सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

थोड़े प्रयास से कार्य पूर्ण होंगे:मकर

राशिफल


मेष-व्ययवृद्धि पर नियंत्रण नहीं रहेगा। दूसरों से अपेक्षा न करें। आशा व निराशा के बीच तनाव व चिंता रहेंगे। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। जल्दबाजी तथा भावनाओं में बहकर कोई निर्णय न लें। आय होगी। कारोबारी लाभ बना रहेगा। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें।


मंत्र : ॐ नम: शिवाय या ॐ शिवाय नम:।


वृष-रुका हुआ पैसा तथा पैसा वसूली में सफलता मिलेगी। मनोरंजक यात्रा का कार्यक्रम बन सकता है। व्यापार-व्यवसाय में लाभ वृद्धि होगी। घर-बाहर सभी तरफ से सहयोग प्राप्त होगा। प्रसन्नता बनी रहेगी। आलस्य हावी रह सकता है। दूसरों के झगड़ों में न पड़ें। लाभ होगा।


मंत्र : ॐ मातंगी नम: या सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।


मिथुन-तंत्र-मंत्र में रुचि जागृत हो सकती है। किसी तीर्थ यात्रा का आयोजन हो सकता है। आर्थिक उन्नति हेतु विचार-विमर्श लाभकारी रहेगा। सामाजिक सेवा व दान-पुण्य के कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी। मित्रों तथा परिवार के सदस्यों का सहयोग मिलेगा। घर-बाहर प्रसन्नता बनी रहेगी।


मंत्र : ॐ शिव शक्त्यै नम: मंत्र जाप करें।


कर्क-किसी धर्मस्थल की यात्रा-दर्शन आदि के सुयोग बनेंगे। किसी प्रभावशाली व्यक्ति का सहयोग व मार्गदर्शन प्राप्त होगा। राजकीय व्यक्ति से परिचय बढ़ सकता है। व्यस्तता रहेगी। थकान व कमजोरी रह सकती है। धन प्राप्ति सुगम होगी। घर-बाहर प्रसन्नता का वातावरण रहेगा।


मंत्र : ॐ आनंदांनायकायै नम: मंत्र जाप करें।


सिंह-सेहत के बारे में लापरवाही भारी पड़ सकती है। काम करते समय किसी भी तरह की जल्दबाजी व लापरवाही न करें। वाहनादि के प्रयोग में सावधानी रखें। कुसंगति से बचें। हंसी-मजाक में हल्कापन न हो तथा दूसरे के कार्य में हस्तक्षेप न करें। व्यापार ठीक चलेगा!


मंत्र : ॐ दीप लक्ष्म्यै नम: मंत्र जाप करें।


कन्या-घर-बाहर सब तरफ हर कार्य में सहयोग प्राप्त होगा। किसी बड़ी समस्या का समाधान होगा। विवाह के इच्छुक व्यक्तियों को वैवाहिक प्रस्ताव प्राप्त हो सकता है। भाइयों का सहयोग प्राप्त होगा। धन प्राप्ति सुगम होगी। उत्साह व प्रसन्नता बने रहें!


मंत्र : ॐ सर्वमंत्रमयी नम: मंत्र जाप करें।


तुला-किसी संपत्ति का सौदा बड़ा लाभ दे सकता है। किसी कार्य की बाधा दूर होकर लाभ के अवसर प्राप्त होंगे। घर-बाहर वातावरण अनुकूल बनेगा। मित्रों व संबंधियों के साथ समय सुखमय व्यतीत होगा। उत्साह व प्रसन्नता में वृद्धि होगी। लाभ के अवसर हाथ आएंगे।


मंत्र : ॐ अंबे नम: मंत्र जाप करें।


वृश्चिक-किसी मांगलिक कार्यक्रम का आयोजन हो सकता है। स्वादिष्ट भोजन का आनंद प्राप्त होगा। किसी पार्टी व पिकनिक का आयोजन हो सकता है। रचनात्मक तथा बौद्धिक कार्य सफल रहेंगे। वरिष्ठ व्यक्तियों की शुभ सलाह प्राप्त होगी। रुके कार्यों में गति आएगी। धनार्जन होगा।


मंत्र : ॐ ब्रह्मांड नायिकायै नम: मंत्र जाप करें।


धनु-बुरी खबर प्राप्त हो सकती है। मेहनत अधिक और लाभ कम होगा। कार्यों की सफलता में शंका रहेगी। विवाद को बढ़ावा न दें। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। धनहानि की आशंका है। चिंता तथा तनाव रहेंगे। व्यापार-व्यवसाय सामान्य रहेगा। प्रियजनों के साथ रिश्तों में खटास आ सकती है।


मंत्र : ॐ विद्या लक्ष्म्यै नम: मंत्र जाप करें।


मकर-थोड़े प्रयास से कार्य पूर्ण होंगे। मित्रों व रिश्तेदारों का सहयोग प्राप्त होगा। किसी बड़े कार्य को करने की योजना बनेगी। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। परमार्थ करने का अवसर प्राप्त हो सकता है। घर-बाहर प्रतिष्ठा बढ़ेगी। धन प्राप्ति सुगम होगी। प्रसन्नता रहेगी।


मंत्र : ॐ आद्य नायकायै नम: मंत्र जाप करें।


कुंभ-मित्र व संबंधियों से मुलाकात होगी। अच्‍छी खबरें मिलेंगी। आय बनी रहेगी। आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। किसी मनोरंजक यात्रा का आयोजन हो सकता है। दूसरों के झगड़ों में न पड़ें। विवेक का प्रयोग समस्या से मुक्ति दिलाएगा। प्रसन्नता बनी रहेगी।


मंत्र : ॐ शांभवी नम


मीन-अप्रत्याशित लाभ के अवसर प्राप्त हो सकते हैं। आर्थिक उन्नति के प्रयास सफल रहेंगे। भाग्य की अनुकूलता रहेगी। किसी बड़े काम के लंबित प्रयास अब सफल रहेंगे। अपेक्षित कार्य पूर्ण होने से उत्साह व प्रसन्नता में वृद्धि होगी। आलस्य न करें।


मंत्र : ॐ कात्यायनी नम: मंत्र जाप करें।


महत्वपूर्ण फल आलूबुखारा

अलूचा या आलू बुखारा (अंग्रेजी नाम : प्लम ; वानस्पतिक नाम : प्रूनस डोमेस्टिका) एक पर्णपाती वृक्ष है। इसके फल को भी अलूचा या प्लम कहते हैं। फल, लीची के बराबर या कुछ बड़ा होता है और छिलका नरम तथा साधरणत: गाढ़े बैंगनी रंग का होता है। गूदा पीला और खटमिट्ठे स्वाद का होता है। भारत में इसकी खेती बहुत कम होती है; परंतु अमरीका आदि देशों में यह महत्वपूर्ण फल है। आलूबुखारा (प्रूनस बुखारेंसिस) भी एक प्रकार का अलूचा है, जिसकी खेती बहुधा अफगानिस्तान में होती है। अलूचा का उत्पत्तिस्थान दक्षिण-पूर्व यूरोप अथवा पश्चिमी एशिया में काकेशिया तथा कैस्पियन सागरीय प्रांत है। इसकी एक जाति प्रूनस सैल्सिना की उत्पत्ति चीन से हुई है। इसका जैम बनता है।


आलू बुख़ारा एक गुठलीदार फल है। आलू बुख़ारे लाल, काले, पीले और कभी-कभी हरे रंग के होते हैं। आलू बुख़ारों का ज़ायका मीठा या खट्टा होता है और अक्सर इनका पतला छिलका अधिक खट्टा होता है। इनका गूदा रसदार होता है और इन्हें या तो सीधा खाया जा सकता है या इनके मुरब्बे बनाए जा सकते हैं। इनके रस पर खमीर उठने पर आलू बुख़ारे की शराब भी बनाई जाती है। सुखाए गए आलू बुख़ारों को बहुत जगहों पर खाया जाता है और उनमें ऑक्सीकरण रोधी (ऐन्टीआक्सडन्ट) पदार्थ होते हैं जो कुछ रोगों से शरीर को सुरक्षित रखने में मददगार हो सकते हैं। आलू बुख़ारों की कई क़िस्मों में कब्ज़ का इलाज करने वाले (यानि जुलाब के) पदार्थ भी होते हैं।


यह खटमिट्ठा फल भारत के पहाड़ी प्रदेशों में होता है। अलूचा के सफल उत्पादन के लिए ठंडी जलवायु आवश्यक है। देखा गया है कि उत्तरी भारत की पर्वतीय जलवायु में इसकी उपज अच्छी हो सकती है। मटियार, दोमट मिट्टी अत्यंत उपयुक्त है, परंतु इस मिट्टी का जलोत्सारण (ड्रेनेज) उच्च कोटि का होना चाहिए। इसकी सिंचाई आड़ू की भांति करनी चाहिए।


अलूचा का वर्गीकरण फल पकने के समयानुसार होता है :


(१) शीघ्र पकनेवाला, जैसे अलूचा लाल, अलूचा पीला, अलूचा काला तथा अलूचा ड्वार्फ;
(२) मध्यम समय में पकनेवाला, जैसे अलूचा लाल बड़ा, अलूचा जर्द तथा आलूबुखारा;
(३) विलंब से पकनेवाला, जैसे अलूचा ऐल्फा, अलूचा लेट, अलूचा एक्सेल्सियर तथा केल्सीज जापान।
अलूचा का प्रसारण आँख बाँधकर (बडिंग द्वारा) किया जाता है। आड़ू या अलूचा के मूल वृंत पर आंख बांधी जाती है। दिसंबर या जनवरी में १५-१५ फुट की दूरी पर इसके पौधे लगाए जाते हैं। आरंभ के कुछ वर्षों तक इसकी काट-छांट विशेष सावधानी से करनी पड़ती है। फरवरी के आरंभ में फूल लगते हैं। शीघ्र पकनेवाली किस्मों के फल मई में मिलने लगते हैं। अधिकांश फल जून-जुलाई में मिलते हैं। लगभग एक मन फल प्रति वृक्ष पैदा होता है।


समुदाय का विकसित जंतु घोंघा

उदरपाद (गैस्ट्रोपोडा) मोलस्का समुदाय में सबसे अधिक विकसित जंतु हैं। इनके शरीर सममित नहीं होते। प्रावार (मैंटल) दो टुकड़ों में विभाजित नहीं रहता, इसलिए खोल भी दो पार्श्वीय कपाटिकाओं का नहीं वरन् एक ही असममित कपाटिका का बना हुआ रहता है। यह कपाटिका साधारणत: सर्पिल आकृति में कुंडलीकृत होती है। इसके भीतर स्थित जंतु के शरीर का पृष्ठीय भाग भी, जिसमें आंतरंग (विसरा) का अधिकांश भाग रहता है और जिसे आंतरंग कुब्ब कहते हैं, सर्पिल आकृति में कुडलीकृत रहता है। शरीर ऊपर से नीची दिशा में चपटा रहता है। प्रावारीय गुहा में दो गलफड़ स्थित रहते हैं। बहुतों में केवल एक ही गलफड़ होता है। अधिकांश में एक शिर भी होता है जिसमें आकर्षणांग स्थित रहते हैं। शिर के पीछे अच्छी प्रकार से उन्नत एक औदरिक पैर रहता है। पैर का औदरिक तल चपटा, चौड़ा और बहुत फैला रहता है। वक्त्रगुहा में एक विशेष अवयव रहता है जिसको दंतवाही (ओडोंटोफ़ोर) कहते हैं। यह नन्हें नन्हें दाँतों के सदृश अवयव का आधार होता है। वृक्क केवल एक होता है। चेतासंहति में छह जोड़ी चेतागुच्छ पाए जाते हैं। उदरपाद एकलिंगों या उभयलिंगी हो सकते हैं। कृमिवर्धन में रूपांतरण का दृश्य भी देखने में आता है।


उदरपाद अधिकतर पानी में रहते हैं। इनकी आदिम जातियाँ समुद्रों में रहती हैं। ये समुद्र के पृष्ठ पर रेंगती हैं, कुछ कीचड़ या बालू में घर बनाती हैं या चट्टानों में छेद करती हैं। कुछ ऐसे भी उदरपाद हैं जो समुद्र के पृष्ठ पर उलटे रहकर तैरते हैं; विशेषकर टेरोपॉड और हेटेरोपॉड, जिनके पैर मछली के पक्षों (फ़िन्स) के समान होते हैं, खुले समुद्र के पृष्ठ पर तैरते देखे जाते हैं।


उदरपाद समुद्र में १८,०० फुट की गहराई तक पाए जाते हैं। बहुतेरे उदरपाद मीठे जल में भी रहते हैं। पलमोनेट नामक उदरपाद स्थल और ऊँचे ऊँचे पहाड़ों पर भी पाए जाते हैं। निम्न केंब्रियन युग के बहुतेरे जीवाश्मभूत उदरपादों का भी पता चला है।


घोंघा (स्नेल), मंथर (स्लग), पैरैला, एपलीशिया तथा ट्राइटन उदरपादों के मुख्य उदाहरण हैं। घोंघा और मंथर मनुष्य के भोजन के लिए उपयुक्त होते हैं। कुछ जंतु उद्यानों में पौधों को हानि पहुँचाते हैं। अनेक उदरपादों के खोलों से अलंकार, यंत्र तथा बरतन बनते हैं। कौड़ियों का पहले मुद्रा या सिक्के के रूप में प्रयोग होता था। शंख, जो मंदिरों में बजाया जाता है, एक विशेष उदरपाद की खोल है।


कनेर की जानलेवा सुंदरता

कनेर पीली का दूध शरीर की जलन को नष्ट करने वाला और विषैला होता है। इसकी छाल कड़वी भेदन व बुखार नाशक होती है। छाल की क्रिया बहुत ही तेज होती है, इसलिए इसे कम मात्रा में सेवन करते है। नहीं तो पानी जैसे पतले दस्त होने लगते हैं। कनेर का मुख्य विषैला परिणाम हृदय की मांसपेशियों पर होता है। इसे अधिकतर औषधि के लिये उपयोग में लाया जाता है।


विषाक्त:-कनेर का बीज विषाक्त होता है। एक बीज का सेवन भी जान लेने के लिये काफी है। कनेर का जहर डाइगाक्सीन ड्रग की तरह है। डाइगाक्सीन दिल की धड़कन की रफ्तार कम करता है। कनेर का एक बीज डाइगाक्सीन के सौ टैबलेट के बराबर होता है। पहले तो यह दिल की धड़कन को धीमा करता है और आखिरकार एकदम रोक दोता है। क्या यह सच है। अभी इसका कोई पक्का प्रमाण नही मिला है। कृपया इसका पक्का प्रमाण दे अगर आपके आस पास कनेर के बीजों से कुछ हुआ है तो कृपया जरूर बताएं


अभिमान रूपी बुराई का अंत

लंकाकाण्ड वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस का एक भाग (काण्ड या सोपान) है।


जाम्बवन्त के आदेश से नल-नील दोनों भाइयों ने वानर सेना की सहायता से समुद्र पर पुल बांध दिया। श्री राम ने श्री रामेश्वर की स्थापना करके भगवान शंकर की पूजा की और सेना सहित समुद्र के पार उतर गये। समुद्र के पार जाकर राम ने डेरा डाला। पुल बंध जाने और राम के समुद्र के पार उतर जाने के समाचार से रावण मन में अत्यंत व्याकुल हुआ। मन्दोदरी के राम से बैर न लेने के लिये समझाने पर भी रावण का अहंकार नहीं गया। इधर राम अपनी वानरसेना के साथ सुबेल पर्वत पर निवास करने लगे। अंगद राम के दूत बन कर लंका में रावण के पास गये और उसे राम के शरण में आने का संदेश दिया किन्तु रावण ने नहीं माना।


शांति के सारे प्रयास असफल हो जाने पर युद्ध आरम्भ हो गया। लक्ष्मण और मेघनाद के मध्य घोर युद्ध हुआ। शक्तिबाण के वार से लक्ष्मण मूर्छित हो गये। उनके उपचार के लिये हनुमान सुषेण वैद्य को ले आये और संजीवनी लाने के लिये चले गये। गुप्तचर से समाचार मिलने पर रावण ने हनुमान के कार्य में बाधा के लिये कालनेमि को भेजा जिसका हनुमान ने वध कर दिया। औषधि की पहचान न होने के कारण हनुमान पूरे पर्वत को ही उठा कर वापस चले। मार्ग में हनुमान को राक्षस होने के सन्देह में भरत ने बाण मार कर मूर्छित कर दिया परन्तु यथार्थ जानने पर अपने बाण पर बिठा कर वापस लंका भेज दिया। इधर औषधि आने में विलम्ब देख कर राम प्रलाप करने लगे। सही समय पर हनुमान औषधि लेकर आ गये और सुषेण के उपचार से लक्ष्मण स्वस्थ हो गये।


रावण ने युद्ध के लिये कुम्भकर्ण को जगाया। कुम्भकर्ण ने भी राम के शरण में जाने की असफल मन्त्रणा दी। युद्ध में कुम्भकर्ण ने राम के हाथों परमगति प्राप्त की। लक्ष्मण ने मेघनाद से युद्ध करके उसका वध कर दिया। राम और रावण के मध्य अनेकों घोर युद्ध हुये और अन्त में रावण राम के हाथों मारा गया। विभीषण को लंका का राज्य सौंप कर राम सीता और लक्ष्मण के साथ पुष्पकविमान पर चढ़ कर अयोध्या के लिये प्रस्थान किया।


श्रीराम का जीवनकाल,पराक्रम

श्रीराम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में वर्णित हुआ है। रामायण में सीता के खोज में श्रीलंका जाने के लिए 25 किलोमीटर पत्थर के सेतु का निर्माण करने का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसको रामसेतु कहते हैं, वह आज भी स्थित है, जिसकी कार्बन डेंटिंग में पांच हजार वर्ष पूर्व का अनुमान लगा गया है।


राम ( रामचंद्र )
निवासस्थान-अयोध्या, वैकुण्ठलोक (परमधाम)
अस्त्र-धनुष (कोदंड)
जीवनसाथी-सीता
माता-पिता-दशरथ (पिता),कौशल्या (माता)
एक माँ की संताने-भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न
बच्चे-कुश, लव
मान्यता अनुसार गोस्वामी तुलसीदास ने भी उनके जीवन पर केन्द्रित भक्तिभावपूर्ण सुप्रसिद्ध महाकाव्य रामचरितमानस की रचना की है। इन दोनों के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं में भी रामायण की रचनाएं हुई हैं, जो काफी प्रसिद्ध भी हैं। खास तौर पर उत्तर भारत में राम अत्यंत पूज्यनीय हैं और आदर्श पुरुष हैं। इन्हें पुरुषोत्तम शब्द से भी अलंकृत किया जाता है। मर्यादा-पुरुषोत्तम राम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे। राम की पत्नी का नाम सीता था इनके तीन भाई थे- लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। हनुमान, राम के, सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं। राम ने लंका के राजा रावण (जिसने अधर्म का पथ अपना लिया था) का वध किया। राम की प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है। राम ने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता, यहाँ तक कि पत्नी का भी साथ छोड़ा। इनका परिवार आदर्श भारतीय परिवार का प्रतिनिधित्व करता है। राम रघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परम्परा प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई[1] की थी। राम के पिता दशरथ ने उनकी सौतेली माता कैकेयी को उनकी किन्हीं दो इच्छाओं को पूरा करने का वचन (वर) दिया था। कैकेयी ने दासी मन्थरा के बहकावे में आकर इन वरों के रूप में राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास माँगा। पिता के वचन की रक्षा के लिए राम ने खुशी से चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। पत्नी सीता ने आदर्श पत्नी का उदाहरण देते हुए पति के साथ वन जाना उचित समझा। भाई लक्ष्मण ने भी राम के साथ चौदह वर्ष वन में बिताए। भरत ने न्याय के लिए माता का आदेश ठुकराया और बड़े भाई राम के पास वन जाकर उनकी चरणपादुका (खड़ाऊँ) ले आए। फिर इसे ही राज गद्दी पर रख कर राजकाज किया। जब राम वनवासी थे तभी उनकी पत्नी सीता को रावण हरण (चुरा) कर ले गया। जंगल में राम को हनुमान जैसा मित्र और भक्त मिला जिसने राम के सारे कार्य पूरे कराये। राम ने हनुमान,सुग्रीव आदि वानर जाति के महापुरुषो की मदद से सीता को ढूँढ़ा। समुद्र में पुल बना कर लंका पहुँचे तथा रावण के साथ युद्ध किया। उसे मार कर सीता को वापस लाये। राम के अयोध्या लौटने पर भरत ने राज्य उनको ही सौंप दिया। राम न्यायप्रिय थे। उन्होंने बहुत अच्छा शासन किया इसलिए लोग आज भी अच्छे शासन को रामराज्य की उपमा देते हैं। इनके दो पुत्रों कुश व लव ने इनके राज्यों को सँभाला। वैदिक धर्म के कई त्योहार, जैसे दशहरा, राम नवमी और दीपावली, राम की वन-कथा से जुड़े हुए हैं।


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस


हिंदी दैनिक


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण


October 08, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-65 (साल-01)
2. मंगलवार, 08 अक्टूबर 2019
3. शक-1941,अश्‍विन,शुक्‍लपक्ष,तिथि-विजयदशमी,विक्रमी संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 06:16,सूर्यास्त 06:05
5. न्‍यूनतम तापमान -22 डी.सै.,अधिकतम-32+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी, आद्रता बनी रहेगी।
6. समाचार पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है! सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102


9.संपर्क एवं व्यावसायिक कार्यालय-डी-60,100 फुटा रोड बलराम नगर, लोनी,गाजियाबाद उ.प्र.201102


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