रविवार, 14 फ़रवरी 2021

सुई का डर नही, नाक के जरिए दी जाएगी वैक्सीन

अब सुई का डर नही, नाक के जरिए दी जाएगी कोरोना वैक्सीन! क्यों है इंजेक्शन से ज्यादा बेहतर
अकांशु उपाध्याय 
नई दिल्ली। भारतीय वैक्सीन डेवलपर भारत बायोटेक वैक्सीन अब एक तरह की ‘नेजल वैक्सीन पर काम कर रहा है। इस वैक्सीन के आने के बाद इंजेक्शन से निजात मिल जाएगी। इसके बाद लोगों को इंजेक्शन के जरिए नहीं, बल्कि नाक में स्प्रे के माध्यम से वैक्सीन दी जाएगी। बताया जा रहा है। भारत बायोटेक को ट्रायल की इजाजत मिल गई है और अगर इसे अप्रूवल मिल जाता है तो यह गेम चेंजर साबित हो सकता है।
खबरें आ रही हैं, कि नेजल वैक्सीन के ट्रायल की शुरुआत नागपुर से हो सकती है। और अभी 75 लोगों का ट्रायल के लिए चयन किया गया है। ऐसे में जानते हैं। कि आखिर ये नेजल वैक्सीन क्या है। और किस तरह से इसका फायदा हो सकता है।
क्या है नेजल वैक्सीन
यह एक तरह की नाक से दी जाने वाली दवाई है। अभी कोरोना की वैक्सीन इंजेक्शन के माध्यम से दी जा रही है। लेकिन इसमें ऐसा नहीं है। यह एक तरह का स्प्रे है, जिसे नाक में स्प्रे किया जाता है ।और नाक के जरिए कोरोना की दवाई दी जाती है। माना जा रहा है। कि जिस तरह से कोरोना वायरस नाक के जरिए शरीर में प्रवेश करता है। वैसे ही इस दवा को भी नाक के जरिए शरीर में भेजा जाता है। इसमें इंजेक्शन नहीं लगाया जाता है। जिससे वैक्सीन के बाद होने वाले दर्द से भी फायदा मिल सकता है। 
आसान भाषा में जिस तरह मांसपेशियों में इंजेक्शन से लगाई जाने वाली वैक्सीन को इंट्रामस्कुलर वैक्सीन कहते हैं। उसी तरह नाक में कुछ बूंदें डालकर दी जाने वाली वैक्सीन को इंट्रानेजल वैक्सीन कहा जाता है। जिसे नेजल स्प्रे का नाम से जानते हैं। पहले भी इस तरह की वैक्सीन बाजार में है। और पहले भी कई बीमारियों में इस तरह से वैक्सीन लगाई जाती है। और कई जानवरों पर भी इस तरीके का इस्तेमाल किया जाता है।
क्या इंजेक्शन से बेहतर है नेजल वैक्सीन
विशेषज्ञों का कहना है। कि इंजेक्शन के जरिए दी जाने वाली वैक्सीन को इंट्रामस्क्युलर रूप से इंजेक्ट करने से केवल निचले फेफड़े की रक्षा होती है। वहीं नेजल वैक्सीन ऊपरी और निचले दोनों फेफड़ों की रक्षा कर सकता है और वायरस के संक्रमण के साथ-साथ संक्रमण को भी रोक सकता है। इसके अलावा इस वजह से इंजेक्शन से छुटकारा मिलता है। और सांस से संक्रमण का खतरा भी कम होता है।
इसे स्प्रे के जरिए नाक के माध्यम से दी जाती है। इसके लिए खास परीक्षण की आवश्यकता भी नहीं है। और इसमें सामान्य वैक्सीन से होने वाले साइड इफेक्ट्स की तुलना में काफी कम इफेक्ट होते हैं। वाशिंगटन स्कूल ऑफ मेडिसिन के सेंट लुइस में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि नाक के जरिए दी गई दवाई ने पूरे शरीर में एक मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पैदा की, जिससे वायरस नाक और श्वसन पथ में प्रभावी रहा और पूरे शरीर में संक्रमण नहीं पहुंचा। यह नाक के अंदरुनी हिस्सों में इम्युन करती है।

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