गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

आज आत्मविश्वास भरपूर रहेगा: वृषभ

राशिफल


मेष:मेष राशि के जातकों के लिए आज का दिन अनुकूल रहेगा! तरक्की के नये रास्ते खुलेंगे! दामप्त्य जीवन में मधुरता बढ़ेगी! व्यवसायिक यात्रा सफल रहेगी! आज के दिन घर से निकलते समय बड़ों का आशीर्वाद लेकर निकालें, काम में सफलता जरूर मिलेगी!


वृषभ:वृष राशि के जातक आज आत्मविश्वास से भरपूर रहेंगे! ऑफिस में रुका हुआ काम पूरा हो जाएगा! इस राशि के छात्रों के लिए आज का दिन अच्छा रहेगा! कोई बड़ा काम पूरा होगा, जिससे आप खुश रहेंगे! मिट्टी के बर्तन में चिड़ियों के लिए पानी रखें, रूके हुए काम पूरे होंगे!


मिथुन:मिथुन राशि के जातकों के उनकी मेहनत का फल आज मिल सकता है! किसी ऐसे रिश्तेदार से मुलाकात हो सकती है, जिससे भविष्य में आपको फायदा होगा! ग्रहों का परिवर्तन मिथुन राशि के जातकों पर बुरा प्रभाव डाल सकता है! रोजगार में वृद्धि होने की संभावना है! आज के दिन सुबह भोलेनाथ को जल अर्पित करें, आपको अपनी मेहनत का फल जरूर मिलेगा!


कर्क:कर्क राशि के जातकों को अपने जीवनसाथी से कोई सुखद समाचार मिल सकता है! इस राशि की महिलाएं बाहर जाते समय अपना पर्स संभालकर रखें! सेहत नरम गरम रह सकती है! वाहन चलाते समय सावधानी बरते! जरूरतमंद को भोजन कराएं, सुभा दुखों का निवारण होगा!


सिंह:सिंह राशि के जातक आज घर से बड़ों का आशीर्वाद का लेकर निकलें! ऑफिस में नई जिम्मेदारियां मिलने की संभावना है! छात्रों को कड़ी मेहनत करनी होगी! स्वास्थ थोड़ा गड़बड़ रह सकता है! लेन देन के मामलों में सतर्कता बरतें! आज गायत्री मंत्र का जाप करें, दिन बेहतर होगा!


कन्या:कन्या राशि के जातकों के लिए आज का दिन बेहतरीन रहेगा. व्यापारी वर्ग को धन लाभ होगा! किसी बड़ी कंपनी से जॉब के लिए कॉल आ सकती है! आज के दिन मंदिर में भगवान को इत्र अर्पित करें, सभी काम अच्छे से होंगे!


तुला:तुला राशि के जातकों के लिए आज का दिन सामान्य रहेगा! किसी दूसरे के काम में बेवजह अपनी राय देने से बचें! स्वास्थ्य में उतार चढ़ाव बना रहेगा! कानूनी पचड़ों में पड़ सकते हैं! कार्यक्षेत्र में प्रमोशन मिल सकता है! गुस्सा न करें नुकसान होने की संभावना है! बेहतर होगा गुस्से पर नियंत्रण रखें! आज बंदर को चना डालें, स्वास्थ अच्छा रहेगा!


वृश्चिक:वृश्चिक राशि का जातकों का आज का दिन यात्रा में बीतेगा!ऑफिस के काम से बाहर जा सकते हैं! रिश्तों में मिठास बढ़ेगी! अचानक धन लाभ हो सकता है! आज गणेश जी को बेसन के लड्डू का भोग लगाएं, आपका दिन अच्छा रहेगा!


धनु:धनु राशि के जातकों के लिए आज का दिन मिलाजुला रहेगा! किसी काम से दोस्त के घर जा सकते हैं! आपके काम समय से पूरे होंगे! माता पिता का साथ बना रहेगा! आज जरूरतमंद को कुछ गिफ्ट करें, प्रेम संबंध अच्छे रहेंगे!


मकर:मकर राशि के जातकों के लिए आज का दिन ठीकठाक रहेगा. इस राशि के छात्रों के लिए आज का दिन महत्वपूर्ण है! आज किसी बात पर पड़ोसी से झगड़ा हो सकता है! वाणी पर सयंम रखें! फिजूलखर्जी आपके लिए चिंता का कारण बन सकती है! जरूरतमंद को वस्त्र दान करें, आर्थिक पक्ष मजबूत होगा!


कुंभ:कुंभ राशि के जातकों के पर आज किस्मत मेहरबान रहेगी! धन लाभ के साथ खुशियों का आगमन होगा! मन में उत्सुकता बनी रहेगी. तरक्की के कई नए मौके मिलेंगे! साथ काम करने वाले लोगों से सहयोग मिलेगा! आज सुबह उठकर अपने इष्टदेव को प्रणाम करें, बिजनेस में बढ़ोतरी होगी!


मीन:मीन राशि के जातकों के लिए आज का दिन शानदार रहेगा! ग्रहों का चाल मुसीबत बढ़ा सकती है! परिवार में खुशी का माहौल बना रहेगा! इस राशि के छात्रों के लिए आज का दिन अनुकूल रहेगा! आज अपने गुरू का आशीर्वाद लें, काम में सफलता हासिल होगी!


एक वर्षीय साक जातीय पौधा

सरसों क्रूसीफेरी (ब्रैसीकेसी) कुल का द्विबीजपत्री, एकवर्षीय शाक जातीय पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम ब्रेसिका कम्प्रेसटिस है। पौधे की ऊँचाई 1 से 3 फुट होती है। इसके तने में शाखा-प्रशाखा होते हैं। प्रत्येक पर्व सन्धियों पर एक सामान्य पत्ती लगी रहती है। पत्तियाँ सरल, एकान्त आपाती, बीणकार होती हैं जिनके किनारे अनियमित, शीर्ष नुकीले, शिराविन्यास जालिकावत होते हैं। इसमें पीले रंग के सम्पूर्ण फूल लगते हैं जो तने और शाखाओं के ऊपरी भाग में स्थित होते हैं। फूलों में ओवरी सुपीरियर, लम्बी, चपटी और छोटी वर्तिकावाली होती है। फलियाँ पकने पर फट जाती हैं और बीज जमीन पर गिर जाते हैं। प्रत्येक फली में 8-10 बीज होते हैं। उपजाति के आधार पर बीज काले अथवा पीले रंग के होते हैं। इसकी उपज के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त है। सामान्यतः यह दिसम्बर में बोई जाती है और मार्च-अप्रैल में इसकी कटाई होती है। भारत में इसकी खेती पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और गुजरात में अधिक होती है।


महत्त्व:-जर्मनी में सरसों के तेल का उपयोग जैव ईंधन के रूप में भी किया जाता है।सरसों के बीज से तेल निकाला जाता है जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थ बनाने और शरीर में लगाने में किया जाता है। इसका तेल अंचार, साबुन तथा ग्लिसराल बनाने के काम आता है। तेल निकाले जाने के बाद प्राप्त खली मवेशियों को खिलाने के काम आती है। खली का उपयोग उर्वरक के रूप में भी होता है। इसका सूखा डंठल जलावन के काम में आता है। इसके हरे पत्ते से सब्जी भी बनाई जाती है। इसके बीजों का उपयोग मसाले के रूप में भी होता है। यह आयुर्वेद की दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसका तेल सभी चर्म रोगों से रक्षा करता है। सरसों रस और विपाक में चरपरा, स्निग्ध, कड़वा, तीखा, गर्म, कफ तथा वातनाशक, रक्तपित्त और अग्निवर्द्धक, खुजली, कोढ़, पेट के कृमि आदि नाशक है और अनेक घरेलू नुस्खों में काम आता है। जर्मनी में सरसों के तेल का उपयोग जैव ईंधन के रूप में भी किया जाता है!


सुनहरी मछली

सुनहरी मछली (कारासिउस औराटस औराटस) साईप्रिनीफॉर्म्स के क्रम में साईप्रिनीडाई के परिवार में एक ताजे पानी की मछली है। यह पालतू बनाए जाने वाली सबसे पहली मछली है और सबसे अधिक रखे जाने वाली एक्वैरियम मछली है। यह कार्प परिवार का एक अपेक्षाकृत छोटा सदस्य है (जिसमें कोई कार्प और कृसिय्न कार्प भी शामिल है), सुनहरी मछली गहरे-ग्रे/जैतूनी/भूरे कार्प का एक पालतू संस्करण है (करासिय्स औराटस) जो पूर्वी एशिया के मूल निवासी है (प्रथम बार चीन में पाले गए) और जिसकी पहचान यूरोप में 17वीं सदी के पूर्वार्ध में हुई. उत्परिवर्तन जिसने सुनहरी मछली को जन्म दिया अन्य साईप्रिनिड प्रजातियों जैसे आम कार्प और टेंच के कारण भी जाना जाता है। पालतू सुनहरीमछली की कई अलग अलग किस्में हैं।


सुनहरीमछली अधिकतम साँचा:In to cm लंबाई तक विकसित होती है और उसका अधिकतम वजन 9.9 pounds (4 kg)[कृपया उद्धरण जोड़ें] होता है, हालांकि, यह दुर्लभ है; अधिकतर व्यक्तिगत सुनहरी मछली इससे आधे आकार से भी छोटी होती हैं। इष्टतम परिस्थितियों में, सुनहरीमछली 40 वर्षों से भी अधिक समय तक जीवित रहती हैं; हालांकि, अधिकतर घरेलू सुनहरीमछलियां आम तौर पर छः से आठ वर्षों तक जीवित रहती हैं।


जंगली रूप:-पालतू सुनहरीमछलियों की किस्में संपादित करें
सदियों से हो रहे चयनित प्रजनन ने कई रंग विविधताओं को उत्पादित किया है, उनमें से कुछ पालतू मछली के मूल "सुनहरे" रंग से भुत दूर होते है। इनमे अलग अलग शारीरिक आकार, पंख और आंखे विन्यास भी पाई जाती है। सुनहरीमछली के कुछ चरम संस्करण एक्वैरियम" में ही रहते हैं- वे जंगली किस्मों से कही कम मज़बूत होते हैं। हालांकि, कुछ किस्में अधिक मजबूत होती हैं जैसे शुबनकिन . मुख्य किस्में हैं:


आम सुनहरीमछली काले मूर बब्ल आई:-आम सुनहरीमछली अपने पूर्वज प्रशिया कार्प से केवल रंग में अलग होती हैं। आम सुनहरीमछली विभिन्न रंगों में पाए जाते हैं जिसमे लाल, नारंगी/स्वर्ण, सफेद, काले और पीले या 'नींबू' रंग शामिल है! काले मूर सुनहरीमछली की एक दूरबीन-आखों वाली प्रजाति है जिसकी उभड़नेवाली आंखे उसकी विशेषता है। उसे पोपाये टेलिस्कोप, जापान में कुरो डेमिकिन और चीन में ड्रैगन-आई के नाम से जाना जाता है। छोटा, फैंसी बब्ल आई के पास ऊपर की ओर इशारा करती हुई आंखें हैं और उसके साथ दो बड़े द्रव्य-भरी थैलियां भी है।
दिव्य आंखें (सेलेस्चिय्ल आई) धूमकेतु (कोमेट)(सुनहरीमछली) फैनटेल (पंखे नुमा पूंछ वाली)(सुनहरीमछली)
सजावटी सेलेस्चिय्ल आई सुनहरीमछली या चोटेन गान एक दोहरी दुम वाला और एक नस्ल-परिभाषित करने वाली ऊपर की ओर पलटी, दूरबीन आखों वाली मछली है जिसकी पुतलियां आकाश की ओर देखती हुई हैं। 
धूमकेतु या धूमकेतु-पूंछ वाली सुनहरी मछली संयुक्त राज्य अमेरिका में पाए जाने वाली सबसे आम प्रजाति है। थोड़ी पतली या छोटी होने के आलावा, यह आम सुनहरीमछली के समान ही है और यह मुख्य रूप से अपनी लंबी और गहरी कांटे समान पूंछ के कारण अलग से पहचानी जाती है। फैनटेल सुनहरीमछली रयुकिन का पश्चिमी रूप है और इसके पास एक अंडे के आकार का शरीर, एक उच्च पृष्ठीय पंख, एक लंबी चौगुनी, पूंछ है और इसके कंधे पर कोई उभार नहीं है।
सिंह मस्तिष्क (लायनहेड)(सुनहरीमछली) ओरानडा पर्लस्केल
सजावटी लायनहेड के पास एक हुड है। यह मछली रैनचु का पूर्वगामी है! सजावटी ओरानडा की विशेषता प्रमुख रूप से एक रास्पबेरी-जैसी हुड है (जिसे वेन या सिरवृद्धि के नाम से भी जाना जाता है) और जो आंखें और मुह को छोड़ कर पुरे सिर को ढके हुए रहता है। सजावटी पर्लस्केल या जापानी भाषा में चीनशुरिन का शरीर-गोलाकार और जिसकी पूंछ फैनटेल के समान है।
पोमपोम (सुनहरीमछली) रयुकिन शुबनकिन
सजावटी पोमपोम्स या पोम्पोन या हाना फुसा के नाक के बीच में और सिर के दोनों तरफ खुले मांसल बाहरी ओर उगे हुए रेशों के गुच्छे होते हैं।  सजावटी रयुकिन का शरीर छोटा और गहरा है और उसके कंधे का उभार उसकी विशेषता है।  सजावटी और साहसी जापानी (जिसका शाब्दिक अनुवाद "लाल ब्रोकेड") की nacreous स्केलों के साथ एक पूंछ है और शरीर पर कैलिको नामक एक आकृति है। 
दूरबीन आंख (टेलिस्कोप आई) रैनचु पांडा मूर
सजावटी दूरबीन आंख या डेमेकिन की विशेषता है उसकी उभड़नेवाली आखें. इसे ग्लोब आई या ड्रेगन आई सुनहरीमछली के नाम से जानी जाती है। सजावटी जापानी रैनचु हुड वाली है। जापानी इसे "सुनहरी मछलियों के रजा" के नाम से संबोधित करते हैं। सजावटी पांडा मूर का काली और सफेद आकृति और उभड़नेवाली आंखे उसकी विशेषता है।
वेलटेल तितली पूंछ (बटरफ्लाई टेल)(सुनहरीमछली)
सजावटी वेलटेल अपने अतिरिक्त लंबे, लहराते दोहरे पूंछ के कारण जाना जाता है। आधुनिक वेलटेल मानकों को पूंछ के निकले हुए किनारों के अभिस्थापन की थोड़ी या बिलकुल भी आवश्यकता नहीं होती, जैसा जी एक दुल्हन के विवाह की चुनरी में होती है। तितली पूंछ मूर या तितली टेलीस्कोप दूरबीन आंख वाले वंश का हिस्सा है, उसके जुडवा पूंछ ऊपर से देखे जाने पर सबसे बेहतरीन लगते हैं। पूंछ का फैला हुआ पंख पानी के नीचे की तितलियों की नकल करती हुई प्रतीत होती है!
चीनी सुनहरीमछली वर्गीकरण संपादित करें
चीनी परंपरा सुनहरीमछलियों को मुख्य रूप से 4 प्रकार में वर्गीकृत करती है। यह वर्गीकरण सामान्यतः पश्चिम में इस्तेमाल नहीं किया जाता!


सी (जिसे "ग्रास" भी कहा जा सकता है)-बिना सजावटी संरचनात्मक विशेषताओं के सुनहरीमछली. इनमें शामिल है आम सुनहरीमछली, कोमेट सुनहरीमछली और शुबनकिन.
वेन-सुनहरीमछली की पूंछ सजावटी है, जैसे, फैनटेल और वेलटेल ("वेन" एक प्रकार के सिरवृद्धि को कहते हैं जो ओरानडा और लायनहेड जैसे उपभेदों की विशेषता होती है)
ड्रैगन आई- सुनहरीमछली की आखें बढ़ी हुई होती है, उदाहरण के तौर पर ब्लैक मुर, बब्ल आई और टेलीस्कोप आई
एग-सुनहरीमछली पृष्ठीय पंख नही होता और आमतौर पर उनकी शारीरिक संरचना 'अंडाकार' होती है, जैसे लायनहेड (ध्यान दें कि एक बिना पृष्ठीय पंख वाला बब्ल आई इसी समूह के अंतर्गत आता है)


चीड़ की गोलाकार आकृति

चीड के कम उम्र के छोटे पौधों में निचली शाखाओं के अधिक दूर तक फैलने तथा ऊपरी शाखाओं के कम दूर तक फैलने के करण इनका सामान्य आकार पिरामिड जैसा हो जाता है। पुराने होने के कारण इनका सामान्य आकार पिरामिड जैसा हो जाता है। पुराने होने पर वृक्षों का आकार धीरे धीरे गोलाकार हो जाता है। जगलों में उगनेवाले वृक्षों की निचली शाखाएँ शीघ्र गिर जाती हैं और इनका तना काफी सीधा, ऊँचा, स्तंभ जैसा हो जाता है। इनकी कुछ जातियों में एक से अध्कि मुख्य तने पाए जाते हैं। छाल साधारणतय मोटी और खुरदरी होती है, परंतु कुछ जातियों में पतली भी होती है।


इनमें दो प्रकार की टहनियाँ पाई जाती हैं, एक लंबी, जिनपर शल्कपत्र लगे होते हें, तथा दूसरी छोटी टहनियाँ, जिनपर सुई के आकार की लंबी, नुकीली पत्तियाँ गुच्छों में लगी होती हैं। नए पौधों में पत्तियाँ एक या दो सप्ताह में ही पीली होकर गिर जाती हैं। वृक्षों के बड़े हो जाने पर पत्तियाँ वर्षों नहीं गिरतीं। सदा हरी रहनेवाली पत्तियों की अनुप्रस्थ काट (transverse section) तिकोनी, अर्धवृत्ताकार तथा कभी कभी वृत्ताकार भी होती है। पत्तियाँ दो, तीन, पाँच या आठ के गुच्छों में या अकेली ही टहनियों से निकलती हैं। इनकी लंबाई दो से लेकर 14 इंच तक होती है और इनके दोनों तरु रंध्र (stomata) कई पंक्तियों में पाए जाते हैं। पत्ती के अंदर एक या दो वाहिनी बंडल (vascular bundle) और दो या अधिक रेजिन नलिकाएँ होती हैं। वसंत ऋतु में एक ही पेड़ पर नर और मादा कोन या शंकु निकलते हैं। नर शंकु कत्थई अथवा पीलें रंग का साधारणतय एक इंच से कुछ छोटा होता है। प्रत्येक नर शंकु में बहुत से द्विकोषीय लघु बीजाणुधानियाँ (Microsporangia) होती हैं। ये लघुबीजाणुधानियाँ छोटे छोटे सहस्त्रों परागकणों से भरी होती हैं। परागकणों के दोनों सिरों का भाग फूला होने से ये हवा में आसानी से उड़कर दूर दूर तक पहुँच जाते हैं। मादा शंकु चार इंच से लेकर 20 इंच तक लंबी होती है। इसमें बहुत से बीजांडी शल्क (ovuliferous scales) चारों तरफ से निकले होते हैं। प्रत्येक शल्क पर दो बीजांड (ovules) लगे होते हैं। अधिकतर जातियों में बीज पक जाने पर शंकु की शल्कें खुलकर अलग हो जाती हैं और बीज हव में उड़कर फैल जाते हैं। कुछ जातियों में शकुं नहीं भी खुलते और भूमि पर गिर जाते हैं। बीज का ऊपरी भाग कई जातियों में कागज की तरह पतला और चौड़ा हो जाता है, जो बीज को हवा द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने में सहायता करता है। बीज के चारों ओर मजबूत छिलका होता है। इसके अंदर तीन से लेकर 18 तक बीजपत्र पाए जाते हैं।


चीड़ के पौधे को उगाने के लिये काफी अच्छी भूमि तैयार करनी पड़ती है। छोटी छोटी क्यारियों में मार्च-अप्रैल के महीनों में बीज मिट्टी में एक या दो इंच नीचे बो दिया जाता है। चूहों, चिड़ियों और अन्य जंतुओं से इनकी रक्षा की विशेष आवश्यकता पड़ती है। अंकुर निकल आने पर इन्हें कड़ी धूप से बचाना चाहिए। एक या दो वर्ष पश्चात् इन्हें खोदकर उचित स्थान पर लगा देते हैं। खोदते समय सावधानी रखनी चाहिए, जिसमें जड़ों को किसी प्रकार की हानि न पहुँचे, अन्यथा चीड़, जो स्वभावत: जड़ की हानि नहीं सहन कर सकता, मर जायगा।


मांसाहारी स्तनियो का गण

मांसाहारी गण (Carnivora) मांसाहारी स्तनियों का गण है। इसके अंतर्गत सिंह, बाघ, चीता, पालतू कुत्ते एवं बिल्लियाँ, सील, लोमड़ी लकड़बग्घा, रीछ आदि जीव आते हैं। इस गण के लगभग 260 वंश वर्तमान है और वर्तमान वंश के बराबर वंश विलुप्त हो गए हैं। तृतीयक (Tertiary) युग के आरंभ में इस गण के जीवों की उत्पत्ति हुई, तब से अब तक ये अपना अस्तित्व बनाए रखने में पर्याप्त सफल रहे हैं।


इस गण के प्राणी साहसी, बुद्धिमान्‌ एवं सक्रिय होते हैं। इनके देखने और सूँघने की शक्ति तीव्र होती है। इनके चार रदनक (canine) दाँत होते हैं, जो मांस फाड़ने के अनुकुल होते हैं। इस गण की अनेक जातियों की पादांगुलियाँ दृढ़ एवं तेज नखर (claw) से युक्त होती है। ये नखर शिकार को पकड़ने में सहायक होते हैं। मांसाहारी गण के प्राणी छोटे विस्त्रा (weasel) से लेकर बड़े रीछ के आकार तक के होते हैं और इनका भार लगभग २० मन तक हो सकता है। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को छोड़कर संसार के प्रत्येक भाग में मांसाहारी गण के जीव पाये जाते हैं। ध्रुवीय लोमड़ी और रीछ ही केवल ऐसे स्थल स्तनी हैं, जो सुदूर उत्तर में पाए जाते हैं। जलसिंह (sea lion) उत्तर ध्रुवीय एवं दक्षिण ध्रुवीय समुद्र में पाए जाते हैं। गंध मार्जार (civet) उत्तरी एवं दक्षिणी अमरीका को छोड़कर सभी देशों में पाया जाता है। अफ्रीका में असली रीछ नहीं पाये जाते। पंडा को छोडकर सभी रैकून (racoon) अमरीका में ही पाये जाते हैं। यद्यपि कुछ मांसाहारी प्राणी मनुष्य और पालतु पशुओं को हानि पहुँचाते हैं, तथापि इनमें से अधिकांश समूरधारी (furry) और कृतक भक्षक होने के कारण महत्वपूर्ण है। कृंतक (rodente) कृषि को हानि पहुँचाते हैं, पर मांसाहारी गण के अधिकांश प्राणी कृंतकों का भक्षण कर इनकी संख्यावृद्धि को रोकते हैं। इस गण के सभी प्राणी मांसाहारी ही हों, यह आवश्यक नहीं है। इस गण के कुछ प्राणी, जैसे अधिकतर रीछ, शाकाहारी होते हैं।


विशिष्ट लक्षण (Distinctive characters) 
वर्गीकरण (Classification) 
मांसाहारी गण के जीवाश्म 
आधुनिक मांसाहारी गण के सामान्य प्राणियों के जीवाश्मों के साथ साथ अनेक विलुप्त प्राणियों के जीवाश्म भी अत्यंत नूतन (pleistocene) युग की चट्टानों में पाए गए हैं। सबसे प्राचीन मांसाहारी गण वह छोटा क्रिओडॉराटा था जिसके जीवाश्म उत्तरी अमरीका के पुरानूतन (palaeocene) युग के आरंभ की चट्टानों में पाए गए हैं। उत्तरी अमरीका में मध्यपुरानूतन युग की चट्टानों में मीआसिड (Miacid) गण के जीवों के जीवाश्म मिलते हैं, जिनसे पता चलता है कि उस काल में इस गण के जीव उत्पन्न हो गए थे। अ्फ्रीका की मध्यनूतन युग के आरंभ की चट्टानों और भारत की अतिनूतन (Pliocene) युग की चट्टानों से प्राप्त जीवाश्मों से ज्ञात होता है कि उस काल मेंश् अंतिम क्रिओडॉराटा जीवित थे क्रिओडॉराटा और फिसीपीडिया दानों गण के संबंध संदेहयुक्त हैं, यद्यपि दोनो के अवशेष एक ही काल की चट्टानों में मिलते हैं, जलव्य्घ्राा के जीवाश्म मध्यनूतन युग की चट्टानों में मिलते हैं जिनसे पता लगता है कि उनमें पिन्नीपीडिया गण के सभी लक्षण उपस्थित थे। जलव्य्घ्राा के पूर्वज के संबंध में कोई विशेष संकेत नहीं मिलते।


संकल्पमयी संसार की विशेषता

गतांक से...
 मेरे प्यारे, राम ने 12 वर्ष तक ऐसे अन्न को ग्रहण किया, जिससे उनका मन पवित्र हो गया और पुराणों में एक महान धारा का जन्म होने लगा| देखो हूत और प्रहूत में वह परिणत होने वाला जगत बन गया! राम जब तपस्या करते रहते नाना मुनि आते चर्चाएं होती और वेद चर्चाएं मानो कोई आध्यात्मिक वाद की चर्चा कर रहा है, कोई आत्मा की चर्चा कर रहा है, कोई राष्ट्रवाद की विवेचना कर रहा है, कोई उसी में रत हो करके अपने पिता का ध्यान अवस्थित हो रहे हैं| मेरे प्यारे देखो अपने में अपनेपन को ही विचारना तपस्या कहलाता है! मुझे स्मरण आता रहता है मुझे भी आखियकाय स्मरण है! जब मानव तपस्वी बंन करके तत्वों में लीन होना चाहता है! 12 वर्ष का राम का अनुष्ठान पूर्णत़व को प्राप्त हुआ और वेदों का गान करते रहते थे! वेदों की महानता में रमण करते रहते थे! मुझे स्मरण आता रहता है, बेटा भगवान राम का वह जीवन जिसमें वह अपने में ही अपने पन दृष्टिपात करते रहते थे! यह सृष्टि का जो चक्र है यह बड़ा विचित्र माना गया है! परंतु इसके ऊपर विश्लेषण प्रत्येक मानव करता रहता है! मैं तुम्हें विशेष विवेचना में नहीं ले जा रहा हूं! विचार केवल यह है कि परमात्मा की बड़ी विचित्र है परंतु भगवान राम ने 12 वर्ष का कठोर तप किया और उन्होंने सिलसत अऩ को ग्रहण करते हुए अपने मन को पवित्र बनाने के लिए तपस्या में सुयोग्य बने! मेरे प्यारे, जब वह 12 वर्ष का तक पूर्ण हो गया तो भयंकर वनों में ही एक विचार वालों का मानव समाज उपस्थित हुआ! उन्होंने कहा कि राम अब तुम राष्ट्र को भोगो उन्होंने कहा राष्ट्र भोगने के लिए तत्पर हूं! परंतु मेरे विचार में यह नहीं आ रहा है कि यह राष्ट्र क्या है जिसे मैं भोगू! उन्होंने कहा राष्ट्र है अपने पर अनुशासन करना अपने प्राणों को संयम में लाने का नाम राष्ट्र है! परंतु देखो यह ऐसा राष्ट्र है जिसके ऊपर मानव परंपरागतो से ही टिप्पणियां करता रहा है! विचारधारा में तत्पर रहता है! राम ने कहा कि महाराज मैं राष्ट्रवाद को जानना चाहता हूं ,यह राष्ट्रवाद क्या है? तो मुनिवरो, देखो इन पुरोहितों ने वेदों के कर्मकांड महापुरुषों ने कहा, यह जो संसार है यह मानो बड़ी विचित्रा में तपो का क्षेत्र माना गया है! यहां प्रत्येक मानव तपस्या में परिणत होना चाहता है और वह अपने को तपस्चर में परिणित करता हुआ सागर से पार होना चाहता है! उन्होंने राष्ट्रीयता की घोषणा की और वहां यह विचार बन गया था कि राम अब इस समय पूर्णरूपेण मानो देखो यज्ञ प्रवाह जैसे यज्ञशाला में यज्ञमान विद्यमान हो करके वही धीपति कहलाता है! इसी प्रकार राष्ट्र को उन्नत बनाने के लिए मानो उसी प्रकार अनृत होना बहुत अनिवार्य है! मेरे प्यारे देखो राष्ट्र का 'अनुभूतम ब्रह्मा' भगवान राम ने स्वीकार कर लिया! परंतु ऋषि-मुनि उन्हें उपदेश देने लगे! राम ने यह कहा कि है ब्रह्म बताओ मुझे निर्णय कराओ यह राष्ट्रवाद क्या है! जिसके लिए इतना बल दिया जा रहा है! महात्मा वशिष्ठ मुनि बोले की प्रजा को अनुशासन में लाने के लिए! राम ने कहा कि जब सबको ज्ञान हो जाएगा ब्रह्मज्ञानी बन जाएंगे! कर्मठ कर्मकांड में परिणत समाज हो जाएगा, तो अनुशासन की आवश्यकता नहीं रहती! राम ने कहा अनुशासन वहां होता है जहां कुरीतियां आ जाती है विकृतियां आ जाती है! वहां अनुशासन की आवश्यकता है और जहां मानव अपने में अपनेपन को चिंतन में ला रहा है! उसके राष्ट्रवाद की आवश्यकता होना ना होना उसका प्रश्न ही नहीं उठता है! जब राजा अपने कर्तव्य का पालन करता है! प्रजा अपने कर्तव्य का पालन करती है और विज्ञान का सदुपयोग होता रहता है तो समाज में एक महानता का जन्म हो जाता है! राम ने कहा कि जब प्रत्येक मानव एक दूसरे से एक दूसरे में रत हो जाएगा! मानो उसी का नाम राष्ट्रवाद कहा जाता है! क्योंकि उस राष्ट्रवाद में अपनी अंतरात्मा की पवित्रता होती है! और जहां मानव की अपनी इंद्रियों में पवित्रता नहीं आएगी! उस समय द्वितीय राष्ट्र के निर्वाचन से कोई लाभ नहीं होना है! संसार में जब तक प्रत्येक मानव का इंद्रित़व ऊंचा न बन जाए और विचारधारा पवित्रत़व को प्राप्त न हो जाए! राम ने कहा कि मैं इस राष्ट्र को अवश्य भोगूगा! परंतु मेरा अंतरात्मा यह कहता है कि प्रत्येक मानव को अपने कर्तव्य में तल्लीन हो जाना चाहिए! मानो यदि हम राजा बनकर के राष्ट्र को उन्नत नहीं बना सकते और जीवन की चर्चा में पवित्रता नहीं ला सकते और उस पवित्रता को हम धारण नहीं करेंगे तो हमारा राष्ट्रीयत़व शांत हो जाएगा!


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस


हिंदी दैनिक


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण


October 11, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-68 (साल-01)
2. शुक्रवार,11 अक्टूबर 2019
3. शक-1941,अश्‍विन,शुक्‍लपक्ष,तिथि- त्रयोदशी,विक्रमी संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 06:16,सूर्यास्त 06:05
5. न्‍यूनतम तापमान -21 डी.सै.,अधिकतम-32+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी,नमी बनी रहेगी।
6. समाचार पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है! सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102


9.संपर्क एवं व्यावसायिक कार्यालय-डी-60,100 फुटा रोड बलराम नगर, लोनी,गाजियाबाद उ.प्र.,201102


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email:universalexpress.editor@gmail.com
cont.935030275
 (सर्वाधिकार सुरक्षित)


यूपी: गर्मी के चलते स्कूलों का समय बदला

यूपी: गर्मी के चलते स्कूलों का समय बदला  संदीप मिश्र  लखनऊ। यूपी में गर्मी के चलते स्कूलों का समय बदल गया है। कक्षा एक से लेकर आठ तक के स्कू...