सोमवार, 9 सितंबर 2019

यमाचार्य नचिकेता वार्ता (धर्मवाद)

गतांक से...


परंतु उन्हीं को ब्रह्मा जगत में अद्न्याधान करता हूं  3 समिधा लेकर के, तीन ही क्यों मानी जाती है? क्योंकि त्रहवाद को मुझे जागरूक बनाना है। मेरे हृदय में जो तीनों गुण है ।रजोगुण, तमोगुण, सतोगुण यह 3 समिधा को लेकर के मैं अगर ध्यान करता हूं । इसलिए कर रहा हूं कि ब्रह्म जगत भी मेरा यह लोक-परलोक यह धीरु वर्धन तिरुपति में मेरा यह संसार पवित्र बन जाए। मैं राष्ट्र को तीन विभाग में विभक्त करना चाहता हूं। ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र एक सुदूर को नहीं ले रहा हूं तीनों विभागों में मैं अपने राष्ट्र का मैं अपनी प्रजा को एक सूत्र में लाना चाहता हूं। इस प्रकार का विचार जब मुनिवर देखो राजा ने महाराज जानवी को दिया तो ब्राह्मण वेताओं को ,वेद जिज्ञासु को प्रतीत हो गया कि राजा तो ब्रह्म वेता है और ब्राह्मण है। मुनि व उनके समीप विद्वान एकत्र हो गए और यह कहा कि महाराज हम आपसे यह जानना चाहते हैं कि यजमान तीन आपने प्रथम कैसे कहा था कि मैं ज्ञान, कर्म और उपासना के द्वारा यज्ञ कर रहा हूं। ज्ञान, कर्म और उपासना में क्या-क्या अंतर्द्वंद माना गया है? राजा कहते हैं कि ज्ञान कहते हैं इस संसार के प्रत्येक पदार्थ का ज्ञान हो जाना और प्रत्येक पदार्थ को जान लेना। उसका मुझे एक समिधा बनानी है। संमिधा का अभिप्राय है यह जो अग्‍न्‍यधान हो करके अग्नि में भस्म हो जाती है। वह जो मेरा विचार है मेरा जो संवाद है वह व्यापक बन कर के ज्ञान में परिणित हो जाए। ज्ञान में आधारित हो जाए। ज्ञान और विज्ञान होगा तो मैं कर्मकांड की पगडंडी को जान सकता हूं। कर्मकांड में मेरी निष्ठा हो कर्मकांड में निहित हो जाऊं। मेरी उज्जवल समीधा है ज्ञान, कर्म और उपासना उसके पश्चात परमात्मा को अपने को संभवत समर्पित कर सकता हूं। परमात्मा को समर्पित करना बहुत अनिवार्य है। जिस प्रकार माता अपने बालक को गर्भ स्थल में धारण करती हुई बालक में स्वयं को रत कर देती है। इसी प्रकार देखो मैं अपने को रत करना चाहता हूं। वह 3 संमिधा का अभिप्राय यह है कि मेरी अंतिम जो संमिधा है। मेरे शरीर और विचारों की संमिधा बनकर के वह अग्‍न्‍यधान जब परमात्मा ब्रह्म को प्राप्त होती चली जाए। भ्रम में निश्चित हो जाऊं ऐसा विचार वह दे रहा था। परंतु आगे ब्राह्मणों ने कहा कि प्रभु, तीन प्रकार की संविदा कौन सी है, जिनसे राष्ट्र बनता है, राष्ट्र को भव्य बनाना बनाया जाता है। उस समय राजा ने कहा कि तीन प्रकार की संमिधा वह कहलाती है जो राष्ट्र को ऊंचा बनाती है। सबसे प्रथम जिसमें चकाचक होती है जिसमें चरणीन्‍त होता हैं । उसका अभिप्राय है कि मेरे राष्ट्र में बुद्धिमान विशेष हो और बुद्धिमान के द्वारा यह राष्ट्र समाज ऊंचा बनता है। जब बुद्धिमान जिस काल में भी होते हैं वह जिस ग्रह में बुद्धिमान पुरुष होते हैं। उस राष्ट्र का पवित्र होना निश्चित है। परंतु इसी प्रकार मेरी वाइफ प्रारंभ की जो संमिधा है उससे मैं अपने राष्ट्र में ब्राह्मणों को ओजस्वी बनाता हूं। मुनिवर, देखो राजा जानवी कहते हैं मेरे यहां एक समय ब्रह्म वेता स्वर्ण केतु ऋषि महाराज आए और स्वर्ण केतु ऋषि महाराज ने ने कहा महाराज मेरे जो आचार्य है मेरे जो पित्र है आचार्य  मै उनके कुल में अध्ययन कर रहा हूं। परंतु उनके कुल में बुद्धिमान तो बहुत है परंतु वहां भगवान देखो द्रव्य की हीनता हो गई है। मैं तब चाहता हूं तो मुनि, देखो महाराज जानवी कहते हैं ब्रह्म बेताओं से मैंने दर्द को प्रदान किया और यह कहा जाओं ब्रह्मचारी ले जाओ क्योंकि विद्यालय पवित्र होने चाहिए। विद्यालय में बुद्धिमता होनी चाहिए। इससे मेरा राष्ट्र पवित्र बन जाए। महाराज जानवी ने कहा कि मेरी सबसे प्रथम संविदा ब्राह्मण मेरे राष्ट्र में हो द्वितीय मेरे यहां क्षत्रिय हो जिन क्षत्रियों से मेरा राष्ट्रीय बलिष्ठ होता है पवित्र बनता है। और उनमें धर्म पिरोया हुआ रहता है। इसी प्रकार जो संमिधा है वह  होनी चाहिए। वैश्य अपने धर्म को, कृषक कृषि करने वाला हो कृषक से जुड़ जाता है और भी नाना प्रकार का व्यापार बना होता है। जिससे राष्ट्र की आभा बनती है पवित्र बनती है। आज वह मेरे यहां ऊंचे होने चाहिए सुचरित्र होने चाहिए उनकी किसी प्रकार की हिंसा ने हो। तो मेरा राष्ट्र पुत्र होगा परंतु देखो उस समय उन्होंने कहा प्रभु आप जिन यज्ञ से अग्नि दान करते हो वह संमिधा कौन सी है। उन्होंने कहा वह समीधा मेरे यहां जिससे मैं प्रातः कालीन यज्ञ करता हूं और मेरी पत्नी जो यज्ञ करते हैं। सबसे प्रथम हम ब्रह्म चिंतन करते हैं ब्रह्म यज्ञ करते हैं और ब्रह्म यज्ञ के के पश्चात हम देव पूजा करते हैं। शिव पूजा के पश्चात हम अतिथि की सेवा करते हैं यह तीन यंज्ञ हमारे राष्ट्र में तीन प्रकार की है ये संमिधा कहलाती है। सबसे प्रथम ब्रह्मा का चिंतन होता है। ब्रहम के चिंतन का अभिप्राय यह है कि ब्रह्मा की आभा में रमण करते रहते हैं। यह ब्रह्म क्या है हमारे यहां प्रथम नियम माना है। पवित्र व की पति पत्नी अपने-अपने स्थान पर विद्यमान होकर के प्रातः काल अपने आसन को साफ करके ब्रह्म का चिंतन करते हैं और चिंतन करते हैं। हे ब्राह्मणों मेरे राष्ट्रीय में कोई ऐसा ग्रह नहीं है जिस ग्रह में ब्रह्म का चिंतन में हो पति पत्नी ब्रह्मा का चिंतन न करते हो। एक आसन पर विद्यमान हो करके धर्म क्या है धर्म किसे कहते हैं यह ब्रह्म क्या है इस ब्रहम में इस संसार को पिरोया हुआ है। जिसमें हम अपने उस मानवीय भाव को पिरोने वाले हैं तो वह ब्रह्म का चिंतन प्रत्येक राजा के प्रत्येक समाज में गृह में होता रहता है। जिससे कि हमें सात्विकता आ जाए ।मानवता आ जाए और मानवता आकर के शिष्टाचार आ जाए सदाचार आ जाए। क्योंकि ब्रह्मा के चिंतन से नाना लाभ होते हैं। ब्रह्मा का चिंतन करने वाले पति पत्नियों के गृह में संतान बुद्धिमान होती है।


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