लखनऊ। हिन्दू जन सेवा समिति के सदस्य सतीश भगत द्वारा श्री शीतला माता मंदिर प्रांगण में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन अयोध्या से पधारे अंतरराष्ट्रीय कथावाचक राधेश्याम शास्त्री ने श्रोताओं से विचार व्यक्त करते कहा कि एक वो जो दूसरों को सताते हैं और एक वो जो अपने को सताते हैं।पहले तरह के दुष्ट उतने खतरनाक नहीं हैं।क्योंकि दूसरा कम से कम अपनी रक्षा तो कर सकता है।दूसरे प्रकार के दुष्ट बहुत खतरनाक हैं,जो अपने को सताते हैं।वहां कोई रक्षा करने वाला भी नहीं है।अब अगर आप अपने ही शरीर में कांटे चुभाओ,तो कौन रक्षा करेगा? खुद को ही भूखा मारो,कौन रक्षा करेगा?अंग काट डालो,आंखें फोड़ लो,कान फोड़ दो,कौन रक्षा करेगा?सड़ाओ अपने को, कौन रक्षा करेगा?लेकिन ये दूसरे तरह के दुष्ट बड़े तपस्वी हो जाते हैं।इनके जीवन में सिवाय मूढ़ता के कुछ भी नहीं होता।तुम कोई लंपट न देखोगे इनके जीवन में प्रतिभा की।उनकी आंखों में तुम्हें कोई ज्योति न मिलेगी। दुष्टता तुम उनकी आंखों में पाओगे,महापाप,घृणित भाव,हिंसा,मूढ़ता और खतरनाक हैं।वे किसी भी वक्त झगड़े के लिए तैयार है, हठी व्यक्ति कुछ भी कर सकता है।उसमें से नौ प्रतिशत तुम पाओगे कि राजसी हैं,जो मान—प्रतिष्ठा के लिए कर रहे हैं।कभी भूल से तुम्हें वह एक आदमी मिलेगा,जो सात्विक है।जो उपवास कुछ पाने के लिए नहीं कर रहा है,जिसका उपवास आनंद है।जिसका उपवास परमात्मा के निकट होने की सिर्फ एक दशा है।सात्विक व्यक्ति उपवास करता है।उपवास का अर्थ है,उसके पास होना,आत्मा के पास होना या परमात्मा के पास होना।शब्द का भी वही अर्थ है।उसका भूखे मरने से कोई लेना—देना नहीं है सीधा।लेकिन जब सात्विक व्यक्ति उसके निकट होता है,तो शरीर को भूल जाता है। कुछ घड़ियों के लिए न भूख लगती है,न प्यास लगती है।भीतर ऐसी धुन बजने लगती है।जैसे तुम भी कभी—कभी नृत्य देखने बैठे हो,कोई सुंदर नर्तक नाच रहा है;या कोई गीत गा रहा है,और गीत ऐसा प्यारा है कि धुन बंध गई,तारी लग गई,तो तीन घंटे तुम्हें न भूख लगती है,न प्यास लगती है।तुम सब भूल ही जाते हो।जब संगीत बंद होता है,अचानक तुम्हें पता चलता है कि पेट में तो हाहाकार मचा है,भूख लगी है, कंठ सूख रहा है।इतनी देर तक पता क्यों न चला!ध्यान लीन था।सात्विक व्यक्ति का उपवास ऐसा है कि उसका ध्यान इतना भीतर परमात्मा में लीन होता है कि वह भूल ही जाता है,प्यास लगी है,भूख लगी है।जब लौटता है अपने ध्यान से,तब भूख और प्यास का पता चलता है।इसलिए उसका नाम उपवास है,परमात्मा के निकट वास।
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