बुधवार, 31 जुलाई 2019

बिच्छू का तेल (संपादकीय)

मधुकर कहिन
बिच्छुओं  का तेल निकाल कर दवाई बनाने वाले बिच्छू बाबा के लिए मेरे कुछ सुझाव 


नरेश राघानी


दरगाह बाजार में एक दुकान पर बिच्छू बाबा नाम से प्रसिद्ध व्यक्ति बिच्छू का तेल निकालकर दर्द निवारक दवा बेच रहा था। माँ क़सम !!! जानकर ही उंगलियों में खुजली सी होने लगी। अंदर तक हिला डाला इस बंदे ने। सो खुद को रोक नहीं पाया। लिखने को मजबूर हो गया हूँ। 


अब बताओ यह भी कोई बात हुई भला ??? सबसे ज्यादा दर्द देने वाले जीव का तेल निकालकर दर्द का इलाज !!!! भाई वाह मज़ा आ गया ...


बिच्छू बाबा से मेरा करबद्ध निवेदन है कि - अगर उनके पास वाकई कोई ऐसा साइंस है ? तो कृपया इस शहर में पाए जाने वाले नाना प्रकार के दुष्ट बिच्छुओं का तेल निकालने की विधा पर भी अवश्य काम करें। यदि आप थोड़ी और मेहनत करेंगे तो हो सकता है कि सरकार अथवा वन विभाग आपकी इस रिसर्च में थोड़ी आर्थिक मदद भी कर दे। 
 खैर !!! अजमेर में पाए जाने वाले उन नाना प्रकार के  बिच्छुओं का विवरण इस तरह से है। 


खद्दड़ धारी बिच्छू - आमतौर पर खादी के कुर्ते पहन कर घूमते हैं । बिल्कुल बिच्छू की तरह सामने से डराने का दिखावा करते हैं। और सदैवअपनी पूछ से ही डंक मारते हैं। जिससे डंक खाने वाले को मालूम ही नहीं पड़ता कि कमबख्त हमला हुआ कहां से ??? इन चमत्कारी कीटों में जबरदस्त प्रजनन क्षमता होती है,वे रति क्रिया में भी बहुत पारंगत होते हैं । जिन्हें कभी भी बूढ़े होने का अहसास नहीं सताता। संभवत ऐसे बिच्छूओं का तेल निकाल कर आप बड़ी आसानी से अपने अंग विशेष में कमजोरी महसूस कर रहे नपुंसक लोगों हेतु जापानी की टक्कर का इलाज ढूंढ पाए।


 इच्छाधारी बिच्छू-  यह बिच्छू की एक विशेष प्रकार है, जिनमें  जबरदस्त प्रशासनिक क्षमता होती है ।जो अपनी योग्यता के आधार पर सारी *उम्र राज में रहने का आदि होने की वजह से जबरदस्त सनक की शिकार होती है। इस प्रकार की प्रजाति का दिमाग अक्सर सातवें आसमान पर चढ़ा रहता है ।अपने ही आसपास के कनिष्ठ और वरिष्ठ लोगों को डंक मार मार कर पीड़ित करते रहना इनकी फितरत है। इनकी अपनी प्रजाति में ही आपसी विवाद चलते रहते हैं । जिसके चलते डंकों का आदान-प्रदान होता रहता है। फिर यदि इनके आपसी झगड़े के बीच में किसी और प्रकार का जीव आकर गलती से फँस जाए , तो उसकी माँ की बहन मौसी ... ( हाँ वही) होना तय समझिए। खद्दर धारी बिच्छू की विशेष तौर से दुश्मन और अपनी ही इच्छा के घोड़े पर सवार इस इच्छाधारी बिच्छु प्रजाति का यदि आप तेल निकाल पाए ? तो शायद मानसिक तनाव से ग्रस्त , दिमागी रूप से कमज़ोर रोगियों का इलाज भी बड़े सफलतापूर्वक उस तेल से कर पाएंगे। 
अहंकारी बिच्छू - यह अपनी कलम के अहंकार में चूर, एक विशेष तौर की सरफिरी प्रजाति है । जो अपने अहंकार के आगे किसी भी और कीट पतंगे से ज्यादा कुछ नहीं समझती है किसी भी अन्य प्रजाति के बिच्छू को डंक मार कर घायल करने में खुद को सक्षम समझती , इस प्रजाति को यह भारी गलतफहमी होती है की उसका जन्म इस प्रदूषित सिस्टम को साफ करने के लिए हुआ है।और यदि  वह किसी को भी डंक मार देगी तो उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। अक्सर विषम परिस्थितियों में फँस जाने पर यह उकड़ू प्रजाति  बहुत पीड़ा का अनुभव करते हुए भी अहंकार वर्ष किसी से कुछ कह नहीं पाती। और अपना दर्द पिछवाड़े में दबोच कर रख जाती है । जिससे इसका डंक और जहरीला हो जाता है। किसी से भी पंगा मोल लेने की घातक मानसिकता से ग्रस्त यह प्रजाति अक्सर *सिस्टम की गंदगी में व्याप्त नाना प्रकार के पिस्सूओं को डंक मारने की आदि होती है। और सिस्टम के गंदे खून को साफ करने में बेवजह प्रयासरत रहती है। संभवत इस प्रजाति का यदि बिच्छू बाबा तेल निकाल पाए ? तो यह किसी के भी शरीर में गंदे खून को साफ करने के लिए एक बड़ी सटीक औषधि सिद्ध हो सकती है।
इसके अलावा इस शहर में नाना प्रकार के कीट पतंगे और संगठनात्मक पिस्सू भी व्याप्त हैं। जिनका उम्र भर कुछ भी नहीं हो पाता है। सिस्टम में कहीं भी फिट नहीं होने के बावजूद उन्हें भारी गलतफहमी होती है - कि वह सिस्टम का अभिन्न अंग है । इन पिस्सूओंऔर कीट पतंगों का बिच्छू बाबा चाहे तो अचार डाल सकते हैं। जो कि बड़ा स्वादिष्ट होगा। क्योंकि वैसे भी इन बचे कुचे कीट पतंगों को बाकी अन्य प्रजातियां अचार की तरह चटकारे मार मार कर खाती रहती हैं । जिससे इनकी गलतफहमी भी बरकरार रहती है। कि यह भी सिस्टम का  में जिंदा है । यह प्रजाति सिस्टम में छोटे-मोटे संगठन बनाकर अक्सर लोगों की नजर में आकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करती रहती है। परंतु सच मानिए इन छोटे-मोटे कीट पतंगों का फर्क इस सिस्टम कोई बस नहीं चलता है। या फिर यह कह दीजिए कि इस मोटी खाल वाले सिस्टम की टांट का बाल ( सही समझे) भी नहीं उखाड़ सकती। इन समस्त प्रजातियों का प्रतिनिधित्व इस शहर में कौन कौन कर रहा है ? इसका ब्यौरा दूँगा तो शायद अतिशयोक्ति हो जाएगी । इसलिए यह किस्सा फिर कभी .... ज़रा इंतज़ार कीजिये ।


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