वाशिंगटन डीसी/ नई दिल्ली/ सिडनी/ लंदन/ रियाद/सियोल/ मास्कों। 'गूगल' दुनिया की सबसे बड़ी धोखाधड़ी करने वाली डिजिटल व्यवस्था है। जिसके कारण दुनिया की ज्यादातर व्यवस्था विभिन्न प्रकार की विपदा और आपदाओं से घिंरे हुए हैं। गूगल अपने आर्थिक स्वार्थ और निजी लाभ के लिए दुनिया की विभिन्न प्रकार की व्यवस्थाओं का निजीकरण कर रहा है। इससे हमारा देश भी अछूता नहीं है। दुनिया में ज्यादातर अपराध साइबर के आधार पर किए जाते हैं। जिसकी सारी जिम्मेदारी 'गूगल' की है। लेकिन गूगल से संबंध तोड़ने के चक्कर में सभी व्यवस्थाएं थर-थर कांपती है। इसी कारण यह व्यवस्था पूरी दुनिया में प्रचलित है। जिसका दंश आधुनिक युग का मानव झेल भी रहा है। भारत देश की जनता ही नहीं बल्कि, कई अरब नागरिक इस वायरस की शिकार है। जिसका "डब्ल्यूएचओ" के पास भी कोई समाधान, नहीं है। किसी सरकार या किसी सामान्य प्रक्रिया के तहत इसका कोई भी उपचार नहीं है। यह केवल शोषण और राजनीतिक विश्लेषण का प्रायोगिक केंद्र है। इस प्रकार की व्यवस्थाओं से बचने के लिए कोई भी प्रतिभा अभी तक सामने क्यों नहीं आई है? क्या किसान आंदोलन को हम इसका पूरक समझ सकते हैं ?
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