शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2019

शुष्क और गीली रंगोली

रंगोली दो प्रकार से बनाई जाती है। सूखी और गीली। दोनों में एक मुक्तहस्त से और दूसरी बिंदुओं को जोड़कर बनाई जाती है। बिंदुओं को जोड़कर बनाई जाने वाली रंगोली के लिए पहले सफेद रंग से जमीन पर किसी विशेष आकार में निश्चित बिंदु बनाए जाते हैं फिर उन बिंदुओं को मिलाते हुए एक सुंदर आकृति आकार ले लेती है। आकृति बनाने के बाद उसमें मनचाहे रंग भरे जाते हैं। मुक्तहस्त रंगोली में सीधे जमीन पर ही आकृति बनाई जाती है। पारंपरिक मांडना बनाने में गेरू और सफ़ेद खड़ी का प्रयोग किया जाता है। बाज़ार में मिलने वाले रंगोली के रंगों से रंगोली को रंग बिरंगा बनाया जा सकता है। रंगोली बनाने के झंझट से मुक्ति चाहने वालों के लिए अपनी घर की देहरी को सजाने के लिए 'रेडिमेड रंगोली' स्टिकर भी बाज़ार में मिलते हैं, जिन्हें मनचाहे स्थान पर चिपकाकर रंगोली के नमूने बनाए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त बाजार में प्लास्टिक पर बिंदुओं के रूप में उभरी हुई आकृतियाँ भी मिलती हैं, जिसे जमीन पर रखकर उसके ऊपर रंग डालने से जमीन पर सुंदर आकृति उभरकर सामने आती है। अगर रंगोली बनाने का अभ्यास नहीं है तो इन वस्तुओं का प्रयोग किया जा सकता है। कुछ साँचे ऐसे भी मिलते हैं जिनमें आटा या रंग का पाउडर भरा जा सकता है। इसमें नमूने के अनुसार छोटे छेद होते हैं। इन्हें ज़मीन से हल्का सा टकराते ही निश्चित स्थानों पर रंग झरता है और सुंदर नमूना प्रकट हो जाता है। रंगोली बनाने के लिए प्लास्टिक के स्टेंसिल्स का प्रयोग भी किया जाता है। गीली रंगोली चावल को पीसकर उसमें पानी मिलाकर तैयार की जाती है। इस घोल को ऐपण, ऐपन या पिठार कहा जाता है। इसे रंगीन बनाने के लिए हल्दी का प्रयोग भी किया जाता है। इसके अतिरिक्त रंगीन रंगोली बाज़ार में मिलने वाले पोस्टर, क्रेयॉन, फ़ेब्रिक और एक्रिलिक रंगों से भी बनाई जाती हैं।


ऋत्विज अथवा ऋतुओ का यजन

अनेक प्रकार के यज्ञ हुआ करते थे। यज्ञ उस युग का सबसे बड़ा सांस्कृतिक समारोह होता था। ये यज्ञ साधारण भी होते थे--और असाधारण भी। कुछ यज्ञों को तो राजा-महाराजा ही कर सकते थे, जैसे अश्वमेध, राजसूय, आदि। पर कुछ यज्ञ नियमित रूप से सब आर्य गृहस्थों को करने पड़ते थे। इन यज्ञों का क्रम गोपद ब्राह्मण में इस प्रकार बताया गया है-


अग्न्याधान, पूर्णाहुति, अग्निहोत्र, दशपूर्णयास, आग्रहायण (ग्ववसस्येष्ठि) चातुर्मास्य, पशुवध, अग्नि-ष्टोम, राजसूय, बाजपेय, अश्वमेध, पुरूषमेध, सर्वमेध, दक्षिणावाले बहुत दक्षिणा-वाले और असंख्य दक्षिणावाले।


इनमें अग्न्याधान और अग्निहोत्र प्रतिदिन के यज्ञ थे। हर अमावस और पूर्णिमा के दिन दशपूर्णमास यज्ञ होते थे। फाल्गुन पूर्णिमा, आषाढ़ पूर्णिमा और कार्तिक पूर्णिमा को चातुर्मास्य यज्ञ किये जाते थे। उतरायण-दक्षिणायन के आरम्भ में जो यज्ञ होते थे--वे आग्रहायण वा नवसस्येष्ठि यज्ञ कहलाते थे। इसी प्रकार भिन्न-भिन्न प्रकार के उद्देश्यों को लेकर भिन्न-भिन्न यज्ञ होते थे। यह आग्रहायण या नवसस्येष्ठि यज्ञ ही आगे दीपावली का त्यौहार बन गया।


यज्ञ चाहे छोटे हैं या बड़े, पर्वों ही में होते थे। पर्व, जोड़ या संधि को कहते हैं। यह सन्धि पर्व ऋतु और काल सम्बन्धी हुआ करती थी। सायं-प्रात: संधि, पक्ष संधि, मास संधि, ऋतु संधि, चातुर्मास्य संधि, अयन संधि, पर यज्ञ होते थे। ये संधियाँ पर्व कहाती थीं। यज्ञ समाप्ति पर अवभृथ स्नान होता था। अब यज्ञों की परिपाटी तो बन्द हो गई है, पर पर्वों पर विशेष तीर्थों पर स्नान अब भी धर्म कृत्य माना जाता था।


कार्तिक पूर्णिमा, वैसाखी पर्व, कुम्भ पर्व आदि में आज भी हरिद्वार-प्रयाग नासिक आदि क्षेत्रों में बड़े-बड़े स्नान होते हैं। कार्तिक पूर्णिमा का गंगा स्नान बहुत प्रसिद्ध है। आर्यों में उतरायण और दक्षिणायन का बहुत विचार किया जाता था। `नान्य: पन्था विद्यतेस्नाय' ऋतुओं में ही यज्ञ करने से यज्ञ कर्ता का नाम ऋत्विज अर्थात ऋतुओं में यजन करने वाला प्रसिद्ध हुआ। यजन से यज्ञों में ज्योतिष ज्ञान की आवश्यकता पड़ती थी, तथा यज्ञ समारोहों ही से ऋतु के साथ ग्रहनक्षत्रों के परिवर्तन का पता चल जाता था। मधुश्च माध्वश्च वासन्ति कावृतू (१३/२५) शुक्रश्च शुविश्च श्रेष्मावृतू (१४/६) नभश्च नभश्यश्च वार्षिकावृतू (१४/१५) तपश्च तपस्यश्च शैशिरावृतू (१५/५७) (यजुर्वेद १५/५७) द्वेसूती अश्रुष्वं पितृणांमहं देवानायु (युजु १९/४०) षड़ाहु: शीतान् षडु यास उष्णनृतुं बूत (अथर्व ८/९/१७) दीवाली अयन परिवर्तन का त्यौहार है। इस समय सूर्य दक्षिणायन होते हैं। साथ ही नयाशस्य--धान्य आता है, इसलिए खील खाई जाती है, तथा दीपोत्सव मनाया जाता है। दिवाली के बाद गोवर्धन होता है। यह घरेलू पशुओं के पूजन का त्यौहार था, जिसे पशुन्द्य यज्ञ कहते थे। इसके बाद यम द्वितीया है, जब भाई बहिन के घर जाता है। यह यम-यमी की स्मृति में है। जिसका उल्लेख देव में है। लक्ष्मी पूजा दिवाली पर लक्ष्मी पूजा होती है। यजुर्वेद के।।। श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पल्या, प्रसिद्ध मन्त्र है। इसमें श्री और लक्ष्मी नाम की दो वेश्याओं का उल्लेख है। महीधर उवट भाषा में यही लिखा है। कालान्तर में श्री नामी देवी के अंशों को दुर्गा-काली, भवानी, भैरवी, चण्डी, अन्नपूर्णा, चामुण्डा आदि रूप कल्पित कर लिए गए।


प्राचीन दिपावली का त्यौहार

दीपावली  या दिवाली,अर्थात "रोशनी का त्योहार" शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिंदू त्योहार है। दीवाली भारत के सबसे बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' अर्थात् 'अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए' यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।


माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे।अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलन्डर के अनुसार अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा कर सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।


दीवाली नेपाल, भारत, श्रीलंका, म्यांमार, मारीशस, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, मलेशिया, सिंगापुर, फिजी, पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया की बाहरी सीमा पर क्रिसमस द्वीप पर एक सरकारी अवकाश है।


डोडा बर्फी बनाने की विधि

एक नज़र
रेसिपी क्विज़ीन :इंडियन
कितने लोगों के लिए :1 - 2
समय :30 मिनट से 1 घंटा
मील टाइप :वेज


आवश्यक सामग्री
4 कप दूध
डेढ़ कप ताजी क्रीम
3 चम्मच दलिया
2 कप चीनी
एक बड़ा चम्मच घी
एक कप काजू, बारीक कुटे हुए
एक कप बादाम, बारीक कटे हुए
2 बड़े चम्मच कोको पाउडर
2 बड़े चम्मच पिस्ता, लंबे कटे हुए


विधि: एक पैन में घी डालें, जब यह गरम हो जाए तब इसमें दलिया डालकर मध्यम आंच पर हल्का भूरा होने तक भून लें! इसे निकाल कर अलग रख लें! अब एक भारी तले की कड़ाही में दूध डालकर मध्यम आंच पर उबालें. जब दूध उबल जाए तब इसमें क्रीम डालें और दूध गाढ़ा होने तक उबालें! इसमें करीब 40 मिनट लगेंगे! अगर दूध बर्तन में लगता है तो चम्मच से छुड़ाते रहें! अब दूध में दलिया और चीनी डालकर मिक्स करें और 20 मिनट तक पकाएं! चम्मच से चलाते रहें ताकि दूध बर्तन की साइड में न चिपके!
अब इसमें कोको पाउडर, काजू और बादाम डालें और इसे तब तक पकाएं जब तक यह बड़ी लोई जैसा नहीं हो जाता! या फिर दूध व घी नहीं छोड़ने लगता! इसमें लगभग 15 मिनट लगेंगे! अब एक थाली में घी लगा लें और तैयार मिश्रण को इसमें फैला लें! इसके बर्फी के आकार के पीस काट लें और पिस्ता डालकर हल्के हाथ से चम्मच से दबा दें! डोडा बर्फी तैयार है, ठंडा होने के बाद इसे सर्व करें!


नोट : इस मिठाई को बनाने के बाद 15 दिन तक फ्रिज में रखा जा सकता है!


राम का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...
 मुनिवरो, राजाओ ने प्रश्न् किया कि राजा कौन है, जिस राजा के राष्ट्र में विज्ञान पराकाष्ठा पर हो और विज्ञान का सदुपयोग होता हो! उस राजा का राष्ट्र पवित्र होता है! वह राजा पवित्र होता है! मानव देखो जिस राजा के राष्ट्र में विज्ञान अपनी पराकाष्ठा पर नहीं रहता है! वह विज्ञान के वांग्मय में प्रवेश हो जाता है और वह विज्ञान मानव का राष्ट्र का मौलिक गुण बनकर रहता है! मौलिक गुण क्यों? क्योंकि राष्ट्र को ऊंचा बनाने वाला वह मानव देखो स्वीकृत कहलाता है! तो देखो राष्ट्र और मानवता दोनों ही अपने में तत्पर रहने चाहिए! जिससे समाज में एक महानता की ज्योति उत्पन्न हो जाए! तो आओ मेरे प्यारे, देखो राजाओं ने कहा प्रभु क्या राजा के राष्ट्र में विज्ञान होना अनिवार्य है? भगवान राम ने कहा कि अनिवार्य नहीं है,परंतु विज्ञान होना चाहिए उसका सदुपयोग होना चाहिए! उसके जीवन में एक महानता की ज्योति होनी चाहिए! देखो विज्ञान अपने में अभिमान बनकर के विज्ञान अपने में निखत्त्सुक बनने से राष्ट्र की प्रतिभा नष्ट हो जाती है! तो विचार विनिमय क्या है? मैंने बहुत पुरातन काल में कहा था कि मानव को अहिंसा परमो धर्म अपनाना चाहिए! इसको अपनाने से ही समाज में एक महानता का प्रदर्शन होता है! मुझे भगवान राम का जीवन स्मरण आता रहता है! भगवान राम रात्रि के समय प्रभु का चिंतन करते रहते थे! भयंकर वनों में भी जहां सिंह राज अपनी गर्जना कर रहा है! मानव प्रत्येक प्राणी अपनी ध्वनि कर रहा है और उसमें वह ध्वनित हो रहा है! इसी प्रकार प्रत्येक राजा जब अपने में ध्वनित बनने के लिए विवेक अमृत का पान करता है! उससे विवेक जागरूक हो जाता है और वह विवेक ही मानव का जीवन कहलाया जाता हैं! तो इसलिए प्रत्येक मानव के हृदय में विवेक होना चाहिए! जिस विवेक के द्वारा राष्ट्र और प्रजा दोनों पवित्र बनते हैं! भगवान राम के जीवन की गाथा मुझे स्मरण आती रहती है! एक समय बेटा वह प्रातः कालीन भ्रमण कर रहे थे भ्रमण करते-करते कुछ समय व्यतीत हो गया! भ्रमण करते-करते अपने को आभा में नियुक्त करने लगे! वह अपने में अपनी कृतिका को ऊंचा बनाते हुए सिंह राज के आंगन में उस से खिलवाड़ करने लगे! भ्रमण करते-करते जब सिंह राज से खिलवाड़ कर रहे थे तो कहीं से लक्ष्मण भी भ्रमण करते हुए आ गए! वह सिंह राज से खिलवाड़ कर रहे हैं! कह रहे हैं तू अहिंसा में परिणत होने वाला है! तू कितना महान है वह सिंह राजू से खिलवाड़ करते रहते थे समय व्यतीत होता रहता है! इसी प्रकार जब मानव प्रत्येक प्राणी मात्र से स्नेह करने लगता है तो देखो एक खिलवाड़ करता रहता है! नागराज से भी खिलवाड़ होता रहता है, नागराज एक वायु में गुथा प्राणी है! जब अपने में वह रत हो जाता है अपने में धारयामी बन जाता है! याज्ञिक बन जाता है! तो देखो उसके जीवन में अहिंसा परमो धर्म की एक आभा का जन्म हो जाता है और वही जन्म वृत्तियों में रत हो करके वह मानव के जीवन का मानसिक रूप बन करके उनके ह्रदय में निहित हो जाता है!


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प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस    (हिंदी-दैनिक)


October 26, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-83 (साल-01)
2. शनिवार ,26 अक्टूबर 2019
3. शक-1941,अश्‍विन,कृष्णपक्ष, तिथि- त्रयोदशी-चतुर्दशी संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 06:21,सूर्यास्त 05:55
5. न्‍यूनतम तापमान -21 डी.सै.,अधिकतम-30+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी।
6. समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102


9.संपर्क एवं व्यावसायिक कार्यालय-डी-60,100 फुटा रोड बलराम नगर, लोनी,गाजियाबाद उ.प्र.,201102


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कुएं में मिला नवजात शिशु का शव, मचा हड़कंप

कुएं में मिला नवजात शिशु का शव, मचा हड़कंप  दुष्यंत टीकम  जशपुर/पत्थलगांव। जशपुर जिले के एक गांव में कुएं में नवजात शिशु का शव मिला है। इससे...