गुरुवार, 14 जनवरी 2021

बेरोजगारी के दौर में नौकरी के नाम पर की लूट

राधेश्याम शास्त्री  
कुशीनगर। बेरोजगारी के दौर में नौकरी चाहे सरकारी हो या गैर सरकारी उसके नाम पर कभी भी लूटा जा सकता है। भले ही नौकरी आफिस में बैठकर लिखा-पढ़ी करने की है। साहब की जी हजूरी करने की है या गांव शहर की सड़कों और गलियों के सफाई करने की ही क्यों न हो।बस! इसकी भनक भर लग जाय। नौकरी पाने वालों की कतार लग जायेंगे। वह भी मुफ्त नहीं, बल्कि भरी हुई जेब के साथ। छोटी-बड़ी सरकारी नौकरी के बैकैंसी की अभी घोषणा हुई ही नहीं कि छोटे-बड़े सफेद पोशधारी नौकरी का‌ ठेका लेकर घूमने लग जाते हैं और नेता या बड़े अधिकारी से काम करने की गारंटी पर 20 हजार रुपए से लाखों रुपए तक इन बेरोजगारों से ऐंठने में कामयाब हो जाते हैं। पूर्व में जनपद के सभी गांवों में सफाई कर्मी के रूप में बाल्मिकी समाज के लोगों को आथि॔क रुप से राहत पहुंचाने के हेतु सरकारी पद की घोषणा बसपा सुप्रीमों व सूबे के मुखिया बहन मायावती द्वारा की गई। परन्तु आवेदन में कोई प्रतिबंध नहीं करके समस्त वर्गों के लोगों को आवेदन देने की छूट दे दी गयी।न जिसका परिणाम यह निकला कि सरकार के मंशा के अनुरूप कोई भी गरीब, मजदूर या बाल्मिकी समाज का व्यक्ति नौकरी  नहीं पा सका। अलबत्ता पैसे के बल पर समाज के अन्य वर्गों के लोग नौकरी हथिया लिए और जरूरत मंद हाथ मलते रह गए। आलम यह है कि गांवों में तैनात सफाई कर्मी स्वयं काम न करके महीने में दो चार दिन मजदूर रखकर काम की खानापूर्ति कर अपना वेतन प्रतिमाह लेते जा रहें हैं। जनपद के कई गांवों का   दौरा करने पर पाया गया कि एक तरफ़ जहां सड़कों और गलियों में कचड़ा भरा हुआ है। वहीं दूसरी ओर नालियां गन्दगी से बजबजा रही है। जिससे संक्रामक बिमारियां फैल रही है। किसी भी सफाई कर्मी का नाम पता व गांवों में आने का समय, दिन निश्चित नहीं है।इसकी‌ जानकारी केवल ग्राम प्रधान व सेक्रेटरी को होता है। गांव के किसी भी‌आदमी को कुछ भी मालूम नहीं होता है। उधर जिसके लिए यह योजना लागू की गई वह बाल्मिकी समाज आज भी ग़रीबी की मार झेलते हुए नरक की जिंदगी जीने को बेबस है। आधुनिक युग में फाइबर, प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक संसाधनों के आ जाने से उनका समूचा कारोबार भी चौपट हो गया है। आखिर वो करें तो क्या? जगह -जगह धरना प्रर्दशन और हड़ताल करने पर भी दलितों की दम्भ भरने वाली सरकार उनकी सुध नहीं ले रही है बल्कि खुद आरक्षण को लेकर महिला-पुरुष, सामान्य, पिछड़ी, अनुसूचित जाति वर्ग अनुसूचित जनजाति के भंवरजाल में फंस गई है। जनपद के कई ब्लाकों के कई गांवों से जहां ब्राह्मण, सिंह, यादव आदि संबल वर्ग के लोगों को नियुक्त कर लिया गया है वहीं सांस बहुओं को नहीं बेटियों को भी सफाई कर्मी के रूप में नियुक्त करके सारी पारदर्शी की धज्जियां उड़ा दी गई है। ये नियुक्त कमी॔ स्वयं  तो जाते नहीं हैं बल्कि गांव के ही किसी आदमी को आधा -तिसरी मजदूरी देकर कोरम पूति॔ करवा लेते हैं। सरकारी महकमे के पास इतना भी समय नहीं है कि वह जाने कि  सम्बन्धित गांव का सफाई कर्मी काम भी कर रहा है या मुफ्त में वेतन ले रहा है। इसका जीता जागता प्रमाण जनपद के दुदही विकास खंड क्षेत्र के ग्राम पंचायत सोरहवां, शाहपुर माफी,अराजी बुन्देलगिरी में मौके पर जाकर देखने को मिला। सफाई कर्मियों द्वारा वर्षों से गांवों के नालियों की सफाई नहीं किया गया है। तथा फर्जी तरीके से पेरोल बनाकर हर माह अपना वेतन उठाते जा रहे हैं। कर्मचारी फर्जी तरीके से संस्तुति करते जा रहे हैं।ऐसा क्यों! इसमें राज क्या है? क्षेत्र में चर्चा है कि तमाम सफाई कर्मी गांवों में इसलिए नहीं जाते हैं कि वे या तो किसी नेता के भाई -भतीजा हैं या  किसी सता पक्ष के‌ नेता के रिश्तेदार बताते हैं। 
वास्तव में यह ‌निषपक्ष व निर्भीक रुप से जांच-पड़ताल का विषय है। यदि वह सफाई कर्मी के पद पर नियुक्त हैं चाहे जैसा भी हुआ है। वह गांवों में जाकर सफाई कर्मी में लग जायें। अन्यथा गरीबों के खून-पसीने की गाढ़ी कमाई को वैसे ही  न डकार जाय। चर्चा है कि विकास खंड के सहायक विकास अधिकारी पंचायत श्री रामविलाश गोंड व आफिस के बाबुओं द्वारा सफाई कर्मियों पर दबाव व निर्देश देने के बावजूद भी इन सफाई कर्मियों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। क्यों? चर्चा है कि जब भी कार्यवाही की बात आती है तो सफाई कर्मियों द्वारा अधिकारियों व  क्षेत्र के प्रभावशाली लोगों द्वारा अधिकारियों पर‌ जबरन दबाव बनाया जाता है। उधर विभागीय अधिकारियों जिला पंचायत राज अधिकारी जनपद-कुशीनगर के पास फोन किए जाने पर फोन हमेशा स्वीच ऑफ रहता है। लगता है कि इन्हीं माननीय का संरक्षण प्राप्त है। क्योंकि इनके द्वारा कभी भी ज़िले में दौड़ा करने का समाचार प्राप्त नहीं हुआ है। यदि ऐसी बात नहीं है तो वर्षों से लापरवाह व अनुशासनहीन कमियों के खिलाफ जांच पड़ताल करके कार्यवाही क्यों नहीं की जाती है। 

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