शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेतांबरधरा शुचिः ...


माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं जाते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।


































महागौरी
सिद्धियां
महागौरी - नवदुर्गाओं में अष्टम
 महागौरी
संबंधहिन्दू देवी
अस्त्रत्रिशूल
जीवनसाथीशिव
सवारीवृषभ


 

श्लोक



श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः | महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ||



स्वरूप



इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है- 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी।' इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं।


महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।



कथा



माँ महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, एक बार भगवान भोलेनाथ ने पार्वती जी को देखकर कुछ कह देते हैं। जिससे देवी के मन का आहत होता है और पार्वती जी तपस्या में लीन हो जाती हैं। इस प्रकार वषों तक कठोर तपस्या करने पर जब पार्वती नहीं आती तो पार्वती को खोजते हुए भगवान शिव उनके पास पहुँचते हैं वहां पहुंचे तो वहां पार्वती को देखकर आश्चर्य चकित रह जाते हैं। पार्वती जी का रंग अत्यंत ओजपूर्ण होता है, उनकी छटा चांदनी के सामन श्वेत और कुन्द के फूल के समान धवल दिखाई पड़ती है, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं।


एक कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा। महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं “सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..”। महागौरी जी से संबंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित है इसके जिसके अनुसार, एक सिंह काफी भूखा था, वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही होती हैं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गयी परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आती है और माँ उसे अपना सवारी बना लेती हैं क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं।



पूजन विधि



अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं। देवी गौरी की पूजा का विधान भी पूर्ववत है अर्थात जिस प्रकार सप्तमी तिथि तक आपने मां की पूजा की है उसी प्रकार अष्टमी के दिन भी प्रत्येक दिन की तरह देवी की पंचोपचार सहित पूजा करते हैं।



महत्व



माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनके ही पादारविन्दों का ध्यान करना चाहिए। महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती हैं। इनकी उपासना से आर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। अतः इनके चरणों की शरण पाने के लिए हमें सर्वविध प्रयत्न करना चाहिए।



उपासना



पुराणों में माँ महागौरी की महिमा का प्रचुर आख्यान किया गया है। ये मनुष्य की वृत्तियों को सत्‌ की ओर प्रेरित करके असत्‌ का विनाश करती हैं। हमें प्रपत्तिभाव से सदैव इनका शरणागत बनना चाहिए। या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।


अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।           



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प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस   (हिंदी-दैनिक)


 अक्टूबर 24, 2020, RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-69 (साल-02)
2. शनिवार, अक्टूबर 24, 2020
3. शक-1979, अश्विन, शुक्ल-पक्ष, तिथि- अष्टमी (महागौरी पूजा), विक्रमी संवत 2078।


4. प्रातः 06:15, सूर्यास्त 06:15।


5. न्‍यूनतम तापमान 20+ डी.सै.,अधिकतम-32+ डी.सै.। आद्रता बनी रहेंगी।


6.समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा। सभी पद अवैतनिक है।
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गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

सीएम भूपेश ने 'पीएम' को लिखीं चिठ्ठी

रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर छत्तीसगढ़ सरकार प्रयासों के फलस्वरूप अधिशेष चावल से एथेनॉल उत्पादन की दर 54 रूपए 87 पैसे प्रति लीटर निर्धारित करने के निर्णय के लिए धन्यवाद दिया है साथ ही उन्होंने छत्तीसगढ़ के किसानों से खरीदे गए अधिशेष धान को सीधे एथेनॉल संयत्रों को जैव ईधन उत्पादन की अनुमति प्रदान करने की मांग भी की है, जिससे राज्य में लगने वाले एथेनॉल संयंत्रों को किसानों द्वारा सीधे धान का विक्रय किया जा सकेगा। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को पत्र में लिखा है – छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राष्ट्रीय जैव नीति 2018 एवं उसके लक्ष्य की पूर्ति की दिशा में जैव ईंधन के उत्पादन को प्रोत्साहित करने हेतु राज्य में उत्पादित अतिरिक्त धान से बायो-एथेनॉल उत्पादन की अनुमति के लिए विगत 18 माह से लगातार प्रयास किए गए।
राज्य शासन के इन प्रयासों के फलस्वरूप आपके द्वारा लिए गए निर्णय के लिए अनुसार तेल वितरण कंपनियों द्वारा अधिशेष चॉवल (एफसीआई के गोदाम के माध्यम से प्राप्त) से एथेनॉल उत्पादन की दर 54 रूपए 87 पैसे प्रति लीटर निर्धारित की गई है। इस निर्णय हेतु आपको कोटि-कोटि धन्यवाद। मुख्यमंत्री ने लिखा है कि- राज्य शासन की मांग है कि राज्य के किसानो से खरीदे गए अतिशेष धान को सीधे एथेनॉल संयत्रों को जैव ईधन उत्पादन हेतु अनुमति प्रदान की जाए, इससे राज्य में लगने वाले एथेनॉल संयत्रों को किसानों द्वारा सीधे धान का विक्रय किया जा सकेगा। मुख्यमंत्री बघेल ने कहा है कि अतिशेष धान से सीधे एथेनॉल उत्पादन की अनुमति राज्य के किसानो की आर्थिक उन्नति के लिए अत्यंत सहायक सिद्ध होगी।               


गलत मानचित्र को लेकर ट्विटर को चेतावनी

भारत के गलत मानचित्र को लेकर सरकार ने ट्विटर को दी चेतावनी


अकांशु उपाध्याय


नई दिल्ली। भारत सरकार ने देश का गलत मानचित्र दिखाने को लेकर ट्विटर को सख्त चेतावनी दी है। सरकार ने कहा है। कि देश की संप्रभुता और अखंडता का असम्मान करने का ट्विटर का हर प्रयास अस्वीकार्य है। सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) मंत्रालय के सचिव अजय साहनी ने इस बारे में ट्विटर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) जैक डोर्सी को कड़े शब्दों में एक पत्र लिखा है। साहनी ने कहा कि इस तरह का कोई भी प्रयास न सिर्फ ट्विटर की प्रतिष्ठा को कम करता है। बल्कि यह एक माध्यम होने के नाते ट्विटर की निष्पक्षता को भी संदिग्ध बनाता है। मंत्रालय के सूत्रों ने पीटीआई-भाषा से कहा कि साहनी ने भारत का गलत मानचित्र दिखाने को लेकर सरकार की नाराजगी जताते हुए ट्विटर सीईओ को कड़े शब्दों में पत्र लिखा है। उल्लेखनीय है कि ट्विटर ने लेह की भौगोलिक स्थिति बताते हुए उसे पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के जम्मू-कश्मीर का हिस्सा बता दिया था। साहनी ने अपने पत्र में ट्विटर को याद दिलाया है। कि लेह केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख का मुख्यालय है। पत्र में कहा गया है। कि लद्दाख और जम्मू-कश्मीर दोनों भारत के अभिन्न व अविभाज्य अंग हैं। तथा भारत के संविधान से प्रशासित हैं। सरकार ने ट्विटर को भारतीय नागरिकों की संवेदनशीलता का सम्मान करने को कहा है। सरकार ने यह भी साफ कहा है। कि भारत की संप्रभुता व अखंडता का असम्मान करने का ट्विटर का कोई भी प्रयास जैसा कि मानचित्र के मामले में किया गया है। पूरी तरह से गैरकानूनी और अस्वीकार्य है।             


लड़ाकू पोत आईएनएस को सेना में शामिल किया

अकाशुं उपाध्याय


नई दिल्ली। भारतीय सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने यहां नौसेना डॉकयार्ड में लड़ाकू पोत आईएनएस कवरत्ती को भारतीय नौसेना में शामिल किया। आईएनएस कवरत्ती प्रोजेक्ट 28 (कमरोटा श्रेणी) के तहत स्वदेशी चार जहाजों में से आखिरी जहाज है और इसका डिजाइन नौसेना की शाखा नौसेना डिजाइन निदेशालय ने तैयार किया है। सभी प्रणाली लगाए जाने और समुद्र में परीक्षण के बाद लड़ाकू भूमिका में तैयारी के साथ इसे नौसेना में शामिल किया गया है। आईएनएस कवरत्ती अत्याधुनिक हथियारों से लैस है और यह सेंसर के जरिए पनडुब्बियों का पता लगाने में सक्षम है। पनडुब्बी रोधी युद्धक क्षमता से लैस होने के साथ इस जहाज को लंबी तैनाती पर भेजा जा सकता है। इसमें ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है कि यह दुश्मनों की नजर से बचकर निकल सकता है। नौसेना के मुताबिक, ‘‘जहाज में 90 प्रतिशत तक स्वदेशी सामान का इस्तेमाल हुआ है और इसमें ढांचा के निर्माण में कार्बन कम्पोजिट इस्तेमाल किया गया। कवरत्ती को शामिल करने से भारतीय नौसेना की क्षमता में इजाफा होगा। नौसेना ने कहा है कि गार्डन रिच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (जीआरएसई), कोलकाता ने यह जंगी पोत तैयार किया है। पूर्वी नौसेना कमान के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ वाइस एडमिरल अतुल कुमार जैन, जीआरएसई के अध्यक्ष और प्रबंधन निदेशक एडमिरल (सेवानिवृत्त) वी के सक्सेना और अन्य अधिकारी कार्यक्रम में मौजूद थे।         


300 सालों की वैज्ञानिकों की ऐतिहासिक खोज

वैज्ञानिकों की ऐतिहासिक खोजः जो पिछले 300 सालों में नहीं हुआ अब हुआ साल 2020 में


अकांशु उपाध्याय


नई दिल्ली। जो पिछले 300 सालों में नहीं हुआ था। अब हुआ साल 2020 में हुआ है। वैज्ञानिकों ने मानव शरीर में गले के ऊपरी हिस्से में लार ग्रंथियों का एक सेट खोजा है। माना जा रहा है। कि पिछली तीन सदियों में मानव शरीर संरचना से जुड़ा यह सबसे बड़ा और अहम अनुसंधान है। जिससे जीवन और चिकित्सा विज्ञान को और बेहतर किए जाने में काफी मदद मिलेगी। खास तौर से गले और सिर के कैंसर के उन मरीज़ों के इलाज में, जिन्हें रेडिएशन थेरेपी से गुज़रना होता है।
ग्रंथियों का यह नया सेट नाक के पीछे और गले के कुछ ऊपर के हिस्से में मिला है। जो करीब 1.5 इंच का है। एम्सटरडम स्थित नीदरलैंड्स कैंसर इंस्टिट्यूट के रिसर्चरों ने कहा कि इस खोज से रेडियोथेरेपी की वो तकनीकें विकसित करने और समझने में मदद मिलेगी, जिनसे कैंसर के मरीज़ों को लार और निगलने में होने वाली समस्याओं को दूर किया जा सकेगा।
रेडियोथेरेपी एंड ओंकोलॉजी नाम पत्र में प्रकाशित हुए शोध में शोधकर्ताओं ने लिखा कि मानव शरीर में ये माइक्रोस्कोपिक सलाइवरी ग्लैंड लोकेशन चिकित्सा विज्ञान के लिहाज़ से काफी अहम है। जिसे अब तक जाना ही नहीं गया था। रिसर्चरों ने इन ग्लैंड्स का नाम ट्यूबेरियल ग्लैंड्स प्रस्तावित किया. इसकी वजह यह है कि ये ग्लैंड्स टोरस ट्यूबेरियस नाम के कार्टिलेज के एक हिस्से पर स्थित हैं।
हालांकि कहा गया है। कि इस बारे में और गहन रिसर्च की ज़रूरत है। ताकि इन ग्लैंड्स को लेकर बारीक से बारीक बात कन्फर्म हो सके। अगर आने वाली रिसर्चों में इन ग्लैंड्स की मौजूदगी और इससे जुड़ी कुछ और जिज्ञासाओं का समाधान हो जाता है। तो पिछले 300 सालों में नये सलाइवरी ग्लैंड्स की यह पहली अहम खोज मानी जाएगी।
जी हां, रिसर्चर वास्तव में, प्रोस्टेट कैंसर को लेकर स्टडी कर रहे थे। और इसी दौरान संयोग से उन्हें इन ग्लैंड्स के बारे में पता चला। संकेत मिलने पर इस दिशा में और रिसर्च की गई। रिसर्चरों ने कहा कि मानव शरीर में सलाइवरी ग्लैंड्स के तीन बड़े सेट हैं। लेकिन जहां नई ग्लैंड्स मिली हैं। वहां नहीं। रिसर्चरों ने खुद माना कि इन ग्लैंड्स के बारे में पता चलना उनके लिए भी किसी आश्चर्य से कम नहीं था।
मेडिकल रिसर्च संबंधी भारतीय परिषद की कैंसर इकाई के मुताबिक भारत में गर्दन और और​ सिर का कैंसर बड़ी संख्या में होता है। साथ ही, ओरल कैविटी के कैंसर के केस भी काफी हैं। भारत में रेडिएशन ओंकोलॉजी के विशेषज्ञ मान रहे हैं। कि इस खोज से कैंसर मरीज़ों के रेडियोथेरेपी इलाज में काफी मदद मिलेगी। कैंसर के इलाज में रेडिएशन का साइड इफेक्ट ये होता है। मुंह में लार संबंधी ग्रंथियां डैमेज हो जाती हैं। जिससे मुंह सूखा रहता है। यानी मरीज़ को खाने और बोलने में लंबे समय की तकलीफ़ हो जाती है। अब जो नई ग्लैंड्स की खोज हुई है। उनसे सलाइवरी ग्लैंड्स का एक और जोड़ा मिलता है। एम्स दिल्ली में रेडिएशन ओंकोलॉजी के विशेषज्ञ रहे डॉ. पीके जुल्का के हवाले से एचटी की रिपोर्ट कहती है। कि माना जा रहा है। कि ये ग्लैंड्स चूंकि ऊपरी हिस्से में है। इसलिए रेडिएशन के दायरे से बाहर रहेगी इसलिए बेहतर इलाज संभव होगा।             


यूपी: गर्मी के चलते स्कूलों का समय बदला

यूपी: गर्मी के चलते स्कूलों का समय बदला  संदीप मिश्र  लखनऊ। यूपी में गर्मी के चलते स्कूलों का समय बदल गया है। कक्षा एक से लेकर आठ तक के स्कू...