सोमवार, 8 मार्च 2021

ईश्वर केवल मार्गदर्शक, प्रयास स्वयं करना होगा: अरविद

नावागढ़। जरलाही काली मंदिर प्रांगण में आयोजित शतचंडी महायज्ञ के चौथे दिन कथा वाचक अरविद आचार्य ने कहा कि ईश्वर हमें केवल रास्ता दिखाते हैं। प्रयास हमें स्वयं करना पड़ता है। महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था। युद्धभूमि में यत्र-तत्र योद्धाओं के फटे वस्त्र, मुकुट, टूटे शस्त्र, टूटे रथों के चक्के, छज्जे आदि बिखरे हुए थे और वायुमंडल में पसरी हुई थी घोर उदासी। गिद्ध, कुत्ते, सियारों की उदास और डरावनी आवाजों के बीच उस निर्जन हो चुकी भूमि पर द्वापर का सबसे महान योद्धा देवव्रत (भीष्म पितामह) शैय्या पर पड़े सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। तभी उनके कानों में एक परिचित ध्वनि शहद घोलती हुई पहुंची। प्रणाम पितामह। भीष्म के सूख चुके अधरों पर एक मुस्कुराहट तैर उठी बोले आओ देवकीनंदन स्वागत है तुम्हारा, मैं बहुत देर से तुम्हारा ही स्मरण कर रहा था। कृष्ण बोले, क्या कहूं पितामह अब तो यह भी नहीं पूछ सकता कि कैसे हैं आप। भीष्म चुप रहे, कुछ क्षण बाद बोले, पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव। उनका ध्यान रखना। परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है। यज्ञ को सफल बनाने में अजीत बनर्जी, धीरेन लाला, रामाशंकर तिवारी, बीरबल रवानी, आनंद मोदक, भीम रजक समेत अन्य दर्जनों श्रद्धालु शामिल हैं।

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