शुक्रवार, 30 सितंबर 2022

नवरात्रि का छठां दिन मां 'कात्यायनी' को समर्पित 

नवरात्रि का छठां दिन मां 'कात्यायनी' को समर्पित 

सरस्वती उपाध्याय 
नवरात्रि का छठां दिन मां कात्यायनी की पूजा के लिए समर्पित है। माँ कात्यायनी नवदुर्गा का छठा रूप है। विवाह तय करने में समस्याओं का सामना करने वाली लड़की मां कात्यायनी से एक सुखी और सुगम वैवाहिक जीवन प्राप्त करने के लिए प्रार्थना कर सकती है। वह वैवाहिक जीवन में सद्भाव और शांति सुनिश्चित करती है। यह भी माना जाता है कि नवरात्रि में उनकी पूजा करने से कुंडली में ग्रहों के सभी नकारात्मक प्रभावों को दूर करने में मदद मिल सकती है।

नव दुर्गा स्वरूपों में माँ कात्यायनी देवी का छठां स्वरुप का महत्व...

नवदुर्गा के छठवें स्वरूप में माँ भगवती कात्यायनी की पूजा की जाती है। माँ कात्यायनी का जन्म कात्यायन ऋषि के घर हुआ था अतः इनको कात्यायनी कहा जाता है। इनकी चार भुजाओं मैं अस्त्र शस्त्र और कमल का पुष्प है, इनका वाहन सिंह है. ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं, गोपियों ने कृष्ण की प्राप्ति के लिए इनकी पूजा की थी। विवाह में आरही बाधाओं के लिए माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है, योग्य और मनचाहा पति इनकी कृपा से प्राप्त होता है। ज्योतिष में बृहस्पति का सम्बन्ध इनसे माना जाता है।

माँ कात्यायनी देवी का स्वरूप सोने के समाना चमकीला है। चार भुजा धारी माँ कात्यायनी सिंह पर सवार हो कर  एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिये हुए बैठी है। तथा अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। इनका वाहन सिंह हैं। देवी कात्यायनी के नाम और जन्म से जुड़ी एक कथा प्रसिद्ध है।

हमारे ऋषि मुनियों में एक  श्रेष्ठ कात्य गोत्र के  ऋषि महर्षि कात्यायन जी थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। मां भगवती को पुत्री के रूप में पाने की इच्छा रखते हुए उन्होंने पराम्बा माँ भगवती  की कठोर तपस्या की। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया। कुछ समय बीतने के बाद राक्षस महिषासुर का अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया। तब त्रिदेवों के तेज से एक सोने के सामान चमकीली और चतुर्भजाओं वाली एक कन्या ने जन्म लिया और उसका वध कर दिया। कात्य गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया।

मां कात्यायनी अविवाहित कन्याओं के लिए विशेष फलदायिनी मानी गई हैं। जिन कन्याओं के विवाह में विलम्ब या परेशानियां आती है तो वह माँ कात्यायनी के चतुर्भुज रूप की आराधना कर माँ का आशीर्वाद प्राप्त कर अपने मांगलिक कार्य को पूर्ण करती है  शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों को माता की अवश्य उपासना करनी चाहिए। माँ कात्यायनी देवी के पूजन में मधु का विशेष महत्व है। इस दिन प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए। इसके प्रभाव से साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है।

आरती...

जय जय अम्बे जय कात्यायनी। जय जग माता जग की महारानी॥
बैजनाथ स्थान तुम्हारा। वहावर दाती नाम पुकारा॥
कई नाम है कई धाम है। यह स्थान भी तो सुखधाम है॥
हर मन्दिर में ज्योत तुम्हारी। कही योगेश्वरी महिमा न्यारी॥
हर जगह उत्सव होते रहते। हर मन्दिर में भगत है कहते॥
कत्यानी रक्षक काया की। ग्रंथि काटे मोह माया की॥
झूठे मोह से छुडाने वाली। अपना नाम जपाने वाली॥
बृहस्पतिवार को पूजा करिए। ध्यान कात्यानी का धरिये॥
हर संकट को दूर करेगी। भंडारे भरपूर करेगी॥
जो भी माँ को भक्त पुकारे। कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥

मां कात्यायनी की पूजा-विधि...

नवरात्रि के छठे दिन सुबह स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा स्थल की सफाई करके गंगाजल से शुद्धि करें। अब सबसे पहले मां कात्यायनी की प्रतिमा अथवा तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर प्रणाम करें। फिर पूजन के दौरान देवी को पीले अथवा लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद देवी मां को पीले रंग के पुष्प, कच्ची हल्दी की गांठ चढ़ाएं। फिर माता को शहद का भोग लगाएं। मां कात्यायनी के समक्ष आसन पर बैठकर मंत्र, दुर्गा चालीसा और सप्तशती का पाठ अवश्य करें। तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर मां की आरती उतारें। पूजा के बाद सभी को प्रसाद बांटें।

मां कात्यायनी मंत्र...

चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना
कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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