शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

यमाचार्य नचिकेता वार्ता-कर्तव्यवाद

गतांक से...


माता-पिता को कर्तव्य का पालन करना चाहिए। मोह का पालन करना चाहिए और मैं मोह में उनकी संपदा को एकत्रित करना चाहिए। वेद का ऋषि कहता है यह मोह-ममता में सारा संसार नष्ट हो जाता है। देखो ऋषिवर ने यही कहा, अपने पिता से कहा, हे पुत्र! तुम मोह में आते हो और सुखी हो। तुम्हें मेरा मोह है मैंने इसका सहयोग दिया है। माता नहीं कह रही है। माता मोक्ष की पगडंडी के लिए अपने में रत हो रही है और आप शोकातुर होकर के नारकिक जीवन बना रहे हैं। संस्कारों की उपलब्धियों को जन्म दे रहे हैं। मेरे पुत्रों शाक्यल मुनि ने जब यह कहा। उन्होंने कहा मुझे मोह है और होना ही चाहिए। क्योंकि मोह से मेरा जन्म हुआ है और मोह में ही मेरा शरीर पूर्ण हो जाएगा। शाक्यल मुनि ने यह कहा तो मुनि, वह श्वेतकेतु उनकी माता, श्वेतकेतु की पत्नी साक्‍लय की माता ने कहा 'पुत्रों भवा संभावाम्‌ वाचन्‍नमम्‌ ब्रहम शोकम्‌ ब्रहम वाचोदेवा:' यह कह करके कि तुम्हारा जीवन महान बने। आशीर्वाद देकर के माता और पिता ने वहां से गमन किया। देखो अपने में चिंतन करने लगे । रात्रि जब काल आया तो विचार करने लगे कि मेरी प्यारी माता कितनी प्रिय है । उदार है वह जानते हुए भी मुझे कहती है। 'पुत्रों भवितामम ब्रह्म आदित्य' तुम अपने में आयुष्मान बनकर के जीवन को व्यतीत करने में लगे रहे।'साक्‍लय सम्‍भवा ब्रहम हिरणाक्षम्‌ वृहे' और हिरणी के बालक से मोह-ममता मे मानो परिणीत रहे। बेटा, देखो मोह की आभा में मानव को विशेष नहीं जाना चाहिए। वेद के वाक्य और वेद के ऋषि मुनियों ने यह कहा क्या मानव को 'ममता ब्रम्हदेव' मानव को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। माता पालन करती है अपने कर्तव्यवाद में रहती है। बेटा  कर्तव्यवाद ही मानव को महान बनाता है। कर्तव्यवादी विशेषकर संसार में सूर्य प्रातकाल मे किसी से स्वार्थ नहीं चाहता, प्रकाश देता रहता है। प्रकाश नाना प्रकार की किरणे देता रहता है। वह प्रत्येक प्राणी को प्रकाश देता है। उनका भोजन प्रदान कराता रहता है। चंद्रमा,ग्रह ,नक्षत्र सब निरंतर  कर्तव्य में लिप्त रहते हैं और अपने कर्तव्य में वयाप्‍त रहते हैं। उसी से अणुकेतु को प्रदान करता रहता है। वह कर्तव्य अपने मे रहता है। विश्राम अमृतवाणी उसमें विस्मित हो जाता है। विश्राम करने लगता है मेरे को प्रत्येक मानव को प्रभु का ध्यान करना चाहिए। आज का वाक्य अब यहीं समाप्त होता है। वेदों का पठन-पाठन निरंतर जारी रहेगा।


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