शनिवार, 14 सितंबर 2019

अंतर्राष्ट्रीय बाजार का महत्वपूर्ण पदार्थ

वनस्पति जगत्‌ में पिप्पली कुल (Piperaceae) के मरिचपिप्पली (Piper nigrum) नामक लता सदृश बारहमासी पौधे के अधपके और सूखे फलों का नाम काली मिर्च (Pepper) है। पके हुए सूखे फलों को छिलकों से बिलगाकर सफेद गोल मिर्च बनाई जाती है जिसका व्यास लगभग 5 मिमी होता है। यह मसाले के रूप में प्रयुक्त होती है।


मूल स्थान तथा उत्पादक देश
काली मिर्च के पौधे का मूल स्थान दक्षिण भारत ही माना जाता है। भारत से बाहर इंडोनेशिया, बोर्नियो, इंडोचीन, मलय, लंका और स्याम इत्यादि देशों में भी इसकी खेती की जाती है। विश्वप्रसिद्ध भारतीय गरम मसाले में, ऐतिहासिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से, काली मिर्च का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका वर्णन और उपयोग प्राचीन काल से चला आ रहा है। ग्रीस, रोम, पुर्तगाल इत्यादि संसार के विभिन्न देशों के सहस्रों वर्ष पुराने इतिहास में भी इसका वर्णन मिलता है। 15वीं शती में वास्को-डि-गामा द्वारा समुद्रमार्ग से भारत के सुप्रसिद्ध मलाबार के तटवर्ती इलाकों की खोज का मुख्य कारण भी काली मिर्च के व्यापार का आर्थिक महत्व ही था।


काली मिर्च का पौधा त्रावणकोर और मालाबार के जंगलों में बहुलता से उत्पन्न होता है। इसके अतिरिक्त त्रावणकोर, कोचीन, मलाबार, मैसूर, कुर्ग, महाराष्ट्र तथा असम के सिलहट और खासी के पहाड़ी इलाकों में बहुतांश में उपजाया भी जाता है। दक्षिण भारत के बहुत से भागों में इसकी खेती घर-घर होती है। वास्तव में काली मिर्च के भारतीय क्षेत्र का विस्तार उत्तर मलाबार और कोंकण से लेकर दक्षिण में त्रावणकोर कोचीन तक समझा जाना चाहिए।


व्यापार 
आज काली मिर्च अंतरराष्ट्रीय व्यापार का एक महत्वपूर्ण पदार्थ है। संसार के कुल देशों में काली मिर्च का उत्पादन गत महायुद्ध के पूर्व के 96,525 मीटरी टनों से गिरकर लगभग 45,725 मीटरी टनों पर पहुँच गया था। इस भारी कमी का मुख्य कारण गत महायुद्ध में इंडोनेशिया की काली मिर्च की खेती का सर्वनाश ही समझना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में केवल भारत का उत्पादन ही महायुद्ध के पूर्व के 18,800 मीटरी टनों से बढ़कर 25,400 मीटरी टनों से ऊपर पहुँचा है।


 


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