सोमवार, 4 अप्रैल 2022

नवरात्रि का चौथा दिन, माता कूष्मांडा को समर्पित

नवरात्रि का चौथा दिन, माता कूष्मांडा को समर्पित    

सरस्वती उपाध्याय          
मंगलवार को चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन है‌। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के चौथे दिन माता कूष्मांडा को समर्पित है। इस दिन मां की पूजा-अर्चना और उपासना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में स्थित होता है। इसलिए बहुत ही पवित्र मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरुप का ध्यान करके पूजा करनी चाहिए।
मां कूष्मांडा आठ भुजाओं वाली हैं, जो कि भक्तों की भक्ति से प्रसन्न होतर उनके दुखों और कष्टों का नाश करती हैं। धार्मिक मान्यता है कि मां को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रि के दिनों में उनकी पूजा के बाद ये आरती अवश्य करें। मां प्रसन्न होकर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
साथ ही, कूष्माण्डा माता को आठ भुजा धारी भी माना जाता और इसलिए उनका नाम अष्टभुजा भी है। मान्यतानुसार, माता कूष्माण्डा के आठ हाथों में धनुष, चक्र, कमंडल, कलश, गदा, बाण, पुष्प और जप माला है। मां कूष्माण्डा को प्रसन्न करने के लिए नीले रंग के वस्त्र धारण करने की विशेष मान्यता है‌। भक्त इस दिन पूरे चाव से इस रंग के कपड़े पहनकर माता की पूजा करते हैं।
नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्माण्डा की पूजा करने के लिए श्रद्धाभाव से नहा-धोकर चौकी सजाई जाती है‌। इसके बाद जिस तरह अन्य देवियों की पूजा होती है। वैसे ही मां कूष्माण्डा को भी पूजा जाता है। कूष्माण्डा माता को भोग में मालपूए चढ़ाने की मान्यता है। कहते हैं कि मां कूष्माण्डा को प्रसन्न करना बेहद आसान है, वे कम से कम सेवा से भी खुश हो जाती हैं। वहीं, उनके मंत्र का जाप करना भी शुभ माना जाता है। 

कूष्माण्डा माता का मंत्र...

सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च | 
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ||


ध्यान मंत्र...

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम् ।।

भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।

कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम् ।।

पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।

मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम् ।।

प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।

कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम् ।।

स्तोत्र पाठ...

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।

जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम् ।।

जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।

चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम् ।।

त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।

परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम् ।।

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