मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

पुष्प कंटकों में खिलते हैं, दीप अंधेरों में जलते हैं...

पुष्प कंटकों में खिलते हैं, 
दीप अंधेरों में जलते हैं। 
आज नहीं, प्रह्लाद युगों से, 
पीड़ाओं में ही पलते हैं।
दीप अंधेरों में जलते हैं।...
किन्तु यातनाओं के बल पर, 
नहीं भावनाएँ रूकती हैं।
चिता होलिका की जलती है, 
अन्याय करने पर ही सजा झेलते है।
दीप अंधेरों में ही जलते हैं।....
सही रास्ते पर ही सच्चे आदमी चलते हैंं, 
गरीब-असहायों को पानी पिलाते हैं। 
अपने जीवन का त्याग कर देते हैं, 
बदले में ना कुछ लेते हैं।
दीप अंधेरों में ही जलते हैं।...
 चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'

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