शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

भोजन के अतं का मिष्ठान

भोजन के अंत में परोसा जाने वाला मिष्ठान्न, केक सेंककर तैयार किया हुआ भोज्य पदार्थ है। आमतौर पर कई किस्मों वाला केक का आटा, चीनी, अंडे, मक्खन या तेल का मिश्रण है जिसे घोलने के लिए तरल (आम तौर पर दूध या पानी) और खमीर उठाने वाले पदार्थ (जैसे कि खमीर या बेकिंग पाउडर) की ज़रूरत होती है। स्वाद व महक के लिए अक्सर फलों का गाढ़ा गूदा, मेवे या अर्क मिला दिए जाते हैं और मुख्य सामग्री के अनेक विकल्प सुलभ हैं। अक्सर केक में फलों का मुरब्बा या मिष्ठान्न वाली सॉस (जैसे पेस्ट्री क्रीम) भर दी जाती है, उसके ऊपर मक्खन वाली क्रीम या अन्य आइसिंग लगाकर बादाम और अंडे के सफ़ेद हिस्से का मिश्रण, किनारों पर बिंदियां और चाशनी में डूबे फल लगाकर सजाया जाता है।


विशेष रूप से शादी, वर्षगाँठ और जन्मदिन जैसे औपचारिक अवसरों पर अक्सर खाने के बाद मिठाई के तौर पर केक का चुनाव किया जाता है। केक बनाने की अनगिनत पाक विधियां हैं, कुछ रोटी की तरह, कुछ गरिष्ठ और बड़े परिश्रम से तैयार की जाने वाली और अनेक पारम्परिक हैं। किसी ज़माने में केक बनाने (विशेष रूप से अंडे की झाग उठाने में) में काफ़ी मेहनत लगा करती थी लेकिन अब केक बनाना कोई जटिल प्रक्रिया नहीं रही, सेंकने वाले उपकरण और विधियां इतनी सरल हो गई हैं कि कोई भी नौसिखिया केक सेंक सकता है।


विश्व का सबसे ऊंचा कैक्टस

पैकिसेरियस प्रिंगलेइ (Pachycereus pringlei), जिसे मेक्सिकी बड़ा कार्दन (Mexican giant cardon) या हाथी कैक्टस (elephant cactus) भी कहा जाता है, कैक्टस की एक जीववैज्ञानिक जाति है को मूल रूप से पश्चिमोत्तरी मेक्सिको में बाहा कैलिफ़ोर्निया, बाहा कैलिफ़ोर्निया सुर और सोनोरा राज्यों में पाई जाती है। इन क्षेत्रों के स्थानीय सेरी लोग (जो यहाँ की आदिवासी जनजाति है) इस कैक्टस के फल खाते हैं।यह कैक्टस जाति अपनी जड़ों में बैक्टीरिया और फ़ंगस की कुछ जातियों के साथ सहजीवनीय सम्बन्ध रखती है जिस से यह सीधा वायु से नाइट्रोजन प्राप्त करने में सक्षम है। इस कारणवश यह सीधा बिना मिट्टी के पत्थर पर भी उगी हुई पाई जाती है। इसके बीजों में भी यह बैक्टीरिया जातिया पाई गई हैं।


जीवाकृति व जीवन:-यह विश्व का सबसे ऊँचा कैक्टस है और ६३ फ़ुट (१९ मीटर) तक लम्बा पाया गया है। इसके तने का व्यास १ मीटर (३ फ़ुट) तक का और कई मोटी सीधी खड़ी हुई शाखों से साथ देखा जा सकता है। इसपर कई बड़े श्वेत फूल होते हैं जो रात्रि में खुलते हैं। देखने में यह सागुआरो नामक जाति से मिलता-जुलता है लेकिन कुछ अन्तर देखे जा सकते हैं। यह धीरे-धीरे उगने वाला वनस्पति है और सैंकड़ों साल जीवित रह सकता है।


शारीरिक संरचना में परिवर्तन

चींटी फ़ोरमिसिडाए कुल और हाइमेनोप्टेरा गण के अंतर्गत आती है। इसमें मधुमक्खी और वाशीभी भी शामिल हैं। एंटियल वाशिप के भीतर एक वंश से चींटियों का क्रमविकास हुआ और 2013 के एक अध्ययन से पता चला कि वे एपोइडिया की एक बहन समूह हैं। सन् 1966 में ई.ओ. विल्सन और उनके सहयोगियों ने चाकमय कल्प (क्रिटेशियस) में रहने वाले एक चींटी (स्केकेमॉर्मा) के जीवाश्म अवशेषों की पहचान की। आज से 9.2 करोड़ वर्ष पूर्व कहरुवे (ऐम्बर) में फंसे हुए नमूने में, कुछ अपशिष्टों में पाया गया है, लेकिन आधुनिक चींटियों में पाया नहीं गया है। स्पैकोमिमा संभवत: एक भूरा था, जबकि हेमीमिरमेक्स और हैडोमिरमोड्स, सबफ़ैमली स्पेलकोमिमाइनी में संबंधित पीढ़ी, सक्रिय पौधों के शिकारियों के रूपमें पुनर्निर्मित हैं।


जीनस स्पाइकोमिरेड्स में पुराने चींटियों को म्यांमार से 9.9 करोड़ वर्षीय कहरुवे में पाया गया है। लगभग 10 करोड़ वर्ष पहले फूलदार पौधों के उदय के बाद, वे लगभग 6 करोड़ वर्ष पूर्व पारिस्थितिक प्रभुत्व को विविध और ग्रहण कर चुके थे। कुछ समूहों, जैसे लपटानिलिने और मार्शिआनी, को प्रारंभिक आदिम चींटियों से अलग करने का सुझाव दिया जाता है, जो मिट्टी की सतह के नीचे शिकारियों की संभावना थी। चाकमय अवधि के दौरान, आदिम चींटियों की कुछ प्रजातियां लौरासियन अतिमहाद्वीप (उत्तरी गोलार्ध) पर व्यापक रूप से फैली हुई थीं। वे अन्य कीटों की आबादी की तुलना में दुर्लभ थे, और पूरी कीट आबादी का केवल 1% का प्रतिनिधित्व करते थे। पेलेोजेन कालकी शुरुआत में अनुकूली विकिरण के बाद चींटियों का प्रभाव बढ़ गया। ओलिगोसीन और माओसिन द्वारा, चींटियों के प्रमुख जीवाश्म जमाओं में पाए गए सभी कीड़ों के 20-40% का प्रतिनिधित्व करने के लिए आ गया था। प्रजातियों में से जो इओसीन युग में रहते थे, वर्तमान में 10 प्रजातियों में से एक जीवित रहते हैं। आज जीना में बाल्टिक एम्बर जीवाश्मों (प्रारंभिक ओलिगोसीन) में 56% पीढ़ी और डोमिनिकन एम्बर जीवाश्म (जाहिरा तौर पर जल्दी मिओसीन) में 9 2% प्रजाति शामिल है। दीमक, हालांकि उन्हें कभी-कभी 'सफेद चींटियों' कहा जाता है, जीववैज्ञानिक दृष्टि से चींटियाँ नहीं हैं।


नींबू जाति की मौसमी

मौसंबी (Citrus limetta) एक फल है। यह नींबू जाति का ही फल है परन्तु नींबू से अनेक गुना लाभदायक है। मौसमी का फल नांरगी के बराबर आकार का होता है। मुम्बई और गुजरात में इसे मुसम्मी या मौसमी कहते हैं। उत्तर प्रदेश मे इसे 'मीठा नींबू' कहते हैं। मौसमी का रस साबुन, शराब तथा अन्य पेयों में डाला जाता है। इसके छिलके से निकाला हुआ तेल जल्दी उड़ जाता है। इसलिए इसके तेल को जैतून के तेल के साथ मिलाकर उपयोग किया जाता है।


मौसमी का उपयोग पोषक आहार के रूप में होता है। मौसमी की तीन किस्में-नेवल, जुमैका और माल्टा हैं। मौसमी की कलम लगाने से आजकल इसकी अनेक उपजातियां हैं। नेवल किस्म अमेरिका में उत्तम मानी जाती है। माल्टा का छिलका व रस लाल रंग का होता है। मौसमी के फल एक-आधा महीना तक बिना बिगड़े ज्यों-के-त्यों बने रहते हैं।


भारतीय पक्षी प्रियवंद

खीहा एक भारतीय पक्षी है। इसे संस्कृत में प्रियंवद कहते हैं।


इस पक्षी के दो स्पष्ट प्रादेशिक भेद है। एक तो ललमुँही खीहा (रक्तकपोल प्रियंवद) जो हिमालय में गढ़वाल से सिक्किम तक प्राय: २ से ७ हजार फुट की ऊँचाई पर पाए जाते हैं। कभी कदा ये १० हजार फुट तक की ऊँचाई पर भी देखे जाते हैं। इस वर्ग का खीहा ११ इंच का होता है। इसकी चोंच टेढ़ी होती है, ऊपरी पूँछ और डैने का घिरा हुआ भाग काही भूरा होता है और निचला भाग अखरोटी तथा सफेद होता है। ठुड्ढी और गले पर धूमिल भूरे रंग की धारियाँ होती है। यह झाड़ियों में निवास करता है और पहाड़ियों पर ही अधिकांश जीवन व्यतीत करता है। इसकी बोली मधुर होती है। नर पक्षी की बोली दुहरी होती है। दूसरी बोली पहली बोली के तत्काल बाद ध्वनित होती है। यदि मादा उसके निकट होती है तो दूसरी ध्वनि के बाद अपनी मधुर ध्वनि से तत्काल उत्तर देती है। यह पक्षी दूसरे पक्षी की बोलियों का भी प्रत्युत्तर देते हैं। यह पक्षी नाचता भी है। गुबरीला, केंचुआ, कीड़े आदि इसके मुख्य भोजन हैं।



श्वेत-भौंह खीहा
दूसरी जाति का खीहा मुख्यत: दक्षिण भारत के पर्वतों में पाया जाता है। किंतु आबू की पहाड़ियों, मध्य प्रदेश और खानदेश के आसपास भी ये देखे जाते है। यह ललमुँही खीहा से कुछ छोटा होता है। इसका ऊपरी भाग भूरा और माथा काला होता है। आँख के ऊपर एक सफेद पट्टी सी होती है, जिसके ऊपर काली काली किनारी होती है। छाती और पेट पर एक पतली काली भूरी लकीर होती हे। चोंच पीली होती है। इसकी बोली सामान्यत: कर्कश होती है पर कभी कभी यह मधुर सीटी भी बजाता है। लोग सीटी बजाकर अपने निकट रखने का प्रयास करते हैं। यह अपनी लंबी तलवारनुमा चोंच से फूलों का रस चूसता है। वैसे, कीड़े मकोड़े भी इसके भोजन हैं।


महर्षि वशिष्ठ का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...
 मेरे प्यारे देखो जब माताएं उसी मंत्र को  के दृष्टा बन करके उसी देवता की उपासना कर रही है। उपासना करते हुए प्राण को अपान से मिलान करते हुए वह अपने गर्भ की आत्मा से वार्ता प्रकट करती है। जो माता अपने गर्भ में रहने वाले शिशु से वार्ता करना जानती है। तो वह देवी धन्य है वे मेरी माता धन्य है। जिनके तरफ से महान पुत्रों का जन्म होता है। इसलिए मम्त्वाम् ब्रह्मा: वे माताए ऋषि-मुनियों को जन्म देकर के अपने जीवन को कृतार्थ बना लेती है। वही तो सौभाग्य झलकने लगता है। विचार आता रहता है मुनिवरो, आज में विशेष चर्चा देने नहीं आया हूं। केवल विचार यह है कि परमात्मा वशिष्ठ मुनि महाराज ने राम से बहुत सी चर्चाए की। उन्होंने कहा यह विद्याए राजा के राष्ट्र में होनी चाहिए। राजा के राष्ट्र में जब यह विद्या होती है तो उसे राष्ट्रवाद कहते हैं। वह ब्रबस ब्रव्हे, वह भी विद्या होनी चाहिए। जब वह तपस्या में परिणत होता हुआ अपनी आत्मा का परमात्मा से मिलन करता हुआ ब्रह्मांड की उसमें पुट लगाकर के ब्रह्मा की चेरी को जानने लगता है। मेरे प्यारे वही तो ब्राह्मणत्व कहलाता है। विचार केवल यह है कि मुनवरो राष्ट्रवाद अपनी आभा में गमन करता रहा है। यदि राजा के राष्ट्र में विवेकी पुरुष नहीं हैं, महापुरुष नहीं है। मेरी पुत्री आप बुद्धिमान नहीं है तो वह राजा अपने राष्ट्र को उन्नत नहीं बना सकता। यह विधाऐ परंपरागतो से ही मानवीय मस्तिष्क में पंडितव के रूप में रमण करती रहती है। ब्रह्मा वेता इस संसार से उपराम हो जाता है। महात्मा वशिष्ठ ने भगवान राम से कहा कि राष्ट्रवाद कहते हैं जिस राष्ट्र की तुम चर्चा कर रहे थे। उसके पश्चात उन्होंने कहा कि प्रभु यह तो मैंने जान लिया कि इसे राष्ट्रवाद कहते हैं। परंतु इसे कार्य रूप कैसे दिया जाएगा। उन्होंने कहा इस प्रकार के बन जाओ तो कार्य रूप स्वत: दिया जाता है। जब अपने में सूक्ष्मता रहेगी तो जगत सूक्ष्म बनेगा। अपने में जब मानवता रहेगी तो जगत मानव बनेगा। जब मानव स्वयं दार्शनिक बनेगा तो मानव दार्शनिक बन जाएगा। जब अपनेपन में मृत्यु को विजय करने वाले बनेंगे तो यह संसार मृत्युंजय बन जाएगाू। जब हम अपने में ब्रह्म ज्ञान की चर्चा करेंगे ब्रह्मज्ञानी बनेंगे तो संसार ब्रह्मज्ञानी बन जाएगा। अपने विचार पर हुए परमात्मा के जगत में अपने को स्वीकार करो। राष्ट्र अपने मे पवित्र बनता है। प्रजा उसी के अनुसार व्यवहार बरतने लगती है और जब राजा इस प्रकार का नहीं होगा तो प्रजा नहीं बरतेगी और जब प्रजा नहीं बरतेगी तो राजा केवल अपने आलस्य प्रमाद में परिणत हो जाएगा। समाज भी उसी प्रकार की अधिकार की पुकार करने लगेगा। अधिकार ही चाहने लगेगा परंतु कर्तव्य नष्ट हो जाएगा। जब अधिकार ही अधिकार को पूर्ण करेगा तो आज तक सृष्टि के प्रारंभ से लेकर के कोई भी मानव किसी का अधिकार को पूर्ण नहीं कर सकता है। कर्तव्य करते रहो अधिकार स्वेत: प्राप्त होता है। उसे आवश्यकता नहीं है पुकारने की । परंतु जब कर्तव्य करता है तो वह अपनी उस आत्मा को प्रसन्न करता है। जो आत्मा प्रभु से मिलान करती है। तो उसके मन में जो इछिंत फल होते हैं वह उसे प्राप्त हो जाते हैं।


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस


हिंदी दैनिक


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण


October 20, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-77 (साल-01)
2. रविवार,20 अक्टूबर 2019
3. शक-1941,अश्‍विन,कृष्णपक्ष, तिथि-सप्तमी, संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 06:18,सूर्यास्त 06:00
5. न्‍यूनतम तापमान -20 डी.सै.,अधिकतम-30+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी।
6. समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102


9.संपर्क एवं व्यावसायिक कार्यालय-डी-60,100 फुटा रोड बलराम नगर, लोनी,गाजियाबाद उ.प्र.,201102


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यूपी: गर्मी के चलते स्कूलों का समय बदला

यूपी: गर्मी के चलते स्कूलों का समय बदला  संदीप मिश्र  लखनऊ। यूपी में गर्मी के चलते स्कूलों का समय बदल गया है। कक्षा एक से लेकर आठ तक के स्कू...