रविवार, 22 सितंबर 2019

यमाचार्य नचिकेता वार्ता

गतांक से...
 मैं उच्चारण कर रहा था यह दीप मालिका का वर्णन हमारे वैदिक साहित्य में वायु को वाहन बनाकर के एक-एक मालिका का वर्णन आता रहता है। वाहन के रूप में गाना गाने वाले की कोई सीमा नहीं होती है। एक गान गा रहा है माता प्रसन्न हो रही है। बालक गान गा रहा है, माता प्रसन्न हो रही है। एक ब्रहमवेता ब्रह्मा का गाना गा रहा है। समाज प्रसन्न हो रहा है। एक गाना गाता हुआ अंतर हृदय में उसका हृदय स्‍वत: प्रसन्न हो रहा है। तो गान गाने वाले कुछ योगेश्वर इस प्रकार के भी हुए हैं। जिन्होंने शब्द विज्ञान के ऊपर बहुत अनुसंधान किया है। जिन्होंने गान के ऊपर अनुसंधान किया है यह जो  गायात्री है जो मां के रूप में गाई जाती है। क्योंकि गान कौन गाता है? गायत्री क्या है मुनीवरो देखो, जो गायत्री गाई जाती है प्रत्येक वेद के मंत्र को गायत्री कहते हैं। कौन गायक है, गायत्री क्या है? जो मुनिवरो, देखो गाई जाती हो प्रत्येक वेद के मंत्र को गायत्री कहते हैं। हमारे यहां गायत्री नामोंकरण एकोंकी का नहीं कहलाता है। यह गायत्री इसलिए विशेष मानी जाती है कि इसमें 24 अक्षर माने गए हैं। इसलिए मानव का शरीर भी 24 खम्‍बों वाला है। यह ब्रह्मांड भी 24 खंभों वाला है। 10 प्राण, दस इंद्रियां है और मुनिवर मन, बुद्धि, चित्त अहंकार कहा जाता है। यह 24 खबों वाला ब्रह्मांड दृष्‍टिपात आ रहा है यही मानव के शरीर में है। यह 24 खंभों वाला ब्रह्मांड मानव शरीर कहलाता है। इसके ऊपर आधारित रहता है। प्रणेश्वर अपनी आभा में गति करता रहता है तो परिणाम क्या है। जब वह गाता है गाने वाला गाता ही रहता है। सदैव ही गाता है। जब माता मल्हार गाती है तो मैं उससे वृष्टि प्रारंभ हो जाती हैं। जब मानव पांडित्य गान गाता है तो उसकी पंडित की धारा अंतरिक्ष में उत्पन्न हो जाती है। यजमान जब यज्ञशाला में स्‍वाह करके हृदय से गाना गाता है तो मुनिवरो देखो यज्ञशाला की तरंगों के साथ में उनके जो स्‍वाह शब्द है वह अंतरिक्ष में औत-प्रॏत हो जाते हैं। मेरे प्यारे देखो, मुझे स्मरण आता रहता है इसके ऊपर नाना वैज्ञानिक हुए हैं जिन वैज्ञानिकों ने बहुत अनुसंधान किया है। यह विज्ञान महाराजा महर्षि भारद्वाज मुनि की यज्ञशाला में भी विधमान था। यही विज्ञान मेरे पुत्रों देखो उद्यालयक गोत्र के कुछ ॠषियों के आश्रम में भी यह विज्ञान पनपता रहा है। मैच विज्ञान के ऊपर कोई विशेष विशेष विवेचना देना नहीं चाहता हूं परंतु विचार यह है कि ऐसे संयंत्रों का निर्माण भी हुआ है। जैसे शब्द है, शब्द के साथ में उसका चित्र यंत्रावलियो में दृष्टिपात आता रहता है।यज्ञोमयी ब्रह्मा वाचा: इस शब्द को लेकर के रचना की गई है तो विचार क्या है। मेरे पुत्रों देखो वेद कहता है कि यह शब्द विज्ञान है। सात्विकता में रमण करने वाला जो सत्यता में रहने वाला है। उसके ऊपर मानव को सदैव चिंतन और मनन करना चाहिए। हृदय से इसके ऊपर विचारशील बन करके अपनी आभा में आभाहित रहना चाहिए। जिससे मानव का जीवन पवित्रता में रमण करता हुआ वैदिक विज्ञान को वैदिक ज्ञान को अपने साकार रूप में लाकर के दर्शाते रहे। विचार-विनिमय करते रहे विचार क्या है एक पंडित गाना गा रहा है ।माता अपने पुत्र से कहती है बालक तू सदैव सत्यवादी  बन,सत्यवादी बनने के लिए माता ही प्रेरणा क्यों देती है। आचार्य ही क्यों प्रेरणा दे रहा है। सत्य उच्चारण करने की प्रेरणा इसलिए दे रहा है। क्योंकि माता का हृदय है, वह बालक माता का हृदय है। और आचार्य का कुल कहलाता है वह विद्यालय में कुल है। माता का हृदय है पिता की श्रुति है। सर्वत्रीय हे ब्रह्मवर्चॏसी तू ब्रह्मवर्चॏसी बन, का अर्थ है। वह सत्यवादी बन,वह सार्थकता मेरा मन कर रहा है। जो प्राण और मन को दोनों को एक सूत्र में लाना जानता है। जो ॠचाती प्रतिभा को लोको की श्रुतियों में कटिबद्ध कर देता है। वह तो सत्य मे रमन करता है। जब मैं अंतरिक्ष के गान रुप में प्रवेश करता हूं। जैसे लोक- लोकांतर है। एक दूसरा, एक दूसरे के प्रति गाना गा रहा है। गान का अभिप्राय है उसे उल्लास दे रहा है। जैसे माता की परिक्रमा करने वाला पुत्र है, कहीं माता पुत्र की परिक्रमा कर रही है और क्योंकि उसी से माता का शब्द का निर्माण हुआ है। वह गान गाता है परंतु देखो वही वृत्‍तियों में वह पुत्र माता की, माता पुत्र की परिक्रमा कर रही है। परिक्रमा का अर्थ है गान गाना, कहीं मुनिवर, देखो पुत्र माता का गाना गा रहा है उसकी प्रसन्नता में मानव मग्‍न हो रहा है ।गान गाता है, हृदय से गा रहा है ममता कर रहा है। इसी प्रकार कहीं पिता की परिक्रमा कर रहा है पिता-पुत्र की परिक्रमा कर रहा है। वह गान रूपों में सत्यता से उपदेश दे रहा है। विचार-विनिमय क्या है, मेरे पुत्रों देखो इसी प्रकार प्राणी एक दूसरे की परिक्रमा कर रहा है। एक वेद का पठन-पाठन करने वाला भयंकर वनों में गा रहा है सिंहराज ध्वनि को श्रवण कर रहा है, सर्पराज आ कर के उसके चरणों में औत-प्रॏत हो रहा है। वह गान की ही महिमा है जो गाता है। हृदय से जब गाता है तो गान को पान करता हुआ परमात्मा के गान से उसका समन्वय हो जाता है। इस लोक में एक प्राणी दूसरे प्राणी की परिक्रमा कर रहा है। गान गाने के रूप में मेघगान गाता है


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