शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

क्या केवल बड़े किसानों को एमएसपी का फायदा

क्या केवल अमीर और बड़े किसानों को एमएसपी का फायदा
अंकुर मौर्य 
नई दिल्ली। मौजूदा कृषि कानूनों को लेकर बहुत कन्फ्यूज़न ही कन्फ्यूज़न है। ये तो रीती है। आजतक जितने भी कानून बनें सबने किसान, गरीब, मज़दूर का विकास नहीं किया केवल उद्योगपतियों ने ही कानूनों से खेला है। जिसका नतीज़ा यही होता है। कि गरीब और गरीब बनता जा रहा है। और अमीर और अमीर बनता जा रहा है। वहीं मीडल क्लास आदमी आदमी नहीं चू**या रहता है। खेर ये तो बातें है। पर अभी जो हो रहा उसपर गौर किया जाए तो कुछ ऐसे तथ्य जिन्हें सत्य मान लिया गया है। वो पुरानी कहावत है। ना कि एक झूठ को सौ बार बोला जाए तो वह सच लगने लगता है। ठीक वैसा ही कुछ हो रहा है। मौजूदा विवादित कानून की चर्चाओं में जब तथ्य रखे जाते हैं। इसमें कुछ चीज़े ऐसी है। जो आपको बार-बार सुनने को मिलेंगी मुझे भी मिलती है। तो सोचा इसके ऊपर कुछ लिखा जाए, इसी पर द हिंदू अख़बार ने एक बहुत बढ़िया रिसर्च्ड आर्टिकल छापा था। कुछ दिन फहले।
इस आर्टिकल के सहारे उन तथ्यों को में बताना चाहता हूं जिन्हें पूरी तरह से सच मान लिया गया है। जिसमें एक बड़ा फंडा है। एम एस पी का यानी ‘’न्यूनतम समर्थन एम एस पी का मूल्य जिसका जिक्र कानूनों में नहीं है। पर जब इस पर बात होती है। तो अकसर ये कहा जाता है।कि एमएसपी का फायदा केवल बड़े किसानों को मिलत है। जो 6% है। सर्वे के अनुसार.. और केवल पंजाब, हरियाणा और उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों को ही का फायदा मिलता है। पूरे देश को नहीं यानी सीधे-सीधे ये कहा जाता है। कि केवल अमीर किसान ही एमएसपी का फायदा उठा रहे हैं। बाकी पूरे देश के अन्य राज्यों को इसका फायदा नहीं मिल रहा है।
लेकिन अगर हम देखें तो एमएसपी का फायदा तमाम राज्यों को मिलता है। और जो जानकारी फैलाई जा रही है। वो गलत है।इसको समझने के लिए समझते है। विकेन्द्रीकृत खरीद योजना। यानी ये भारत सरकार 1997-98 के बीच में लायी थी। जिसका मकसद था। कि एमएसपी को सही तरीके से तमाम राज्यों तक पंहुचाया जा सके और उन्हें लाभ मिल सके और इसमें सरकार को बहुत हद सफल भी रही है । इस योजना को कांग्रेस ने लंबे समय तक  चलाया अब मौजूदा सरकार इसे कितना चलाएगी ये देखने वाली बात होगी खेर इस मामले में एफसीआई का डाटा कहता है। कि 15 राज्यों ने इस योजना को अपनाया , हालांकि ये बात सही है। एमएसपी लंबे समय से पंजाब, हरियाणा और उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में काफी अच्छी स्टेबल है। लेकिन इस योजना के बाद लगभग सन 2001 के बाद स्थिति बदली है।
वो ऐसे की 2001 से पहले 90% गेंहू और चावल की बिक्री सरकार पंजाब, हरियाणा और उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों से खरीदती थी। और केवल 10% अन्य राज्यों से  लेकिन 2001 के बाद इसकी तस्वीर बदली इसमें छत्तीसगढ़ और उड़ीसा ने जमकर तरक्की की है। वो ऐसे की इन दोनों राज्य से पूरे देश से सरकार एमएसपी के अंडर जो चावल खरीदती है। वो 10%-10% इन दोनों राज्यों से लिए है।वहीं अगर गेंहू की बात की जाए तो मध्यप्रदेश से 20% गेंहू लिया गया है। इतना ही नहीं साल 2020-21 की बात की जाए तो पंजाब से ज़्यादा मध्यप्रदेश से गेंहू लिया गया है।
वही अगर एमएसपी के वो हाउसहोल्ड यानी जो एमएसपी के अंडर बेच रहे हैं। जिसमें चावल की खेती की बात की जाये तो इसमें भी पंजाब और हरियाणा से आगे ओडिशा और छत्तीसगढ़ है।जिसमें 9% और 7% हाउसहोल्ड पंजाब और हरियाणा में है। वहीं 11% और 33% उड़ीशा और छत्तीसगढ़ में है। वहीं मध्यप्रदेश में गेंहू वाले हाउसहोल्ड पंजाब और हरियाणा से अधिक मात्रा में है। तो इसका मतलब ये है। कि मौजूदा समय में ये कह देना की एमएसपी का फायदा केवल हरियाणा उर पंजाब को मिल रहा है। ये बिल्कुल गलत है।
एमएसपी का फायदा केवल अमीर किसानों को होता है। ये भी कई बार कहा जाता है। पर ये भी गलत है। क्योंकि अगर आंकड़े देखें तो बड़े किसानों की तुलना में छोटे और मध्यम किसानों ने एमएसपी के अंडर अपनी फसल ज़्यादा बेची है। अगर चावल की बात की जाए तो पूरे देश में एमएसपी के अंडर बेचने वाले 1% किसान ऐसे थे। जिनकी जमीन 10 हेक्टेयर से ज़्यादा थी, वहीं 70% किसान ऐसे थे। जिनकी ज़मीन 2 हेक्टेयर से भी कम थी। जिन्होंने एमएसपी के अंडर चावल बेचा वहीं गेंहू में भी आंकड़ा कुछ ऐसा ही है। हालांकि ऊपर नीचे है। पर छोटे किसानों की संख्या ज़्यादा है। 
यानी एमएसपी का फायदा गरीब किसानों को भी होता है। और पंजाब-हरियाणा के अलावा दूसरे राज्यों में भी इसका फायदा पहुंच रहा है। और किसान को इसी एमएसपी  का डर ज़्यादा है। कि कहीं कॉरपरेट घराना इसे खत्म ना करदे।

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