शनिवार, 26 अक्तूबर 2019

सेब के जैसा वन बेर

बनबेर या उन्नाव, बेर की जाति का पौधा है और पश्चिम हिमालय प्रदेश, पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत, अफगानिस्तान, बलोचिस्तान, ईरान इत्यादि में पाया जाता है। इसकी झाड़ी काँटेदार, पत्ते बेर के पत्तों से कुछ तथा नुकीले, फल छोटी बेर के बराबर और पकने पर लाल रंग के होते हैं। उत्तरी अफगानिस्तान का उन्नाव सर्वोत्कृष्ट होता है। इसका मराठी तथा उर्दू में भी 'उन्नाव' ही नाम है। संस्कृत में इसे सौबीर तथा लैटिन में जिजिफ़स सैटिवा (Ziziphus Sativa) कहते हैं। भारत में सर्दी के प्रारंभ में यह पूरी तरह पक जाता है! 


इस औषधि का उपयोग विशेषकर हकीम करते हैं। इनके मतानुसार इसके पत्ते विरेचक होते हैं तथा खाज, गले के भीतर के रोग और पुराने घावों में उपयोगी हैं। परंतु औषधि के काम में इसका फल ही मुख्यत: प्रयुक्त होता है जो स्वाद में खटमीठा होता है। यह कफ तथा मूत्रनिस्सारक, रक्तशोधन तथा रक्तवर्धक कहा गया है। और खाँसी, कफ और वायु से उत्पन्न ज्वर, गले के रोग, यकृत और प्लीहा (तिल्ली) की वृद्धि में विशेष लाभदायक माना गया है।


पूजा और सजावट के लिए फूल

आधुनिक समय में लोगों ने खेती करने, खरीदने, पहनने या फूलों के इर्द-गिर्द रहने के तरीके ढूंढ लिए हैं, आंशिक रूप से इसलिए कि वे मनचाहे दिखाई देते हैं और उनकी गंध (smell) भी मनचाही होती है। दुनिया भर में लोग फूलों का इस्तेमाल नानविध उपलक्ष्यों और समारोहों में करते हैं जो कि एक के जीवन काल में जमा होकर उसे घेरे रहती है।


नवजात शिशु के अथवा इसाईकरण (Christening) के लिए
पुष्प आभूषण (corsage) अथवा बटनियर (boutonniere) के रूप में सामाजिक समारोहों और छुट्टियों/अवकाशों में पहनते हैं।
प्रेम और अभिमान/सम्मान के चिह्न के रूप में/की निशानी के रूप में
वधु की पार्टी/दावत/समारोह के लिए शादी के फूल और भवन/हॉल की सजावट के लिए
जैस कि घर के अन्दर रोशनी की सजावट
शुभ यात्रा पार्टियों और घर-वापसी की पार्टियों में यादगार उपहार के रूप में अथवा "आप के बारे में सोचते हुए' उपहार.
अंत्येष्ठी (funeral) के लिए फूल और शोक करने वालों के लिए अभिव्यक्ति (sympathy)
इसलिए लोग अपने घर के चारों ओर फूल उगाते हैं, अपना बैठक का कमरे का पुरा भाग पुष्प उद्यान (flower garden) के लिए समर्पित कर देते हैं, जंगली फूलों को चुनते हैं नहीं तो फूलवाले (florist) से फूल खरीदते हैं जो की व्यावसायिक उत्पादको और जहाजियों पर पूर्ण रूप से निर्भर करता है।


फूल, पौधे के मुख्य भागों (बीज, फल, जड़ (root), तना (stem) और पत्तों (leaves) के मुकाबले कम आहार उपलब्ध करा पाते हैं, पर वे कई दुसरे महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ और मसाले उपलब्ध करा पाते हैं। फूलों की सब्जियों में शामिल है ब्रोकोली (broccoli), फूलगोबी और हाथीचक्र (artichoke). सबसे महंगा मसाला, जाफरानी (saffron), जाफरानी (crocus) के फूल के स्टिग्मा धारण किए हुए रहता है। दुसरे फूलों की नस्लें हैं लौंग (clove) और केपर्स (caper).होप (Hops) फूलों का प्रयोग बियर (beer) में सुगंध के लिए उपयोग किया जाता है। मुर्गियों (chicken) को गेंदे (Marigold) का फूल खिलाया जाता है ताकि अंडे का पीला भाग और सुनहरा पीला हो सके, जो की उपभोक्ताओं को पसंद है। कुक्रौंधे (Dandelion) के फूलों से अक्सर शराब/वाइन बनाई जाती है। मधुमक्खी पराग (Pollen), मधुमक्खियों द्वारा एकत्रित पराग को कुछ लोगों द्वारा स्वास्थ्यवर्धक आहार कहा जाता है। शहद (Honey) में मधुमक्खी द्वारा संसाधित फूल का रस होता है और ज्यादातर उनका नाम फूलों के नाम पर रखा जाता है, उदाहरण के लिए नारंगी (orange) शहद फूल, बनमेथी (clover) शहद, टुपेलो (tupelo) शहद.


सैंकडों फूल भक्षनीय/खाने योग्य होते हैं पर कुछ ही हैं जिन्हें खाद्य के रूप में व्यापक तौर पर बेचा/विपणन किया जाता है। ये अक्सर सलादों में रंग और स्वाद बढ़ाने के लिए किए जाते हैं। स्क्वैश (Squash) फूलों को ब्रेडक्रम्बस में डुबोकर तला जाता है। खाद्य फूलों में शामिल हैं जलइंदुशुर (nasturtium), गुलदाउदी (chrysanthemum), गुलनार (carnation), [[कात्तैल/कटैल/टैफा जाति की कोई भी बारहमासी बूटी जो की किसी भी दलदल वाले इलाकों में पाए जाते हैं, इन्हें रीड मेज़ भी कहा जाता है|कटैल]] (cattail), शहद्चुसक (honeysuckle), कासनी (chicory), [[कोर्नफ्लावर/कोर्नपुष्प/ एक वार्षिक यूरेशियाई पौधा जिसकी खेती उत्तर अमेरिका में की जाती है। इसे कुंवारे का बटन भी कहा जाता है/ इसे बैचलर बटन भी कहा जाता है|मकई का फूल]] (cornflower), देवकली (Canna) और सूर्यमुखी (sunflower). कुछ खाद्य फूल कभी-कभी खुसामद भरे भी होतें हैं जैसे डेसी (daisy) और गुलाब (rose) (हो सकता है आपका किसी बनफशा (pansy) से भी साबिका पड़ जाए)


फूलो को औषधीय चाय (herbal tea) भी बनाया जा सकता है। सुगंध और औषधीय गुण, दोनों के लिए सूखे फूल जैसे की गुलदाउदी, गुलाब और चमेली, कर्पुरपुष्प को चाय में डाला जाता है। कभी-कभी उन्हें भी चाय (tea) पत्ती के साथ सुगंध के लिए मिलाया जाता है।


सिर्फ 2 घंटे 'ग्रीन पटाखे' जलाएं

दिवाली पर सिर्फ़ दो घंटे के लिए रात 8 से 10 बजे तक पटाखे जलाए जा सकेंगे! इसके साथ कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि त्योहारों में कम प्रदूषण वाले 'ग्रीन पटाखे' ही जलाए और बेचे जाने चाहिए! जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने कहा कि प्रतिबंधित पटाखे बेचे जाते हैं तो संबंधित इलाक़े के थाना प्रभारियों को ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा और उन पर अवमानना का मामला चलेगा! सुप्रीम कोर्ट ने जिस 'ग्रीन पटाखों' की बात की है वो आखिर होते क्या है और पारंपरिक पटाखों से वे अलग कैसे होते हैं? दरअसल 'ग्रीन पटाखे' राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) की खोज हैं जो पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं पर इनके जलने से कम प्रदूषण होता है! ग्रीन पटाखे होते क्या हैं? ग्रीन पटाखे दिखने, जलाने और आवाज़ में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं, लेकिन इनसे प्रदूषण कम होता है!


सामान्य पटाखों की तुलना में इन्हें जलाने पर 40 से 50 फ़ीसदी तक कम हानिकारण गैस पैदा होते हैं! नीरी के चीफ़ साइंटिस्ट डॉक्टर साधना रायलू कहती हैं, "इनसे जो हानिकारक गैसें निकलेंगी, वो कम निकलेंगी! 40 से 50 फ़ीसदी तक कम! ऐसा भी नहीं है कि इससे प्रदूषण बिल्कुल भी नहीं होगा! पर हां ये कम हानिकारक पटाखे होंगे!"डॉक्टर साधना बताती हैं कि सामान्य पटाखों के जलाने से भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फ़र गैस निकलती है, लेकिन उनके शोध का लक्ष्य इनकी मात्रा को कम करना था!


ग्रीन पटाखों में इस्तेमाल होने वाले मसाले बहुत हद तक सामान्य पटाखों से अलग होते हैं! नीरी ने कुछ ऐसे फ़ॉर्मूले बनाए हैं जो हानिकारक गैस कम पैदा करेंगे! पानी पैदा करने वाले पटाखेः ये पटाखे जलने के बाद पानी के कण पैदा करेंगे, जिसमें सल्फ़र और नाइट्रोजन के कण घुल जाएंगे! नीरी ने इन्हें सेफ़ वाटर रिलीज़र का नाम दिया है! पानी प्रदूषण को कम करने का बेहतर तरीका माना जाता है! पिछले साल दिल्ली के कई इलाक़ों में प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर पानी के छिड़काव की बात कही जा रही थी!
सल्फ़र और नाइट्रोजन कम पैदा करने वाले पटाखेः नीरी ने इन पटाखों को STAR क्रैकर का नाम दिया है, यानी सेफ़ थर्माइट क्रैकर! इनमें ऑक्सीडाइज़िंग एजेंट का उपयोग होता है जिससे जलने के बाद सल्फ़र और नाइट्रोजन कम मात्रा में पैदा होते हैं! इसके लिए ख़ास तरह के केमिकल का इस्तेमाल होता है!
कम एल्यूमीनियम का इस्तेमालः इस पटाखे में सामान्य पटाखों की तुलना में 50 से 60 फ़ीसदी तक कम एल्यूमीनियम का इस्तेमाल होता है! इसे संस्थान ने सेफ़ मिनिमल एल्यूमीनियम यानी SAFAL का नाम दिया है!
अरोमा क्रैकर्सः इन पटाखों को जलाने से न सिर्फ़ हानिकारण गैस कम पैदा होगी बल्कि ये बेहतर खुशबू भी बिखेरेंगे!


महालक्ष्मी पूजन विधि

दीपावली, दिवाली, दीपोत्सव यानी महालक्ष्मी पूजन का शुभ अवसर, इस दिन हम सभी चाहते हैं कि विधि-विधान से पूजन कर मां लक्ष्मी को प्रसन्न किया जाए।  यहां शास्त्रोक्त पौराणिक विधि प्रस्तुत है, आइए सबसे पहले जानते हैं मां लक्ष्मी को क्या पसंद है ...  



1 . देवी लक्ष्मी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय है।
 
2 . फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं।
 
3 . सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें। 
 
4 . अनाज में चावल पसंद है। 
 
5 . मिठाई में घर में बनी शुद्धता पूर्ण केसर की मिठाई या हलवे का नैवेद्य उपयुक्त है। 


 
6 . प्रकाश के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल्ली का तेल मां को शीघ्र प्रसन्न करता है। 
 
7 . मां लक्ष्मी को स्वर्ण आभूषण प्रिय हैं। 
 
8 . मां लक्ष्मी को रत्नों से विशेष स्नेह है। 
 
9 . उनकी अन्य प्रिय सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, सिंदूर, भोजपत्र शामिल हैं। 
 
10. मां लक्ष्मी के पूजन स्थल को गाय के गोबर से लीपा जाना चाहिए 
 
11. ऊन के आसन पर बैठकर लक्ष्मी पूजन करने से तत्काल फल मिलता है। 
 
अत: इनका लक्ष्मी पूजन में उपयोग अवश्य करना चाहिए।
 कैसे करें लक्ष्मी पूजन की तैयारी 
 
सबसे पहले चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां रखें उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।दो बड़े दीपक रखें। एक घी का, दूसरा तेल का। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। एक दीपक गणेशजी के पास रखें।मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचोंबीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। 
 
थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें- 1. ग्यारह दीपक, 2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान, 3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।
 
अब विधि-विधान से पूजन करें।  
 
इन थालियों के सामने यजमान बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।
चौकी 
(1) लक्ष्मी, (2) गणेश, (3-4) मिट्टी के दो बड़े दीपक, (5) कलश, जिस पर नारियल रखें, वरुण (6) नवग्रह, (7) षोडशमातृकाएं, (8) कोई प्रतीक, (9) बहीखाता, (10) कलम और दवात, (11) नकदी की संदूकची, (12) थालियां, 1, 2, 3, (13) जल का पात्र, (14) यजमान, (15) पुजारी, (16) परिवार के सदस्य, (17) आगंतुक।
महालक्ष्मी पूजन की सरल विधि 
 
समस्त सामग्री एकत्र करने के बाद और सारी तैयारी पूरी होने के बाद कैसे करें महालक्ष्मी की पूजा, जानें यहां 
सबसे पहले पवित्रीकरण करें।आप हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें। साथ में मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।
 
ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः
कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥
 
अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और मां पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-
 
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥
पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः
 
अब आचमन करें
पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ केशवाय नमः
और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ नारायणाय नमः
फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ वासुदेवाय नमः
 
फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें। पुनः तिलक लगाने के बाद प्राणायाम व अंग न्यास आदि करें। आचमन करने से विद्या तत्व, आत्म तत्व और बुद्धि तत्व का शोधन हो जाता है तथा तिलक व अंग न्यास से मनुष्य पूजा के लिए पवित्र हो जाता है।
 
आचमन आदि के बाद आंखें बंद करके मन को स्थिर कीजिए और तीन बार गहरी सांस लीजिए। यानी प्राणायाम कीजिए क्योंकि भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए यह आवश्यक है। फिर पूजा के प्रारंभ में स्वस्तिवाचन किया जाता है। उसके लिए हाथ में पुष्प, अक्षत और थोड़ा जल लेकर स्वतिनः इंद्र वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए परम पिता परमात्मा को प्रणाम किया जाता है। फिर पूजा का संकल्प किया जाता है। संकल्प हर एक पूजा में प्रमुख होता है।
संकल्प - आप हाथ में अक्षत लें, पुष्प और जल ले लीजिए। कुछ द्रव्य भी ले लीजिए। द्रव्य का अर्थ है कुछ धन। ये सब हाथ में लेकर संकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों। सबसे पहले गणेशजी व गौरी का पूजन कीजिए। उसके बाद वरुण पूजा यानी कलश पूजन करनी चाहिए।


अज्ञानता, अंधकार के विपरीत

दीपावली को विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं, कहानियों या मिथकों को चिह्नित करने के लिए हिंदू, जैन और सिखों द्वारा मनायी जाती है! लेकिन वे सब बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय के दर्शाते हैं।


हिंदू दर्शन में योग, वेदांत, और सामख्या विद्यालय सभी में यह विश्वास है कि इस भौतिक शरीर और मन से परे वहां कुछ है जो शुद्ध अनंत, और शाश्वत है जिसे आत्मन् या आत्मा कहा गया है। दीवाली, आध्यात्मिक अंधकार पर आंतरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव है।


हिंदू धर्म:दीपावली धन की देवी लक्ष्मी के सम्मान में मनाई जाती है! दीपावली का धार्मिक महत्व हिंदू दर्शन, क्षेत्रीय मिथकों, किंवदंतियों, और मान्यताओं पर निर्भर करता है।


प्राचीन हिंदू ग्रन्थ रामायण में बताया गया है कि, कई लोग दीपावली को 14 साल के वनवास पश्चात भगवान राम व पत्नी सीता और उनके भाई लक्ष्मण की वापसी के सम्मान के रूप में मानते हैं। अन्य प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत अनुसार कुछ दीपावली को 12 वर्षों के वनवास व 1 वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की वापसी के प्रतीक रूप में मानते हैं। कई हिंदु दीपावली को भगवान विष्णु की पत्नी तथा उत्सव, धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ मानते हैं। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है। दीपावली की रात वह दिन है जब लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे शादी की।लक्ष्मी के साथ-साथ भक्त बाधाओं को दूर करने के प्रतीक गणेश; संगीत, साहित्य की प्रतीक सरस्वती; और धन प्रबंधक कुबेर को प्रसाद अर्पित करते हैं कुछ दीपावली को विष्णु की वैकुण्ठ में वापसी के दिन के रूप में मनाते है। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं और जो लोग उस दिन उनकी पूजा करते है वे आगे के वर्ष के दौरान मानसिक, शारीरिक दुखों से दूर सुखी रहते हैं।


भारत के पूर्वी क्षेत्र उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में हिन्दू लक्ष्मी की जगह काली की पूजा करते हैं, और इस त्योहार को काली पूजा कहते हैं। मथुरा और उत्तर मध्य क्षेत्रों में इसे भगवान कृष्ण से जुड़ा मानते हैं। अन्य क्षेत्रों में, गोवर्धन पूजा (या अन्नकूट) की दावत में कृष्ण के लिए 56 या 108 विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया जाता है और सांझे रूप से स्थानीय समुदाय द्वारा मनाया जाता है।


भारत के कुछ पश्चिम और उत्तरी भागों में दीवाली का त्योहार एक नये हिन्दू वर्ष की शुरुआत का प्रतीक हैं।


दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं। राम भक्तों के अनुसार दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने कि खुशी में आज भी लोग यह पर्व मनाते है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था[33] तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए।


राम का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...
 प्रात कालीन भगवान राम पंचवटी में यज्ञ करते थे, नाना राजा और ऋषिजन उनके दर्शनार्थ को प्राय: आते रहते थे! मानव के जीवन में एक सार्थकता का दिग्दर्शन तभी हो सकता है! जब वह मानव अपने में अहिंसा परमो धर्म: ही बन जाए! भगवान राम जब पंचवटी पर रहते थे तो उनके यहां नाना प्राणी क्रीड़ा करते रहते थे! नागराज जैसे प्राणी भी क्रीड़ा करते रहते और भी नाना प्राणी क्रीड़ा करते रहते! परंतु जब अपनी भव्यता में आते तो अपने में मेघराज से वार्ता प्रकट करते रहते हैं! हमें यह दो ही वस्तुओं का निर्णय दे रहा है! हे मानव तू याज्ञिक बन, तू अपने में निर्भय बन, विष्णु-ब्रह्मा बनकर के मानव परमपिता परमात्मा की नीति को जान ले! उसकी प्रतिभा को जान ले! उसके ज्ञान और विज्ञान को जानने वाला बने!वह अपने में उपदेश देते रहते थे! यह अपने में सार्थक बनाने वाला वाक्य है! हम अपने जीवन में प्रत्येक समय में अहिंसा परमो धर्म को अपना करके निर्भयता का पठन-पाठन करते! मानो उसकी कृतिका को हम अपने में ध्यानस्थित होकर के हम स्वतंत्र होकर के विचरण करने वाले बने! राजा वही होता है जो निर्भय रहता है! वह प्रभु की गोद में चला गया है! प्रभु के राष्ट्र में भ्रमण करता रहता है! विचार-विनिमय यह है कि प्रत्येक मानव अपने में महानता का सदैव दिग्दर्शन करता हुआ, अपने जीवन को ऊंचा बनाता रहे! मैं भगवान राम की वही अनूठी चर्चा कर रहा हूं, जहां उनके यहां नाना ऋषिवर अपने में अध्ययन सील बने हुए हैं! वेदों का पठन-पाठन चल रहा है! भयंकर वनों में भगवान राम अपने में प्रतिभासित हो रहे हैं !नाना ऋषिवर अध्ययन कराने वाले, अध्ययन कर आते रहते हैं! वेदों की प्रतिभा में रत रहते हैं! क्योंकि वे अमृत का पान करने वाला प्राणी ही प्रणायाम करता है और प्रणायाम करके अपने सखा के द्वार पर चला जाता है! जहां सखा विद्यमान है भगवान राम पंचवटी पर रहकर के नाना प्रकार के प्राणियों के द्वारा उद्धार के अनेक कर्तव्य परायण के संबंध में विचारते रहते थे! अपना अन्वेषण करते रहते थे! विचार-विनिमय करते रहते थे! भयंकर वनों में भी कुछ समय के पश्चात वहाँ कहीं से प्रातः कालीन एक व्याघ्र आ गया!  व्याघ के आने पर माता सीता ने कहा कि भगवान यह व्याघ्र कहां से आ गया है! उन्होंने कहा कोई प्रेमी होगा, कोई प्राणी वंदना करने के लिए आया हुआ! भगवान राम जब व्याघ्र के समीप पहुंचे तो व्याघ्र अपने वाक्य में अपनी वाणी में वाक्य उच्चारण करने लगे! बेटा प्रत्येक मानव के हृदय में यह आशंका बनी रहती है किस पशु की वार्ता को राजा कैसे स्वीकार करता है! परंतु इसके संदर्भ में यह है कि भगवान राम एक यज्ञ करा रहे हैं और भी यज्ञ हो रहे हैं! उनकी अवहेलना में प्रतिपादित होने वाला 'अप्रवह: वाचप्रवहे: लोकाम्' मेरे प्यारे देखो उन्होंने अपने में 'धाराह प्रवहे रघुऊ संभूति ब्रह्मलोकम वाच प्रहे वस्तुत सुप्रजा: वर्णम ब्रह्मा वाच प्रहे वस्तुतै' जब व्याघ वहां पहुंचा तो भगवान राम अपने में वेदों का अध्ययन कर रहे थे! उनके अध्ययन में जो स्वर ध्वनियां हो रही थी उसको अपने में श्रवण करने लगा? राम बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने व्याघ्र से प्रीति की और ब्याघ से है कहा की हे ब्याघ, तेरा जो यह वचन है यह तेरा राष्ट्र है तेरी राष्ट्रीयता इसमें रहती है! मानो यह हमें बड़ी प्रसन्नता है कि तुम्हारे राष्ट्र में हम भी भ्रमण कर रहे हैं! परंतु तुम भी प्राणी हो हम भी प्राणी है और प्राणी, प्राणी अपने में प्रीति करने वाला बने!


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस    (हिंदी-दैनिक)


October 27, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-84 (साल-01)
2. रविवार ,27 अक्टूबर 2019
3. शक-1941,अश्‍विन,कृष्णपक्ष, तिथि- अमावस्य (लक्ष्मी पूजा-दीपावली) संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 06:23,सूर्यास्त 05:53
5. न्‍यूनतम तापमान -20 डी.सै.,अधिकतम-29+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी।
6. समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102


9.संपर्क एवं व्यावसायिक कार्यालय-डी-60,100 फुटा रोड बलराम नगर, लोनी,गाजियाबाद उ.प्र.,201102


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 (सर्वाधिकार सुरक्षित)


 


पायलट ने फ्लाइट अटेंडेंट को प्रपोज किया

पायलट ने फ्लाइट अटेंडेंट को प्रपोज किया  अखिलेश पांडेय  वारसॉ। अक्सर लोग अपने प्यार का इजहार किसी खास जगह पर करने का सोचते हैं। ताकि वो पल ज...