स्ट्रोक: वैक्सीन विकसित करने का दावा किया
सुनील श्रीवास्तव
बीजिंग। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए चीन के वैज्ञानिकों ने स्ट्रोक और दिल के दौरे जैसी घातक बीमारियों की रोकथाम के लिए एक संभावित वैक्सीन विकसित करने का दावा किया है। यह वैक्सीन एथेरोस्क्लेरोसिस यानी धमनियों में फैटी प्लाक के निर्माण को रोकने में कारगर हो सकती है, जो रक्त के थक्के बनने, स्ट्रोक और हार्ट अटैक जैसी स्थितियों के लिए जिम्मेदार मानी जाती है।
क्या है एथेरोस्क्लेरोसिस ?
एथेरोस्क्लेरोसिस एक ऐसी स्थिति है, जिसमें शरीर की धमनियों में वसा, कोलेस्ट्रॉल और अन्य पदार्थों के जमाव के कारण प्लाक बनता है। यह प्लाक धीरे-धीरे धमनियों को संकीर्ण कर देता है, जिससे रक्त का प्रवाह बाधित होता है। इसके कारण व्यक्ति को स्ट्रोक, एन्यूरिज्म और दिल के दौरे जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। डॉक्टरों के अनुसार, यह एक सूजन संबंधी बीमारी है, जिसे शरीर की जन्मजात और अनुकूली प्रतिरक्षा प्रणाली नियंत्रित करने का प्रयास करती है। अब तक इस स्थिति का निदान स्कैनिंग के जरिए किया जाता था और इलाज के लिए एंजियोप्लास्टी जैसी जटिल सर्जिकल प्रक्रियाएं अपनाई जाती थीं, जिसमें स्टेंट के माध्यम से अवरुद्ध धमनियों को फिर से खोला जाता है। लेकिन चीन की नई वैक्सीन इस गंभीर बीमारी को रोकने के लिए एक गैर-आक्रामक विकल्प के रूप में सामने आई है।
वैश्विक स्तर पर हृदय रोगों की भयावह स्थिति
हृदय रोग आज के समय में दुनिया भर में मृत्यु के सबसे बड़े कारणों में से एक बन चुका है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार, हर 34 सेकंड में एक व्यक्ति हृदय रोग के कारण जान गंवा देता है। ऐसे में यदि दिल के दौरे और स्ट्रोक जैसी जानलेवा स्थितियों को रोकने के लिए कोई प्रभावी वैक्सीन विकसित हो जाती है, तो यह चिकित्सा क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम होगा और लाखों जानें बचाई जा सकेंगी।
कैसे काम करती है वैक्सीन ?
चीन की नानजिंग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह वैक्सीन नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन का हिस्सा है। इसमें बताया गया है कि यह वैक्सीन चूहों में एथेरोस्क्लेरोसिस के विकास को कम करने में सक्षम रही है। वैज्ञानिकों ने बताया कि यह वैक्सीन विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए नैनोकणों का उपयोग करती है। इनमें 'p210' नामक एक एंटीजन को छोटे आयरन ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स पर चिपकाया जाता है। यह p210 प्रोटीन पहले के अध्ययनों में एथेरोस्क्लेरोसिस के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को सक्रिय करने में सहायक पाया गया है। इसके साथ ही, वैक्सीन में एक सहायक पदार्थ भी जोड़ा गया है, जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को और प्रभावी बनाने में मदद करता है। यह दो-आयामी (2D) नैनो वैक्सीन डिज़ाइन चूहों की प्रतिरक्षा प्रणाली की 'डेंड्राइटिक कोशिकाओं' को सक्रिय करता है, जो कि प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की पहली पंक्ति होती हैं। इस प्रक्रिया से अंततः p210 के खिलाफ एंटीबॉडीज का उत्पादन शुरू होता है, जो धमनियों में प्लाक बनने से रोकते हैं।
परिणाम और भविष्य की योजना
अध्ययन के अनुसार, यह वैक्सीन चूहों को उच्च कोलेस्ट्रॉल वाले आहार पर रखने के बावजूद धमनियों में प्लाक के जमाव को काफी हद तक रोकने में सफल रही। वैज्ञानिकों ने इस तकनीक को "रोगनिरोधी उपचार के लिए एक संभावित उम्मीदवार" बताया है। हालाँकि यह वैक्सीन अभी सिर्फ चूहों पर सफल रही है, लेकिन इससे उम्मीद की जा रही है कि आगे चलकर यह इंसानों पर भी असरदार सिद्ध हो सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगला कदम यह होगा कि वे यह अध्ययन करें कि यह वैक्सीन चूहों को कितने समय तक एथेरोस्क्लेरोसिस से सुरक्षित रखती है और इसके दीर्घकालिक प्रभाव क्या हो सकते हैं।
अभी आम लोगों के लिए उपलब्ध नहीं
इस वैक्सीन को फिलहाल आम लोगों तक पहुंचने में समय लगेगा क्योंकि इसके लिए बड़े पैमाने पर ह्यूमन ट्रायल और अन्य परीक्षणों की आवश्यकता है। इसके सुरक्षा मानकों को प्रमाणित किए बिना इसे बाजार में उतारना संभव नहीं होगा। लेकिन इस दिशा में किया गया यह प्रयास आने वाले वर्षों में हृदय रोगों के इलाज और रोकथाम के तौर-तरीकों में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।
चीन द्वारा विकसित यह संभावित वैक्सीन न केवल चिकित्सा विज्ञान में एक नई दिशा खोलती है, बल्कि दुनिया भर में लाखों लोगों को दिल की बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करने की उम्मीद भी देती है। स्ट्रोक और हार्ट अटैक जैसी स्थितियां जिनके इलाज में अब तक महंगे और जटिल सर्जिकल विकल्प ही थे, अब एक टीके से रोकी जा सकेंगी। यह अपने आप में चिकित्सा क्षेत्र की एक ऐतिहासिक उपलब्धि हो सकती है। अगर आने वाले वर्षों में यह वैक्सीन इंसानों पर भी उतनी ही प्रभावी सिद्ध होती है, जितनी यह प्री-क्लिनिकल ट्रायल्स में रही है, तो यह दुनिया भर में हृदय स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबसे बड़ी खोजों में से एक मानी जाएगी।
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