मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

अखिलेश बेहतर पिता, पति व पुत्र, राजनीतिज्ञ नहीं

मोहम्मद जाहिद 

पटना/लखनऊ। अखिलेश यादव की राजनीती भाजपा और योगी के सामने समर्पण की हो चुकी है। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उनके व्यवहार आचरण और राजनीति की यदि विवेचना की जाए तो यह व्यक्ति एक पार्ट टाईम पाॅलिटीशियन से अधिक कुछ नहीं। अखिलेश यादव एक नेता से अधिक बेहतर पति और पिता हैं, और मुझे लगता है कि उनको राजनीति में औरों के लिए रास्ता छोड़ कर अपना परिवार ही संभालना चाहिए। वैसे भी अखिलेश यादव की राजनीति , समाजवादी पार्टी के संस्थापक लोगों को ठिकाने लगाने की ही रही है , समाजवादी पार्टी का वजूद जिन लोगों ने बनाया , अखिलेश उनको ठिकाने लगा चुके हैं। सत्ता में रहते , अपने पिता को ठिकाने लगाया तो उनकी खुद की परवरिश करने वाले शिवपाल यादव को भी उन्होंने ठिखाने लगाया। उनका विवाह करवाने वाले अमर सिंह को ठिकाने लगाया। अतीक अहमद से लेकर मुख्तार अहमद अंसारी और राजा भैय्या तक को अखिलेश ने ठिकाने लगा दिया। जबकि समाजवादी पार्टी के सत्ता का इतिहास इन लोगों के ही कंधे पर ही रहा है। यही लोग जहाँ खड़े हो जाते थे समाजवादी पार्टी का खूटा गड़ जाता था। ऐसे ही दबंग लोगों के सहारे भाजपा भी आज सत्ता में है। बल्कि कुछ का इतिहास तो इनसे भी बुरा है। दरअसल उत्तर प्रदेश और बिहार में बाहुबली ही जनता का आकर्षण होते हैं। उनके समर्थन का एक महत्व होता है। राजनीति में बाहुबलियों की भागीदारी एक अलग बहस का विषय है , पर जनता इनसे प्रभावित होकर कई सीटों पर फर्क पैदा कर देती है यह यथार्थ है। विरोधी का मनोबल भी भी इनके कारण टूटता है और वह कुछ गलत या हेरफेर नहीं कर पाते।

यद्धपि राजनीति में ऐसे तत्वों का मैं समर्थक नहीं पर यथार्थ यही है , सच यही है कि ऐसे लोग हर दल में हैं और विशेषकर भाजपा में तो बहुत हैं , इसीलिए वह सत्ता में है। अखिलेश यादव , आज जो लिजलिजहे और पिलपिलहे नेता इसी कारण बन गये क्युँकि उनके इर्द गिर्द कोई मज़बूत और दबंग नेता ना होकर ब्राम्हणों का जमावड़ा है। आप अखिलेश की पूरी राजनीति पर गौर करिए , कभी किसी के साथ खड़े नहीं मिलेंगे, जबकि मुलायम सिंह यादव की राजनीति देखिए, वह फूलन देवी जैसी शख्सियत को जेल से बाहर कराकर उनको बेटी बनाया और सांसद में पहुँचा दिया। अखिलेश यादव एक डरपोक व्यक्ति हैं। और मेरा आरोप है कि आज़म खान का सपरिवार जेल में होना भाजपा सरकार से उनकी किसी डील के कारण ही है। और इस तरह अखिलेश यादव ने आज़मखान को निबटा दिया। आज़म खान के साथ ना उस तरह पार्टी खड़ी हो सकी ना अखिलेश यादव। यह योगी जी की अखिलेश यादव के दिल में बैठी दहशत का उदाहरण है। बताईए , एक पार्टी के दो सांसद और एक विधायक किताब और बकरी चोरी के आरीप में जेल में डाल दिए गये और पार्टी चुप , उसका नेता चुप। वैसे भी , बात केवल आज़मखान की नहीं है , मुसलमान भारत की राजनीति में हमेशा ठगा ही गया है। ऊपर से "मुस्लिम तुष्टिकरण" के आरोप का भाजपा के खड़े किए गये हौव्वे से नेताओं और पार्टियों में मुसलमान नाम लेने तक से डर बैठ गया है। जबकि "मुस्लिम तुष्टिकरण" की हकीकत एकदम विपरीत है। मुसलमान के लिए सरकार तो छोड़िए गठबंधन का कोर वोटर ही उसका वोटर नहीं।

आईए एक उदाहरण देखिए

बिहार विधानसभा चुनाव में जिन जिन मुस्लिम-यादव बाहुल्य सीट पर "मुस्लिम" प्रत्याशी हारे हैं, उन सब सीटों पर यादव जाति के लोगों ने महागठबंधन के मुस्लिम प्रत्याशी को वोट नही दिया है। बिहार और उत्तर प्रदेश के कथित मुस्लिम-यादव समीकरण की यही हकीकत है, यह अजीबो गरीब हैरत अंगेज़ समीकरण है कि जिस यादव जाति का वोट 12% है उसके इसी मुस्लिम-यादव समीकरण से उत्तर प्रदेश और बिहार में विधायक जीत कर सरकार बनाते रहे हैं और जिस मुस्लिम समुदाय का वोट 18% है उसके 9 विधायक बनते हैं। यह कैसा मुस्लिम यादव समीकरण है भाई ? मुस्लिम-यादव समीकरण का यही यथार्थ है। और मुसलमानों को इसी समीकरण के नाम से ठगा जा रहा है। पहले तो एक आज़मखान को इसका मुआवजा मिल जाता था तो भी मुसलमान सब्र कर लेता था , अब वह भी सपरिवार जेल में ठूस दिए गये।

राजद के कद्दावर नेता "अब्दुल बारी सिद्दीक़ी" इस बार बिहार के केवटी विधानसभा सीट से चुनाव लड़े थे, गठबंधन की सरकार बनती तो वह निश्चित रूप से उपमुख्यमंत्री बनते। केवटी विधानसभा सीट मुस्लिम बाहुल्य है, यानी मुस्लिम, ब्राह्मण और यादव की आबादी इस सीट पर ज़्यादा है, बावजूद इसके बिहार के कद्दावर नेता अब्दुल बारी साहब चुनाव हार गए। वह उपमुख्यमंत्री ना बनें इसलिए उनको हरवा दिया गया। क्युँ हार गये ? इसकी विवेचना होगी तो पता चलेगा कि यादव लोग "भाजपा" को वोट दे दिए। ऐसी सिर्फ एक यही सीट नही है, एक दर्जन से ज़्यादा ऐसी सीटें हैं जहां से महागठबंधन के "मुस्लिम प्रत्याशी" चुनाव हारे हैं। जबकि महागठबंधन के मुस्लिम प्रत्याशियों की हारी हुई उन सीटों की आप समीक्षा करेंगे तो हर सीट या तो मुस्लिम बाहुल्य है या मुस्लिम-यादव बाहुल्य है, बावजूद इसके उन सभी सीटों पर "मुस्लिम" प्रत्याशी चुनाव हारे हैं। 

आखिर कैसे? 

जिन यादव-मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर यादव प्रत्याशी थे उन सीटों पर यादव चुनाव जीत गये क्युँकि "मुसलमानों" ने गठबंधन को वोट किया, लेकिन जिन मुस्लिम-यादव बाहुल्य सीटों पर "मुस्लिम प्रत्याशी" थे वहां के यादव भाजपा को वोट दिए। यही काम आज़मगढ़ में मुसलमान कर दे तो अखिलेश और उनके अब्बा की लोकसभा में लुटिया डूब गयी होती पर यह लोग वहाँ से लगातार जीतते रहे हैं। सिद्दीकी साहब के चुनाव हारने के बाद राजद के दरभंगा के जिलाध्यक्ष राम नरेश यादव का एक ऑडियो वायरल हुआ था, जिसमे वह कहते हैं। "सिद्दिकिया मुसलमान बा ओकरा चुनाव हरवावे के बा" यही स्थीति उत्तर प्रदेश की भी है। और अफसोस कि इसे दूर करने के लिए नेतृत्व की तरफ से कोई प्रयास नहीं हुआ। ना तेजस्वी ने किया ना अखिलेश ने।

तेजस्वी तो अंजाम भुगत गये हैं , अब एक साल बाद फिर से अखिलेश की बारी अंजाम भुगतने की है। इससे निबटने की बजाय वह जिस तरह "डीएसएलआर" कैमरे के सामने दावत उड़ा रहे हैं , सोशलमीडिया पर शेर ओ शायरी कर रहे हैं उससे आभास होता है कि वह अब अंत में पार्टी को ही ठिकाने लगाने में लग गये हैं।इंतज़ार करिए तब तक।

         

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