शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

आंदोलन: सरकार करेगी अंतिम विकल्प का प्रयोग

अकांशु उपाध्याय 

नई दिल्ली। किसान संगठनों के साथ 10वें दौर की बैठक में सरकार ने आखिरी समय में अपने अंतिम विकल्प का इस्तेमाल किया। बैठक के पहले हिस्से में सरकार अपने पुराने रुख पर कायम थी लेकिन अचानक लंच के बाद हुई बैठक में सरकार ने तीनों कृषि कानूनों पर एक से डेढ़ साल तक अस्थायी रोक लगाने और साझा कमेटी के गठन का प्रस्ताव दिया। 

जानकारों का मानना है कि ऐसा किसानों के ट्रैक्टर रैली पर सुप्रीम कोर्ट के रुख और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर पंजाब, हरियाणा के इतर दूसरे राज्यों में बहस शुरू होने के कारण हुआ। सरकार को उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट गणतंत्र दिवस पर किसान संगठनों की ट्रैक्टर रैली के संदर्भ में कोई फैसला करेगा। जबकि शीर्ष कोर्ट ने हस्तक्षेप से इनकार करते हुए मामले पर फैसला लेने की जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस पर डाल दी। सरकार नहीं चाहती थी कि कृषि कानूनों के सवाल पर देश की राजधानी में गणतंत्र दिवस के दिन किसानों और प्रशासन के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो। टकराव की स्थिति में सरकार को इस आंदोलन के व्यापक होने की आशंका थी। भोजनावकाश के बाद अचानक ही कृषि मंत्री की ओर से आए कानूनों पर अस्थायी रोक और सभी पक्षों के प्रतिनिधित्व वाली कमेटी के गठन के प्रस्ताव के लिए किसान संगठन तैयार नहीं थे। खाने से पहले पहले सरकार और किसान संगठनों के बीच किसान नेताओं को एनआईए का नोटिस पर तीखी बहस हुई। कृषि मंत्री ने दो टूक कहा, सरकार न तो कानून वापस लेगी और न ही एमएसपी पर कानूनी गारंटी देगी। गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली मामले में भी तनातनी रही। तोमर ने प्रस्तावित रैली को वापस लेने की मांग की और इस घोषणा को भी गलत बताया। सरकार मान रही थी कि किसान आंदोलन धीरे-धीरे कमजोर पड़ जाएगा। इसलिए सरकार ने बीते महीने इसी तरह के सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को गंभीरता से नहीं लिया। हालांकि आंदोलन न सिर्फ कायम रहा, बल्कि किसान संगठनों के तेवर और तल्ख होते गए। इस बीच आंदोलन के दौरान किसानों की आत्महत्या, दुर्घटना समेत कई अन्य कारणों से लगातार किसान मरते रहे और सरकार की चिंता बढ़ती रही।

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