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रविवार, 2 अक्तूबर 2022

नवरात्रि का आठवां दिन माता 'महागौरी' को समर्पित

नवरात्रि का आठवां दिन माता 'महागौरी' को समर्पित 

सरस्वती उपाध्याय 
हिन्दू धर्म में शारदीय नवरात्र के आठवें दिन को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन मां दुर्गा की सिद्ध स्वरूप माता महागौरी की विधि-विधान से पूजा की जाती है। बता दें कि नवरात्र के अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। देशभर में 3 सितंबर को माता आदिशक्ति की विशेष पूजा की जाएगी और व्रत का पालन किया जाएगा। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पूजा-पाठ करने से और उपवास रखने से सभी प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती हैं और माता महागौरी का आशीर्वाद अपने भक्तों पर सदैव बना रहता है। आइए जानते हैं, कैसे की जानी चाहिए माता की पूजा और क्या है इस दिन का महत्व ?

माता महागौरी का स्वरूप...

मां दुर्गा के आठवें सिद्ध स्वरूप में माता महागौरी का रंग दूध के समान श्वेत है। साथ ही वह इसी रंग के वस्त्र भी धारण करती हैं। माता महागौरी भैंस ओर सवार होकर अपने भक्तों की प्रार्थना सुनने आती हैं। माता की चार भुजाएं हैं और प्रत्येक भुजा में माता ने अभय मुद्रा, त्रिशूल, डमरू और वर मुद्रा धारण किया है।

माता महागौरी की पूजा-विधि...

नवरात्र पर्व के अष्टमी तिथि को ब्रह्ममुहूर्त में स्नान-ध्यान करें और पूजा स्थल की साफ-सफाई करें। इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल से सिक्त करें। ऐसा करने के बाद व्रत का संकल्प लें और माता को सिंदूर, कुमकुम, लौंग का जोड़ा, इलाइची, लाल चुनरी श्रद्धापूर्वक अर्पित करें। ऐसा करने के बाद माता महागौरी और मां दुर्गा की विधिवत आरती करें। आरती से पहले दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करें।

शास्त्रों के अनुसार इस दिन नौ कन्याओं के पूजन का भी विधान है। इस दिन 10 या उससे कम उम्र की नौ कन्या और एक बटुक को घर पर आमंत्रित करें और फिर श्रद्धापूर्वक पूड़ी-सब्जी या खीर-पूड़ी का भोग लागएं। ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं।

माता महागौरी मंत्र...

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्।।

पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।

वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्।।

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।

मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्।।

प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।

कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्।।


स्तोत्र पाठ...


सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।

ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्।।

सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।

डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्।।

त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।

वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्।।


माता महागौरी की आरती...


जय महागौरी जगत की माया ।

जय उमा भवानी जय महामाया ।।

हरिद्वार कनखल के पासा ।

महागौरी तेरा वहा निवास ।।

चंदेर्काली और ममता अम्बे ।

जय शक्ति जय जय मां जगदम्बे ।।

भीमा देवी विमला माता ।

कोशकी देवी जग विखियाता ।।

हिमाचल के घर गोरी रूप तेरा ।

महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा ।।

सती 'सत' हवं कुंड मै था जलाया ।

उसी धुएं ने रूप काली बनाया ।।

बना धर्म सिंह जो सवारी मै आया ।

तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया ।।

तभी मां ने महागौरी नाम पाया ।

शरण आने वाले का संकट मिटाया ।।

शनिवार को तेरी पूजा जो करता ।

माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता ।।

'चमन' बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो ।

महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो ।।

शनिवार, 1 अक्तूबर 2022

नवरात्रि का सातवां दिन मां 'कालरात्रि' को समर्पित 

नवरात्रि का सातवां दिन मां 'कालरात्रि' को समर्पित 

सरस्वती उपाध्याय 

शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है। 02 अक्टूबर को शारदीय नवरात्रि की सप्तमी तिथि है। नवरात्रि में सातवें दिन महासप्तमी पड़ती है। इस दिन मां दुर्गा की सातवीं स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना की जाती है। सदैव शुभ फल देने के कारण इनको शुभंकरी भी कहा जाता है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने के लिए जानी जाती हैं, इसलिए इनका नाम कालरात्रि है। मां दुर्गा की सातवीं स्वरूप मां कालरात्रि तीन नेत्रों वाली देवी हैं। कहा जाता है, जो भी भक्त नवरात्रि के सांतवें दिन विधि-विधान से मां कालरात्रि की पूजा करता है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। मां कालरात्रि की पूजा से भय और रोगों का नाश होता है। साथ ही भूत प्रेत, अकाल मृत्यु ,रोग, शोक आदि सभी प्रकार की परेशानियों से छुटकारा मिलता है। ऐसे में आइए जानते हैं मां कालरात्रि की पूजा पूजा की तिथि, शुभ मुहूर्त और मंत्र... 

मां कालरात्रि का स्वरूप...

कह जाता है कि मां दुर्गा को कालरात्रि का रूप शुम्भ, निशुम्भ और रक्तबीज को मारने के लिए लेना पड़ा था। देवी कालरात्रि का शरीर अंधकार की तरह काला है। इनके श्वास से आग निकलती है। मां के बाल बड़े और बिखरे हुए हैं। गले में पड़ी माला बिजली की तरह चमकती रहती है। मां के तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह विशाल व गोल हैं। मां के चार हाथ हैं, जिनमें एक हाथ में खडग अर्थात तलवार, दूसरे में लौह अस्त्र, तीसरे हाथ अभय मुद्रा में है और चौथा वरमुद्रा में है।

पूजा-विधि...

सप्तमी तिथि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में प्रातः स्नान करने के बाद पूजा आरंभ करनी चाहिए। स्नान के बाद माता के सामने घी का दीपक जलाएं। उन्हें लाल रंग के फूल अर्पित करें। मां कालरात्रि की पूजा में मिष्ठान, पंच मेवा, पांच प्रकार के फल, अक्षत, धूप, गंध, पुष्प और गुड़ नैवेद्य आदि का अर्पण किया जाता है। 


मंत्र...

ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम: .

ॐ कालरात्र्यै नम:

ॐ फट् शत्रून साघय घातय ॐ

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गति नाशिन्यै महामायायै स्वाहा।


ध्यान मंत्र...

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।

वामपादोल्ल सल्लोहलता कण्टक भूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

शुक्रवार, 30 सितंबर 2022

नवरात्रि का छठां दिन मां 'कात्यायनी' को समर्पित 

नवरात्रि का छठां दिन मां 'कात्यायनी' को समर्पित 

सरस्वती उपाध्याय 
नवरात्रि का छठां दिन मां कात्यायनी की पूजा के लिए समर्पित है। माँ कात्यायनी नवदुर्गा का छठा रूप है। विवाह तय करने में समस्याओं का सामना करने वाली लड़की मां कात्यायनी से एक सुखी और सुगम वैवाहिक जीवन प्राप्त करने के लिए प्रार्थना कर सकती है। वह वैवाहिक जीवन में सद्भाव और शांति सुनिश्चित करती है। यह भी माना जाता है कि नवरात्रि में उनकी पूजा करने से कुंडली में ग्रहों के सभी नकारात्मक प्रभावों को दूर करने में मदद मिल सकती है।

नव दुर्गा स्वरूपों में माँ कात्यायनी देवी का छठां स्वरुप का महत्व...

नवदुर्गा के छठवें स्वरूप में माँ भगवती कात्यायनी की पूजा की जाती है। माँ कात्यायनी का जन्म कात्यायन ऋषि के घर हुआ था अतः इनको कात्यायनी कहा जाता है। इनकी चार भुजाओं मैं अस्त्र शस्त्र और कमल का पुष्प है, इनका वाहन सिंह है. ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं, गोपियों ने कृष्ण की प्राप्ति के लिए इनकी पूजा की थी। विवाह में आरही बाधाओं के लिए माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है, योग्य और मनचाहा पति इनकी कृपा से प्राप्त होता है। ज्योतिष में बृहस्पति का सम्बन्ध इनसे माना जाता है।

माँ कात्यायनी देवी का स्वरूप सोने के समाना चमकीला है। चार भुजा धारी माँ कात्यायनी सिंह पर सवार हो कर  एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिये हुए बैठी है। तथा अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। इनका वाहन सिंह हैं। देवी कात्यायनी के नाम और जन्म से जुड़ी एक कथा प्रसिद्ध है।

हमारे ऋषि मुनियों में एक  श्रेष्ठ कात्य गोत्र के  ऋषि महर्षि कात्यायन जी थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। मां भगवती को पुत्री के रूप में पाने की इच्छा रखते हुए उन्होंने पराम्बा माँ भगवती  की कठोर तपस्या की। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया। कुछ समय बीतने के बाद राक्षस महिषासुर का अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया। तब त्रिदेवों के तेज से एक सोने के सामान चमकीली और चतुर्भजाओं वाली एक कन्या ने जन्म लिया और उसका वध कर दिया। कात्य गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया।

मां कात्यायनी अविवाहित कन्याओं के लिए विशेष फलदायिनी मानी गई हैं। जिन कन्याओं के विवाह में विलम्ब या परेशानियां आती है तो वह माँ कात्यायनी के चतुर्भुज रूप की आराधना कर माँ का आशीर्वाद प्राप्त कर अपने मांगलिक कार्य को पूर्ण करती है  शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों को माता की अवश्य उपासना करनी चाहिए। माँ कात्यायनी देवी के पूजन में मधु का विशेष महत्व है। इस दिन प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए। इसके प्रभाव से साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है।

आरती...

जय जय अम्बे जय कात्यायनी। जय जग माता जग की महारानी॥
बैजनाथ स्थान तुम्हारा। वहावर दाती नाम पुकारा॥
कई नाम है कई धाम है। यह स्थान भी तो सुखधाम है॥
हर मन्दिर में ज्योत तुम्हारी। कही योगेश्वरी महिमा न्यारी॥
हर जगह उत्सव होते रहते। हर मन्दिर में भगत है कहते॥
कत्यानी रक्षक काया की। ग्रंथि काटे मोह माया की॥
झूठे मोह से छुडाने वाली। अपना नाम जपाने वाली॥
बृहस्पतिवार को पूजा करिए। ध्यान कात्यानी का धरिये॥
हर संकट को दूर करेगी। भंडारे भरपूर करेगी॥
जो भी माँ को भक्त पुकारे। कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥

मां कात्यायनी की पूजा-विधि...

नवरात्रि के छठे दिन सुबह स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा स्थल की सफाई करके गंगाजल से शुद्धि करें। अब सबसे पहले मां कात्यायनी की प्रतिमा अथवा तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर प्रणाम करें। फिर पूजन के दौरान देवी को पीले अथवा लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद देवी मां को पीले रंग के पुष्प, कच्ची हल्दी की गांठ चढ़ाएं। फिर माता को शहद का भोग लगाएं। मां कात्यायनी के समक्ष आसन पर बैठकर मंत्र, दुर्गा चालीसा और सप्तशती का पाठ अवश्य करें। तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर मां की आरती उतारें। पूजा के बाद सभी को प्रसाद बांटें।

मां कात्यायनी मंत्र...

चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना
कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

गुरुवार, 29 सितंबर 2022

नवरात्रि का पांचवां दिन मां 'स्कंदमाता' को समर्पित

नवरात्रि का पांचवां दिन मां 'स्कंदमाता' को समर्पित 

सरस्वती उपाध्याय 
आश्विन मास के शुक्ल-पक्ष की पंचमी तिथि के दिन के साथ शारदीय नवरात्र का पांचवा दिन है। नवरात्र के पांचवें दिन मां दुर्गा के स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाती है। माना जाता है कि स्कंदमाता की विधिवत पूजा करने से सुख-समृद्धि के साथ-साथ संतान प्राप्ति होती है। जानिए नवरात्र के पांचवें दिन कैसे करें स्कंदमाता की पूजा, साथ ही जानिए शुभ मुहूर्त, भोग और मंत्र।

नवरात्र की पंचमी तिथि का शुभ मुहूर्त...

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि आरंभ- सुबह 12 बजकर 10 मिनट से शुरू

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि समाप्त- रात 10 बजकर 34 मिनट तक

अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 47 मिनट से 12 बजकर 35 मिनट तक

राहुकाल- सुबह 10 बजकर 42 मिनट तक दोपहर 12 बजकर 11 मिनट तक

कैसा है मां स्कंदमाता का स्वरूप...

स्कंदमाता की स्वरूप काफी प्यारा है। मां दुर्गा की स्वरूप स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं, जिसमें दो हाथों में कमल लिए हैं, एक हाथ में कार्तिकेय बाल रूप में बैठे हुए हैं और एक अन्य हाथ में मां आशीर्वाद देते हुए नजर आ रही हैं। बता दें कि मां का वाहन सिंह है, लेकिन वह इस रूप में कमल में विराजमान है।

स्कंदमाता का पूजा विधि...

नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गा की पूजा करने से पहले कलश की पूजा करें। इसके बाद मां दुर्गा और उनके स्वरूप की पूजा आरंभ करें। सबसे पहले जल से आचमन करें। इसके बाद मां को फूल, माला चढ़ाएं। इसके बाद सिंदूर, कुमकुम, अक्षत आदि लगाएं। फिर एक पान में सुपारी, इलायची, बताशा और लौंग रखकर चढ़ा दें। इसके बाद मां स्कंदमाता को भोग में फल में केला और इसके अलावा मिठाई चढ़ा दें। इसके बाद जल अर्पित कर दें। इसके बाद घी का दीपक, धूप जलाकर मां के मंत्र का जाप करें। इसके बाद दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और अंत में दुर्गा मां के साथ स्कंदमाता की आरती करें।

स्कंदमाता के मंत्र...
 
मां स्कंदमाता का वाहन सिंह है। इस मंत्र के उच्चारण के साथ मां की आराधना की जाती है। 
 
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
 
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
 
संतान प्राप्ति हेतु जपें स्कंद माता का मंत्र...
 
पंचमी तिथि की अधिष्ठात्री देवी स्कन्द माता हैं। जिन व्यक्तियों को संतानाभाव हो, वे माता की पूजन-अर्चन तथा मंत्र जप कर लाभ उठा सकते हैं। मंत्र अत्यंत सरल है...
 
'ॐ स्कन्दमात्रै नम:।।'
 
निश्चित लाभ होगा। इसके अतिरिक्त इस मंत्र से भी मां की आराधना की जाती है।
 
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
 
भोग एवं प्रसाद...

पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है।

बुधवार, 28 सितंबर 2022

नवरात्रि का चौथा दिन मां 'कूष्माण्डा' को समर्पित 

नवरात्रि का चौथा दिन मां 'कूष्माण्डा' को समर्पित 

सरस्वती उपाध्याय 

शारदीय नवरात्र की चतुर्थी तिथि पर देवी के कूष्मांडा स्वरूप का दर्शन-पूजन करने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार, अपनी मंद मुस्कान से पिंड से ब्रह्मांड तक का सृजन देवी ने इसी स्वरूप में किया था। कूष्मांडा स्वरूप के दर्शन पूजन से न सिर्फ रोग-शोक दूर होता है अपितु यश, बल और धन में भी वृद्धि होती है। काशी में देवी के प्रकट होने की कथा राजा सुबाहु से जुड़ी है। देवी कुष्मांडा का मंदिर दुर्गाकुंड क्षेत्र में स्थित है। इन्हें दुर्गाकुंड वाली दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।

किस रंग के कपड़े पहनें...

जातक पूजा के समय लाल, गुलाबी व पीत रंग के वस्त्र धारण करें।

किन राशियों के लिए शुभ...

नवरात्रि का चौथा दिन सभी 12 राशियों के लिए शुभ। विशेषकर मकर और कुंभ राशि के लिए उत्तम।

कौन-सी मनोकामनाएं होती हैं पूरी...

मां कूष्मांडा अपने भक्तों के कष्ट और रोग का नाश करती है। मां कूष्मांडा की पूजा उपासना करने से भक्तों को सभी सिद्धियां मिलती हैं। मान्यता है कि मां की पूजा करने से व्यक्ति के आयु और यश में बढ़ोतरी होती है।


मां कुष्मांडा की पूजा का शुभ मुहूर्त...

नवमी तिथि आरंभ- 29 सितंबर को तड़के 1 बजकर 27 मिनट से शुरू

नवमी तिथि समाप्त- 30 सितंबर सुबह 12 बजकर 9 मिनट तक

विशाखा नक्षत्र- 29 सितंबर सुबह 5 बजकर 52 मिनट से 30 सितंबर सुबह 5 बजकर 13 मिनट तक

अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 35 मिनट से दोपहर 12 बजकर 22 मिनट तक।


कैसा है मां कुष्मांडा का स्वरूप ?

मां कुष्मांडा नौ देवियों में से चौथा अवतार माना जाता है। मां कुष्मांडा की आठ भुजाएं होती है। इसी कारण उन्हें अष्ठभुजा के नाम से जाना जाता है। बता दें कि मां के एक हाथ में जपमाला होता है। इसके साथ ही अन्य सात हाथों में धनुष, बाण, कमंडल, कमल, अमृत पूर्ण कलश, चक्र और गदा शामिल है।

ऐसे करें मां कुष्मांडा की पूजा...

इस दिन सुबह उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें। इसके बाद विधिवत तरीके से मां दुर्गा और नौ स्वरूपों के साथ कलश की पूजा करें। मां दुर्गा को सिंदूर, पुष्प, माला, अक्षत आदि चढ़ाएं। इसके बाद मालपुआ का भोग लगाएं और फिर जल अर्पित करें। इसके बाद घी का दीपक और धूप जलाकर मां दुर्गा चालीसा , दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। इसके साथ ही इस मंत्र का करीब 108 बार जाप जरूर करें।

मंगलवार, 27 सितंबर 2022

नवरात्रि का तीसरा दिन मां 'चंद्रघंटा' को समर्पित 

नवरात्रि का तीसरा दिन मां 'चंद्रघंटा' को समर्पित 

सरस्वती उपाध्याय 

नवरात्रि के पावन पर्व में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। नवरात्रि का तीसरा दिन 28 सितंबर 2022, बुधवार को है। देवी पुराण के अनुसार देवी दुर्गा के तृतीय स्वरूप को चंद्रघंटा कहा जाता है। देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्द्धचंद्र सुशोभित है, इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। जानें नवरात्रि के तीसरे दिन का शुभ मुहूर्त, रंग, भोग व अन्य खास बातें...

मां चंद्रघंटा का स्वरूप...

माता का तीसरा रूप मां चंद्रघंटा शेर पर सवार हैं। दस हाथों में कमल और कमडंल के अलावा अस्त-शस्त्र हैं। माथे पर बना आधा चांद इनकी पहचान है। इस अर्ध चांद की वजह के इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है।

मंत्र...

पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।

वस्त्र...

मां चंद्रघंटा की पूजा में उपासक को सुनहरे या पीले रंग के वस्त् पहनने चाहिए।

पुष्प...

मां को सफेद कमल और पीले गुलाब की माला अर्पण करें।

भोग...

मां को केसर की खीर और दूध से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए। पंचामृत, चीनी व मिश्री भी मां को अर्पित करनी चाहिए।


मां चंद्रघंटा की करें इन शुभ मुहूर्त...

ब्रह्म मुहूर्त- 04:36 ए एम से 05:24 ए एम।

विजय मुहूर्त- 02:11 पी एम से 02:59 पी एम

गोधूलि मुहूर्त- 05:59 पी एम से 06:23 पी एम

अमृत काल- 09:12 पी एम से 10:47 पी एम

रवि योग- 05:52 ए एम, सितम्बर 29 से 06:13 ए एम, सितम्बर 29।

सोमवार, 26 सितंबर 2022

नवरात्रि का दूसरा दिन मां 'ब्रह्मचारिणी' को समर्पित 

नवरात्रि का दूसरा दिन मां 'ब्रह्मचारिणी' को समर्पित 

सरस्वती उपाध्याय 

शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन 27 सितंबर 2022, मंगलवार को है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के द्वितीय स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। माता रानी के स्वरूप की बात करें तो शास्त्रों के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र धारण किए हैं और दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बाएं हाथ में कमंडल लिए सुशोभित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था, जिस वजह से मां को तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है। पुराणों में बताया गया है कि मां ब्रह्माचारिणी की पूजा- अर्चना करने से सर्वसिद्धि प्राप्त होती हैं।

मां ब्रह्मचारिणी की प्रिय वस्तु...

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी को गुड़हल, कमल, श्वेत और सुगंधित पुष्प प्रिय हैं। ऐसे में नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा को गुड़हल, कमल, श्वेत और सुगंधित पुष्प अर्पित करें।

मां ब्रह्मचारिणी का भोग...

मां दुर्गा को नवरात्रि के दूसरे दिन चीनी का भोग लगाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से दीर्घायु का आशीष मिलता है। मां ब्रह्मचारिणी को दूध और दूध से बने व्यंजन जरूर अर्पित करें।

इन शुभ मुहूर्त में करें पूजा...

ब्रह्म मुहूर्त- 04:36 ए एम से 05:24 ए एम।

अभिजित मुहूर्त- 11:48 ए एम से 12:36 पी एम।

विजय मुहूर्त- 02:12 पी एम से 03:00 पी एम।

गोधूलि मुहूर्त- 06:00 पी एम से 06:24 पी एम।

अमृत काल- 11:51 पी एम से 01:27 ए एम, 28 सितम्बर।

निशिता मुहूर्त- 11:48 पी एम से 12:36 ए एम, 28 सितम्बर।

द्विपुष्कर योग- 06:16 ए एम से 02:28 ए एम, 28 सितम्बर।

पूजा- विधि...

घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करने के बाद मां दुर्गा का गंगा जल से अभिषेक करें।

अब मां दुर्गा को अर्घ्य दें।

मां को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें, प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं।

धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर मां की आरती करें।

मां को भोग भी लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।

मंत्र...


श्लोक-

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु| देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||


ध्यान मंत्र-

वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।

जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥

सोमवार, 19 सितंबर 2022

दीवानगी की हदें पार, सीएम योगी का मंदिर बनवाया 

दीवानगी की हदें पार, सीएम योगी का मंदिर बनवाया 

संदीप मिश्र

अयोध्या। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक समर्थक ने दीवानगी की सारी हदें पार करते हुए सीएम योगी का मंदिर ही बनवा दिया। इस मंदिर में सीएम योगी की बकायदा किसी भगवान की तरह पूजा की जाती है और भजन-आरती गाई जाती हैं। योगी आदित्यनाथ का यह मंदिर अयोध्या से 15 किलोमीटर दूर अंबेडकर नगर राजमार्ग पर भरतकुंड के समीप मौर्या का पुरवा गांव में है। यहां के निवासी प्रभाकर मौर्य ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह मंदिर बनवाया है। अनिल ने यह मंदिर योगी आदित्यनाथ के कामों से प्रभावित होकर और अपना संकल्प पूरा करने के लिए बनवाया है।बता दें कि, अनिल एक भजन गायक हैं और योगी आदित्यनाथ के समर्थन में कई भजन बना और गा चुके हैं। इसलिए लोग उन्हें योगी का प्रचारक भी करते है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रभाकर ने मंदिर का निर्माण 8 लाख 56 की लागत से कराया है। मंदिर में स्थापित मूर्ति राजस्थान से विशेष ऑर्डर देकर बनवाई है। मंदिर में लगी प्रतिमा को योगी आदित्यनाथ को राम के अवतार में दिखाया गया है। प्रतिमा में योगी आदित्यनाथ धनुष और तीर लेकर दिखाई दे रहे है। प्रभाकर मानते है कि योगी भगवान राम और कृष्ण के अवतार है। इसलिए सनातन धर्म का प्रचार कर रहे है। वे किसी भगवान से कम नहीं है। प्रभाकर मौर्या ने भास्कर से बताया कि उन्होंने 2015 में संकल्प लिया था, कि जो राम का मंदिर राम जन्मभूमि अयोध्या में बनाएगा, उसका मंदिर बनाकर नित्य पूजन करेंगे। इसलिए 2016 में मैंने एक भजन गाया था, राम लला का अयोध्या में मंदिर बनाएंगे… इसके बाद सुप्रीम कोर्ट का राम मंदिर के निर्माण को लेकर फैसला आया और अब योगी आदित्यनाथ के सानिध्य में अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। संकल्प पूरा होने और मुख्यमंत्री के कार्यों से प्रभावित होकर मैंने यह मंदिर का निर्माण कराया है।

मंगलवार, 26 जुलाई 2022

सावन: 'महाशिवरात्रि' का विशेष महत्व, जानिए 

सावन: 'महाशिवरात्रि' का विशेष महत्व, जानिए 

आज सावन महाशिवरात्रि का त्योहार है। सावन के महीने में आने वाली महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। इस दिन शिव मंदिरों में भगवान शिव का जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। फाल्गुन और श्रावण माह की महाशिवरात्रि का विशेष महत्व होता है। शिवरात्रि का त्योहार भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दिन भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। इसके अलावा माता पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय और नंदी की पूजा-आराधना की जाती है। सावन महाशिवरात्रि पर कांवड़ यात्रा में शामिल सभी शिव भक्त जल से भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। आइए जानते हैं महाशिवरात्रि का महत्व, जलाभिषेक का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि...


महाशिवरात्रि का महत्व...

सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत ही प्रिय होता है। पूरे सावन माह में भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा-आराधना होती है। सावन महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का जलाभिषेक या रुद्राभिषेक करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। सावन शिवरात्रि पर व्रत रहते हुए शिव पूजन करने पर मनचाहा वर और सभी तरह की इच्छाएं जल्द पूरी होती है।


सावन महाशिवरात्रि पर शुभ संयोग...

27 जुलाई, बुधवार को सावन महाशिवरात्रि पर शुभ संयोग बन रहा है। इस दिन शिव मंगल गौरी की बहुत ही शुभ और मंगलकारी योग बन रहा है। ऐसे में सावन महाशिवरात्रि के अवसर पर न सिर्फ भगवान शिव का जलाभिषेक करना कल्याणकारी होगा, बल्कि मंगला गौरी व्रत पर माता पार्वती की पूजा करने पर भगवान शिव और माता पार्वती दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होगा। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, सावन में वर्षों बाद शिवरात्रि और मंगला गौरी व्रत का संयोग बना है।


सावन महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त...

महाशिवरात्रि पूजन चार प्रहर में करने का विधान होता है। इस बार सावन महाशिवरात्रि की शुभ तिथि 26 जुलाई की शाम को 06 बजकर 45 मिनट से शुरू होकर 27 जुलाई की रात 09 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। इस तरह से भगवान शिव का जलाभिषेक 26 और 27 जुलाई दोनों को किया जाएगा। मासिक शिवरात्रि पर शिव पूजन और जलाभिषेक शाम के 6 बजे लेकर 7 बजकर 30 मिनट पर करना उत्तम रहेगा।


सावन महाशिवरात्रि, पूजन विधि...

सावन महाशिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और फिर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद घर में या किसी मंदिर में जाकर भगवान शिव की पूजा करें। शिवलिंग का रुद्राभिषेक जल, घी, दूध, शक्कर, शहद, दही आदि से करें। शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा और श्रीफल चढ़ाएं। भगवान शिव की धूप, दीप, फल और फूल आदि से पूजा करें। सावन महाशिवरात्रि पर सुबह और शाम दोनों समय शिव पुराण, शिव पंचाक्षर, शिव स्तुति, शिव अष्टक, शिव चालीसा, शिव रुद्राष्टक और शिव श्लोक का पाठ करें,इस तरह से शिव उपासना करने को शुभ और पुण्यदायी बताया गया है।

चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'

शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

सावन का पहला प्रदोष व्रत, नियमों का पालन जरूरी

सावन का पहला प्रदोष व्रत, नियमों का पालन जरूरी

सरस्वती उपाध्याय
सावन का पहला प्रदोष व्रत 25 जुलाई 2022 को है। इस दिन सावन का दूसरा सोमवार भी है। दोनों ही तिथि शिव पूजा के लिए बहुत शुभ मानी जाती है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग बनेगा। ज्योतिष के अनुसार जो लोग प्रदोष व्रत की शुरुआत करना चाहते हैं, वो इस संयोग में शुरू कर सकते है। मान्यता है कि इस व्रत में शिव जी और मां पार्वती की आराधना करने से सारे दुख दूर हो जाते हैं। प्रदोष व्रत के नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है। आइए जानते हैं, इस दिन व्रत में क्या खाएं और क्या न खाएं ?

सावन सोम प्रदोष व्रत 2022 पूजा मुहूर्त...

सावन त्रयोदशी तिथि आरंभ- 25 जुलाई 2022 शाम 04:15 से

सावन त्रयोदशी तिथि समाप्त- 26 जुलाई 2022 शाम 06:4 तक

पूजा के लिए शुभ मुहूर्त- 25 जुलाई 2022 शाम 07:17 से रात्रि 09:21 तक

सोम प्रदोष व्रत में क्या न खाएं...

सोम प्रदोष व्रत के दिन व्रतधारी को पूजा का फल तभी मिलता है जब वो नियमों का पालन करे। ऐसे में इस दिन अन्न, चावल, लाल मिर्च और सादा नमक न खाएं।

सोम प्रदोष व्रत में क्या खाएं...

प्रदोष व्रत में शिव जी की पूजा सायं काल में की जाती है। ऐसे में स्नान के बाद पूजा कर व्रत का संकल्प लें और फिर दूध ग्रहण कर सकते हैं।
जो जातक शारीरिक तौर पर कमजोर हैं, वो खुद को हाइड्रेट रखें साथ ही फलों का सेवन करें। दिन में एक समय ही फलाहार करें।
प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा करने के बाद भोजन ग्रहण कर सकते हैं। मान्यता है कि प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का ही सेवन करें। क्योंकि, हरा मूंग पृथ्‍वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है।

शनिवार, 16 जुलाई 2022

श्रावण मास की संकष्टी चतुर्थी का व्रत आज रखें

श्रावण मास की संकष्टी चतुर्थी का व्रत आज रखें
सरस्वती उपाध्याय 
प्रतिमाह दो चतुर्थी होती है। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी चतुर्थी कहते हैं। 17 जुलाई 2022 को श्रावण मास की संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा। 
आओ जानते हैं 3 शुभ मुहूर्त, 5 मंत्र, पूजा विधि, कथा, महत्व सहित 4 उपाय।
3 शुभ मुहूर्त :

1. अभिजीत मुहूर्त : सुबह 11:37 से 12:31 तक।

2. विजय मुहूर्त : दोपहर : 02:20 से 03:14 तक।

3. गोधूलि मुहूर्त : शाम 06:37 से 07:01 तक।
5 मंत्र :

1. 'ॐ गं गणपतये नम:।'

2. 'श्री गणेशाय नम:'। ।
3. 'ॐ वक्रतुंडा हुं।' 
4. एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।। 
5. वक्रतुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ निर्विघ्नम कुरू मे देव, सर्वकार्येषु सर्वदा।
पूजन विधि
– संकष्टी चतुर्थी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करके लाल वस्त्र धारण करें।
– पूजन के समय अपने सामर्थ्यनुसार सोने, चांदी, पीतल, तांबा, मिट्टी अथवा सोने या चांदी से निर्मित शिव-गणेश प्रतिमा स्थापित करें। 
– संकल्प के बाद विघ्नहर्ता श्री गणेश का पूरे मनोभाव से पूजन करें।
– फिर अबीर, गुलाल, चंदन, सिंदूर, इत्र चावल आदि चढ़ाएं। 
– 'ॐ गं गणपतयै नम: मंत्र बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं। 
– अब श्री गणेश को मोदक का भोग लगाएं। 
– इस दिन मध्याह्न में गणपति पूजा में 21 मोदक अर्पण करते हुए, प्रार्थना के लिए निम्न श्लोक पढ़ें-

'विघ्नानि नाशमायान्तु सर्वाणि सुरनायक। कार्यं  सिद्धिमायातु पूजिते त्वयि धातरि।
– पूजन के समय आरती करें। गणेश चतुर्थी कथा का पाठ करें। गणेश स्तुति, श्री गणेश सहस्रनामावली, गणेश चालीसा, गणेश पुराण, श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक गणेश स्त्रोत का पाठ करें।
– अपनी शक्तिनुसार उपवास करें अथवा शाम के समय खुद भोजन ग्रहण करें।
महत्व- श्री गणेश विघ्नहर्ता है। विघ्नहर्ता यानी सभी दुखों को हरने वाले देवता। अत: उनकी कृपा से जीवन के सभी असंभव कार्य सहजता से पूर्ण हो जाते हैं। माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और श्री गणेश का पूजन करने तथा कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं। इस दिन विधिपूर्वक गणेश आराधना एवं पूजन करने से वे प्रसन्न होकर शुभाशीष देते हैं। इसीलिए चतुर्थी पर भगवान श्री गणेश को प्रसन्न करने के लिए यह व्रत किया जाता हैं। इस दिन मध्याह्न के समय में श्री गणेश का पूजन किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन गणेश उपासना से सुख-समृद्धि, धन-वैभव, ऐश्वर्य, संपन्नता, बुद्धि की प्राप्ति एवं वाणी में मधुरता आती है तथा गणेश के मंत्र जाप से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति भी होती है। चतुर्थी पर पूजन से पहले निम्न सामग्रियां एकत्रित कर लेना चाहिए।
1. श्री गणेश को सिंदूर अत्यंत प्रिय है, अत: चतुर्थी पर पूजन के समय उन्हें सिंदूर का तिलक करके खुद भी तिलक करें।
2. चतुर्थी के दिन शमी के पेड़ का पूजन करने से श्री गणेश प्रसन्न होते हैं। उन्हें शमी के पत्ते अर्पित करने से दुख, दरिद्रता दूर होती है।
3. चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश को गेंदे का फूल चढ़ाकर मोदक और गुड़ का नैवेद्य अर्पित करें। इस उपाय से आपको हर कार्य में सिद्धि प्राप्त होगी।
4. गणेश पूजा के बाद- 'ॐ गं गौं गणपतये विघ्न विनाशिने स्वाहा' मंत्र का 108 बार जाप करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं।
5. धनदाता गणेश स्तोत्र का पाठ करने से अपार धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है। खुद का घर खरीदने की तमन्ना है तो श्री गणेश पंचरत्न स्तोत्र का पाठ करें, लाभ होगा।
श्री गणेश चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव तथा माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। वहां माता पार्वती ने भगवान शिव से समय व्यतीत करने के लिए चौपड़ खेलने को कहा। शिव चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, परंतु इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा, यह प्रश्न उनके समक्ष उठा तो भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा- 'बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है इसीलिए तुम बताना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता।
उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का चौपड़ खेल शुरू हो गया। यह खेल 3 बार खेला गया और संयोग से तीनों बार माता पार्वती ही जीत गईं। खेल समाप्त होने के बाद बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो उस बालक ने महादेव को विजयी बताया। 
यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और क्रोध में उन्होंने बालक को लंगड़ा होने, कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी और कहा कि यह मुझसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है, मैंने किसी द्वेष भाव में ऐसा नहीं किया।
बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता ने कहा- 'यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे।' यह कहकर माता पार्वती शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं। 
एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं, तब नागकन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा से गणेश जी प्रसन्न हुए। उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा। उस पर उस बालक ने कहा- 'हे विनायक! मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देख प्रसन्न हों।'
तब बालक को वरदान देकर श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और कैलाश पर्वत पर पहुंचने की अपनी कथा उसने भगवान शिव को सुनाई। चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से विमुख हो गई थीं अत: देवी के रुष्ट होने पर भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई। 
तब यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया तथा दूर्वा, फूल और लड्डूओं से गणेशजी का पूजन-अर्चन किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से आ मिले। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्‍य के सारे कष्ट दूर होकर मनुष्य को समस्त सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।

शुक्रवार, 15 जुलाई 2022

भीमशंकर मंदिर का महत्व, जानिए पूजन विधि

भीमशंकर मंदिर का महत्व, जानिए पूजन विधि

सरस्वती उपाध्याय
भीमशंकर मंदिर भोरगिरि गांव खेड़ से 50 कि.मि. उत्तर-पश्चिम पुणे से 110 कि.मि में स्थित है। यह पश्चिमी घाट के सह्याद्रि पर्वत पर स्थित है। यहीं से भीमा नदी भी निकलती है। यह दक्षिण पश्चिम दिशा में बहती हुई रायचूर जिले में कृष्णा नदी से जा मिलती है। यहां भगवान शिव का प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग है। भीमशंकर महादेव काशीपुर में भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर और तीर्थ स्थान है। यहां का शिवलिंग काफी मोटा है। जिसके कारण इन्हें मोटेश्वर महादेव भी कहा जाता है। पुराणों में भी इसका वर्णन मिलता है। आसाम में शिव के द्वाद्श ज्योर्तिलिगों में एक भीमशंकर महादेव का मंदिर है। काशीपुर के मंदिर का उन्हीं का रूप बताया जाता है।

प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र भीमशंकर मंदिर महाराष्ट्र में पुणे से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित सह्याद्रि नामक पर्वत पर है। यह स्थान नासिक से लगभग 120 मील दूर है। यह मंदिर भारत में पाए जाने वाले बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। 3,250 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर का शिवलिंग काफी मोटा है। इसलिए इसे मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। इसी मंदिर के पास से भीमा नामक एक नदी भी बहती है, जो कृष्णा नदी में जाकर मिलती है। पुराणों में ऐसी मान्यता है कि जो भक्त श्रद्वा से इस मंदिर के प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद 12 ज्योतिर्लिगों का नाम जापते हुए इस मंदिर के दर्शन करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर होते हैं तथा उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुल जाते हैं।

भीमशंकर मंदिर का इतिहास...

भीमशंकर ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिवपुराण में मिलता है। शिवपुराण में कहा गया है कि पुराने समय में कुंभकर्ण का पुत्र भीम नाम का एक राक्षस था। उसका जन्म ठीक उसके पिता की मृ्त्यु के बाद हुआ था। अपनी पिता की मृ्त्यु भगवान राम के हाथों होने की घटना की उसे जानकारी नहीं थी। बाद में अपनी माता से इस घटना की जानकारी हुई तो वह श्री भगवान राम का वध करने के लिए आतुर हो गया। अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने अनेक वषरें तक कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर उसे ब्रह्मा जी ने विजयी होने का वरदान दिया। वरदान पाने के बाद राक्षस निरंकुश हो गया। उससे मनुष्यों के साथ साथ देवी-देवता भी भयभीत रहने लगे। धीरे-धीरे सभी जगह उसके आंतक की चर्चा होने लगी। युद्ध में उसने देवताओं को भी परास्त करना प्रारंभ कर दिया। उसने सभी तरह के पूजा पाठ बंद करवा दिए। अत्यंत परेशान होने के बाद सभी देव भगवान शिव की शरण में गए। भगवान शिव ने सभी को आश्वासन दिलाया कि वे इस का उपाय निकालेंगे। भगवान शिव ने राक्षस तानाशाह भीम से युद्ध करने की ठानी। लड़ाई में भगवान शिव ने दुष्ट राक्षस को राख कर दिया और इस तरह अत्याचार की कहानी का अंत हुआ। भगवान शिव से सभी देवों ने आग्रह किया कि वे इसी स्थान पर शिवलिंग रूप में विराजित हो़। उनकी इस प्रार्थना को भगवान शिव ने स्वीकार किया और वे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में आज भी यहां विराजित हैं।

मंदिर की संरचना...

भीमशंकर मंदिर नागर शैली की वास्तुकला से बनी एक प्राचीन और नई संरचनाओं का समिश्रण है। इस मंदिर से प्राचीन विश्वकर्मा वास्तुशिल्पियों की कौशल श्रेष्ठता का पता चलता है। इस सुंदर मंदिर का शिखर नाना फड़नवीस द्वारा 18वीं सदी में बनाया गया था। कहा जाता है कि महान मराठा शासक शिवाजी ने इस मंदिर की पूजा के लिए कई तरह की सुविधाएं प्रदान की। नाना फड़नवीस द्वारा निर्मित हेमादपंथि की संरचना में बनाया गया एक बड़ा घंटा भीमशंकर की एक विशेषता है। अगर आप यहां जाएं तो आपको हनुमान झील, गुप्त भीमशंकर, भीमा नदी की उत्पत्ति, नागफनी, बॉम्बे प्वाइंट, साक्षी विनायक जैसे स्थानों का दौरा करने का मौका मिल सकता है। भीमशंकर लाल वन क्षेत्र और वन्यजीव अभयारण्य द्वारा संरक्षित है जहां पक्षियों, जानवरों, फूलों, पौधों की भरमार है। यह जगह श्रद्धालुओं के साथ-साथ ट्रैकर्स प्रेमियों के लिए भी उपयोगी है। यह मंदिर पुणे में बहुत ही प्रसिद्ध है। यहां दुनिया भर से लोग इस मंदिर को देखने और पूजा करने के लिए आते हैं। भीमाशंकर मंदिर के पास कमलजा मंदिर है। कमलजा पार्वती जी का अवतार हैं। इस मंदिर में भी श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है।

भीमशंकर मंदिर जाने का समय...

यहां आने वाले श्रद्धालु कम से कम तीन दिन जरूर रुकते हैं। यहां श्रद्धालुओं के लिए रुकने के लिए हर तरह की व्यवस्था की गई है। भीमशंकर से कुछ ही दूरी पर शिनोली और घोड़गांव है जहां आपको हर तरह की सुविधा मिलेगी। यदि आपको भीमशंकर मंदिर की यात्रा करनी है तो अगस्त और फरवरी महीने की बीच जाएं। वैसे आप ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर किसी भी समय यहां आ-जा सकते हैं। वैसे जिन्हें ट्रैकिंग पसंद है उन्हें मानसून के दौरान बचने की सलाह दी जाती है।

कैसे पहुंचें ?

आप यहां सड़क और रेल मार्ग के जरिए आसानी से पहुंच सकते हैं। आप शिवाजीनगर, पुणे से राज्य परिवहन की बसें प्राप्त कर सकते हैं। किराया रु। 155 है और पुणे से वहाँ पहुँचने में लगभग 4-5 घंटे लगते हैं। महाशिवरात्रि या प्रत्येक माह में आने वाली शिवरात्रि को यहां पहुंचने के लिए विशेष बसों का प्रबन्ध भी किया जाता है।

पूजन विधि...

पूजन के 16 उपचार होते हैं, जैसे 1. पांच उपचार, 2. दस उपचार, 3. सोलह उपचार।
1. पांच उपचार : गंध, पुष्प, धूप, दीप और नेवैद्य।
2. दस उपचार : पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र निवेदन, गंध, पुष्प, धूप, दीप और नेवैद्य।
 
3. सोलह उपचार : पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बुल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार। पूजन के अंत में सांगता सिद्धि के लिए दक्षिणा भी चढ़ाना चाहिए।
 
आप जिस भी उपचार के माध्यम से पूजा करना चाहते हैं करें।
 
सोमवार की पूजा...

1. सोमवार के व्रत में भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है।
 
2. सोमवार के दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें।
 
3. उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति स्थापित कर उनका जलाभिषेक करें।
 
4. फिर शिवलिंग पर दूध, फूल, धतूरा आदि चढ़ाएं। मंत्रोच्चार सहित शिव को सुपारी, पंच अमृत, नारियल एवं बेल की पत्तियां चढ़ाएं। माता पार्वती जी को सोलह श्रृंगार की चीजें चढ़ाएं।
 
5. इसके बाद उनके समक्ष धूप, तिल के तेल का दीप और अगरबत्ती जलाएं।
 
6. इसके बाद ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करें।

7. पूजा के अंत में शिव चालीसा और शिव आरती का पाठ करें।
 
8. पूजा समाप्त होते ही प्रसाद का वितरण करें।
 
9. शिव पूजा के बाद सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक है।
 
10. व्रत करने वाले को दिन में एक बार भोजन करना चाहिए।
 
11. दिन में दो बार (सुबह और सायं) भगवान शिव की प्रार्थना करें।
 
12. संध्याकाल में पूजा समाप्ति के बाद व्रत खोलें और सामान्य भोजन करें।
 
पूजा का कॉमन तरीका...
 
1. पूजन में शुद्धता व सात्विकता का विशेष महत्व है, इस दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान से निवृत हो भगवान का स्मरण करते हुए भक्त व्रत एवं उपवास का पालन करते हुए भगवान का भजन व पूजन करते हैं।
 
2. नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद अपने ईष्ट देव या जिसका भी पूजन कर रहे हैं उन देव या भगवान की मूर्ति या चि‍त्र को लाल या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें। मूर्ति को स्नान कराएं और यदि चित्र है तो उसे अच्छे से साफ करें।
 
3. पूजन में देवताओं के सामने धूप, दीप अवश्य जलाना चाहिए। देवताओं के लिए जलाए गए दीपक को स्वयं कभी नहीं बुझाना चाहिए।
 
4. फिर देवताओं के मस्तक पर हलदी कुंकू, चंदन और चावल लगाएं। फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं। फिर उनकी आरती उतारें। पूजन में अनामिका अंगुली (छोटी उंगली के पास वाली यानी रिंग फिंगर) से गंध (चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी) लगाना चाहिए।
 
5. पूजा करने के बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है। प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है।

 6. अंत में आरती करें। जिस भी देवी या देवता के तीज त्योहार पर या नित्य उनकी पूजा की जा रही है तो अंत में उनकी आरती करने नैवेद्य चढ़ाकर पूजा का समापन किया जाता है।
 
7. घर में या मंदिर में जब भी कोई विशेष पूजा करें तो अपने इष्टदेव के साथ ही स्वस्तिक, कलश, नवग्रह देवता, पंच लोकपाल, षोडश मातृका, सप्त मातृका का पूजन भी किया जाता। लेकिन विस्तृत पूजा तो पंडित ही करता है अत: आप ऑनलाइन भी किसी पंडित की मदद से विशेष पूजा कर सकते हैं। विशेष पूजन पंडित की मदद से ही करवाने चाहिए, ताकि पूजा विधिवत हो सके।

सोमवार, 25 अप्रैल 2022

हिंदू धर्म में 'वरुथिनी एकादशी' का महत्व, जानिए

हिंदू धर्म में 'वरुथिनी एकादशी' का महत्व, जानिए   

सरस्वती उपाध्याय 

हिंदू धर्म में प्रचलित वरुथिनी एकादशी श्री हरिविष्णु को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि एकादशी का व्रत करने से कई वर्षों के तप और कन्या दान करने के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, यह व्रत रखने से मनुष्य के सभी दुख दूर हो जाते हैं और सुखों की प्राप्ति होती है। वरुथिनी एकादशी का हिन्दू धर्म में खास महत्व है। वरुथिनी एकादशी पवित्र बैसाख महीने में आती है, तो आइए भक्त को सभी दुखों से मुक्ति दिलाने वाली वरुथिनी एकादशी व्रत की पूजा-विधि और महत्व के बारे में बताते हैं।

जानें, वरुथिनी एकादशी के बारे में...

हिंदू धर्म में प्रचलित वरुथिनी एकादशी श्री हरिविष्णु को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि एकादशी का व्रत करने से कई वर्षों के तप और कन्या दान करने के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, यह व्रत रखने से मनुष्य के सभी दुख दूर हो जाते हैं और सुखों की प्राप्ति होती है। इस साल वरुथिनी एकादशी 26 अप्रैल को पड़ रही है। दरिद्रता, दुख और दुर्भाग्य दूर करने हेतु एकादशी तिथि पर आप भी इस व्रत कथा का श्रवण कर सकते हैं।

वरुथिनी एकादशी है विशेष...

वरुथिनी एकादशी व्रत से प्राप्त होने वाला फल विशेष होता है। यह फल सूर्य ग्रहण के दौरान किए गए दान के समान होता है। इस व्रत के प्रभाव से सभी दुखी प्राणियों को सुख मिलता है तथा राजा को स्वर्ग प्राप्त होता है। वरुथिनी एकादशी में वरुथिनी शब्द संस्कृत भाषा के वरूथिन से बना हुआ है, जिसका अर्थ होता है प्रतिरक्षक या कवच। पंडितों की मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी व्रत करने से विष्णु भगवान भक्तों की सभी प्रकार के संकट से रक्षा करते हैं।

वरुथिनी एकादशी से जुड़ी कथा...

प्राचीन काल में वरुथिनी एकादशी से जुड़े एक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार नर्मदा नदी के किनारे मांधाता नाम के राजा राज्य करते थे। राजा मांधाता बहुत दानी और तपस्वी स्वभाव के थे। एक बार वह राजा जंगल में तपस्या कर रहे थे। उसी समय एक भालू आया और वह राजा के पैर खाने लगा। लेकिन राजा तपस्या में लीन थे। इसलिए उन्होंने भालू को कुछ नहीं कहा और विष्णु भगवान को याद करने लगे। इस प्रकार विष्णु भगवान प्रकट हुए और उन्होंने राजा को भालू से बचा लिया। लेकिन जब तक विष्णु भगवान ने राजा को बचाया तब तक भालू ने राजा के पैरो को बहुत जख्मी कर दिया था। राजा मांधता के पैरों को बहुत नुकसान हो गया। तब विष्णु भगवान ने राजा को वृंदावन जाकर वरुथिनी एकादशी करने के कहा। वरुथिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से राजा के पैर पहले की तरह ठीक हो गए। 

'वरुथिनी एकादशी' का महत्व...

हिंदू धर्म में वरुथिनी एकादशी का खास महत्व होता है। इस एकादशी को सौभाग्य और पुण्य प्रदान करने वाला कहा गया है। इस व्रत को करने से सारे पाप और कष्ट मुक्त हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी व्रत का प्रभाव कन्या दान से मिलने वाले फल के समान होता है। हिन्दू धर्म में वरुथिनी एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है। इसलिए वरुथिनी एकादशी व्रत में सावधानी बरतें। इस दिन व्रती कई प्रकार के नियमों का पालन करना चाहिए। इसमें व्यक्ति सत्य बोलें और झूठ से बचें। एकादशी के दिन क्रोध न करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। साथ ही कांसे के बर्तन में फलाहार न करें। व्रत के दिन जुआ नहीं खेलना चाहिए। इसके अलावा एकादशी के दिन पान नहीं खाएं और दातुन का प्रयोग न करें। जो भक्त एकादशी का व्रत नहीं करते हैं, उऩ्हें एकादशी के दिन चावल नहीं खाने चाहिए।

'एकादशी व्रत' की पूजा-विधि...

वरूथिनी एकादशी की पूजा बहुत विशेष होती है। इस दिन भगवान मधुसूदन और विष्णु के वराह अवतार की पूजा होती है। एकादशी व्रत में उपवास तो एकादशी के दिन रखा जाता है। लेकिन दशमी की रात से ही सावधानीपूर्वक व्रती को भोजन त्याग देना चाहिए। साथ ही दशमी के दिन से ही व्रत के नियमों का पालन प्रारम्भ कर देना चाहिए। इसके लिए दशमी के दिन मसूर की दाल और बैंगन का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा दशमी के दिन केवल एक बार ही भोजन ग्रहण करें। दशमी के दिन भोजन हमेशा सात्विक करें। वरुथिनी एकादशी के दिन सुबह जल्‍दी उठें। प्रातः नित्य कर्म से निवृत हो कर घर की साफ-सफाई करें और स्नान कर साफ कपड़े पहनें। उसके बाद व्रत करने का संकल्प करें। घर के मंदिर की साफ-सफाई करें। उसके बाद विष्णु भगवान के वराह अवतार की पूजा करें। पूजा के दौरान वरुथिनी एकादशी व्रत की कथा पढ़े और प्रसाद चढ़ाकर भगवान से प्रार्थना करें। एकादशी की रात में सोएं नहीं बल्कि रात्रि जागरण में कीर्तन करें। पंडितों का मानना है कि द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन करा कर दान दें। उसके बाद पारण करें।

रविवार, 24 अप्रैल 2022

सलाखों में रहकर 200 बंदी इबादत में मसरूफ

सलाखों में रहकर 200 बंदी इबादत में मसरूफ
 
आदर्श श्रीवास्तव
लखीमपुर खीरी। अपने रब को याद करने के लिए कोई स्थान कोई जगह चिन्हित नहीं होती है। अल्लाह की इबादत के लिए कोई जगह नियत नहीं है हर जगह और हर समय इंसान इबादत कर सकता है। रमजान के पवित्र महीने में जेल की सलाखों में रहकर भी 200 बंदी इबादत में मसरूफ हैं। पहले दिन से ही लगातार रोजा रख रहे हैं।
जेल प्रशासन भी जेल मैन्युअल के मुताबिक रोजदार बंदियों को इफ्तार और सहरी की व्यवस्था कर रहा है। मौजूद समय में 200 बंदी पहले दिन से रोजा रख रहे हैं और अल्लाह की इबादत में मशगूल हैं। रोजा रखने वाले सभी बंदियों को शाम होते ही इफ्तार और सहरी का सामान दे दिया जाता है बंदी अपनी-अपनी बैरकों में सामूहिक रूप से रोजा इफ्तार करते हैं और नमाज भी अदा करते हैं।सुबह सहरी के समय सभी रोजदार बन्दियों को जगा दिया जाता है। बंदी उठकर सहरी करते हैं रोजा रखने वाले बंदी जेल में रहकर नमाज अदा करते हैं और कुरआन की तिलावत भी करते हैं। जेल अधीक्षक पीपी सिंह ने बताया कि रोजा रखने वाले बंदियों को इफ्तार व सहरी का सामान दिया जाता है। रोजादार बंदियों का पूरा ख्याल भी रखा जा रहा है।

बंदी रोजेदारों को ये मिलता है इफ्तार व सहरी
रोजदार बंदियों को ब्रेड, दो केला, नींबू, दो खजूर, 45 ग्राम चीनी, शर्बत, सौ ग्राम दही, दो बिस्कुट व एक समय का पूरा खाना दिया जा रहा है।

हाफिज आसिम 14 वर्षों से कैदियों को पढ़ा रहे हैं नमाज़

लखीमपुर मोहल्ला राजापुर के निवासी हाफिज आसिम 14 बरसो से जेल जेल के कैदियों की इमामत कर रहे हैं 2008 में इनके वालिद क़ासिम हाशमी का देहांत होने के बाद से उनके बड़े बेटे हाफ़िज़ आसिम हाशमी क़ैदियों की इमामत कर रहे हैं। उन्होंने ने बताया कि अलविदा की नमाज़,ईद उल फितर की नमाज़,और ईद उल अज़हा की नमाज़ की इमामत वो ज़िला कारागार में बन्द मुस्लिम क़ैदियों की इमामत करते हैं और उनको ऐसे अहम मौके पर कुछ दीनी बात भी बताते हैं। 

उन्होंने बताया कि पिछले 2 वर्षों में कोरोना की बीमारी की वजह से बाहरी लोगों का आना जाना बंद था जिसकी वजह से 2 वर्षों से वह नमाज पढ़ाने के लिए नहीं गए हैं लेकिन इंतजा मियां का अगर कोई निमंत्रण पत्र आता है तो वह नमाज पढ़ाने के लिए जरूर जाएंगे। मालूम हो कि इनके वालिद हाफिज कासिम को सुन्नी अंजुमन इस्लमियाँ ने रखा था जिन्होंने लगभग 17 साल इमामत करते रहे 2008 में उनका इंतक़ाल हो जाने की वजह से उनके बड़े बेटे हाफिज आसिम हाशमी लगातार 14बरसो से अलविदा ,ईद उल फितर,ईद उल अजहा की नमाज़ की इमामत कर रहे हैं।

गुरुवार, 24 मार्च 2022

2 अप्रैल से शुरू होकर 11 तक रहेंगे चैत्र 'नवरात्रि'

2 अप्रैल से शुरू होकर 11 तक रहेंगे चैत्र 'नवरात्रि'    

सरस्वती उपाध्याय                
अप्रैल की 2 तारीख, शुक्रवार से चैत्र नवरात्रि शुरू हो जाएंगे। इन चैत्र नवरात्रि के इन 9 दिनों में मां दुर्गा के 9 अलग अलग रूपों की पूजा की जाती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि साल में 4 नवरात्रि आते हैं, जिनमें चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि का अधिक महत्व बताया गया है। इस बार चैत्र नवरात्रि 2 अप्रैल से शुरू होकर 11 अप्रैल तक रहेंगे।
नवरात्रि में कुछ कार्य करने की मनाही होती है। बताया जाता है कि अगर इन निम्न कार्यों को किया जाता है तो बदकिस्मत रास्ता पकड़ लेती है, जिससे जीवन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। नवरात्रि के दौरान इन कार्यों को करने से बचना चाहिए‌।
जैसे.....।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, किसी भी पवित्र समारोह या त्योहार के दौरान शराब के सेवन से पूरी तरह बचना चाहिए। चैत्र नवरात्रि देवी मां की आराधना के लिए सबसे पवित्र माने जाते हैं, इसलिए नवरात्रि पूजा के 9 दिनों के दौरान शराब का सेवन नहीं करना चाहिए।
नवरात्रि के दौरान किसी से भी अशुभ या अपशब्द बोलने से बचना चाहिए। इसका कारण है कि नवरात्रि देवी की भक्ति और आराधना करने का समय होता है। अगर इस दौरान गलत शब्दों का प्रयोग करते हैं, तो देवी मां क्रोधित हो सकती हैं। इसलिए ऐसा करने से बचें।
नाखून काटना।
नवरात्रि के 9 दिनों के दौरान नाखून काटने की मनाही होती है। आपने देखा भी होगा कि कई लोग नवरात्रि शुरू होने के पहले ही नाखून काट लेते हैं, ताकि 9 दिनों में नाखून काटने की जरूरत न पड़े। कहा जाता है कि ऐसा करने से देवी क्रोधित हो जाती हैं और फिर उनके क्रोध का सामना करना पड़ता है। इसलिए ऐसा करने से बचें।
नवरात्रि के दौरान कटिंग और शेविंग कराने से बचें। कहा जाता है कि नवरात्रि के दौरान बाल कटवाने से भविष्‍य में सफल होने की संभावना कम हो जाती हैं। इसलिए 9 दिनों तक बाल और बियर्ड कटवाने से बचें।
नॉनवेज खाना।
9 दिनों में देवी दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। इन 9 दिनों तक देवी भक्त उपवास रखते हैं और देवी की पूजा करते हैं। इसलिए नवरात्रि के दौरान सभी प्रकार के नॉनवेज फूड खाने से बचना चाहिए।

सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

चतुर्दशी को मनाया जाएगा 'महाशिवरात्रि' पर्व, जानिए

चतुर्दशी को मनाया जाएगा 'महाशिवरात्रि' पर्व, जानिए   

सरस्वती उपाध्याय           
'महाशिवरात्रि' भारतीयों का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। माघ कृष्ण-पक्ष त्रयोदशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। लेकिन, इस बार कृष्ण-पक्ष की तिथि चतुर्दशी को 'महाशिवरात्रि' पर्व मनाया जाएगा। यानी कि 1 मार्च को 'महाशिवरात्रि' पर्व मनाया जाएगा।
माना जाता है कि सृष्टि का प्रारम्भ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। भारत सहित पूरी दुनिया में महाशिवरात्रि का पावन पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।

कश्मीर शैव मत में इस त्यौहार को हर-रात्रि और बोलचाल में 'हेराथ' या 'हेरथ' भी कहा जाता हैं।

महाशिवरात्रि से सम्बन्धित कई पौराणिक कथाएँ है।

समुद्र मंथन: समुद्र मंथन अमर अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित था, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था। हलाहल विष में ब्रह्माण्ड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कण्ठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित हो उठे थे और उनका गला बहुत नीला हो गया था। इस कारण से भगवान शिव 'नीलकंठ' के नाम से प्रसिद्ध हैं। उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। इस प्रकार, भगवान भगवान शिव के चिन्तन में एक सतर्कता रखी। शिव का आनन्द लेने और जागने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाने। जैसे सुबह हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने दुनिया को बचाया। तब से इस दिन, भक्त उपवास करते है।

शिकारी कथा: एक बार पार्वती ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।'

शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।

पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।

कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूँ। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिन्ता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊँगी। इस समय मुझे शिकारी हँसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरन्त लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।

मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्षपर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृगविनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलम्ब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊँगा।

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।' उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।

थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किन्तु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवम् सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवम् दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।

अनुष्ठान: गेंदे के फूलों की अनेक प्रकार की मालायें, जो शिव को चढ़ाई जाती हैं। इस अवसर पर भगवान शिव का अभिषेक अनेकों प्रकार से किया जाता है। जलाभिषेक : जल से और दुग्‍धाभिषेक : दूध से। बहुत जल्दी सुबह-सुबह भगवान शिव के मन्दिरों पर भक्तों, जवान और बूढ़ों का ताँता लग जाता है वे सभी पारम्परिक शिवलिंग पूजा करने के लिए जाते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं। भक्त सूर्योदय के समय पवित्र स्थानों पर स्नान करते हैं जैसे गंगा, या (खजुराहो के शिव सागर में) या किसी अन्य पवित्र जल स्रोत में। यह शुद्धि के अनुष्ठान हैं, जो सभी हिन्दू त्योहारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। पवित्र स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहने जाते हैं, भक्त शिवलिंग स्नान करने के लिए मन्दिर में पानी का बर्तन ले जाते हैं महिलाओं और पुरुषों दोनों सूर्य, विष्णु और शिव की प्रार्थना करते हैं मन्दिरों में घण्टी और "शंकर जी की जय" ध्वनि गूँजती है। भक्त शिवलिंग की तीन या सात बार परिक्रमा करते हैं और फिर शिवलिंग पर पानी या दूध भी डालते हैं। हालाकि, इन सभी अनुष्ठान का वर्णन हमारे पवित्र शास्त्रों में कहीं पर भी नही है, जिससे यह शास्त्रानुकूल साधना नही है।शिव पुराण के अनुसार, महाशिवरात्रि पूजा में छह वस्तुओं को अवश्य शामिल करना चाहिए।

शिव लिंग का पानी, दूध और शहद के साथ अभिषेक। बेर या बेल के पत्ते जो आत्मा की शुद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं।
सिंदूर का पेस्ट स्नान के बाद शिव लिंग को लगाया जाता है। यह पुण्य का प्रतिनिधित्व करता है।
फल, जो दीर्घायु और इच्छाओं की सन्तुष्टि को दर्शाते हैं।
जलती धूप, धन, उपज (अनाज)।
दीपक जो ज्ञान की प्राप्ति के लिए अनुकूल है;
और पान के पत्ते जो सांसारिक सुखों के साथ सन्तोष अंकन करते हैं।
अभिषेक में निम्न वस्तुओं का प्रयोग नहीं किया जाता है।
केतकी के फूल।

भगवान शिव की अन्य पारंपरिक पूजा...
ज्योतिर्लिंग: बारह ज्योतिर्लिंग (प्रकाश के लिंग) जो पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र धार्मिक स्थल और केन्द्र हैं। वे स्वयम्भू के रूप में जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है "स्वयं उत्पन्न"। बारह स्‍थानों पर बारह ज्‍योर्तिलिंग स्‍थापित हैं।

1. सोमनाथ यह शिवलिंग गुजरात के काठियावाड़ में स्थापित है।

2. श्री शैल मल्लिकार्जुन मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित है श्री शैल मल्लिकार्जुन शिवलिंग।

3. महाकाल उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहाँ शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था।

4. ॐ कारेश्वर मध्यप्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदाने देने हुए यहां प्रकट हुए थे शिवजी। जहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया।

5. नागेश्वर गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।

6. बैजनाथ बिहार के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग।

7. भीमाशंकर महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग।

8. त्र्यंम्बकेश्वर नासिक (महाराष्ट्र) से 25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग।

9. घृष्णेश्वर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गाँव में स्थापित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग।

10. केदारनाथ हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग। हरिद्वार से 150 पर मिल दूरी पर स्थित है।

11. काशी विश्वनाथ बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग।

12. रामेश्वरम्‌ त्रिचनापल्ली (मद्रास) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग।

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

अचला सप्तमी को मनाई जाएगी सूर्य जयंती

अचला सप्तमी को मनाई जाएगी सूर्य जयंती

सरस्वती उपाध्याय 

सनातन धर्म के अनुसार हर एक दिन किसी ना किसी भगवान को समर्पित माना जाता है। हर एक देवी-देवता को जो भी दिन समर्पित हैं, उनको भक्त भी खास रूप से पूजा-अर्चना के साथ मनाते हैं। ऐसे में माघ का मास पूजा-पाठ के लिए काफी खास माना जाता है। हिंदू कैलेंडर के आधार पर माघ शुक्ल सप्तमी तिथि को अचला सप्तमी का व्रत रखा जाता है। अचला सप्तमी रथ सप्तमी या सूर्य जयंती भी कहते हैं। इस दिन सूर्य देव की पूजा करते हैं और उनको जल अर्पित करते हैं। कहते हैं कि इस दिन अगर भक्त पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ पूजा करते हैं तो सूर्यदेव की कृपा से रोग दूर होता है, धन-धान्य में वृद्धि होती है।

इस दिन पूजा करने से जीवन के हर प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। माना जाता है कि माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सूर्य देव अपने सात घोड़े वाले रथ पर सवार होकर प्रकट हुए थे और पूरी सृष्टि को प्रकाशित किया था। जिस कारण से ही हर साल माघ मास ही शुक्ल सप्तमी को अचला सप्तमी, रथ सप्तमी या सूर्य जयंती के रूप में मनाया जाता है। तो आइए जानते हैं कि साल 2022 में अचला सप्तमी कब है और पूजा मुहूर्त क्या है ?

हिन्दू कैलेंडर के के अनुसार, माघ मास की शुक्ल सप्तमी की तिथि 07 फरवरी को प्रात: काल 04 बजकर 37 मिनट से शुरु हो रही है, जो कि 08 फरवरी को सुबह 06 बजकर 15 मिनट तक मान्य होगी। इसके साथ ही सूर्य देव का उदय 07 फरवरी को सप्तमी तिथि में ही हो रहा है, इस कारण से अचला सप्तमी को 07 फरवरी दिन सोमवार को मनाया जाएगा।

इसके साथ ही बता दें कि अचला सप्तमी के दिन सूर्य देव की पूजा का महत्व है। सूर्य पूजा का शुभ मुहूर्त प्रात: 05:22 बजे से लेकर प्रात: 07:06 बजे तक है। इस दिन प्रात: स्नान करके सूर्य देव को जल में लाल फूल, लाल चंदन, अक्षत्, चीनी आदि मिलाकर ओम सूर्य देवाय नमः मंत्र का उच्चारण करते हुए अर्पित करें।

अचला सप्तमी को सूर्यदेव को खुश करने के लिए भक्त खास रूप से व्रत रखते हैं। आपको बता दें कि इस दिन सूर्य देव को प्रसन्न करके आप प्रभु से उत्तम स्वास्थ्य एवं धन धान्य का आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना करें। सूर्य देव की कृपा से संतान की प्राप्ति भी होती है। माना जाता है कि इस दिन सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए आप आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। कहा जाता है कि खुद प्रभु श्रीराम ने सूर्य देव की पूजा के समय इसका अनन्त फल देने का पाठ किया था।


बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

माघ माह की गुप्त नवरात्रि, जानिए पूजा मंत्र

माघ माह की गुप्त नवरात्रि, जानिए पूजा मंत्र     

सरस्वती उपाध्याय            हिंदू पंचांग के अनुसार एक वर्ष में कुल मिलाकर चार बार नवरात्रि आती हैं। जिनमें से दो प्रत्यक्ष नवरात्रि होता है। जो कि चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्र हैं, जिनके बारे में सभी लोग जानते ही हैं। जबकि दो बार गुप्त नवरात्रि आती हैं। साल में दो बार आने वाले नवरात्रि में से एक माघ माह में आने वाली गुप्त नवरात्रि हैं। इस बार माघ माह की गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 2 फरवरी से हो रही है। जिसका समापन 11 फरवरी होगा। प्रत्यक्ष नवरात्रि में मां के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है, जबकि वहीं गुप्त नवरात्र में 10 महाविद्या की साधना की जाती है। ऐसे में आज हम आपको गुप्त नवरात्रि की दस महाविद्याओं और उन देवियों के मंत्र के बारे में बताने जा रहे हैं।

दस महाविद्याओं के लिए पूजा मंत्र

1. देवी काली: मंत्र – ‘ॐ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहाः'।

2. तारा देवी: मंत्र- ‘ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट'।

3. त्रिपुर सुंदरी देवी: मंत्र – ‘ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः'।

4. देवी भुवनेश्वरी: मंत्र – ‘ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमः'।

5. देवी छिन्नमस्ता: मंत्र- ‘श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा:'।

6. त्रिपुर भैरवी देवी: मंत्र- ‘ॐ ह्रीं भैरवी कलौं ह्रीं स्वाहा:'।

7. धूमावती माता: मंत्र- ‘ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा:'।

8. बगलामुखी माता: मंत्र – ‘ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ॐ नम:'।

9. मातंगी देवी: मंत्र- ‘ॐ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:'।

10. देवी कमला: मंत्र- ‘ॐ हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा:'।

शनिवार, 29 जनवरी 2022

धन-धान्य, सुख से परिपूर्ण करने वाली तिल द्वादशी

धन-धान्य, सुख से परिपूर्ण करने वाली तिल द्वादशी
सरस्वती उपाध्याय
तिल द्वादशी व्रत माघ माह की द्वादशी को किया जाता है। इस दिन तिल से भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। पवित्र नदियों में स्नान व दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन प्रात: काल नित्यकर्म से निवृत होकर भगवान विष्णु जी का पूजन किया जाता है। प्रातः काल संकल्प के साथ षोड़शोपचार या पंचोपचार विधि से ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करते हुए पूजन किया जाना चाहिए। तिल द्वादशी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके सूर्य देव को नमस्कार करना चाहिए। तांबे के पात्र में सुगंध, अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए अर्घ्य देना चाहिए। इस व्रत को भगवान श्री कृष्ण स्वयं का स्वरूप कहा है, जो व्यक्ति को जन्मांतरों के बंधन से मुक्त कर देता है और वैकुंठ प्राप्ति का साधक बनता है। यह व्रत समर्पित है श्री विष्णु जी को और उनकी कृपा प्राप्त करने हेतु इसे किया जाता है। तिल द्वादशी व्रत सभी प्रकार का सुख वैभव देने वाला और कलियुग के समस्त पापों का नाश करने वाला है। मन के अंधकार को दूर करते हुए यह जीवन में प्रकाश का संचार करता है। इस व्रत में ब्राह्मण को तिलों का दान, पितृ तर्पण, हवन, यज्ञ, आदि का बहुत ही महत्व है।
तिल द्वादशी का महत्व –तिल द्वादशी का व्रत के दिन स्वच्छ आसन पर बैठकर भगवान मधुसुदन की पूजा करें, पूजा के दौरान भगवान को धूप व दीप दिखाकर तत्पश्चात फल, फूल, चावल, रौली, मौली, पंचामृत से स्नान आदि कराने के पश्चात भगवान को तिल से बनी वस्तुओं या तिल तथा गुड़ से बने प्रसाद का भोग लगाना चाहिए। इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को पीले वस्त्र धारण करने चाहिए। पूजा करते समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए, भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद मंत्र जाप 108 बार करना चाहिए। संध्या समय कथा सुनने के पश्चात भगवन की आरती उतारें। इस दिन जो व्यक्ति तिल द्वादशी का व्रत रखते हैं और जो व्यक्ति व्रत नहीं रखते हैं वह सभी अपनी क्षमता के अनुसार गरीब लोगों को दान अवश्य करें, तो शुभ फलों को पाते हैं। इस प्रकार विधिवत भगवान श्री विष्णु का पूजन करने से मानसिक शान्ति मिलने के साथ आपके घर-परिवार के सुख व समृद्धि में वृद्धि होती है।

तिल द्वादशी का व्रत, जिसमें पूजा, सदाचार, शुद्ध आचार-विचार पवित्रता आदि का विशेष महत्व है। यह व्रत धन, धान्य व सुख से परिपूर्ण करने वाला है रोगों को नष्ट कर आरोग्य को बढ़ाने वाला है, जिसे तिल द्वादशी के नाम से जाना जाता है। तिल द्वादशी को श्रद्धा व उल्लास के साथ किया जाता है। इसके व्रत से मानव जीवन के समस्त रोग आदि छूट जाते हैं और अंत मे वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। द्वादशी का व्रत एकादशी की भाँति पवित्रता व शांत चित से श्रद्धा पूर्ण किया जाता है। यह व्रत मनोवांछित फलों को देने वाला और भक्तों के कार्य सिद्ध करने वाला होता है।

बुधवार, 19 मई 2021

सप्तमी को गंगा स्वर्ग से शिव की जटाओं में पहुँची

गंगा सप्तमी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को कहा जाता है। पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार वैशाख मास की इस तिथि को ही माँ गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शिव की जटाओं में पहुँची थीं। इसलिए इस दिन को 'गंगा सप्तमी' के रूप में मनाया जाता है। कहीं-कहीं पर इस तिथि को 'गंगा जन्मोत्सव' के नाम से भी पुकारा जाता है। गंगा को हिन्दू मान्यताओं में बहुत ही सम्मानित स्थान दिया गया है। पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार जब कपिल मुनि के श्राप से सूर्यवंशी राजा सगर के 60 हज़ार पुत्र जल कर भस्म हो गए, तब उनके उद्धार के लिए राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या की। वे अपनी कठिन तपस्त्या से माँ गंगा को प्रसन्न करने में सफल रहे और उन्हें धरती पर लेकर आए। गंगा के स्पर्श से ही सगर के 60 हज़ार पुत्रों का उद्धार हो सका। गंगा को 'मोक्षदायिनी' भी कहा जाता है। विभिन्न अवसरों पर गंगा नदी के तट पर मेले और गंगा स्नान आदि के आयोजन होते हैं। इनमें 'कुंभ पर्व', 'गंगा दशहरा', 'पूर्णिमा', 'व्यास पूर्णिमा', 'कार्तिक पूर्णिमा', 'माघी पूर्णिमा', 'मकर संक्रांति' व 'गंगा सप्तमी' आदि प्रमुख हैं।

डीएम ने विभागीय अधिकारियों के साथ बैठक की

डीएम ने विभागीय अधिकारियों के साथ बैठक की पंकज कपूर  नैनीताल/हल्द्वानी। उच्च न्यायालय उत्तराखंड द्वारा दिए गए निर्देशों के क्रम में नैनीताल ...