रविवार, 17 अक्तूबर 2021

आम आदमी के खिलाफ 'संपादकीय'

आम आदमी के खिलाफ   'संपादकीय'
ना रोज़गार-रोटी, ना छत-मकान है,
चर्चे में सियासत के कब्रिस्तान है।
कुछ भीड़ इनके पीछे, कुछ भीड़ उनके आगे,
सचमुच यहाँ की हालत‌ भेड़िया धसान है।
भारत वर्ष के उत्कर्ष का स्वर्णिम वर्ष हर्ष के आगोश में मुस्कराते हुये नव वर्ष की तरफ शनैः शनैः अग्रेषित हो रहा है। चुनावी समीकरण को मन माफिक बनाने के लिये सियासी जमात के सहचर तमाम तरह के अलंकरण से जनमानस के बीच अपनी पहचान रखने वालो को बिभूषित कर रहे हैं। गरीबों के रहनुमाओं की पैदावार बढ गयी, उनके दर्द में फर्ज निभाने वालों की बाढ़ आ गयी है। इसी सीयासी तमाशे से लोगों की चीढ़ बढ़ गयी है। समय की मार देखिये, पढ़ें-लिखों को हर नुक्कड‌ हर चौराहे पर काम की तलाश में खड़ा बेकार देखिये।काम-धन्धे के अभाव में भूखमरी का दंश झेलता हुए गरीब के दिल मे बढता घाव देखिये। हर रोज बदलाव की हवा तेज होती जा रही है। महंगाई कि मार से हर आदमी मानसिक रुप से बीमार हो गया। हर तरफ‌ लूट मची है, हर तरफ अपना दबदबा कायम करता जा रहा‌ है भ्रष्टाचार। चारों तरफ हाहाकार है। फिर भी चुप सरकार है. ऐतिहासिक उत्कर्ष है साहब ! सब कुछ बिक रहा‌ है! रेल, तेल ,भेल ,खेल, जेल,आयुध कारखाना लाल किले का  तहखाना, हवाई अड्डा, ‌गांव गिराव का सरकारी गड्ढा... कल कारखाना, कोयला का खदान, सब कुछ खरीद रहा अडानी 'अम्बानी का खानदान। इसी की चपेट में आकर आन्दोलनरत है महीनों से किसान। वाह साहब देश नहीं बिकने दूंगा। शायद सुनने में गलती हो गयी। देश नहीं बचने दूंगा। गजब की सोच आखिर कैसा बन रहा‌ है हिन्दुस्तान? जहां गिरवी पड़ता जा रहा है स्वाभिमान। देश का ‌‌अन्नदाता आज सिसक रहा है। आने वाले कल में होने वाली त्रासदी को सोचकर‌ परेशान हैं। बंधक बनता जा रहा खेत और खलिहान है। भयंकर वारिस के चलते ,किसानों की खरीफ की फसलें नष्ट हो गईं हैं। किसान खून के आंसू रोने को मज़बूर है। उनकी चिंता बैंकों से लिए कर्ज की अदायगी कैसे करें? बच्चों की फीस,और दवा का इंतजाम कैसे करें? रोज मर्रा का घर का खर्चा कैसे चलेगा? बाढ़ के प्रभाव से शुद्ध पानी को मोहताज़ है। 
यदि पानी उबाल कर पियें तो गैस की मंहगाई चरम पर है। जहां बाढ़ का भयंकर प्रकोप है डायरिया फैलने लगा है। जल-जमाव से डेंगू मच्छरों का खतरा बढ़ा है। पशुओं के चारे का इंतजाम कहां से और कैसे करें? इस उधेड़बुन ने उनका जीना मुहाल कर रखा है। सरकार की ओर से अभी तक उनके दर्द पर मरहम लगाने की कोई घोषणा नहीं हुई। तबाही झेलता किसान संविधान के हासिये पर आजादी के समय ही कर दिया गया। उनके लिये न कोई आयोग से सहयोग मिला, केवल बर्बादी का रोग। सियासत के चुगलखोर चुनाव भर सुबह-शाम 'राम राम' बोलते हैं। चुनाव जीतते ही जय श्रीराम बोलकर भ्रष्टाचार के आगोश में मदहोश हो जाते हैं। चुनाव की दुन्दूभी बजने वाली है। हर कदम पर सियासी मदारी डेरा डाल रहे हैं। अपना करतब दिखाकर बहका कर अपनी झोली भरने की जुगत में है, सावधान रहें ! आप का एक वोट देश की तकदीर बदल सकता हैं।
बाजू पे अपने घर का पता बांध कर चलें,
महफूज़ मेरे शहर के रस्ते नहीं रहें।
जगदीश सिंह
भैय्यागिरी का दौर   'संपादकीय'
आधुनिक राजनीति में समसामयिक बदलावों के साथ प्रौद्योगिक क्रियाओं का बड़ा समावेश हुआ है। क्षेत्रवाद-जातिवाद के ध्रुवीकरण को केंद्रित करके राजनैतिक लाभ उठाने का दौर आज भी जारी है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रदेश की अधिकांश विधानसभाओं में आज भी भैय्यागिरी का दौर है। कई विधानसभाओं में संप्रदायिकता ही राजनीति का प्रथम घटक है। हिंसा और द्वेष की आधारशिला पर राजनीति की जाती है। नफरत के सैलाब में भाई बंदगी और प्यार-मोहब्बत का ढांचा धूं-धूं करके जल जाता है। एक ऐसी रेखा हमारे संबंधों के बीच में खींची जाती है, जिसे हम लक्ष्मणरेखा तो नहीं कह सकते लेकिन उसकी मजबूती चीन की दीवार से भी मजबूत होती है। हमारे विचारों को परिवर्तित करने का कार्य किया जाता है और हम सभी इस बंटवारे के मूकबधिर पात्र बन जाते है। 
सत्ता पाने के लालच में गणतंत्र की व्यवस्था और संवैधानिक मूल्यों का कोई वजूद नहीं रह जाता है। जिस प्रकार से जातिवाद की संरचना और विस्तार का दौर जारी है। यह सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करता है। परंतु किस स्तर तक प्रभावित करेगा, क्या इसका दुष्परिणाम होगा ? इसका अनुमान इस प्रक्रिया के संरक्षकों को भी नहीं है। राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के प्रति किए गए कूटनीतिक प्रयासों की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। किंतु कूटनीतिक प्रयासों की जड़ें कितनी गहरी है, उससे उत्पन्न होने वाले भावी परिणाम को समझना शुद्ध राजनीति है। हालांकि राजनीति की पृष्ठभूमि में बड़े परिवर्तन से नवीनीकरण की संभावनाएं बढ़ गई हैं। आधुनिकरण की पराकाष्ठा में प्रदेश की राजनीति का केंद्र विधानसभा चुनाव 2022 में भी जातिवाद और ध्रुवीकरण आधारित ही रहेगा। इसमें किसी प्रकार के किसी बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं है। 
सत्तारूढ़ भाजपा की कूटनीति का विशेष और महत्वपूर्ण दांवपेच का कारोबार बल्कि दारमोदार यहीं से शुरू होगा। सामाजिक द्वेष की परिधि का दायरा बढ़ने से प्रदेश की कई विधानसभा में भाजपा के प्रति अप्रिय परिणाम तो फलीभूत होंगे ही साथ में अप्रत्याशित परिणाम भाजपा के पतन का प्रारंभ भी होगा। बढ़ते हुए द्वेष में आक्रोश का व्याप्त होना स्वभाविक है। योगी सरकार की असफलता और असंतुष्ट मतदाता उल्टे दिनों के प्रतिबिंब बन कर उभरेगें। इसके लिए ज़हन पर जोर देने की जरूरत नहीं है। उदाहरण के तौर पर लोनी विधानसभा में पहली बार भाजपा के विरुद्ध रिकॉर्ड तोड़ मतदान होगा। असंतुष्ट भाजपा कैडर और राजनेताओं में उत्पन्न मतभेद से जो व्यवधान उत्पन्न हुआ है। उसके परिणाम स्वरूप भाजपा को एक छत्र के नीचे लाना दुर्गम होता जा रहा है। स्वयं की विश्वसनीयता को स्थिर रख पाना राजनेताओं के लिए एक चुनौती बन गई है। वंही, जनता झूठी तसल्ली और खोखले वादों का असली सच समझ चुकी है। महामारी के दौर में लाचारी और महंगाई की मार ने आंखें खोल दी है। जिनको 1000-1200 रुपए प्रतिदिन दिहाड़ी-मजदूरी मिलती है। बस, वही लोग अपने संकल्प को नहीं तोड़ेंगे। जनता की बदहाली का आईना बिल्कुल साफ है।
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'

उत्तरी क्षेत्रों में लोकप्रिय खाद्य व्यंजन हैं 'छोले भटूरे'

छोले भटूरे भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी क्षेत्रों में लोकप्रिय एक खाद्य व्यंजन है। यह चना मसाला (मसालेदार सफेद छोले) और भटूरा/पूरी का एक संयोजन है। जो मैदा से बनी एक तली हुई रोटी है। हालांकि इसे एक विशिष्ट पंजाबी व्यंजन के रूप में जाना जाता है, लेकिन पकवान की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न दावे हैं। छोले भटूरे को अक्सर नाश्ते के व्यंजन के रूप में खाया जाता है, कभी-कभी लस्सी के साथ। यह स्ट्रीट फ़ूड या संपूर्ण भोजन भी हो सकता है और इसके साथ प्याज, मसालेदार गाजर, हरी चटनी या आचार भी हो सकता है। मैदा और सूजी को किसी बर्तन में छान कर निकाल लीजिये, मैदा के बीच में जगह बनाइये, 2 टेबिल स्पून तेल, नमक, बेकिंग पाउडर, दही और चीनी इसमें डालकर, इसी जगह इन सब चीजों को अच्छी तरह मिला लीजिये। गुनगुने पानी की सहायता से नरम आटा गूथ लीजिये। गुथे हुये आटे को 2 घंटे के लिये बन्द अलमारी या किसी गरम जगह पर ढक कर रख दीजिये। कढ़ाई में तेल डाल कर गरम करें। गूथे हुये आटे से एक टेबिल स्पून आटे के बराबर आटा निकालिये। लोई बनाइये और पूरी की तरह बेलिये, लेकिन यह, पूरी से थोड़ा सा मोटा बेला जाता है। पूरी को गरम तेल में डालिये, कलछी से दबाकर फुलाइये, दोनों ओर पलट कर हल्का ब्राउन होने तक तलिये। 
काबुली चना एक कटोरी या 150 ग्राम, खाना वाला सोडा आधा चम्मच, टमाटर -3-4 मीडियम साइज, हरी मिर्च - 2-3, अदरक - 1 इन्च लम्बा टुकड़ा य़ा एक छोटी चम्मच अदरक का पेस्ट, रिफाइन्ड तेल - 2 टेबिल स्पून, जीरा - आधा छोटी चम्मच, धनियाँ पाउडर - एक छोटी चम्मच, लाल मिर्च पाउडर - एक चौथाई छोटी चम्मच से कम, गरम मसाला।
चनों को रात भर पानी में भिगने रख दीजिये। पानी से निकाल कर चनों को धोकर, कुकर में डालिये, एक छोटा गिलास पानी, नमक और खाना सोडा मिला दीजिय। कुकर बन्द करें और गैस पर उबालने के लिये रख दीजिये। दूसरी तरफ टमाटर, हरी मिर्च, अदरक को मिक्सी से बारीक पीस लें। कढ़ाई में तेल डाल कर गरम करें। जीरा भुनने के बाद धनियाँ पाउडर डाल दीजिये। चमचे से चलायें, टमाटर, अदरक, हरी मिर्च का मिश्रण और लाल मिर्च पाउडर डाल कर मसाले को जब तक भूने तब तक कि मसाले के ऊपर तेल न तैरने लगे। भुने मसाले में एक गिलास पानी और स्वादानुसार नमक डाल दीजिये। उबले चनों को इस मसाले की तरी में मिला कर अच्छी तरह चमचे से चला लीजिये। यदि आपको छोले अधिक गाढ़े लग रहे हो, तो आप उनमें आवश्यकता अनुसार पानी मिला लीजियें, उबाल आने के बाद 2-3 मिनिट पकने दीजिये। गरम मसाला और आधा हरा धनियाँ मिला दीजिये। आपके छोले तैयार हैं। इन्हें भटूरे के साथ सर्व करें।
 
शुक्ल-पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है शरद पूर्णिमा

हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह के शुक्ल-पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। शरद पूर्णिमा को 'कौमुदी व्रत', 'रास पूर्णिमा' और 'कोजागरी पूर्णिमा' भी कहा जाता है। इस बार शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर (मंगलवार) को 7 बजे से शुरू होकर 20 अक्टूबर को 8 बजकर 21 मिनट पर समाप्त होगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूरे साल में सिर्फ इसी दिन चांद अपनी 16 कलाओं से युक्त है। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चाँद 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर रातभर अमृत बरसता है। यही वजह है कि उत्तर भारत में शरद पूर्णिमा को रात में खीर बनाकर रातभर चाँदनी में रखने का रिवाज है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन श्रीकृष्ण ने निधिवन में गोपियों के साथ महारास रचाया था इसलिए इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा को लेकर कई मान्यताएँ प्रचलित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन धन की देवी माँ लक्ष्‍मी जी का जन्‍म हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात लक्ष्‍मी माता घर-घर जाती हैं और जागने वाले भक्‍तों को धन-वैभव का वरदान देती हैं। शरद पूर्णिमा के दिन ही वाल्मिकि जयंती भी मनाई जाती है। शरद पूर्णिमा मनाने के पीछे एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि शरद पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के चार माह के शयनकाल का अंतिम चरण होता है। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो विवाहित स्त्रियां शरद पूर्णिमा का व्रत करती हैं उन्‍हें संतान-सुख की प्राप्‍ति होती है। वहीं, माताएँ अपनी संतान की दीर्घायु के लिए यह व्रत करती हैं। कुँवारी कन्याओं को शारद पूर्णिमा का व्रत करने से मनवांछित व्रत की प्राप्ति होती है। शरद पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर स्‍नान करने के बाद व्रत का संकल्‍प लें। इसके बाद मंदिर की साफ-सफाई कर पूजा की तैयारी कर लें। पूजा की तैयारी के बाद घर में मौजूद मंदिर में दीया जलाएं। दीपक जलाकर ईष्‍ट देवता का पूजन करें। साथ ही भगवान इंद्र और माता लक्ष्‍मी की पूजा करें। अब धूप, दीप और बत्ती से भगवान की आरती उतारें। शाम के समय लक्ष्‍मी जी की पूजा करें और आरती भी उतारें। अब चंद्रमा को अर्घ्‍य देकर प्रसाद चढ़ाएं और आरती उतारें। इसके बाद व्रत तोड़ें। साथ ही प्रसाद की खीर को रात 12 बजे के बाद अपने दोस रिश्तेदारों में बांटें।

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