोव की कुछ प्रजातियां जैसे राइजोफोरा के वृक्ष इन प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध ढाल की तरह कार्य करते हैं।


मैंग्रोव वनों की सुरक्षात्मक भूमिका का सबसे अच्छा उदाहरण तब देखने को मिला, जब 29 अक्टूबर 1999 को उड़ीसा के तट पर चक्रवात आया था। इस चक्रवात में वायु की गति 310 किलोमीटर प्रति घंटा थी। इस चक्रवात ने मैंग्रोव रहित क्षेत्रों में भारी तबाही मचायी। जबकि उन क्षेत्रों में जहां मैंग्रोव वृक्षों की संख्या अधिक थी, नुकसान नगण्य था। इसी प्रकार के अधिसंख्य उदाहरण उपलब्ध है।


जान-माल की सबसे अधिक हानि, महानदी के डेल्टा में आये तूफान के बाद देखने में आयी। जहां मैंग्रोव वनों की व्यापक स्तर पर कटाई कर भूमि को दूसरे कार्यों के लिये प्रयोग में लाया गया। सन् 1970 में बांग्लादेश में आये प्रचण्ड तूफान तथा तीव्र ज्वारीय लहरों से लगभग 3 लाख व्यक्ति मारे गये थे। इस तूफान में हुई जनहानि सम्भवतः कम हुई होती यदि हजारों एकड़ भूमि से मैंग्रोव वनों को काट कर कृषि कार्य हेतु भूमि न ली गयी होती।


गुजरात के कच्छ क्षेत्र में जहां मैंग्रोव वनों की अवैध कटाई की गयी, सन् 1983 के चक्रवात में भारी जन हानि हुईं ये सारी पर्यावरण सम्बन्धी सेवाएं जो मैंग्रोव निःशुल्क प्रदान करते हैं, उन पर आश्रित प्रजातियों के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण है।


दुर्भाग्यवश, मैंग्रोव वन जो सदियों से समुद्री तूफानों और तेज हवाओं का सामना सफलतापूर्वक करते रहे हैं आज मनुष्य के क्रिया-कलापों के कारण खतरे में है। लेकिन हाल के वर्षों में घटित घटनाओं ने मनुष्य को मैंग्रोव वनों के प्रति अपने रवैये के बारे में सोचने पर विवश किया है। सन् 2004 में तटीय क्षेत्रों में सुनामी से हुई भंयकर तबाही से वे क्षेत्र बच गये जहां मैंग्रोव वन इन लहरों के रास्ते में एक ढाल की तरह खड़े थे। उस समय इन वनों ने हजारों लोगों की जान-माल की रक्षा की। इस घटना के बाद तटीय क्षेत्र के गांवों में रहने वाले लोगों ने मैंग्रोव वनों को संरक्षण देने का निश्चय किया।


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