सोमवार, 8 नवंबर 2021

हत्या के प्रयास के अपराधियों की पहचान की

हत्या के प्रयास के अपराधियों की पहचान की
बगदाद। इराक के प्रधानमंत्री मुस्तफा अल-कदीमी ने कहा है कि उनकी असफल हत्या के प्रयास के अपराधियों की पहचान कर ली गयी है। प्रधानमंत्री के मीडिया कार्यालय की ओर से जारी बयान के मुताबिक अल-कदीमी ने कहा कि हम अपराध करने वालों को नहीं छोड़ेंगे।
हम उन्हें अच्छी तरह से जानते हैं और उनकी पहचान उजागर करेंगे। अल-कदीमी ने विस्तृत विवरण न देते हुए कहा कि ये वही अपराधी हैं जिन्होंने इराकी नेशनल इंटेलिजेंस सर्विस (आईएनआईएस) के अधिकारी निब्रास फरमान की हत्या की थी और इन लोगों को न्याय के दायरे में लाया जायेगा।
संघीय सरकार के सभी कर्मचारियों को टीके लगें
वाशिंगटन डीसी। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन अगले साल की शुरुआत तक निजी क्षेत्र के करोड़ों कर्मचारियों को कोविड-19 रोधी टीके लगाने की योजना बना रहे हैं। लेकिन इससे पहले यह सुनिश्चित करना उनके लिए चुनौतीपूर्ण बनता जा रहा है कि उनकी संघीय सरकार के सभी कर्मचारियों को टीके लगें।
एजेंसियों और संघ नेताओं के अनुसार, राष्ट्रपति के कार्यकारी आदेश के तहत 22 नवंबर तक 40 लाख संघीय कर्मचारियों को कोविड-19 रोधी टीके लगाए जाने हैं। कुछ कर्मचारियों, जैसे व्हाइट हाउस में सभी कर्मचारियों को टीके लग चुके हैं, लेकिन संघीय एजेंसियां, खासकर जो कानून प्रवर्तन तथा खुफिया मामलों से जुड़ी हैं, उनके कर्मचारियों के टीकाकरण की दर काफी कम है। वहीं, कुछ कर्मचारी टीका लगाने को इच्छुक नहीं और इसके खिलाफ मुकदमे दायर कर रहे हैं और इसका विरोध कर रहे हैं।
उन्होंने इसे व्हाइट हाउस द्वारा अनुचित अतिक्रमण करार दिया है। आगामी समय सीमा लोगों को टीका लगवाने के लिए राजी करने की बाइडन की पहली परीक्षा है। संघीय कर्मचारी नियम के बाद एक अन्य अनिवार्य नियम जनवरी से लागू होगा, जिसके तहत निजी क्षेत्र के 8.4 करोड़ लोगों का टीकाकरण किया जाएगा। इस बीच, लुइसियाना में एक संघीय अपील अदालत ने शनिवार को उन व्यवसायों को टीकाकरण की अनिवार्यता के नियम से अस्थायी छूट दे दी थी, जिनसे 100 या उससे अधिक कर्मचारी जुड़े हैं।
वहीं, प्रशासन ने कहा कि उसे पता है कि उसकी इस पहल को कानूनी चुनौतियां का सामना करना पड़ेगा क्योंकि उसके सुरक्षा नियम राज्य के कानूनों को प्रभावित करते हैं।

पहली चीनी महिला की उपलब्धि हासिल, इतिहास रचा
बीजिंग। अंतरिक्षयात्री वांग यपिंग ने सोमवार को अंतरिक्ष में चलनेवाली पहली चीनी महिला की उपलब्धि हासिल कर इतिहास रच दिया है। अपने पुरुष सहकर्मी जाई जिगांग के साथ वह निर्माणाधीन अंतरिक्ष स्टेशन से बाहर निकलीं और छह घंटे से ज्यादा समय तक उन्होंने अन्य गतिविधियों में हिस्सा लिया। सरकारी मीडिया की खबर से यह जानकारी मिली।
सरकारी समाचार एजेंसी की खबर के अनुसार दोनों अंतरिक्ष स्टेशन के कोर मॉड्यूल ‘तियान’ से बाहर निकले और सोमवार तड़के साढ़े छह घंटे तक अंतरिक्ष में चहलकदमी की और फिर सफलतापूर्वक स्टेशन लौट आए। ‘चाइना मेन्ड स्पेस एजेंसी’ ने एक बयान में कहा कि चीन के अंतरिक्ष इतिहास में ऐसा पहली बार था जब एक महिला अंतरिक्षयात्री ने अंतरिक्ष में चहलकदमी की। चीन ने तीन अंतरिक्ष यात्रियों को छह महीने के लिए शेनजो-13 यान से अंतरिक्ष में रवाना किया था।
देश द्वारा आर्बिटिंग स्ट्रक्चर (अंतरिक्ष स्टेशन) का काम पूरा किए के लक्ष्य से इन्हें भेजा गया है और ऐसी उम्मीदें हैं कि स्टेशन निर्माण का काम अगले साल तक पूरा हो जाएगा। शांदोंग प्रांत की मूल निवासी और पांच साल की एक बच्ची की मां वेंग पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) एयर फोर्स से अगस्त,1997 में जुड़ी थीं। पीएलए की अंतरिक्ष इकाई के दूसरे समूह के अंतरिक्षयात्रियों से मई, 2010 में जुड़ने से पहले वह उप स्क्वाड्रन कमांडर थीं।

अंतरिक्ष में जानेवाली वह दूसरी चीनी महिला हैं। मौजूदा मानव अंतिरक्ष मिशन के लिए उनका चयन दिसंबर 2019 में किया गया था। वांग और झाई सोमवार को जब चहलकदमी कर रहे थे तो उनकी तीसरी सहयोगी ये गुआंगफू मॉड्यूल के भीतर से उन्हें अहम सहायता प्रदान कर रही थीं।

विस्फोट की धमकी मिलने के बाद आदेश दियें
वाशिंगटन डीसी। अमेरिका में न्यूयॉर्क स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय समेत देश के कई विश्वविद्यालयों को बम विस्फोट की धमकी मिलने के बाद खाली करने के आदेश दिये गये हैं। कोलंबिया विश्वविद्यालय ने ट्विटर पर कहा, “ रविवार 07 नवंबर को दोपहर करीब 14.30 बजे विश्वविद्यालय भवनों पर बम विस्फोट की धमकी मिलने के बाद आपातकालीन अलर्ट जारी किया।
न्यूयार्क पुलिस मामले की जांच कर रही है।” न्यूयार्क पुलिस ने हालांकि इन धमकियों को विश्वसनीय नहीं माना है। लेकिन आवश्यक जांच पड़ताल कर रही है। इस बीच न्यूयॉर्क स्थित कॉर्नेल विश्वविद्यालय ने भी ऐसी ही धमकी की सूचना दी है। विश्वविद्यालय ने ट्वीट किया, “ बम की धमकी की पुलिस जांच जारी है। इमारत में तलाशी का काम चल रहा है।
कृपया अभी केंद्रीय परिसर में आने से बचें।” दूसरी तरफ रोड आइलैंड के प्रोविडेंस स्थित ब्राउन यूनिवर्सिटी ने कहा कि बम की धमकी के बाद रविवार को परिसर की कई इमारतों को खाली करा लिया गया , हालांकि बाद में यहां फिर से प्रवेश के लिए मंजूरी दे दी गयी। इससे पहले कनेक्टिकट प्रांत में येल विश्वविद्यालय में शुक्रवार को बम विस्फोट की धमकी मिलने के बाद कई इमारतों को खाली करा लिया गया था।

जलवायु परिवर्तन को भारत के लिए चुनौती बताया
नई दिल्ली/ वाशिंगटन डीसी। ग्लासगो में 31 अक्टूबर से चल रहे वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलन को पृथ्वी के बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह ऐसा सम्मेलन है जहाँ, उम्मीद है। विश्व के नेता अतीत के अपने अधूरे वादों को भविष्य के लिए ठोस कार्यों में बदल देंगे। इसी सम्मेलन में प्रधान मंत्री मोदी जहाँ एक ओर भारत के नेट ज़ीरो लक्ष्य की घोषणा की, वहीँ जलवायु परिवर्तन को भारत के लिए चुनौती भी बताया।
संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) में सदस्यों का यह 26वां सम्मेलन (सीओपी26) स्कॉटलैंड के ग्लासगो में 12 नवंबर तक चलेगा और इसके लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने फरवरी में कहा था, कि “जलवायु आपदा को रोकने के हमारे प्रयासों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा (सीओपी26)
इस वर्ष का शिखर सम्मेलन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें विकासशील देशों द्वारा विकसित देशों द्वारा किए गए जलवायु वित्त वादों की स्थिति पर चर्चा करने की उम्मीद है और भारत के लिए यह प्राथमिकता का विषय है। पेरिस समझौते और यूएनएफसीसीसी के लक्ष्यों की दिशा में कार्रवाई में तेजी आने की उम्मीद है। पेरिस समझौते के अंतर्गत, प्रत्येक देश अपनी उच्चतम संभावित महत्वाकांक्षा और समय के साथ प्रगति को दर्शाने के लिए हर पांच साल में अपने उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों – या राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) – को बताने या अपडेट करने के लिए सहमत हुए।
ये लक्ष्य निर्धारित करते हैं कि कितने देश अपनी पूरी अर्थव्यवस्था और/या विशिष्ट क्षेत्रों में उत्सर्जन को कम करने की योजना बना रहे हैं। वर्ष 2020 ने पहले पांच साल के चक्र के अंत को चिह्नित किया। ग्लासगो में, देशों को महत्वाकांक्षी 2030 उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों के साथ आगे आने के लिए कहा जा रहा है जो सदी के मध्य तक शुद्ध-शून्य तक पहुंचने के साथ संरेखित हैं।
पहले से ही 130 से अधिक देशों ने इस सदी के मध्य तक उत्सर्जन को नेट ज़ीरो करने का लक्ष्य निर्धारित किया है या विचार कर रहे हैं। व्यवसायों और निवेशकों ने भी इसी दिशा में बढ़ने का फैसला लिया है।
संक्षेप में, नेट-जीरो का अर्थ है वातावरण में डाली गई ग्रीनहाउस गैसों और बाहर निकाली गई गैसों के बीच संतुलन हासिल करना। लेकिन, जैसे-जैसे देशों और निगमों पर अधिक महत्वाकांक्षी शुद्ध-शून्य लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्ध होने का दबाव बनता है, नेट-शून्य प्रतिज्ञाओं की अवधारणा के बारे में तीखी आलोचना हुई है। आलोचकों का कहना है कि 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लिए कोई भी प्रतिबद्धता धोखाधड़ी है यदि वे कोयले, तेल और गैस के विस्तार की अनुमति देते हैं और वर्तमान जीवाश्म ईंधन के उपयोग में भारी और तत्काल कटौती शामिल नहीं करते हैं।
भारत जिन मुद्दों को उठाने के लिए तैयार है, उनमें जलवायु आपदाओं के कारण होने वाले मुआवजे या नुकसान शामिल हैं। G20 शिखर सम्मेलन में भारत के ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि भारत कई अन्य विकासशील देशों के साथ विकासशील देशों के हितों की रक्षा के लिए जोर दे रहा है।
वहीँ अपने ब्रिटिश समकक्ष बोरिस जॉनसन के साथ द्विपक्षीय बैठक से पहले एक बयान में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि भारत स्थापित अक्षय ऊर्जा, पवन और सौर ऊर्जा क्षमता के मामले में दुनिया के शीर्ष देशों में से एक है।
प्रधान मंत्री मोदी ने पहली बार भारत के नेट जीरो लक्ष्य की अवधि का एलान किया। मोदी ने कहा कि भारत 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल कर लेगा। मतलब भारत की तरफ से नेट जीरो तक पहुंचने का जो लक्ष्य है, वो 2050 के वैश्विक लक्ष्य से दो दशक ज्यादा है। मोदी ने इस देरी पर कई तर्क दिए और विकसित देशों से विकासशील देशों के सहयोग की भी मांग की।
वहीँ दुनिया के सबसे बड़े ऊर्जा संगठन इंटरनेशनल एनर्जी फोरम (आईईएफ) ने बृहस्पतिवार को भारत द्वारा 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन (नेट जीरो) के लक्ष्य को हासिल करने की घोषणा की सराहना की।
आईईएफ के 71 सदस्य हैं, जिसमें भारत भी शामिल है। भारत ने 2070 तक कुल शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य पाने की घोषणा की है।
भारत के लिए बड़ी चुनौती है जलवायु परिवर्तन मोदी
प्रधान मंत्री मोदी ने COP26 में कहा, “दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन को लेकर हो रही चर्चा में अनुकूलन (एडेप्टेशन) को उतना महत्व नहीं मिला है जितना प्रभाव कम करने को (मिटिगेशन) को मिला है. यह उन विकासशील देशों के साथ अन्याय है जो जलवायु परिवर्तन से अधिक प्रभावित हैं।”
“भारत समेत जितने विकासशील देश जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौती है। फसल से जुड़े पैटर्न में बदलाव आ रहा है। असमय बारिश और बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है।
न्होंने कहा कि “इस मामले में मेरे तीन विचार हैं, हमें एडेप्टेशन को अपनी विकास नीतियों और परियोजनाओं का एक अभिन्न अंग बनाना होगा।
भारत में नल से जल, स्वच्छ भारत मिशन और उज्जवला जैसी परियोजनाओं से हमारे जरूरतमंद नागरिकों को अनुकूलन लाभ तो मिले ही हैं, उनके जीवन स्तर में भी सुधार हुआ है।
कई पारंपरिक समुदायों में प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने का ज्ञान है। हमारी अनुकूलन नीतियों में इन्हें उचित महत्व मिलना चाहिए। स्कूल के पाठ्यक्रम में भी इसे जोड़ा जाना चाहिए।
अनुकूलन (अडपटेशन) के तरीके चाहे लोकल हों पिछड़े देशों को इसके लिए ग्लोबल सहयोग मिलना चाहिए।
लोकल अडपटेशन के लिए ग्लोबल सहयोग के लिए भारत ने कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेजिस्टेंस इंफ्रास्ट्रक्चर पहल की शुरूआत की थी। मैं सभी देशों को इस पहल से जुड़ने का अनुरोध करता हूं।

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